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Adultery कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED}
अंकिता की सारी कहानी सुनने के बाद ब्रिगेडियर साहब ने अंकिता के बाल सँवारते हुए कहा, "अंकिता, शुक्र है तुम्हें ज्यादा चोट नहीं आयी और गौरव भी बच गए। चलो जो हुआ सो हुआ। अब तुम मेरी बात बड़े ध्यान से सुनो। तुम अब गौरव का अच्छी तरह ख्याल रखना। वह अकेला है। उसे कोई तकलीफ ना हो l उन्हें किसी तरह की कोई भी जरुरत हो तो तुम पूरी करना। उनके साथ ही रहना। उन्होंने तुम्हारी ही नहीं मेरी भी जान बचाई है। मेरी जान तुमहो। उन्होंने तुम्हारी जान बचाकर हकीकत में तो मेरी जान बचाई है। ओके बच्चा? मैं चलता हूँ। तुम अपना भी ध्यान रखना।"

यह कह कर अपर्णा और जीतूजी को धन्यवाद देते और नमस्कार करते हुए ब्रिगेडियर साहब धीरे धीरे कम्पार्टमेंट की दीवारों का सहारा लेते हुए अपने कम्पार्टमेंट की और चल दिए।

अपने पति का इतना जबरदस्त सहारा और प्रोत्साहन पाकर अंकिता की आँखें नम हो गयीं। वह काफी खुश भी थी। "गौरव के साथ ही रहना, उन का ख़ास ध्यान रखना। उन्हें किसी तरह की कोई भी जरुरत हो तो तुम पूरी करना।". क्या उसके पति ब्रिगेडियर साहब यह कह कर उसे कुछ इशारा कर रहे थे? अंकिता इस उधेङबुन में थी की अपर्णा ने अंकिता को बताया की उन्होंने अंकिता और गौरव के लिए भी दोपहर का खाना आर्डर किया था। खाना भी चुका था। अपर्णा ने अंकिता को कहा की वह गौरव को भी जगाये और खाने के लिए कहे। अंकिता ने प्यार से गौरव को जगा कर बर्थ पर बिठा कर खाने के लिए आग्रह किया। गौरव को चेहरे और पाँव पर गहरी चोटें आयी थीं, पर वह कह रहे थे की वह ठीक हैं। गौरव खाने के लिए मना कर रहे थे पर अंकिता ने उनकी एक ना सुनी। चेहरे पर पट्टी लगाने के कारण उन्हें शायद ठीक ठीक देखने में दिक्कत हो रही थी। अंकिता ने खाने की प्लेट अपनी गोद में रखकर कप्तान गौरव के मना करने पर भी उन्हें एक एक निवाला बना कर अपने हाथों से खिलाना शुरू किया।

अपर्णा, श्रेया, रोहित और जीतूजी इस दोनों युवा का प्यार देख कर एक दूसरे की और देख कर शरारती अंदाज में मुस्कराये। सबके मन में शायद यही था की "जवाँ दिल की धड़कनों में भड़कती शमाँ। आगे आगे देखिये होता ही क्या।" प्यार और एक दूसरे के प्रति का ऐसा भाव देख सब के मन में यही था की कभी ना कभी जवान दिलों में भड़कती प्यार की यह छोटी सी चिंगारी जल्द ही आगे चल कर जवान बदनों में काम वासना की आग का रूप ले सकती है।

अपर्णा अंकिता के एकदम पास खिसक कर बैठ गयी और अंकिता के कानों में अपना मुंह लगा कर कोई सुने ऐसे फुसफुसाते हुए कहा l "अंकिता, क्या इतना प्यार कोई किसी को कर सकता है? गौरव ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए तुम्हारी जान बचाई। कोई भी स्त्री के लिए कोई भी पुरुष इससे ज्यादा क्या बलिदान दे सकता है भला? मैं देख रही थी की गौरव तुम्हारे करीब आने की कोशिश कर रहा था और तुम उससे दूर भाग रही थी। ऐसे जाँबाज़ पुरुष के लिए अपना स्त्रीत्व की ही क्या; कोई भी कुर्बानी कम है।" ऐसा कह कर अपर्णा ने अंकिता को आँख मारी और फिर अपने काम में लग गयी।
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RE: "कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED} - by usaiha2 - 26-12-2019, 01:29 PM



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