26-12-2019, 03:24 PM
जीतूजी अपर्णा को अपनी बाँहों में उठाकर चल कर किनारे ले आये और रेत में लिटा कर अपर्णा के उन्मत्त स्तनोँ के ऊपर अपने हाथों से अपना पूरा वजन देकर उन्हें दबाने लगे जिससे अपर्णा पीया हुआ पानी उगल दे और उसकी साँसें फिर से साधारण चलने लग जाएँ। तीन या चार बार यह करने से अपर्णा के मुंह से काफी सारा पानी फव्वारे की तरह निकल पड़ा। जैसेही पानी निकलातो अपर्णा की साँसे फिर से साधारण गति से चलने लगीं। अपर्णा ने जब आँखें खोलीं तो जीतूजी को अपने स्तनोँ को दबाते हुए पाया। अपर्णा ने देखा की जीतूजी अपर्णा को लेकर काफी चिंतित थे। उन्हें यह भी होश नहीं था की अफरातफरी में उनकी निक्कर पानी में छूट गयी थी और वह नंगधडंग थे। जीतूजी यह सोच कर परेशान थे की कहीं अपर्णा की हालत और बिगड़ गयी तो किसको बुलाएंगे यह देखने के लिए वह इधर उधर देख रहे थे। अपर्णा फिर अपनी आँखें मूंद कर पड़ी रही। जीतूजी का हाथ जो उसके स्तनों को दबा रहा था अपर्णा को वह काफी उत्तेजित कर रहा था। पर चूँकि अपर्णा जीतूजी को ज्यादा परेशान नहीं देखना चाहती थी इस लिए उसने जीतूजी का हाथ पकड़ा ताकि जीतूजी समझ जाएँ की अपर्णा अब ठीक थी, पर वैसे ही पड़ी रही। चूँकि अपर्णा ने जीतूजी का हाथ कस के पकड़ा था, जीतूजी अपना हाथ अपर्णा के स्तनोँ पर से हटा नहीं पाए।
जब जीतूजी ने अपर्णाके स्तनोँ के ऊपरसे अपना हाथ हटा ने की कोशिश की तब अपर्णा ने फिर से उनका हाथ कस के पकड़ा और बोली, "जीतूजी, आप हाथ मत हटाइये। मुझे अच्छा लग रहा है।" ऐसा कह कर अपर्णा ने जीतूजी को अपने स्तनोँ को दबाने की छूट देदी। जीतूजी ना चाहते हुए भी अपर्णा के उन्नत स्तनोँ को मसलने से अपने आपको रोक नहीं पाए। अपर्णा ने अपना हाथ खिसकाया और जीतूजी का खड़ा अल्लड़ लण्ड एक हाथ में लिया तब जीतूजी को समझ आया की वह पूरी तरह से नंगधडंग थे। जीतूजी अपर्णा के हाथ से अपना लण्ड छुड़ाकर एकदम भाग कर पानी में चले गए और अपनी निक्कर ढूंढने लगे। जब उनको निक्कर मिल गयी और वह उसे पहनने लगे थे की अपर्णा जीतूजी के पीछे चलती हुई उनके पास पहुँच गयी। जीतूजी के हाथ से एक ही झटके में उनकी निक्कर छिनती हुई बोली, "जीतूजी, निक्कर छोड़िये। अब हम दोनों के बिच कोई पर्दा रखने की जरुरत नहीं है।"
ऐसा कह कर अपर्णा ने जीतूजी की निक्कर को पानी के बाहर फेंक दिया। फिर अपर्णा ने अपनी बाँहें फैला कर जीतूजी से कहा, "अब मुझे भी कॉस्च्यूम को पहनने की जरुरत नहीं है। चलिए मुझे आप अपना बना लीजिये। या मैं यह कहूं की आइये और अपने मन की सारी इच्छा पूरी कीजिये?" यह कह कर जैसे ही अपर्णा अपना कॉस्टूयूम निकाल ने के लिए तैयार हुई की जीतूजी ने अपर्णा का हाथ पकड़ा और बोले, "अपर्णा नहीं। खबरदार! तुम अपना कॉस्टूयूम नहीं निकालोगी। मैं तुम्हें सौगंध देता हूँ। मैं तुम्हें तभी निर्वस्त्र देखूंगा जब तुम अपना शरीर मेरे सामने घुटने टेक कर तब समर्पित करोगी जब तुम्हारा प्रण पूरा होगा। मैं तुम्हें अपना वचन तोडने नहीं दूंगा। चाहे इसके लिए मुझे कई जन्मों तक ही इंतजार क्यों ना करना पड़े।" यह बात सुनकर अपर्णा का ह्रदय