26-12-2019, 02:37 PM
अंकिता के स्तनोँ के बिच छोटी छोटी फुँसियों का जाल फैलाये हलकी गुलाबी चॉकलेट रंग की एरोला जिसके ठीक बिच में उसकी फूली हुई निप्पलोँ को गौरव अपनी उँगलियों में पिचकाने लगे। अचानक अंकिता को अपनी कोहनी में कुछ चिकनाहट महसूस हुई। अंकिता को अजीब लगा की उसकी कोहनी में कैसे चिकनाहट लगी। यह गौरव के लण्ड से निकला स्राव तो नहीं हो सकता। अंकिता ने अपने फ़ोन की टोर्च जलाई तो देखा की उसकी कोहनी में गौरव का लाल खून लगा था।
तलाश करने पर अंकिता ने पाया की उन दोनों के बदन को रगड़ने से एक जगह लगा घाव जो रुझ रहा था उस में से खून रिस ने लगा था। पर गौरव थे की कुछ आवाज भी नहीं की। वह अपनी माशूका को यह महसूस नहीं करवाना चाहते थे की वह दर्द में है। अंकिता को महसूस हुआ की गौरव का दर्द अभी भी था। क्यूंकि जब भी अंकिता ट्रैन के हिलने के कारण अथवा किसी और वजह से गौरव के ऊपर थोड़ी हिलती थी तो गौरव के मुंह से कभी कभी एकदम धीमी सिसकारी निकल जाती थी। तभी अंकिता समझ गयी की गौरव अपना दर्द छिपाने की भरसक कोशिश कर रहे थे। वह अंकिता को प्यार करने के लिए इतने उतावले हो रहे थे की अपना दर्द नजर अंदाज कर रहे थे। अंकिता को गौरव का हाल देख बड़ा आश्चर्य हुआ। क्या कोई मर्द किसी स्त्री को कभी इतना प्यार भी कर सकता है? ना सिर्फ गौरव ने अपनी जान पर खेल कर अंकिता को बचाया पर उसे प्यार करने के लिए अपना दर्द भी छुपाने लगा। अंकिता ने उस से पहले कभी किसी से इतना प्यार नहीं पाया था। अंकिता ने सोचा ऐसे प्यारे बांके बहादुर जांबाज और विरले नवजवान इंसान पर अपना तन और शील तो क्या जान भी देदे तो कम था। उस वक्त तो उसके लिए गौरव के घावोँ को ठीक करना ही एक मात्र लक्ष्य था। अपने स्तनोँ पर से गौरव का हाथ ना हटाते हुए अंकिता धीरे से गौरव से अलग हुई और अपने शरीर का वजन गौरव के ऊपर से हटाया और गौरव के बगल में बैठ गयी।
जब गौरव उसकी यह प्रक्रियाको आश्चर्यसे देखने लगा तो अंकिता ने कहा, "जनाब, अभी आप के घाव पूरी तरह नहीं भरे हैं। आप परेशान मत होइए। मैं कहीं भागी नहीं जा रही हूँ। आप पहले ज़रा ठीक हो जाइये। अगले सात दिनों तक मैं आपकी ही हूँ, यह मेरा आपसे वचन है।" अंकिता ने धीरे से अपना हाथ गौरव की जाँघों के बिच में रख दिया और वह गौरव के लण्ड को पयजामे के ऊपर से ही सहलाने लगी। गौरव ने फुर्ती से अपने पयजामे का नाडा खोल दिया। पयजामे का नाडा खुलते ही गौरव का फनफनाता मोटा और काफी लंबा लण्ड अंकिता की छोटी सी हथेली में आ गया। उस दिन तक अंकिता ने अपने पति के अलावा किसी बड़े आदमी का लण्ड नहीं देखा था। उसके पति का लण्ड अक्सर तो खड़ा होने में भी दिक्कत करता था और अगर खड़ा हो भी गया तो वह चार इंच से ज्यादा लंबा नहीं होता था। गौरव का लंड उससे दुगुना तो था ही, ऊपर से उससे कई गुना मोटा भी था। गौरव का लण्ड हाथ की हथेली में महसूस होते ही अंकिता के मुंह से नकल ही पड़ा, "हाय दैय्या, तुम्हारा यह कितना लंबा और मोटा है? इतना लम्बा और मोटा भी कभी किसीका होता है क्या?"
गौरव ने मुस्कराते हुए बोला, "क्यों? इतना बड़ा लण्ड इससे पहले नहीं देखा क्या?"
