26-12-2019, 03:08 PM
श्रेया ने कहा, "भाई घर की मुर्गी दाल बराबर यह कहावत मुझ पर तो जरूर लागू होती है पर अपर्णा पर नहीं होती।"
रोहित: "पर ऐसा आप क्यों कहते हो यह तो बताओ?"
श्रेया: "और नहीं तो क्या? अपनी बीबी से घर में भी पेट नहीं भरा तो आप ट्रैन में भी उसको छोड़ते नहीं हो, तो फिर में और क्या कहूं? हम ने तय किया था इस यात्रा दरम्यान आप और मैं और जीतूजी और अपर्णा की जोड़ी रहेगी। पर आप तो रात को अपनी बीबी के बिस्तरेमें ही घुस गए। क्या आपको मैं नजर नहीं आयी?" श्रेया फिर जैसे अपने आप को ही उलाहना देती हुई बोली, "हाँ भाई, मैं क्यों नजर आउंगी? मेरा मुकाबला अपर्णा से थोड़े ही हो सकता है? कहाँ अपर्णा, युवा, खूबसूरत, जवान, सेक्सी और कहाँ मैं, बूढी, बदसूरत, मोटी और नीरस।" रोहित का यह सुनकर पसीना छूट गया। तो आखिर श्रेया ने उन्हें अपनी बीबी के बिस्तर में जाते हुए देख ही लिया था। अब जब चोरी पकड़ी ही गयी है तो छुपाने से क्या फायदा?
रोहित ने श्रेया के करीब जाकर उनकी ठुड्डी (चिबुक/दाढ़ी) अपनी उँगलियों में पकड़ी और उसे अपनी और घुमाते हुए बोले, "श्रेया, सच सच बताइये, अगर मैं आपके बिस्तर में आता और जैसे आपने मुझे पकड़ लिया वैसे कोई और देख लेता, तो हम क्या जवाब देते? वैसे मैं आपके बिस्तर के पास खड़ा काफी मिनटों तक इस उधेड़बुन में रहा की मैं क्या करूँ? आपके बिस्तर में आऊं या नहीं? आखिर में मैंने यही फैसला किया की बेहतर होगा की हम अपनी प्रेम गाथा बंद दीवारों में कैद रखें। क्या मैंने गलत किया?"
श्रेया ने रोहित की और देखा और उन्हें अपने करीब खिंच कर गाल पर चुम्मी करते हुए बोली, "मेरे प्यारे! आप बड़े चालु हो। अपनी गलती को भी आप ऐसे अच्छाई में परिवर्तित कर देते हो की मैं क्या कोई भी कुछ बोल नहीं पायेगा। शायद इसी लिए आप इतने बड़े पत्रकार हो। कोई बात नहीं। आप ने ठीक किया l पर अब ध्यान रहे की मैं अपनी उपेक्षा बर्दास्त नहीं कर सकती। मैं बड़ी मानिनी हूँ और मैं मानती हूँ की आप मुझे बहुत प्यार करते हैं और मेरी बड़ी इज्जत करते हैं। आप की उपेक्षा मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती। वचन दो की मुझे आगे चलकर ऐसी शिकायतका मौक़ा नहीं दोगे?"
रोहित ने श्रेया को अपनी बाँहों में भर कर कहा, "श्रेया जी मैं आगे से आपको ऐसी शिकायत का मौक़ा नहीं दूंगा। पर मैं भी आपसे कुछ कहना चाहता हूँ।"
श्रेया जी ने प्रश्नात्मक दृष्टि से देख कर कहा, "क्या?"
रोहित ने कहा, "आप मेरे साथ बड़ी गंभीरता से पेश आते हैं। मुझे अच्छा नहीं लगता। जिंदगी में वैसेही बहुत उलझन, ग़म और परेशानियाँ हैं। जब हम दोनों अकेले में मिलते हैं तब मैं चाहता हूँ की कुछ अठखेलियाँ हो, कुछ शरारत हो, कुछ मसालेदार बातें हों। यह सच है की मैं आपकी गंभीरता, बुद्धिमत्ता और ज्ञानसे बहुत प्रभावित हूँl पर वह बातें हम तब करें जब हम एक दूसरे से औपचारिक रूप से मिलें। जब हम इतने करीब आ गए हैं और उसमें भी जब हम मज़े करने के लिए मिलते हैं तो फिर भाड़में जाए औपचारिकता! हम एक दूसरे को क्यों "आप" कह कर निरर्थक खोखला सम्मान देने का प्रयास करते हैं? श्रेया तुम्हारा जो खुल्लमखुल्ला बात करने का तरिका है ना, वह मुझे खूब भाता है। उसके साथ अगर थोड़ी शरारत और नटखटता हो तो क्या बात है!"
श्रेया रोहित की बातें सुन थोड़ी सोच में पड़ गयीं। उन्होंने नज़रें उठाकर रोहित की और देखा और पूछा, " रोहित तुम अपर्णा से बहोत प्यार करते हो। है ना?"
रोहित श्रेया की बात सुनकर कुछ झेंप से गए। उन दोनों के बिच अपर्णा कहाँ से आ गयी? रोहित के चेहरे पर हवाइयां उड़ती हुई देख कर श्रेया ने कहा, "जो तुम ने कहा वह अपर्णा का स्वभाव है। मैं श्रेया हूँ अपर्णा नहीं। तुम क्या मुझमें अपर्णा ढूँढ रहे हो?"
