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Adultery कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED}
कुछ देर तक तो शीशे का दरवाजा बंद होने के कारण कर्नल साहब और रोहित को अपर्णा की चीखें नहीं सुनाई दी। पर किसी और यात्री के बताने पर अपर्णा की चिल्लाहट सुनकर एकदम कर्नल साहब और रोहित उठ खड़े हुए और भाग के अपर्णा के पास पहुंचे। कर्नल साहब ने जोर से ट्रैन की जंजीर खींची। इतनी तेजी से भाग रही ट्रैन एकदम कहाँ रूकती? ब्रेक की चीत्कार से सारा वातावरण गूँज उठा। ट्रैन काफी तेज रफ़्तार पर थी। अंकिता को लगा की उसके जीवन का आखरी वक्त चुका था। उसे बस गौरव के हाथ का सहारा था।

पर गौरव की भी हालत ऐसी थी की वह खुद फिसला जा रहा था। एक साथ दो जानें कभी भी जा सकतीं थीं। गौरव ने अपने जान की परवाह ना करते हुए अंकिता का हाथ नहीं छोड़ा। अंकिता और गौरव के वजन के कारण अपर्णा की पकड़ कमजोर हो रही थी। अपर्णा गौरव के पाँव को ठीक तरह से पकड़ नहीं पा रही थी। गौरव के पाँव अपर्णा के हाथोँ में से फिसलते जा रहे थे। ट्रैन की रफ़्तार धीरे धीरे कम हो रही थी पर फिर भी काफी थी। अचानक अपर्णा के हाथोँ में से गौरव के पाँव छूट गए। गौरव और अंकिता दोनों देखते ही देखते ट्रैन के बाहर उछल कर निचे गिर पड़े। थोड़ी दूर जाकर ट्रैन रुक गयी।

अंकिता लुढ़क कर रेल की पटरियों से काफी दूर जा चुकी थी। बाहर घाँस और रेत होने के कारण उसे कुछ खरोंचे और एक दो जगह पर कुछ थोड़ी गहरी चोट लगी थी। पर गौरव को पत्थर पर गिरने के कारण काफी घाव लगे थे और उसके सर से खून बह रहा था। निचे गिरने के बाद चोट के कारण गौरव कुछ पल बेहोश पड़े रहे। ट्रैन रुकजाने पर कर्नल साहब और रोहित के साथ कई यात्री निचे उतर कर गौरव और अंकिताको पीछे की और ढूंढने भागे। कुछ दुरी पर उन्हें गौरव गिरे हुए मिले। गौरव रेल की पटरियोंके करीब पत्थरों के पास बेहोश गिरे हुए पड़ेथे। उनके सरसे काफी खून बह रहाथा। अपर्णा भी उतर कर वहाँ पहुंची। उसने अपनी चुन्नी फाड़ कर गौरवके सरपर कस के बाँधी। कुछ देर बाद गौरव ने आँखें खोलीं। कर्नल साहब गौरव को अपर्णा के सहारे छोड़ और पीछे की और भागे और कुछ दुरी पर उन्हें अंकिता दिखाई दी। अंकिता और पीछे गिरी हुई थी। अंकिता के कपडे फटे हुए थे पर उसे ज्यादा चोट नहीं आयीथी। वह उठकर खड़ीथी और अपने आपको सम्हालने की कोशिश कर रही थी। उसका सर चकरा रहा था। वह गौरव को ढूंढने की कोशिश कर रही थी।

कर्नल साहब और कुछ यात्री ने गार्ड के पास रखे प्राथमिक सारवार की सामग्री और दवाइयों से गौरव और अंकिता की चोटों पर दवाई लगाई और पट्टियां बाँधी और दोनों को उठाकर वापस ट्रैन में लाकर उनकी बर्थ पर रखा। अपर्णा और श्रेया जी उन दोनों की देखभाल करने में जुट गए। ट्रैन फिर से अपने गंतव्यकी और जानेके लिए अग्रसर हुई। अंकिता काफी सम्हल चुकी थी। वह गौरव के पाँव के पास जा बैठी। उसने गौरव का हाल देखा तो उसकी आँखों में से आँसुओं की धार बहने लगी। गौरव ने अपने जान की परवाह ना करते हुए उसकी जान बचाई यह उसको खाये जा रहा था। गौरव बच गए यह कुदरत का कमाल था। तेज रफ़्तार से चलती ट्रैन में से पत्थर पर गिरने से इंसान का बचना लगभग नामुमकिन सा होता है। पर गौरव ने फिर भी अपनी जान को जोखिम में डाल कर अंकिता को बचाया यह अंकिता के लिए एक अद्भुत और अकल्पनीय अनुभव था। उसने सोचा भी नहीं था की कोई इंसान अपनी जान दुसरेकी जान बचाने के लिए ऐसे जोखिम में डाल सकता था। अपर्णा और श्रेया अंकिता को ढाढस देकर यह समझा रहे थे की गौरव ठीक है और उसकी जान को कोई ख़तरा नहीं है।
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RE: "कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED} - by usaiha2 - 26-12-2019, 01:26 PM



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