जैसे कटार के घाव से दो टुकड़े हो गया। अपने प्रीयतम के ह्रदय में वह कितना दुःख दे रही थी? अपर्णा ने अपने आपको जीतूजी को समर्पण करना भी चाहा पर जीतूजी थे की मान नहीं रहे थे! वह क्या करे? अब तो जीतूजी अपर्णा के कहने पर भी उसे कुछ नहीं करेंगे। अपर्णा दुःख और भावनात्मक स्थिति में और कुछ ना बोल सकी और जीतूजी से लिपट गयी। जीतूजी का खड़ा फनफनाता लण्ड अपर्णा की चूत में घुसने के लिए जैसे पागल हो रहा था, पर अपने मालिक की नामर्जी के कारण असहाय था। इस मज़बूरीमें जब अपर्णा जीतूजी से लिपट गयी तो वह अपर्णा के कॉस्च्यूम के कपडे पर अपना दबाव डाल कर ही अपना मन बहला रहा था।
जब जीतूजी ने अपर्णाके स्तनोँ के ऊपरसे अपना हाथ हटा ने की कोशिश की तब अपर्णा ने फिर से उनका हाथ कस के पकड़ा और बोली, "जीतूजी, आप हाथ मत हटाइये। मुझे अच्छा लग रहा है।" ऐसा कह कर अपर्णा ने जीतूजी को अपने स्तनोँ को दबाने की छूट देदी। जीतूजी ना चाहते हुए भी अपर्णा के उन्नत स्तनोँ को मसलने से अपने आपको रोक नहीं पाए। अपर्णा ने अपना हाथ खिसकाया और जीतूजी का खड़ा अल्लड़ लण्ड एक हाथ में लिया तब जीतूजी को समझ आया की वह पूरी तरह से नंगधडंग थे। जीतूजी अपर्णा के हाथ से अपना लण्ड छुड़ाकर एकदम भाग कर पानी में चले गए और अपनी निक्कर ढूंढने लगे। जब उनको निक्कर मिल गयी और वह उसे पहनने लगे थे की अपर्णा जीतूजी के पीछे चलती हुई उनके पास पहुँच गयी। जीतूजी के हाथ से एक ही झटके में उनकी निक्कर छिनती हुई बोली, "जीतूजी, निक्कर छोड़िये। अब हम दोनों के बिच कोई पर्दा रखने की जरुरत नहीं है।"
ऐसा कह कर अपर्णा ने जीतूजी की निक्कर को पानी के बाहर फेंक दिया। फिर अपर्णा ने अपनी बाँहें फैला कर जीतूजी से कहा, "अब मुझे भी कॉस्च्यूम को पहनने की जरुरत नहीं है। चलिए मुझे आप अपना बना लीजिये। या मैं यह कहूं की आइये और अपने मन की सारी इच्छा पूरी कीजिये?" यह कह कर जैसे ही अपर्णा अपना कॉस्टूयूम निकाल ने के लिए तैयार हुई की जीतूजी ने अपर्णा का हाथ पकड़ा और बोले, "अपर्णा नहीं। खबरदार! तुम अपना कॉस्टूयूम नहीं निकालोगी। मैं तुम्हें सौगंध देता हूँ। मैं तुम्हें तभी निर्वस्त्र देखूंगा जब तुम अपना शरीर मेरे सामने घुटने टेक कर तब समर्पित करोगी जब तुम्हारा प्रण पूरा होगा। मैं तुम्हें अपना वचन तोडने नहीं दूंगा। चाहे इसके लिए मुझे कई जन्मों तक ही इंतजार क्यों ना करना पड़े।" यह बात सुनकर अपर्णा का ह्रदय जैसे कटार के घाव से दो टुकड़े हो गया। अपने प्रीयतम के ह्रदय में वह कितना दुःख दे रही थी? अपर्णा ने अपने आपको जीतूजी को समर्पण करना भी चाहा पर जीतूजी थे की मान नहीं रहे थे! वह क्या करे? अब तो जीतूजी अपर्णा के कहने पर भी उसे कुछ नहीं करेंगे। अपर्णा दुःख और भावनात्मक स्थिति में और कुछ ना बोल सकी और जीतूजी से लिपट गयी। जीतूजी का खड़ा फनफनाता लण्ड अपर्णा की चूत में घुसने के लिए जैसे पागल हो रहा था, पर अपने मालिक की नामर्जी के कारण असहाय था। इस मज़बूरीमें जब अपर्णा जीतूजी से लिपट गयी तो वह अपर्णा के कॉस्च्यूम के कपडे पर अपना दबाव डाल कर ही अपना मन बहला रहा था।