26-12-2019, 03:20 PM
पत्नी की अदला-बदली - 06
अपर्णा जैसे ही जीतूजी की बाँहों में समायी उसने जीतूजी के खड़े लण्ड को महसूस किया। अपर्णा जानती थी की जीतूजी उस पर कोई जबरदस्ती नहीं करेंगे पर बेचारा जीतूजी का लण्ड कहाँ मानने वाला था? अपर्णा को ऐसे स्विमिंग कॉस्च्यूम में देख कर जीतूजी के लण्ड का खड़ा होकर जीतूजी की निक्कर में फनफनाना स्वाभाविक ही था। अपर्णा को जीतूजी के लण्ड से कोई शिकायत नहीं थी। दो बार अपर्णा ने जीतूजी के लण्ड की गरमी अपने दक्ष हाथों के जादू से निकाल दी थी। अपर्णा जीतूजी के लण्ड की लम्बाई और मोटाई के बारे में भलीभांति वाकिफ थी। पर उस समय उसका एक मात्र लक्ष्य था की उसे जीतूजी से तैरना सीखना था। कई बार अपर्णा को बड़ा अफ़सोस होता था की उसने तैरना नहीं सीखा था। काफी समय से अपर्णा के मन में यह एक प्रबल इच्छा थी की वह तैरना सीखे। जीतूजी जैसे आला प्रशिक्षक से जब उसे तैरना सिखने का मौक़ा मिला तो भला वह उसे क्यों जाने दे? जहां तक जीतूजी के उसके बदन छूने की बात थी तो वह अपर्णाके लिए उतनी गंभीर बात नहीं थी। अपर्णा के मन में जीतूजी का स्थान ह्रदयके इतना करीब था की उसका बस चलता तो वह अपनी पूरी जिंदगी जीतूजी पर कुर्बान कर देती। जीतूजी और अपर्णा के संबंधों को लेकर बार बार अपने पति के उकसाने के कारण अपर्णा के पुरे बदन में जीतूजी का नाम सुनकर ही एक रोमांच सा हो जाता था। जीतूजी से शारीरिक संबंधों के बारेमें अपर्णा के मन में हमेशा अजीबो गरीब ख़याल आते रहते थे। भला जिसको कोई इतना चाहता हो उसे कैसे कोई परहेज कर सकता है?
अपर्णा मन में कहीं ना कहीं जीतूजी को अपना प्रियतम तो मान ही चुकी थी। अपर्णा के मन में जीतूजी का शारीरिक और मानसिक आकर्षण उतना जबरदस्त था की अगर उसके पाँव माँ के वचन ने रोके नहीं होते तो शायद अब तक अपर्णा जीतूजी से चुद चुकी होती। पर एक आखरी पड़ाव पार करना बाकी था शायद इस के कारण अब भी जीतूजी से अपर्णा के मन में कुछ शर्म और लज्जा और दुरी का भाव था। या यूँ कहिये की कोई दुरी नहीं होती है तब भी जिसे आप इतना सम्मान करते हैं और उतना ही प्यार करते हो तो उसके सामने निर्लज्ज तो नहीं हो सकते ना? उनसे कुछ लज्जा और शर्म आना स्वाभाविक भारतीय संस्कृति है। जब जीतूजी के सामने अपर्णा ने आधी नंगी सी आने में हिचकि-चाहट की तो जीतूजी की रंजिश अपर्णा को दिखाई दी। अपर्णा जानती थी की जीतूजी कभी भी अपर्णा को बिना रजामंदी के चोदने की बात तो दूर वह किसी भी तरह से छेड़ेंगे भी नहीं। पर फिर भी अपर्णा कभी इतने छोटे कपड़ों में सूरज के प्रकाश में जीतूजी के सामने प्रस्तुत नहीं हुई थी। इस लिए उसे शर्म और लज्जा आना स्वाभाविक था। शायद ऐसे कपड़ों में पत्नीयाँ भी अपने पति के सामने हाजिर होने से झिझकेंगी। जब जीतूजी ने अपर्णा की यह हिचकिचाहट देखि तो उन्हें दुःख हुआ। उनको लगा अपर्णा को उनके करीब आने डर रही थी की कहीं जीतूजी अपर्णा पर जबरदस्ती ना कर बैठे। हार कर जीतूजी पानी से बाहर निकल आये और कैंप में वापस जाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने अपर्णा से इतना ही कहा की जब अपर्णा उन्हें अपना नहीं मानती और उनसे पर्दा करती है तो फिर बेहतर है वह अपर्णा से दूर ही रहें।
इस बात से अपर्णा को इतना बुरा लगा की वह भाग कर जीतूजी की बाँहों में लिपट गयी और उसने जीतूजी से कहा, "अब मैं आपको नहीं रोकूंगी। मैं आपको अपनों से कहीं ज्यादा मानती हूँ। अब आप मुझसे जो चाहे करो।" उसी समय अपर्णा ने तय किया की वह जीतूजी पर पूरा विश्वास रखेगी और तब उसने मन से अपना सब कुछ जीतूजी के हाथों में सौंप दिया।