अंकिता ने, "धत्त तेरी! क्या बातें करते हैं आप? शर्म नहीं आती ऐसी बात करते हुए? तुम क्या समझते हो? मुझे इसके अलावा कोई और काम नहीं है क्या?" यह कह कर शर्म से अपना मुंह चद्दर में छिपा लिया।
तलाश करने पर अंकिता ने पाया की उन दोनों के बदन को रगड़ने से एक जगह लगा घाव जो रुझ रहा था उस में से खून रिस ने लगा था। पर गौरव थे की कुछ आवाज भी नहीं की। वह अपनी माशूका को यह महसूस नहीं करवाना चाहते थे की वह दर्द में है। अंकिता को महसूस हुआ की गौरव का दर्द अभी भी था। क्यूंकि जब भी अंकिता ट्रैन के हिलने के कारण अथवा किसी और वजह से गौरव के ऊपर थोड़ी हिलती थी तो गौरव के मुंह से कभी कभी एकदम धीमी सिसकारी निकल जाती थी। तभी अंकिता समझ गयी की गौरव अपना दर्द छिपाने की भरसक कोशिश कर रहे थे। वह अंकिता को प्यार करने के लिए इतने उतावले हो रहे थे की अपना दर्द नजर अंदाज कर रहे थे। अंकिता को गौरव का हाल देख बड़ा आश्चर्य हुआ। क्या कोई मर्द किसी स्त्री को कभी इतना प्यार भी कर सकता है? ना सिर्फ गौरव ने अपनी जान पर खेल कर अंकिता को बचाया पर उसे प्यार करने के लिए अपना दर्द भी छुपाने लगा। अंकिता ने उस से पहले कभी किसी से इतना प्यार नहीं पाया था। अंकिता ने सोचा ऐसे प्यारे बांके बहादुर जांबाज और विरले नवजवान इंसान पर अपना तन और शील तो क्या जान भी देदे तो कम था। उस वक्त तो उसके लिए गौरव के घावोँ को ठीक करना ही एक मात्र लक्ष्य था। अपने स्तनोँ पर से गौरव का हाथ ना हटाते हुए अंकिता धीरे से गौरव से अलग हुई और अपने शरीर का वजन गौरव के ऊपर से हटाया और गौरव के बगल में बैठ गयी।
जब गौरव उसकी यह प्रक्रियाको आश्चर्यसे देखने लगा तो अंकिता ने कहा, "जनाब, अभी आप के घाव पूरी तरह नहीं भरे हैं। आप परेशान मत होइए। मैं कहीं भागी नहीं जा रही हूँ। आप पहले ज़रा ठीक हो जाइये। अगले सात दिनों तक मैं आपकी ही हूँ, यह मेरा आपसे वचन है।" अंकिता ने धीरे से अपना हाथ गौरव की जाँघों के बिच में रख दिया और वह गौरव के लण्ड को पयजामे के ऊपर से ही सहलाने लगी। गौरव ने फुर्ती से अपने पयजामे का नाडा खोल दिया। पयजामे का नाडा खुलते ही गौरव का फनफनाता मोटा और काफी लंबा लण्ड अंकिता की छोटी सी हथेली में आ गया। उस दिन तक अंकिता ने अपने पति के अलावा किसी बड़े आदमी का लण्ड नहीं देखा था। उसके पति का लण्ड अक्सर तो खड़ा होने में भी दिक्कत करता था और अगर खड़ा हो भी गया तो वह चार इंच से ज्यादा लंबा नहीं होता था। गौरव का लंड उससे दुगुना तो था ही, ऊपर से उससे कई गुना मोटा भी था। गौरव का लण्ड हाथ की हथेली में महसूस होते ही अंकिता के मुंह से नकल ही पड़ा, "हाय दैय्या, तुम्हारा यह कितना लंबा और मोटा है? इतना लम्बा और मोटा भी कभी किसीका होता है क्या?"
गौरव ने मुस्कराते हुए बोला, "क्यों? इतना बड़ा लण्ड इससे पहले नहीं देखा क्या?"
अंकिता ने, "धत्त तेरी! क्या बातें करते हैं आप? शर्म नहीं आती ऐसी बात करते हुए? तुम क्या समझते हो? मुझे इसके अलावा कोई और काम नहीं है क्या?" यह कह कर शर्म से अपना मुंह चद्दर में छिपा लिया।