26-12-2019, 01:16 PM
काफी सोचने के बाद अंकिता ने तय किया की जब मौक़ा मिला ही है तो क्यों ना उसका फायदा उठाया जाए? यह मौक़ा अगर चला गया तो फिर तो उसे अपने हाथोँ की उँगलियों से ही काम चलाना पड़ेगा। एक दिन की चाँदनी आयी है फिर तो अँधेरी रात है ही।
अंकिता ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा, "कप्तान साहब, सॉरी गौरवजी, शायद आप ख्वाब और असलियत का फर्क नहीं समझते।"
गौरव ने आगे बढ़कर अंकिता का हाथ थामा और कहा, "आप ही बताइये ना? मैं तो नौसिखिया हूँ।"
जैसे ही गौरव ने अंकिता का हाथ थामा तो अंकिता के पुरे बदन में एक बिजली सी करंट मार गयी। अंकिता के रोंगटे खड़े हो गए। उस दिन तक ब्रिगेडियर साहब को छोड़ किसीने भी अंकिता का हाथ इस तरह नहीं थामा था। अंकिता हमेशा यह सपना देखती रहती थी कोई हृष्टपुष्ट युवक उसको अपनी बाँहों में थाम कर उसको गहरा चुम्बन कर, उसकी चूँचियों को अपने हाथ में मसलता हुआ उसे निर्वस्त्र कर उसकी चुदाई कर रहा है। अंकिता को अक्सर सपनेमें वही युवक बारबार आता था और अंकिता का पूरा बदन चूमता, दबाता और मसलता था। कई बार अंकिता ने महसूस किया था की वह युवक उसकी गाँड़ की दरार में अपनी उंगलियां डाल कर उसे उत्तेजना और उन्माद के सातवे आसमान पर उठा लेता था। फिर अंकिता ने ध्यान से देखा तो उसे लगा की कहीं ना कहीं गौरव की शक्ल और उसका बदन भी वही युवक जैसा था।
गौरव ने देखा की जब उसने अंकिता का हाथ थामा और अंकिता ने उसका कोई विरोध नहीं किया और अंकिता अपने ही विचारो में खोयी हुई गौरव के चेहरे की और एकटक देख रही थी, तब उसकी हिम्मत और बढ़ गयी। उसने अंकिता को अपनी और खींचते हुए कहा, "क्या देख रही हो, अंकिता? क्या मैं भद्दा और डरावना दिखता हूँ? क्या मुझमें तुम्हें कोई बुराई नजर आ रही है?"
अंकिता अपनी तंद्रा से जाग उठी और गौरव की और देखती हुई बोली, "नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, क्यों?"
गौरव: "देखो, सब सो रहे हैं। हम जोर से बात नहीं कर सकते। तो फिर मेरे करीब तो बैठो। अगर मैं तुम्हें भद्दा और डरावना नहीं लगता और अगर हमारा पहला परिचय हो चुका है तो फिर इतना दूर बैठने की क्या जरुरत है?"
अंकिता: "अरे कमाल है। भाई यह सीट ही ऐसी है। इसके रहते हुए हम कैसे साथ में बैठ सकते हैं? यह बर्थ तो पहले से ही ऐसी रक्खी हुई थी। मैंने थोड़े ही उसे ऊपर की और उठाया है?"
