26-12-2019, 03:23 PM
पर जीतूजी भी तो अकड़ू थे। वह दया, दान, मज़बूरी या भिक्षा नहीं वह अपनी प्रियतमा से प्यार भरा सक्रीय एवं स्वैच्छिक सम्पूर्ण आत्म समर्पण चाहते थे। ट्रैन में सफर करते हुए जीतूजी अपर्णा के बिस्तर में जा घूसे थे उस वाकये के कारण वह अपने आपसे बड़े नाराज थे। कैसे उन्होंने अपने आप पर नियत्रण खो दिया? जब अपर्णा ने उन्हें स्पष्ट शब्दों में कहा था की वह उनसे शारीरिक सम्बन्ध नहीं रख सकती तब क्यों वह अपर्णा के बिस्तर में चले गए? यह तो उनके सिद्धांतों के बिलकुल विरुद्ध था। उन्होंने अपर्णा के सामने सौगंध सी खायी थी की जब तक अपर्णा सामने चलकर अपना स्वैच्छिक सक्रीय एवं सम्पूर्ण आत्म समर्पण नहीं करेगी तब तक वह अपर्णा को किसी भी तरह के शारीरिक सम्बन्ध के लिए बाध्य नहीं करेंगे। पर फीर भी ट्रैन में उस रात अपर्णा के थोड़ा उकसाने पर वह अपर्णा के बिस्तर में घुस गए और अपनी इज्जत दाँव पर लगा दी यह पछतावा जीतूजी के ह्रदय को खाये जा रहा था।
अपर्णा ने तो अपने मन में तय कर लिया की जीतूजी उसके साथ जो व्यवहार करेंगे वह उसे स्वीकारेगी। अगर जीतूजी ने अपर्णा को चोदने की इच्छा जताई तो अपर्णा जीतूजी से चुदवाने के लिए भी मना नहीं करेगी, हालांकि ऐसा करने से उसने माँ को दिया गया वचन टूट जाएगा। पर अपर्णाको पूरा भरोसा था की जीतूजी एक सख्त नियम पालन करने वाले इंसान थे और वह कभी भी अपर्णा का विश्वास नहीं तोड़ेंगे।
जीतूजी ने अपर्णा को सीमेंट की फर्श पर गाड़े हुए स्टील के बार हाथ में पकड़ कर पानी को सतह पर उलटा लेट कर पॉंव एक के बाद एक पछाड़ ने को कहा। खुद स्टील का पाइप पकड़ कर जैसे सिख रहे हों ऐसे पानी की सतह पर उलटा लेट गए और पॉंव को सीधा रखते हुए ऊपर निचे करते हुए अपर्णा को दिखाया। और अपर्णा को भी ऐसा ही करने को कहा। अपर्णा जीतूजी के कहे मुजब स्टील के बार को पकड़ कर पानी की सतह पर उल्टी लेट गयी। उसकी नंगी गाँड़ जीतूजी की आँखों को परेशान कर रही थी। वह अपर्णा की सुआकार गाँड़ देखते ही रह गए। अपर्णा की नंगी गाँड़ देख कर जीतूजी का लण्ड जीतूजी के मानसिक नियत्रण को ठेंगा दिखाता हुआ जीतूजी की दो जाँघों के बिच निक्कर में कूद रहा था। पर जीतूजी ने अपने ऊपर कडा नियत्रण रखते हुए उस पर ध्यान नहीं दिया। जीतूजी के लिए बड़ी दुविधा थी। उन्हें डर था की अगर उन्होंने अपर्णा के करारे बदन को इधर उधर छु लिया तो कहीं वह अपने आप पर नियत्रण तो नहीं खो देंगे? जब अपर्णा ने यह देखा तो उसे बड़ा दुःख हुआ। वह जानती थी की जीतूजी उसे चोदने के लिए कितना तड़प रहे थे। अपर्णा को ऐसे कॉस्च्यूम में देख कर भी वह अपने आप पर जबर दस्त कण्ट्रोल रख रहे थे। हालांकि यह साफ़ था की जीतूजी का लण्ड उनकी बात मान नहीं रहा था।
खैर होनी को कौन टाल सकता है? यह सोचकर अपर्णा ने जीतूजी का हाथ थामा और कहा, "जीतूजी, अब आप मुझे तैरना सिखाएंगे की नहीं? पहले जब मैं झिझक रही थी तब आप मुझ पर नाराज हो रहे थे। अब आप झिझक रहे हो तो क्या मुझे नाराज होने का अधिकार नहीं?" अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी मुस्कुरा दिए। अपने आप को सम्हालते हुए बोले, "अपर्णा मैं सच कहता हूँ। पता नहीं तुम्हें देख कर मुझे क्या हो जाता है। मैं अपना आपा खो बैठता हूँ। आज तक मुझे किसी भी लड़की या स्त्री के लिए ऐसा भाव नहीं