26-12-2019, 01:19 PM
अंकिता और खिसक कर ठीक गौरवके करीब बैठी। उसने महसूस किया की उसकी जाँघें गौरव की जाँघों से घिस रहीं थीं। कम्पार्टमेंट का तापमान काफी ठंडा हो रहा था। गौरव ने धीरे से अंकिता को अपने और करीब खींचा तो अंकिता ने उसका विरोध करते हुए कहा, "क्या कर रहे हो? कोई देखेगा तो क्या कहेगा?" गौरव समझ गया की उसे अंकिता ने अनजाने में ही हरी झंडी दे दी थी। अंकिता ने गौरव का उसे अपने करीब खींचने का विरोध नहीं किया, उस पर कोई आपत्ति नहीं जताई, बल्कि कोई देख लेगा यह कह कर उसे रोका था।
यह इशारा गौरव के लिए काफी था। गौरव समझ गया की अंकिता मन से गौरव के करीब आना चाहती थी पर उस को यह डर था की कहीं उन्हें कोई देख ना ले।" गौरव ने फ़ौरन खड़े हो कर पर्दों को फैला कर बंद कर दिया जिससे उनकी दो बर्थ पूरी तरह से परदे के पीछे छिप गयी। अब कोई भी बिना पर्दा हटाए उन्हें देख नहीं सकता था।
जब अंकिता ने देखा की गौरव ने उन्हें परदे के पीछे ढक दिया तो वह बोल पड़ी, "गौरव यह क्या कर रहे हो?"
गौरव: " मैं वही कर रहा हूँ जो आप चाहते हो। आपही ने तो कहा की कहीं कोई देख ना ले। अब हमें कोई नहीं देख सकता। बोलो अब तो ठीक है?"
अंकिता क्या बोलती? उसने चुप रहना ही ठीक समझा। अंकिता को महसूस हुआ की उसकी जाँघों के बिचमें से उसका स्त्री रस चुने लगा था। उसकी निप्पलेँ फूल कर बड़ी हो गयीं थीं। अंकिता अपने आपको सम्हाल नहीं पा रही थी। उस पर कुछ अजीब सा नशा छा रहा था। अंकिता को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था की यह सब क्या हो रहा था। जो आजतक उसने अनुभव नहीं किया था वह सब हो रहा था। गौरव ने देखा की उसकी जोड़ीदार कुछ असमंजस में थी तो गौरव ने अंकिता को अपनी और करीब खींचा और अंकिता के कूल्हों के निचे अपने दोनों हाथ घुसा कर अंकिता को ऊपर की और उठाया और उसे अपनी गोद में बिठा दिया। जैसे ही गौरव ने अंकिता को अपनी गोद में बिठाया की अंकिता मचलने लगी। अंकिता ने महसूस किया की गौरव का लण्ड उसकी गाँड़ को टोंच रहा था। उसकी गाँड़ की दरारमें वह उसके कपड़ों के उस पार ऐसी ठोकर मार रहा था की अंकिता जान गयी की गौरव का लण्ड काफी लंबा, मोटा और बड़ा था और एकदम कड़क हो कर खड़ा हुआ था।
अंकिता से अब यह सब सहा नहीं जा रहा था।
अंकिता की चूत गीली होती जा रही थी। उसकी चूत में से रिस रहा पानी थमने का नाम नहीं ले रहा था। उसे यह डर था की कहीं उसकी पेंटी भीग कर उसके घाघरे को गीला ना कर दे, जिससे गौरव को अंकिता की हालत का पता लग जाए। साथ साथ अंकिता को अपनी मर्यादा भी तो सम्हालनी थी। हालांकि वह जानती थी की उसे अपने पति से कोई परेशानी नहीं होगी, पर फिर भी अंकिता एक मानिनी शादीशुदा औरत थी। अगर इतनी आसानी से फँस गयी तो फिर क्या मजा? आसानी से मिली हुई चीज़ की कोई कीमत नहीं होती। थोड़ा गौरव को भी कुछ ज्यादा महेनत, मिन्नत और मशक्कत करनी चाहिए ना? अंकिता ने तय किया की अब उसे गौरव को रोकनाही होगा। मन ना मानते हुए भी अंकिता उठ खड़ी हुई।
उसने अपने कपड़ों को सम्हालते हुए गौरव को कहा, "बस गौरव। प्लीज तुम मुझे और मत छेड़ो। मैं मजबूर हूँ। आई एम् सॉरी।".
