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Adultery कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED}
वह समझ नहीं पायी की वह क्या करे? अपर्णा ने महसूस किया की जीतूजी का हाथ धीरे धीरे निचे की और खिसक रहा था। अपर्णा की जाँघों के बिच में से तो जैसे फव्वारा ही छूटने लगा था। उसकी चूत में तो जैसे जलजला सा हो रहा था। अपर्णा का अपने बदन पर नियत्रण छूटता जा रहा था। वह आपने ही बस में नहीं थी। अपर्णा ने रात को नाइटी पहनी हुई थी। उसे डर था की उसकी नाइटी में उसकी पेन्टी पूरी भीग चुकी होगी इतना रस उसकी चूत छोड़ रहीथी। जीतूजी कब अपनी बर्थ से निचे उतर आये अपर्णा को पता ही तब चला जब अपर्णा को जीतूजी ने कस के अपनी बाहों में ले लिया और चद्दर और कम्बल हटा कर वह अपर्णा को सुला कर उसके साथ ही लम्बे हो गए और अपर्णा को अपनी बाहों के बिच और दोनों टांगों को उठा कर अपर्णा को अपनी टांगों के बिच घेर लिया। फिर उन्होंने चद्दर और कम्बल अपने ऊपर डाल दिया जिससे अगर कोई उठ भी जाए तो उसे पता ना चले की क्या हो रहा था। जीतूजी ने अपर्णा का मुंह अपने मुंह के पास लिया और अपर्णा के होँठों से अपने होँठ चिपका दिए। जीतूजी के होठोँ के साथ साथ जीतूजी की मुछें भी अपर्णा के होठोँ को चुम रहीं थीं। अपर्णा को अजीब सा अहसास हो रहा था। पिछली बार जब जीतूजी ने अपर्णा को अपनी बाहों में किया था तब अपर्णा होश में नहीं थी। पर इस बार तो अपर्णा पुरे होशो हवास में थी और फिर उसी ने ही तो जीतूजी को आमंत्रण दिया था।

अपर्णा अपने आप को सम्हाल नहीं पा रही थी। उससे जीतूजी का यह आक्रामक रवैया बहुत भाया। वह चाहती थी की जीतूजी उसकी एक भी बात ना माने और उसके कपडे और अपने कपडे भी एक झटके में जबरदस्ती निकाल कर उसे नंगी करके अपने मोटे और लम्बे लण्ड से उसे पूरी रात भर अच्छी तरह से चोदे। फिर क्यों ना उसकी चूत सूज जाए या फट जाए। अपर्णा जानती थी की अब वह कुछ नहीं कर सकती थी। जो करना था वह जीतूजी को ही करना था। जीतूजी का मोटा लण्ड अपर्णा की चूत को कपड़ों के द्वारा ऐसे धक्के मार रहा था जैसे वह अपर्णा की चूतको उन कपड़ों के बिच में से खोज क्यों ना रहा हो? या फिर जीतूजी का लण्ड बिच में अवरोध कर रहे सारे कपड़ों को फाड़ कर जैसे अपर्णा की नन्हीं कोमल सी चूत में घुसने के लिए बेताब हो रहा था। जीतूजी मारे कामाग्नि से पागल से हो रहे थे। शायद उन्होंने भी अंकिता और गौरव की प्रेम गाथा सुनी थी। जीतूजी पागल की तरह अपर्णा के होँठों को चुम रहे थे। अपर्णा के होँठों को चूमते हुए जीतूजी अपने लण्ड को अपर्णा की जाँघों के बिच में ऐसे धक्का मार रहे थे जैसे वह अपर्णा को असल में ही चोद रहें हों।

अपर्णाको जीतूजी का पागलपन देख कर यकीन हो गया की उस रात अपर्णा की कुछ नहीं चलेगी। जीतूजी उसकी कोई बात सुनने वाले नहीं थे और सचमें ही वह अपर्णाकी अच्छी तरह बजा ही देंगे। जब अपर्णा का कोई बस नहीं चलेगा तो बेचारी वह क्या करेगी? उसके पास जीतूजी को रोकने का कोई रास्ता नहीं था। यह सोच कर अपर्णा ने सब भगवान पर छोड़ दिया। अब माँ को दिया हुआ वचन अगर अपर्णा निभा नहीं पायी तो उसमें उसका क्या दोष? अपर्णा जीतूजी के पुरे नियत्रण में थी। जीतूजी के होँठ अपर्णा के होँठों को ऐसे चुम और चूस रहे थे जैसे अपर्णा का सारा रस वह चूस लेना चाहते थे। अपर्णा के मुंह की पूरी लार वह चूस कर निगल रहे थे। अपर्णा ने पाया की जीतूजी उनकी जीभ से अपर्णा का मुंह चोदने लगे थे। साथ साथ में अपने दोनों हाथ अपर्णा की गाँड़ पर दबा कर अपर्णा की गाँड़ के दोनों गालों को अपर्णा की नाइटी के उपरसे वह ऐसे मसल रहे थे की जैसे वह उनको अलग अलग करना चाहते हों। जीतूजी का लण्ड दोनों के कपड़ों के आरपार अपर्णा की चूत को चोद रहा था। अगर कपडे ना होते तो अपर्णा की चुदाई तो हो ही जानी थी। पर ऐसे हालात में दोनों के बदन पर कपडे कितनी देर तक रहेंगे यह जानना मुश्किल था। यह पक्का था की उसमें ज्यादा देर नहीं लगेगी। और हुआ भी कुछ ऐसा ही। अपर्णा के मुंह को अच्छी तरह चूमने और चूसने के बाद जीतूजी ने अपर्णा को घुमाया और करवट लेने का इशारा किया।

अपर्णा बेचारी चुपचाप घूम गयी। उसे पता था की अब खेल उसके हाथों से निकल चुका था। अब आगे क्या होगा उसका इंतजार अपर्णा धड़कते दिल से करने लगी।
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RE: "कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED} - by usaiha2 - 26-12-2019, 01:42 PM



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