26-12-2019, 02:35 PM
चलिए, हम वापस अपनी कहानी पर आते हैं।
अंकिता ने गौरव के गालों को चूमते हुए कहा, "तो फिर करो ना, किसने रोका है?" अंकिता के मन में गौरव के लिए इतना प्यार उमड़ पड़ा की वह गौरव के होँठों के अलावा उसके कपाल, उस के चेहरे पर बंधी पट्टियां, उसके नाक, कान और बालों को भी चूमने लगी। अंकिता की चूत में से पानी की धार बहने लगी थी। गौरव का लण्ड एकदम अटेंशन में खड़ा हुआ था और अंकिता की चूत को कपड़ों के माध्यम से कुरेद रहा था। गौरवका एक हाथ अंकिता की गाँड़ की और बढ़ रहा था। अंकिता की सुआकार गाँड़ पर हाथ पहुंचते ही अंकिता के पुरे बदन में एक तेज सिहरन सी फ़ैल गयी। अंकिता के मुंह से बरबस ही सिसकारी निकल गयी। गौरव अंकिता की गाँड़ के गालों को बड़े प्यार से दबाया और उन्हें उँगलियाँ से चूँटी भर कर दबाने और मसलने लगा।
अंकिता पर अजीब सी मदहोशी छा गयी थी। गौरव ने उसकी जान बचाई थी तो उसकी जान, उसका बदन और उसकी रूह पर भी गौरव का पूरा हक़ था। गौरव को वह अपना सबकुछ अर्पण कर देना चाहती थी। आगे चाहे कुछ भी हो, अंकिता गौरव को अपनी जात सौंपने के लिए बेबस हो रही थी।
अंकिता ने फिर गौरव की आँखों में आँखें डाल कर पूछा, 'तुम इस रात मुझसे क्या चाहते हो?"
गौरव ने कहा, "मैं तुम्हें पूरी तरह से मेरी बनाना चाहता हूँ।"
अंकिता ने कहा, "तो बनाओ ना? मैंने कहाँ रोका है? पर एक बात ध्यान रहे। मैं तुम्हारे आगे के सपने पुरे ना कर सकुंगी! मैं चाहती हूँ की मैं पूरी जिंदगी तुम्हारी बन कर रहूं। पर शायद यह मेरी ख्वाहिश ही बन कर रह जायेगी। शायद भाग्य को यह मंजूर नहीं।"
गौरव को लगा की अंकिता कुछ गंभीर बात करना चाहती थी। उसने पूछा, "जानेमन बोलो ना ऐसी क्या बात है?"
अंकिता ने गौरव के गालों पर चुम्मी भरते हुए कहा, "आज की रात हम दोनों की रात है। आज और कोई बात माने नहीं रखती। मैं एक बात और कहना चाहती हूँ। यह सात दिन हमारे रहेंगे, यह मेरा तुमसे वादा है। मैं पूरी जिंदगी का वादा तो नहीं कर सकती पर यह सात दिन मौक़ा मिलते ही मैं दिन में या रात में तुम्हारे पास कुछ ना कुछ जुगाड़ करके पहुँच ही जाउंगी और फिर उस वक्त मैं सिर्फ तुम्हारी ही रहूंगी। तुम मुझसे जी भर कर प्यार करना। हाँ मैं तुम्हें सबके सामने नहीं मिल सकती। मेरे बारे में किसी से भी कोई बात या पूछताछ ना करना। यह बात ध्यान रहे।"
अंकिता ने गौरव के गालों को चूमते हुए कहा, "तो फिर करो ना, किसने रोका है?" अंकिता के मन में गौरव के लिए इतना प्यार उमड़ पड़ा की वह गौरव के होँठों के अलावा उसके कपाल, उस के चेहरे पर बंधी पट्टियां, उसके नाक, कान और बालों को भी चूमने लगी। अंकिता की चूत में से पानी की धार बहने लगी थी। गौरव का लण्ड एकदम अटेंशन में खड़ा हुआ था और अंकिता की चूत को कपड़ों के माध्यम से कुरेद रहा था। गौरवका एक हाथ अंकिता की गाँड़ की और बढ़ रहा था। अंकिता की सुआकार गाँड़ पर हाथ पहुंचते ही अंकिता के पुरे बदन में एक तेज सिहरन सी फ़ैल गयी। अंकिता के मुंह से बरबस ही सिसकारी निकल गयी। गौरव अंकिता की गाँड़ के गालों को बड़े प्यार से दबाया और उन्हें उँगलियाँ से चूँटी भर कर दबाने और मसलने लगा।
अंकिता पर अजीब सी मदहोशी छा गयी थी। गौरव ने उसकी जान बचाई थी तो उसकी जान, उसका बदन और उसकी रूह पर भी गौरव का पूरा हक़ था। गौरव को वह अपना सबकुछ अर्पण कर देना चाहती थी। आगे चाहे कुछ भी हो, अंकिता गौरव को अपनी जात सौंपने के लिए बेबस हो रही थी।
अंकिता ने फिर गौरव की आँखों में आँखें डाल कर पूछा, 'तुम इस रात मुझसे क्या चाहते हो?"
गौरव ने कहा, "मैं तुम्हें पूरी तरह से मेरी बनाना चाहता हूँ।"
अंकिता ने कहा, "तो बनाओ ना? मैंने कहाँ रोका है? पर एक बात ध्यान रहे। मैं तुम्हारे आगे के सपने पुरे ना कर सकुंगी! मैं चाहती हूँ की मैं पूरी जिंदगी तुम्हारी बन कर रहूं। पर शायद यह मेरी ख्वाहिश ही बन कर रह जायेगी। शायद भाग्य को यह मंजूर नहीं।"
गौरव को लगा की अंकिता कुछ गंभीर बात करना चाहती थी। उसने पूछा, "जानेमन बोलो ना ऐसी क्या बात है?"
अंकिता ने गौरव के गालों पर चुम्मी भरते हुए कहा, "आज की रात हम दोनों की रात है। आज और कोई बात माने नहीं रखती। मैं एक बात और कहना चाहती हूँ। यह सात दिन हमारे रहेंगे, यह मेरा तुमसे वादा है। मैं पूरी जिंदगी का वादा तो नहीं कर सकती पर यह सात दिन मौक़ा मिलते ही मैं दिन में या रात में तुम्हारे पास कुछ ना कुछ जुगाड़ करके पहुँच ही जाउंगी और फिर उस वक्त मैं सिर्फ तुम्हारी ही रहूंगी। तुम मुझसे जी भर कर प्यार करना। हाँ मैं तुम्हें सबके सामने नहीं मिल सकती। मेरे बारे में किसी से भी कोई बात या पूछताछ ना करना। यह बात ध्यान रहे।"