26-12-2019, 01:33 PM
गौरव ने हँसते हुए अंकिता का हाथ छोड़ दिया और जैसे डर गए हों ऐसे अपना मुंह कम्बल में छिपा कर एक आँख से अंकिता की और देखते हुए बोले, "अरे बाबा, ऐसा मत करना। मैं अब तुम्हें नहीं छेड़ूँगा। बस?"
गौरव की बात सुन अंकिता बरबस ही हंसने लगी। अपने दोनों हाथ जोड़कर गौरव को नमस्ते की मुद्रा कर मुस्काती हुई अंकिता गौरव के साथ हो रही कामक्रीड़ा के परिणाम रूप अपनी दोनों जाँघों के बिच हुए गीलेपन को महसूस कर रही थी। काफी समय के बाद अपनी दो जाँघों के बिच चूत में हो रही मीठी मचलन अंकिता के मन में कोई अजीब सी अनुभूति पैदा कर रही थी। अंकिता जब अपना घाघरा अपनी जाँघों के उपर तक उठाकर अपनी टाँगों को ऊपर उठा कर अपनी ऊपर वाली बर्थ पर चढ़ने लगी तो गौरव धीरे से बोला, "अपने आपको सम्हालो! निचे वाला (यानी गौरव) सब कुछ देख रहा है!" लज्जित अंकिता ने अपने पाँव निचे किये। गौरव की हरकतों से परेशान होने पर कुछ भी ना कर पाने के कारण मजबूर, अंकिता अपना घाघरा ठीक ठाक करती हुई अपने आपको सम्हाल कर अपनी ऊपर वाली बर्थ पर पहुंची और लम्बे हो कर लेट कर पिछले चंद घंटों में हुए वाक्योँ के बारेमें सोचने लगी।
ट्रैन मंजिल की और तेजी से अग्रसर हो रही थी।
कम्पार्टमेंट में शामके करीब पांच बजे कुछ हलचल शुरू हुई। गौरव के अलावा सब लोग बैठ गए। अंकिता ने गौरव के लिए चाय मंगाई। कुछ बिस्किट और चाय पिलाकर अंकिता ने गौरव को डॉक्टर की दी हुई कुछ दवाइयाँ दीं। दवाइयाँ खाकर गौरव फिर लेट गए। गौरव ने कहा की उनका दर्द कुछ कम हो रहा था। डॉक्टर ने टिटेनस का इंजेक्शन पहले ही दे दिया था। अंकिता गौरव के पाँव के पास ही बैठी बैठ गौरव को देख रही थी और कभी पानी तो कभी एक बिस्कुट दे देती थी। अन्धेरा होते ही शामका खाना आ पहुंचा। फिर अंकिता ने अपने हाथों से गौरव को बिठा कर खाना खिलाया। अपर्णा, श्रेया, कर्नल साहब और रोहित ने भी देखा की अंकिता गौरव का बहोत ध्यान रख रही थी।
सब ने खाना खाया और थोड़ी सी गपशप लगाकर ज्यादातर लोग अपने अपने मोबाइल में व्यस्त हो गए। कई यात्रियों ने कान पर ईयरफोन्स लगा अपने सेल फ़ोन में कोई मूवी, या गाना या कोई और चीज़ देखने में ही खो गए। रात के नौ बजते ही सब अपना अपना बिस्तर बनाने में लग गए। सुबह करीब ६ बजे जम्मू स्टेशन आने वाला था। अंकिता ने गौरव को उठाया और उसका बिस्तर झाड़ कर अच्छी तरह से चद्दर और कम्बल बिछा कर गौरव को लेटाया। गौरव अब धीरे धीरे बैठने लगा था। शामको एक बार अंकिताके पति ब्रिगेडियर खन्ना साहब भी आये और गौरव को हेलो, हाय किया। इस बार उन्होंने गौरव के साथ बैठकर गौरव का हाल पूछा और फिर अंकिता के गाल पर हलकी सी किस करके वह अपनी बर्थ के लिए वापस चले गए। गौरव को फिर भी अंदेशा ना हुआ की अंकिता ब्रिगेडियर साहब की पत्नी थी। रात का अँधेरा घना हो गया था। काफी यात्री सो चुके थे। एक के बाद एक बत्तियां बुझती जा रहीं थीं।
अंकिता ने भी जब पर्दा फैलाया तब गौरव ने फिर अंकिता का हाथ पकड़ा और अपने करीब खिंच कर कानों में पूछा, "अपना वादा तो याद है ना?" अंकिता ने बिना बोले अपनी मुंडी हिलाकर हामी भरी और मुस्काती हुई अपना घाघरा सम्हालते हुए अपनी ऊपर की बर्थ पर चढ़ गयी।
