26-12-2019, 03:03 PM
अपर्णा ने कहा, "जीतूजी, ऐसे शब्द आगे से अपनी ज़बान से कभी मत निकालिये। मैं आपको अपने आप से भी ज्यादा चाहती हूँ। मैं आपकी इतनी इज्जत करती हूँ की आपके मन में मेरे लिये थोड़ा सा भी हीनता का भाव आये यह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती। सच कहूं तो मैं यह सोच रही थी की कहीं मुझे इस कॉस्च्यूम में देख कर आप मुझे हल्कट या चीप तो नहीं समझ रहे?" जीतूजी ने अपर्णा को अपनी बाहों में कस के दबाते हुए बड़ी गंभीरता से कहा, "अरे अपर्णा! कमाल है! तुम इस कॉस्च्यूम में कोई भी अप्सरा से कम नहीं लग रही हो! इस कॉस्च्यूम में तो तुम्हारा पूरा सौंदर्य निखर उभर कर बाहर आ रहा है। भगवान ने वैसे ही स्त्रियों को गजब की सुंदरता दी है और उनमें भी तुम तो कोहिनूर हीरे की तरह भगवान की बेजोड़ रचना हो! अगर तुम मेरे सामने निर्वस्त्र भी खड़ी हो जाओ तो भी मैं तुम्हें चीप या हलकट नहीं सोच सकता। ऐसा सोचना भी मेरे लिए पाप के समान है। क्यूंकि तुम जितनी बदन से सुन्दर हो उससे कहीं ज्यादा मन से खूबसूरत हो l हाँ, मैं यह नहीं नकारूँगा की मेरे मन में तुम्हें देख कर कामुकता के भाव जरूर आते हैं। मैं तुम्हें मन से तो अपनी मानता ही हूँ, पर मैं तुम्हें तन से भी पूरी तरह अपनी बनाना तहे दिल से चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ की हम दोनों के बदन एक हो जाएँ। पर मैं तब तक तुम पर ज़रा सा भी दबाव नहीं डालूंगा जब तक की तुम खुद सामने चलकर अपने आप मेरे सामने घुटने टेक कर अपना सर्वस्व मुझे समर्पण नहीं करोगी l अगर तुम मानिनी हो तो मैं भी कोई कम नहीं हूँ। तुम मुझे ना सिर्फ बहुत प्यारी हो, मैं तुम्हारी बहुत बहुत इज्जत करता हूँ। और वह इज्जत तुम्हारे कपड़ों की वजह से नहीं है।"
जीतूजी के अपने बारे में ऐसे विचार सुनकर अपर्णा की आँखों में से गंगा जमुना बहने लगी। अपर्णा ने जीतूजी के मुंह पर हाथ रख कर कहा, "जीतूजी, आप से कोई जित नहीं सकता। आप ने चंद पलों में ही मेरी सारी उधेङबुन ख़त्म कर दी। अब मेरी सारी लज्जा और शर्म आप पर कुर्बान है l मैं शायद तन से पूरी तरह आपकी हो ना सकूँ, पर मेरा मन आपने जित लिया है। मैं पूरी तरह आपकी हूँ। मुझे अब आपके सामने कैसे भी आने में कोई शर्म ना होगी। अगर आप कहो तो मैं इस कॉस्च्यूम को भी निकाल फैंक सकती हूँ।" जीतू जी ने मुस्कुराते हुए अपर्णा से कहा, "खबरदार! ऐसा बिलकुल ना करना। मेरी धीरज का इतना ज्यादा इम्तेहान भी ना लेना। आखिर मैं भी तो कच्ची मिटटी का बना हुआ इंसान ही हूँ। कहीं मेरा ईमान जवाब ना दे दे और तुम्हारा माँ को दिया हुआ वचन टूट ना जाए!" अपर्णा अब पूरी तरह आश्वस्त हो गयी की उसे जीतूजी से किसी भी तरह का पर्दा, लाज या शर्म रखने की आवश्यकता नहीं थी। जब तक अपर्णा नहीं चाहेगी, जीतूजी उसे छुएंगे भी नहीं। और फिर आखिर जीतूजी से छुआ ने में तो अपर्णा को कोई परहेज रखने की जरुरत ही नहीं थी।
अपर्णा ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा, "जीतू जी, मुझे तैरना नहीं आता। इस लिए मुझे पानी से डर लगता है। मैं आपके साथ पानी में आती हूँ। अब आप मेरे साथ जो चाहे करो। चाहो तो मुझे बचाओ या डूबा दो। मैं आपकी शरण में हूँ। अगर आप मुझे थोड़ा सा तैरना सीखा दोगे तो मैं तैरने की कोशिश करुँगी।" जीतूजी ने हाथ में रखा तौलिया फेंक कर पानी में उतर कर मुस्कुराते हुए अपनी बाँहें फैला कर कहा, "फिर आ जाओ, मेरी बाँहों में।"
दूर वाटर फॉल के निचे नहा रहे श्रेया और रोहित ने जीतूजी और अपर्णा के बिच का वार्तालाप तो नहीं सूना पर देखा की अपर्णा बेझिझक सीमेंट की बनी किनार से छलांग लगा कर जीतूजी की खुली बाहों में कूद पड़ी। श्रेया ने फ़ौरन रोहित को कहा, "देखा, रोहित, आपकी बीबी मेरे पति की बाँहों में कैसे चलि गयी? लगता है वह तो गयी!" रोहित ने श्रेया की बात का कोई उत्तर नहीं दिया। दोनों वाटर फॉल के निचे कुछ देर नहा कर पानी में चलते चलते वाटर फॉल की दूसरी और पहुंचे। वह दोनों अपर्णा और जीतूजी से काफी दूर जा चुके थे और उन्हें अपर्णा और जीतूजी नहीं दिखाई दे रहे थे। वाटर फॉल के दूसरी और पहुँचतेही रोहित ने श्रेया से पूछा, "क्या बात है? आप अपना मूड़ क्यों बिगाड़ कर बैठी हैं?" श्रेया ने कुछ गुस्से में कहा, "अब एक बात मेरी समझ में आ गयी है की मुझमे कोई आकर्षण रहा नहीं है।"
रोहित ने श्रेया की बाँहें थाम कर पूछा, "पर हुआ क्या यह तो बताइये ना? आप ऐसा क्यों कह रहीं हैं?"