गौरव: "तो फिर मैं उसे नीचा कर देता हूँ अगर तुम्हें कोई आपत्ति ना हो तो?" ऐसा कह कर बिना अंकिता की हाँ का इंतजार किये गौरव उठ खड़ा हुआ और उसने बर्थको निचा करना चाहा। मज़बूरी में अंकिता को भी उठना पड़ा। गौरव ने बर्थ को बिछा दिया और उसके ऊपर चद्दर बिछा कर अंकिता को पहले बैठने का इशारा किया। अंकिता ने हलके से अपने कूल्हे बर्थ पर टिकाये तो
गौरव ने उसे हल्का सा अपने करीब खिंच कर कहा, "भाई ठीक से तो बैठो। आखिर हमें काफी लंबा सफर एक साथ तय करना है।"
अंकिता ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा, "कप्तान साहब, सॉरी गौरवजी, शायद आप ख्वाब और असलियत का फर्क नहीं समझते।"
गौरव ने आगे बढ़कर अंकिता का हाथ थामा और कहा, "आप ही बताइये ना? मैं तो नौसिखिया हूँ।"
जैसे ही गौरव ने अंकिता का हाथ थामा तो अंकिता के पुरे बदन में एक बिजली सी करंट मार गयी। अंकिता के रोंगटे खड़े हो गए। उस दिन तक ब्रिगेडियर साहब को छोड़ किसीने भी अंकिता का हाथ इस तरह नहीं थामा था। अंकिता हमेशा यह सपना देखती रहती थी कोई हृष्टपुष्ट युवक उसको अपनी बाँहों में थाम कर उसको गहरा चुम्बन कर, उसकी चूँचियों को अपने हाथ में मसलता हुआ उसे निर्वस्त्र कर उसकी चुदाई कर रहा है। अंकिता को अक्सर सपनेमें वही युवक बारबार आता था और अंकिता का पूरा बदन चूमता, दबाता और मसलता था। कई बार अंकिता ने महसूस किया था की वह युवक उसकी गाँड़ की दरार में अपनी उंगलियां डाल कर उसे उत्तेजना और उन्माद के सातवे आसमान पर उठा लेता था। फिर अंकिता ने ध्यान से देखा तो उसे लगा की कहीं ना कहीं गौरव की शक्ल और उसका बदन भी वही युवक जैसा था।
गौरव ने देखा की जब उसने अंकिता का हाथ थामा और अंकिता ने उसका कोई विरोध नहीं किया और अंकिता अपने ही विचारो में खोयी हुई गौरव के चेहरे की और एकटक देख रही थी, तब उसकी हिम्मत और बढ़ गयी। उसने अंकिता को अपनी और खींचते हुए कहा, "क्या देख रही हो, अंकिता? क्या मैं भद्दा और डरावना दिखता हूँ? क्या मुझमें तुम्हें कोई बुराई नजर आ रही है?"
अंकिता अपनी तंद्रा से जाग उठी और गौरव की और देखती हुई बोली, "नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, क्यों?"
गौरव: "देखो, सब सो रहे हैं। हम जोर से बात नहीं कर सकते। तो फिर मेरे करीब तो बैठो। अगर मैं तुम्हें भद्दा और डरावना नहीं लगता और अगर हमारा पहला परिचय हो चुका है तो फिर इतना दूर बैठने की क्या जरुरत है?"
अंकिता: "अरे कमाल है। भाई यह सीट ही ऐसी है। इसके रहते हुए हम कैसे साथ में बैठ सकते हैं? यह बर्थ तो पहले से ही ऐसी रक्खी हुई थी। मैंने थोड़े ही उसे ऊपर की और उठाया है?"
गौरव: "तो फिर मैं उसे नीचा कर देता हूँ अगर तुम्हें कोई आपत्ति ना हो तो?" ऐसा कह कर बिना अंकिता की हाँ का इंतजार किये गौरव उठ खड़ा हुआ और उसने बर्थको निचा करना चाहा। मज़बूरी में अंकिता को भी उठना पड़ा। गौरव ने बर्थ को बिछा दिया और उसके ऊपर चद्दर बिछा कर अंकिता को पहले बैठने का इशारा किया। अंकिता ने हलके से अपने कूल्हे बर्थ पर टिकाये तो
गौरव ने उसे हल्का सा अपने करीब खिंच कर कहा, "भाई ठीक से तो बैठो। आखिर हमें काफी लंबा सफर एक साथ तय करना है।"