रोहित: "पर ऐसा आप क्यों कहते हो यह तो बताओ?"
श्रेया: "और नहीं तो क्या? अपनी बीबी से घर में भी पेट नहीं भरा तो आप ट्रैन में भी उसको छोड़ते नहीं हो, तो फिर में और क्या कहूं? हम ने तय किया था इस यात्रा दरम्यान आप और मैं और जीतूजी और अपर्णा की जोड़ी रहेगी। पर आप तो रात को अपनी बीबी के बिस्तरेमें ही घुस गए। क्या आपको मैं नजर नहीं आयी?" श्रेया फिर जैसे अपने आप को ही उलाहना देती हुई बोली, "हाँ भाई, मैं क्यों नजर आउंगी? मेरा मुकाबला अपर्णा से थोड़े ही हो सकता है? कहाँ अपर्णा, युवा, खूबसूरत, जवान, सेक्सी और कहाँ मैं, बूढी, बदसूरत, मोटी और नीरस।" रोहित का यह सुनकर पसीना छूट गया। तो आखिर श्रेया ने उन्हें अपनी बीबी के बिस्तर में जाते हुए देख ही लिया था। अब जब चोरी पकड़ी ही गयी है तो छुपाने से क्या फायदा?
रोहित ने श्रेया के करीब जाकर उनकी ठुड्डी (चिबुक/दाढ़ी) अपनी उँगलियों में पकड़ी और उसे अपनी और घुमाते हुए बोले, "श्रेया, सच सच बताइये, अगर मैं आपके बिस्तर में आता और जैसे आपने मुझे पकड़ लिया वैसे कोई और देख लेता, तो हम क्या जवाब देते? वैसे मैं आपके बिस्तर के पास खड़ा काफी मिनटों तक इस उधेड़बुन में रहा की मैं क्या करूँ? आपके बिस्तर में आऊं या नहीं? आखिर में मैंने यही फैसला किया की बेहतर होगा की हम अपनी प्रेम गाथा बंद दीवारों में कैद रखें। क्या मैंने गलत किया?"
श्रेया ने रोहित की और देखा और उन्हें अपने करीब खिंच कर गाल पर चुम्मी करते हुए बोली, "मेरे प्यारे! आप बड़े चालु हो। अपनी गलती को भी आप ऐसे अच्छाई में परिवर्तित कर देते हो की मैं क्या कोई भी कुछ बोल नहीं पायेगा। शायद इसी लिए आप इतने बड़े पत्रकार हो। कोई बात नहीं। आप ने ठीक किया l पर अब ध्यान रहे की मैं अपनी उपेक्षा बर्दास्त नहीं कर सकती। मैं बड़ी मानिनी हूँ और मैं मानती हूँ की आप मुझे बहुत प्यार करते हैं और मेरी बड़ी इज्जत करते हैं। आप की उपेक्षा मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती। वचन दो की मुझे आगे चलकर ऐसी शिकायतका मौक़ा नहीं दोगे?"
रोहित ने श्रेया को अपनी बाँहों में भर कर कहा, "श्रेया जी मैं आगे से आपको ऐसी शिकायत का मौक़ा नहीं दूंगा। पर मैं भी आपसे कुछ कहना चाहता हूँ।"
श्रेया जी ने प्रश्नात्मक दृष्टि से देख कर कहा, "क्या?"
रोहित ने कहा, "आप मेरे साथ बड़ी गंभीरता से पेश आते हैं। मुझे अच्छा नहीं लगता। जिंदगी में वैसेही बहुत उलझन, ग़म और परेशानियाँ हैं। जब हम दोनों अकेले में मिलते हैं तब मैं चाहता हूँ की कुछ अठखेलियाँ हो, कुछ शरारत हो, कुछ मसालेदार बातें हों। यह सच है की मैं आपकी गंभीरता, बुद्धिमत्ता और ज्ञानसे बहुत प्रभावित हूँl पर वह बातें हम तब करें जब हम एक दूसरे से औपचारिक रूप से मिलें। जब हम इतने करीब आ गए हैं और उसमें भी जब हम मज़े करने के लिए मिलते हैं तो फिर भाड़में जाए औपचारिकता! हम एक दूसरे को क्यों "आप" कह कर निरर्थक खोखला सम्मान देने का प्रयास करते हैं? श्रेया तुम्हारा जो खुल्लमखुल्ला बात करने का तरिका है ना, वह मुझे खूब भाता है। उसके साथ अगर थोड़ी शरारत और नटखटता हो तो क्या बात है!"
श्रेया रोहित की बातें सुन थोड़ी सोच में पड़ गयीं। उन्होंने नज़रें उठाकर रोहित की और देखा और पूछा, " रोहित तुम अपर्णा से बहोत प्यार करते हो। है ना?"
रोहित श्रेया की बात सुनकर कुछ झेंप से गए। उन दोनों के बिच अपर्णा कहाँ से आ गयी? रोहित के चेहरे पर हवाइयां उड़ती हुई देख कर श्रेया ने कहा, "जो तुम ने कहा वह अपर्णा का स्वभाव है। मैं श्रेया हूँ अपर्णा नहीं। तुम क्या मुझमें अपर्णा ढूँढ रहे हो?"