यह इशारा गौरव के लिए काफी था। गौरव समझ गया की अंकिता मन से गौरव के करीब आना चाहती थी पर उस को यह डर था की कहीं उन्हें कोई देख ना ले।" गौरव ने फ़ौरन खड़े हो कर पर्दों को फैला कर बंद कर दिया जिससे उनकी दो बर्थ पूरी तरह से परदे के पीछे छिप गयी। अब कोई भी बिना पर्दा हटाए उन्हें देख नहीं सकता था।
जब अंकिता ने देखा की गौरव ने उन्हें परदे के पीछे ढक दिया तो वह बोल पड़ी, "गौरव यह क्या कर रहे हो?"
गौरव: " मैं वही कर रहा हूँ जो आप चाहते हो। आपही ने तो कहा की कहीं कोई देख ना ले। अब हमें कोई नहीं देख सकता। बोलो अब तो ठीक है?"
अंकिता क्या बोलती? उसने चुप रहना ही ठीक समझा। अंकिता को महसूस हुआ की उसकी जाँघों के बिचमें से उसका स्त्री रस चुने लगा था। उसकी निप्पलेँ फूल कर बड़ी हो गयीं थीं। अंकिता अपने आपको सम्हाल नहीं पा रही थी। उस पर कुछ अजीब सा नशा छा रहा था। अंकिता को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था की यह सब क्या हो रहा था। जो आजतक उसने अनुभव नहीं किया था वह सब हो रहा था। गौरव ने देखा की उसकी जोड़ीदार कुछ असमंजस में थी तो गौरव ने अंकिता को अपनी और करीब खींचा और अंकिता के कूल्हों के निचे अपने दोनों हाथ घुसा कर अंकिता को ऊपर की और उठाया और उसे अपनी गोद में बिठा दिया। जैसे ही गौरव ने अंकिता को अपनी गोद में बिठाया की अंकिता मचलने लगी। अंकिता ने महसूस किया की गौरव का लण्ड उसकी गाँड़ को टोंच रहा था। उसकी गाँड़ की दरारमें वह उसके कपड़ों के उस पार ऐसी ठोकर मार रहा था की अंकिता जान गयी की गौरव का लण्ड काफी लंबा, मोटा और बड़ा था और एकदम कड़क हो कर खड़ा हुआ था।
अंकिता से अब यह सब सहा नहीं जा रहा था।
अंकिता की चूत गीली होती जा रही थी। उसकी चूत में से रिस रहा पानी थमने का नाम नहीं ले रहा था। उसे यह डर था की कहीं उसकी पेंटी भीग कर उसके घाघरे को गीला ना कर दे, जिससे गौरव को अंकिता की हालत का पता लग जाए। साथ साथ अंकिता को अपनी मर्यादा भी तो सम्हालनी थी। हालांकि वह जानती थी की उसे अपने पति से कोई परेशानी नहीं होगी, पर फिर भी अंकिता एक मानिनी शादीशुदा औरत थी। अगर इतनी आसानी से फँस गयी तो फिर क्या मजा? आसानी से मिली हुई चीज़ की कोई कीमत नहीं होती। थोड़ा गौरव को भी कुछ ज्यादा महेनत, मिन्नत और मशक्कत करनी चाहिए ना? अंकिता ने तय किया की अब उसे गौरव को रोकनाही होगा। मन ना मानते हुए भी अंकिता उठ खड़ी हुई।
उसने अपने कपड़ों को सम्हालते हुए गौरव को कहा, "बस गौरव। प्लीज तुम मुझे और मत छेड़ो। मैं मजबूर हूँ। आई एम् सॉरी।".