26-12-2019, 02:46 PM
जब रोहित ने हाँ कहा तो वह फ़ौरन अपनी पुरानी टूटी फूटी सी टैक्सी, के जिस पर कोई नंबर प्लेट नहीं था; ले आया और सबको बैठने को कहा। फिर जब जीतूजी ने किराये के बारे में पूछा तो उसने कहा, "कुछ भी दे देना साहेब। मेरी गाडी तो कैंप के आगे के गाँव तक जा ही रही है। खाली जा रहा था। सोच क्यों ना आपको ले चलूँ? कुछ किराया मिल जायेगा और आप से बातें भी हो जाएंगी।" ऐसा कह कर हम सब के बैठने के बाद उसने गाडी स्टार्ट कर दी। जब जीतूजी ने फिर किराए के बारे में पूछा तब उसने सब टैक्सी वालों से आधे से भी कम किराया कहा। यह सुनकर अपर्णा बड़ी खुश हुई। उसने कहा, "यह तो बड़ा ही कम किराया माँग रहा है? लगता है यह भला आदमी है। यह कह कर अपर्णा ने फ़ौरन अपनी ज़ेब से किराए की रकम टैक्सी वाले के हाथ में दे दी। अपर्णा बड़ी खुश हो रही थी की उनको बड़े ही सस्ते किरायेमें टैक्सी मिल गयी। पर जब अपर्णा ने जीतूजी की और देखा तो जीतूजी बड़े ही गंभीर विचारों में डूबे हुए थे।
कैंप जम्मू स्टेशन से करीब चालीस किलोमीटर दूर था और रास्ता ख़ास अच्छा नहीं था। दो घंटे लगने वाले थे। टैक्सी का ड्राइवर बड़ा ही हँसमुख था। उसने इधर उधर की बातें करनी शुरू की।
श्रेया का मूड़ ठीक नहीं था। कर्नल साहब कुछ बोल नहीं रहे थे। रोहित जी को कुछ भी पता नहीं था तब हार कर टैक्सी ड्राइवर ने अपर्णा से बातें करने शुरू की, क्यूंकि अपर्णा बातें करने में बड़ी उत्साहित रहती थी। टैक्सी ड्राइवर ने अपर्णा से उनके प्रोग्राम के बारे में पूछा। अपर्णा को प्रोग्राम के बारे में कुछ ख़ास पता नहीं था। पर अपर्णा को जितना पता था उसने ड्राइवर को सब कुछ बताया। आखिर में दो घंटे से ज्यादा का थकाने वाला सफर पूरा करने के बाद हिमालय कीखूबसूरत वादियों में वह चारों जा पहुंचे।
जम्मू स्टेशन से कैंप की और टैक्सी चला कर ले जाते हुए पुरे रास्ते में रोहित को ऐसा लगा जैसे टैक्सीका ड्राइवर "शोले" पिक्चर की "धन्नो" की तरह बोले ही जा रहा था और सवाल पे सवाल पूछे जा रहा था। आप कहाँ से हो, क्यों आये हो, कितने दिन रहोगे, यहां क्या प्रोग्राम है, बगैरा बगैरा। अपर्णा भी उस की बातों का जवाब देती जा रही थी जितना उसे पता था। जिसका उसे पता नहीं था तो वह जीतूजी को पूछती थी। पर जीतूजी थे की पूरी तरह मौन धरे हुए किसी भी बात का जवाब नहीं देते थे। अपर्णा ड्राइवर से काफी प्रभावित लग रही थी। वैसे भी अपर्णा स्वभाव से इतनी सरल थी की उसे प्रभावित करने में कोई ख़ास मशक्कत करने की जरुरत नहीं पड़ती थी। अपर्णा किसीसे भी बातों बातों में दोस्ती बनाने में माहिर तो थी ही। आखिर में जीतूजी ने ड्राइवर को टोकते हुए कहा, "ड्राइवर साहब, आप गाडी चलाने पर ध्यान दीजिये। बातें करने से ध्यान बट जाता है। तब कहीं ड्राइवर थोड़ी देर चुप रहा। अपर्णा को जीतूजी का रवैया ठीक नहीं लगा। अपर्णा ने जीतूजी की और कुछ सख्ती से देखा। पर जब जीतूजी ने अपर्णा को सामने से सीधी आँख वापस सख्ती से देखा तो अपर्णा चुप हो गयी और खिसियानी सी इधर उधर देखती रही।