हुआ। श्रेया के लिए भी नहीं।" अपर्णा ने कहा, "जीतूजी मुझमें कोई खासियत नहीं है। यह आपका मेरे ऊपर प्रेम है। कहावत है ना की 'पराये का चेहरा कितना ही खूबसूरत क्यों ना हो तो भी उतना प्यारा नहीं लगता जितनी अपने प्यारे की लगती है। अपर्णा जीतूजी के सामने गाँड़ शब्द बोल नहीं पायी। अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी हंस पड़े और अपर्णा की नंगी गाँड़ देखते हुए बोले, "अपर्णा, मैं तुम्हारी बात से पूरी तरह सहमत हूँ।"
अपर्णा ने तो अपने मन में तय कर लिया की जीतूजी उसके साथ जो व्यवहार करेंगे वह उसे स्वीकारेगी। अगर जीतूजी ने अपर्णा को चोदने की इच्छा जताई तो अपर्णा जीतूजी से चुदवाने के लिए भी मना नहीं करेगी, हालांकि ऐसा करने से उसने माँ को दिया गया वचन टूट जाएगा। पर अपर्णाको पूरा भरोसा था की जीतूजी एक सख्त नियम पालन करने वाले इंसान थे और वह कभी भी अपर्णा का विश्वास नहीं तोड़ेंगे।
जीतूजी ने अपर्णा को सीमेंट की फर्श पर गाड़े हुए स्टील के बार हाथ में पकड़ कर पानी को सतह पर उलटा लेट कर पॉंव एक के बाद एक पछाड़ ने को कहा। खुद स्टील का पाइप पकड़ कर जैसे सिख रहे हों ऐसे पानी की सतह पर उलटा लेट गए और पॉंव को सीधा रखते हुए ऊपर निचे करते हुए अपर्णा को दिखाया। और अपर्णा को भी ऐसा ही करने को कहा। अपर्णा जीतूजी के कहे मुजब स्टील के बार को पकड़ कर पानी की सतह पर उल्टी लेट गयी। उसकी नंगी गाँड़ जीतूजी की आँखों को परेशान कर रही थी। वह अपर्णा की सुआकार गाँड़ देखते ही रह गए। अपर्णा की नंगी गाँड़ देख कर जीतूजी का लण्ड जीतूजी के मानसिक नियत्रण को ठेंगा दिखाता हुआ जीतूजी की दो जाँघों के बिच निक्कर में कूद रहा था। पर जीतूजी ने अपने ऊपर कडा नियत्रण रखते हुए उस पर ध्यान नहीं दिया। जीतूजी के लिए बड़ी दुविधा थी। उन्हें डर था की अगर उन्होंने अपर्णा के करारे बदन को इधर उधर छु लिया तो कहीं वह अपने आप पर नियत्रण तो नहीं खो देंगे? जब अपर्णा ने यह देखा तो उसे बड़ा दुःख हुआ। वह जानती थी की जीतूजी उसे चोदने के लिए कितना तड़प रहे थे। अपर्णा को ऐसे कॉस्च्यूम में देख कर भी वह अपने आप पर जबर दस्त कण्ट्रोल रख रहे थे। हालांकि यह साफ़ था की जीतूजी का लण्ड उनकी बात मान नहीं रहा था।
खैर होनी को कौन टाल सकता है? यह सोचकर अपर्णा ने जीतूजी का हाथ थामा और कहा, "जीतूजी, अब आप मुझे तैरना सिखाएंगे की नहीं? पहले जब मैं झिझक रही थी तब आप मुझ पर नाराज हो रहे थे। अब आप झिझक रहे हो तो क्या मुझे नाराज होने का अधिकार नहीं?" अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी मुस्कुरा दिए। अपने आप को सम्हालते हुए बोले, "अपर्णा मैं सच कहता हूँ। पता नहीं तुम्हें देख कर मुझे क्या हो जाता है। मैं अपना आपा खो बैठता हूँ। आज तक मुझे किसी भी लड़की या स्त्री के लिए ऐसा भाव नहीं हुआ। श्रेया के लिए भी नहीं।" अपर्णा ने कहा, "जीतूजी मुझमें कोई खासियत नहीं है। यह आपका मेरे ऊपर प्रेम है। कहावत है ना की 'पराये का चेहरा कितना ही खूबसूरत क्यों ना हो तो भी उतना प्यारा नहीं लगता जितनी अपने प्यारे की लगती है। अपर्णा जीतूजी के सामने गाँड़ शब्द बोल नहीं पायी। अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी हंस पड़े और अपर्णा की नंगी गाँड़ देखते हुए बोले, "अपर्णा, मैं तुम्हारी बात से पूरी तरह सहमत हूँ।"