गौरव की बात सुन अंकिता बरबस ही हंसने लगी। अपने दोनों हाथ जोड़कर गौरव को नमस्ते की मुद्रा कर मुस्काती हुई अंकिता गौरव के साथ हो रही कामक्रीड़ा के परिणाम रूप अपनी दोनों जाँघों के बिच हुए गीलेपन को महसूस कर रही थी। काफी समय के बाद अपनी दो जाँघों के बिच चूत में हो रही मीठी मचलन अंकिता के मन में कोई अजीब सी अनुभूति पैदा कर रही थी। अंकिता जब अपना घाघरा अपनी जाँघों के उपर तक उठाकर अपनी टाँगों को ऊपर उठा कर अपनी ऊपर वाली बर्थ पर चढ़ने लगी तो गौरव धीरे से बोला, "अपने आपको सम्हालो! निचे वाला (यानी गौरव) सब कुछ देख रहा है!" लज्जित अंकिता ने अपने पाँव निचे किये। गौरव की हरकतों से परेशान होने पर कुछ भी ना कर पाने के कारण मजबूर, अंकिता अपना घाघरा ठीक ठाक करती हुई अपने आपको सम्हाल कर अपनी ऊपर वाली बर्थ पर पहुंची और लम्बे हो कर लेट कर पिछले चंद घंटों में हुए वाक्योँ के बारेमें सोचने लगी।
ट्रैन मंजिल की और तेजी से अग्रसर हो रही थी।
कम्पार्टमेंट में शामके करीब पांच बजे कुछ हलचल शुरू हुई। गौरव के अलावा सब लोग बैठ गए। अंकिता ने गौरव के लिए चाय मंगाई। कुछ बिस्किट और चाय पिलाकर अंकिता ने गौरव को डॉक्टर की दी हुई कुछ दवाइयाँ दीं। दवाइयाँ खाकर गौरव फिर लेट गए। गौरव ने कहा की उनका दर्द कुछ कम हो रहा था। डॉक्टर ने टिटेनस का इंजेक्शन पहले ही दे दिया था। अंकिता गौरव के पाँव के पास ही बैठी बैठ गौरव को देख रही थी और कभी पानी तो कभी एक बिस्कुट दे देती थी। अन्धेरा होते ही शामका खाना आ पहुंचा। फिर अंकिता ने अपने हाथों से गौरव को बिठा कर खाना खिलाया। अपर्णा, श्रेया, कर्नल साहब और रोहित ने भी देखा की अंकिता गौरव का बहोत ध्यान रख रही थी।
सब ने खाना खाया और थोड़ी सी गपशप लगाकर ज्यादातर लोग अपने अपने मोबाइल में व्यस्त हो गए। कई यात्रियों ने कान पर ईयरफोन्स लगा अपने सेल फ़ोन में कोई मूवी, या गाना या कोई और चीज़ देखने में ही खो गए। रात के नौ बजते ही सब अपना अपना बिस्तर बनाने में लग गए। सुबह करीब ६ बजे जम्मू स्टेशन आने वाला था। अंकिता ने गौरव को उठाया और उसका बिस्तर झाड़ कर अच्छी तरह से चद्दर और कम्बल बिछा कर गौरव को लेटाया। गौरव अब धीरे धीरे बैठने लगा था। शामको एक बार अंकिताके पति ब्रिगेडियर खन्ना साहब भी आये और गौरव को हेलो, हाय किया। इस बार उन्होंने गौरव के साथ बैठकर गौरव का हाल पूछा और फिर अंकिता के गाल पर हलकी सी किस करके वह अपनी बर्थ के लिए वापस चले गए। गौरव को फिर भी अंदेशा ना हुआ की अंकिता ब्रिगेडियर साहब की पत्नी थी। रात का अँधेरा घना हो गया था। काफी यात्री सो चुके थे। एक के बाद एक बत्तियां बुझती जा रहीं थीं।
अंकिता ने भी जब पर्दा फैलाया तब गौरव ने फिर अंकिता का हाथ पकड़ा और अपने करीब खिंच कर कानों में पूछा, "अपना वादा तो याद है ना?" अंकिता ने बिना बोले अपनी मुंडी हिलाकर हामी भरी और मुस्काती हुई अपना घाघरा सम्हालते हुए अपनी ऊपर की बर्थ पर चढ़ गयी।