अपर्णा जैसे ही जीतूजी की बाँहों में समायी उसने जीतूजी के खड़े लण्ड को महसूस किया। अपर्णा जानती थी की जीतूजी उस पर कोई जबरदस्ती नहीं करेंगे पर बेचारा जीतूजी का लण्ड कहाँ मानने वाला था? अपर्णा को ऐसे स्विमिंग कॉस्च्यूम में देख कर जीतूजी के लण्ड का खड़ा होकर जीतूजी की निक्कर में फनफनाना स्वाभाविक ही था। अपर्णा को जीतूजी के लण्ड से कोई शिकायत नहीं थी। दो बार अपर्णा ने जीतूजी के लण्ड की गरमी अपने दक्ष हाथों के जादू से निकाल दी थी। अपर्णा जीतूजी के लण्ड की लम्बाई और मोटाई के बारे में भलीभांति वाकिफ थी। पर उस समय उसका एक मात्र लक्ष्य था की उसे जीतूजी से तैरना सीखना था। कई बार अपर्णा को बड़ा अफ़सोस होता था की उसने तैरना नहीं सीखा था। काफी समय से अपर्णा के मन में यह एक प्रबल इच्छा थी की वह तैरना सीखे। जीतूजी जैसे आला प्रशिक्षक से जब उसे तैरना सिखने का मौक़ा मिला तो भला वह उसे क्यों जाने दे? जहां तक जीतूजी के उसके बदन छूने की बात थी तो वह अपर्णाके लिए उतनी गंभीर बात नहीं थी। अपर्णा के मन में जीतूजी का स्थान ह्रदयके इतना करीब था की उसका बस चलता तो वह अपनी पूरी जिंदगी जीतूजी पर कुर्बान कर देती। जीतूजी और अपर्णा के संबंधों को लेकर बार बार अपने पति के उकसाने के कारण अपर्णा के पुरे बदन में जीतूजी का नाम सुनकर ही एक रोमांच सा हो जाता था। जीतूजी से शारीरिक संबंधों के बारेमें अपर्णा के मन में हमेशा अजीबो गरीब ख़याल आते रहते थे। भला जिसको कोई इतना चाहता हो उसे कैसे कोई परहेज कर सकता है?
अपर्णा मन में कहीं ना कहीं जीतूजी को अपना प्रियतम तो मान ही चुकी थी। अपर्णा के मन में जीतूजी का शारीरिक और मानसिक आकर्षण उतना जबरदस्त था की अगर उसके पाँव माँ के वचन ने रोके नहीं होते तो शायद अब तक अपर्णा जीतूजी से चुद चुकी होती। पर एक आखरी पड़ाव पार करना बाकी था शायद इस के कारण अब भी जीतूजी से अपर्णा के मन में कुछ शर्म और लज्जा और दुरी का भाव था। या यूँ कहिये की कोई दुरी नहीं होती है तब भी जिसे आप इतना सम्मान करते हैं और उतना ही प्यार करते हो तो उसके सामने निर्लज्ज तो नहीं हो सकते ना? उनसे कुछ लज्जा और शर्म आना स्वाभाविक भारतीय संस्कृति है। जब जीतूजी के सामने अपर्णा ने आधी नंगी सी आने में हिचकि-चाहट की तो जीतूजी की रंजिश अपर्णा को दिखाई दी। अपर्णा जानती थी की जीतूजी कभी भी अपर्णा को बिना रजामंदी के चोदने की बात तो दूर वह किसी भी तरह से छेड़ेंगे भी नहीं। पर फिर भी अपर्णा कभी इतने छोटे कपड़ों में सूरज के प्रकाश में जीतूजी के सामने प्रस्तुत नहीं हुई थी। इस लिए उसे शर्म और लज्जा आना स्वाभाविक था। शायद ऐसे कपड़ों में पत्नीयाँ भी अपने पति के सामने हाजिर होने से झिझकेंगी। जब जीतूजी ने अपर्णा की यह हिचकिचाहट देखि तो उन्हें दुःख हुआ। उनको लगा अपर्णा को उनके करीब आने डर रही थी की कहीं जीतूजी अपर्णा पर जबरदस्ती ना कर बैठे। हार कर जीतूजी पानी से बाहर निकल आये और कैंप में वापस जाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने अपर्णा से इतना ही कहा की जब अपर्णा उन्हें अपना नहीं मानती और उनसे पर्दा करती है तो फिर बेहतर है वह अपर्णा से दूर ही रहें।
इस बात से अपर्णा को इतना बुरा लगा की वह भाग कर जीतूजी की बाँहों में लिपट गयी और उसने जीतूजी से कहा, "अब मैं आपको नहीं रोकूंगी। मैं आपको अपनों से कहीं ज्यादा मानती हूँ। अब आप मुझसे जो चाहे करो।" उसी समय अपर्णा ने तय किया की वह जीतूजी पर पूरा विश्वास रखेगी और तब उसने मन से अपना सब कुछ जीतूजी के हाथों में सौंप दिया।