काफी मशक्कत और उबड़ खाबड़ रास्तों को पार कर उन चार यात्रियों का काफिला कैंपपर पहुंचा। कैंप पर पहुँचते ही सब लोग हिमालय की सुंदरता और बर्फ भरे पहाड़ियों की चोटियों में और कुदरत के कई सारे खूबसूरत नजारों को देखने में खो से गए। अपर्णा पहली बार हिमालय की पहाड़ियों में आयी थी। मौसम में कुछ खुशनुमा सर्दी थी। सफर से सब थके हुए थे। सारा सामान स्वागत कार्यालय में पहुंचाया गया। जीतूजी ने देखाकी टैक्सी का ड्राइवर मुख्य द्वार पर सिक्योरिटी पहरेदार से कुछ पूछ रहा था। फ़ौरन जीतूजी भागते हुए मुख्य द्वार पर पहुंचे। वह देखना चाहते थे की टैक्सी ड्राइवर पहरेदार से क्या बात कर रहा था। जीतूजी को दूर से आते हुए देख कर चन्द पल में ही ड्राइवर जीतूजी की नज़रों से ओझल हो गया। जीतूजी ने उसे और उसकी टैक्सी को काफी इधर उधर देखा पर वह या उसकी टैक्सी नजर नहीं आये।
कैंप जम्मू स्टेशन से करीब चालीस किलोमीटर दूर था और रास्ता ख़ास अच्छा नहीं था। दो घंटे लगने वाले थे। टैक्सी का ड्राइवर बड़ा ही हँसमुख था। उसने इधर उधर की बातें करनी शुरू की।
श्रेया का मूड़ ठीक नहीं था। कर्नल साहब कुछ बोल नहीं रहे थे। रोहित जी को कुछ भी पता नहीं था तब हार कर टैक्सी ड्राइवर ने अपर्णा से बातें करने शुरू की, क्यूंकि अपर्णा बातें करने में बड़ी उत्साहित रहती थी। टैक्सी ड्राइवर ने अपर्णा से उनके प्रोग्राम के बारे में पूछा। अपर्णा को प्रोग्राम के बारे में कुछ ख़ास पता नहीं था। पर अपर्णा को जितना पता था उसने ड्राइवर को सब कुछ बताया। आखिर में दो घंटे से ज्यादा का थकाने वाला सफर पूरा करने के बाद हिमालय कीखूबसूरत वादियों में वह चारों जा पहुंचे।
जम्मू स्टेशन से कैंप की और टैक्सी चला कर ले जाते हुए पुरे रास्ते में रोहित को ऐसा लगा जैसे टैक्सीका ड्राइवर "शोले" पिक्चर की "धन्नो" की तरह बोले ही जा रहा था और सवाल पे सवाल पूछे जा रहा था। आप कहाँ से हो, क्यों आये हो, कितने दिन रहोगे, यहां क्या प्रोग्राम है, बगैरा बगैरा। अपर्णा भी उस की बातों का जवाब देती जा रही थी जितना उसे पता था। जिसका उसे पता नहीं था तो वह जीतूजी को पूछती थी। पर जीतूजी थे की पूरी तरह मौन धरे हुए किसी भी बात का जवाब नहीं देते थे। अपर्णा ड्राइवर से काफी प्रभावित लग रही थी। वैसे भी अपर्णा स्वभाव से इतनी सरल थी की उसे प्रभावित करने में कोई ख़ास मशक्कत करने की जरुरत नहीं पड़ती थी। अपर्णा किसीसे भी बातों बातों में दोस्ती बनाने में माहिर तो थी ही। आखिर में जीतूजी ने ड्राइवर को टोकते हुए कहा, "ड्राइवर साहब, आप गाडी चलाने पर ध्यान दीजिये। बातें करने से ध्यान बट जाता है। तब कहीं ड्राइवर थोड़ी देर चुप रहा। अपर्णा को जीतूजी का रवैया ठीक नहीं लगा। अपर्णा ने जीतूजी की और कुछ सख्ती से देखा। पर जब जीतूजी ने अपर्णा को सामने से सीधी आँख वापस सख्ती से देखा तो अपर्णा चुप हो गयी और खिसियानी सी इधर उधर देखती रही।
काफी मशक्कत और उबड़ खाबड़ रास्तों को पार कर उन चार यात्रियों का काफिला कैंपपर पहुंचा। कैंप पर पहुँचते ही सब लोग हिमालय की सुंदरता और बर्फ भरे पहाड़ियों की चोटियों में और कुदरत के कई सारे खूबसूरत नजारों को देखने में खो से गए। अपर्णा पहली बार हिमालय की पहाड़ियों में आयी थी। मौसम में कुछ खुशनुमा सर्दी थी। सफर से सब थके हुए थे। सारा सामान स्वागत कार्यालय में पहुंचाया गया। जीतूजी ने देखाकी टैक्सी का ड्राइवर मुख्य द्वार पर सिक्योरिटी पहरेदार से कुछ पूछ रहा था। फ़ौरन जीतूजी भागते हुए मुख्य द्वार पर पहुंचे। वह देखना चाहते थे की टैक्सी ड्राइवर पहरेदार से क्या बात कर रहा था। जीतूजी को दूर से आते हुए देख कर चन्द पल में ही ड्राइवर जीतूजी की नज़रों से ओझल हो गया। जीतूजी ने उसे और उसकी टैक्सी को काफी इधर उधर देखा पर वह या उसकी टैक्सी नजर नहीं आये।