जीतूजी के अपने बारे में ऐसे विचार सुनकर अपर्णा की आँखों में से गंगा जमुना बहने लगी। अपर्णा ने जीतूजी के मुंह पर हाथ रख कर कहा, "जीतूजी, आप से कोई जित नहीं सकता। आप ने चंद पलों में ही मेरी सारी उधेङबुन ख़त्म कर दी। अब मेरी सारी लज्जा और शर्म आप पर कुर्बान है l मैं शायद तन से पूरी तरह आपकी हो ना सकूँ, पर मेरा मन आपने जित लिया है। मैं पूरी तरह आपकी हूँ। मुझे अब आपके सामने कैसे भी आने में कोई शर्म ना होगी। अगर आप कहो तो मैं इस कॉस्च्यूम को भी निकाल फैंक सकती हूँ।" जीतू जी ने मुस्कुराते हुए अपर्णा से कहा, "खबरदार! ऐसा बिलकुल ना करना। मेरी धीरज का इतना ज्यादा इम्तेहान भी ना लेना। आखिर मैं भी तो कच्ची मिटटी का बना हुआ इंसान ही हूँ। कहीं मेरा ईमान जवाब ना दे दे और तुम्हारा माँ को दिया हुआ वचन टूट ना जाए!" अपर्णा अब पूरी तरह आश्वस्त हो गयी की उसे जीतूजी से किसी भी तरह का पर्दा, लाज या शर्म रखने की आवश्यकता नहीं थी। जब तक अपर्णा नहीं चाहेगी, जीतूजी उसे छुएंगे भी नहीं। और फिर आखिर जीतूजी से छुआ ने में तो अपर्णा को कोई परहेज रखने की जरुरत ही नहीं थी।
अपर्णा ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा, "जीतू जी, मुझे तैरना नहीं आता। इस लिए मुझे पानी से डर लगता है। मैं आपके साथ पानी में आती हूँ। अब आप मेरे साथ जो चाहे करो। चाहो तो मुझे बचाओ या डूबा दो। मैं आपकी शरण में हूँ। अगर आप मुझे थोड़ा सा तैरना सीखा दोगे तो मैं तैरने की कोशिश करुँगी।" जीतूजी ने हाथ में रखा तौलिया फेंक कर पानी में उतर कर मुस्कुराते हुए अपनी बाँहें फैला कर कहा, "फिर आ जाओ, मेरी बाँहों में।"
दूर वाटर फॉल के निचे नहा रहे श्रेया और रोहित ने जीतूजी और अपर्णा के बिच का वार्तालाप तो नहीं सूना पर देखा की अपर्णा बेझिझक सीमेंट की बनी किनार से छलांग लगा कर जीतूजी की खुली बाहों में कूद पड़ी। श्रेया ने फ़ौरन रोहित को कहा, "देखा, रोहित, आपकी बीबी मेरे पति की बाँहों में कैसे चलि गयी? लगता है वह तो गयी!" रोहित ने श्रेया की बात का कोई उत्तर नहीं दिया। दोनों वाटर फॉल के निचे कुछ देर नहा कर पानी में चलते चलते वाटर फॉल की दूसरी और पहुंचे। वह दोनों अपर्णा और जीतूजी से काफी दूर जा चुके थे और उन्हें अपर्णा और जीतूजी नहीं दिखाई दे रहे थे। वाटर फॉल के दूसरी और पहुँचतेही रोहित ने श्रेया से पूछा, "क्या बात है? आप अपना मूड़ क्यों बिगाड़ कर बैठी हैं?" श्रेया ने कुछ गुस्से में कहा, "अब एक बात मेरी समझ में आ गयी है की मुझमे कोई आकर्षण रहा नहीं है।"
रोहित ने श्रेया की बाँहें थाम कर पूछा, "पर हुआ क्या यह तो बताइये ना? आप ऐसा क्यों कह रहीं हैं?"