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Adultery कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED}
आखिर में अंकिता ने यह सोचा की क्यों ना गौरव को उसे मनाना कुछ आसान किया जाए? ताकि गौरव को बर्थ से उठकर अंकिता को मनाने के लिए उठना ना पड़े? यह सोच कर अंकिता ने अपनी चद्दर का एक छोर धीरे धीरे सरका कर निचे की और जाने दिया ताकि गौरव उसे खिंच कर उस के संकेत की प्रतीक्षा में जाग रही (पर सोने का ढोंग कर रही) अंकिता को जगा सके। कुछ देर बीत गयी। अंकिता बड़ी बेसब्री से इंतजार में थी की कब गौरव उसकी चद्दर खींचे और कब वह अपना सर निचे ले जाकर यह देखने का नाटक करे की क्या हुआ? जिससे गौरव को मौक़ा मिले की वह अंकिता को निचे उतर ने का आग्रह करे। पर शायद गौरव सो चुके थे। अंकिता ऊपर बेचैन इंतजार में परेशान थी। काफी कीमती समय बितता जा रहा था।



अपर्णा को डर था की उस रात कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए। उसके पति रोहित ने उससे से वचन जो लिया था की दिन में ना सही पर रात को जरूर वह अपर्णा को खाने मतलब अपर्णा की लेने (मतलब अपर्णा को चोदने) जरूर आएंगे। शादी के इतने सालों बाद भी रोहित अपर्णा का दीवाना था। दूसरे जीतूजी जो अपर्णा को पाने के पिए सब कुछ दॉंव पर लगाने के लिए आमादा थे। जिन्होंने कसम खायी थी की वह अपर्णा पर अपना स्त्रीत्व समर्पण करने के लिए (मतलब चुदवाने के लिए) कोई भी दबाव नहीं डालेंगे। पर अपर्णा और जीतूजी के बिच यह अनकही सहमति तो थी ही की अपर्णा जीतूजी को भले उसको चोदने ना दे पर बाकी सबकुछ करने दे सकती है। यह बात अलग है की जीतूजी खुद अपर्णा का आधा समर्पण स्वीकार करने के लिए तैयार होंगे या नहीं। वह भी तो आर्मी के सिपाही थे और बड़े ही अड़ियल थे।

अपर्णा को तब जीतूजी का प्रण याद आया। उन्होने बड़े ही गभीर स्वर में कहा था की जब अपर्णा ने उन्हें नकार ही दिया था तब वह कभी भी सामने चल कर अपर्णा को ललचाने की या अपने करीब लाने को कोशिश नहीं करेंगे। अपर्णा के सामने यह बड़ी समस्या थी। वह जीतूजी का दिल नहीं तोड़ना चाहती थी पर फिर वह उनको अपना समर्पण भी तो नहीं कर सकती थी।

अपर्णा जीतूजी को भली भाँती जानती थी। जहां तक उसका मानना था जीतूजी तब तक आगे नहीं बढ़ेंगे जब तक अपर्णा कोई पहल ना करे। वैसे तो माननीयों पर मॅंडराने के लिए उनको चाहने वाले बड़े बेताब होते हैं। पर उस रात तो उलटा ही हो गया। अपर्णा अपने पति की अपनी बर्थ पर इंतजार कर रही थी। साथ साथ में उसे यह भी डर था की कहीं जीतूजी ऊपर से सीधा निचे ना उतर जाएँ। पर जहां अपर्णा दो परवानोँ का इंतजार कर रही थी, वहाँ कोई भी नहीं रहा था। उधर अंकिता अपने प्रेमी के संकेत का इंतजार कर रही थी, पर गौरव था की कोई इंटरेस्ट नहीं दिखा रहा था। दोनों ही मानीनियाँ अपने प्रियतम से मिलने के लिए बेताब थी। पर प्रियतम ना जाने क्या सोच रहेथे? क्या वह अपनी प्रिया को सब्र का फल मीठा होता है यह सिख दे रहे थे? या कहीं वह निंद्रा के आहोश में होश खो कर गहरी नींद में सो तो नहीं गए थे?
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RE: "कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED} - by usaiha2 - 26-12-2019, 01:39 PM



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