26-12-2019, 01:15 PM
गौरव: "क्या आप सोच समझ कर ख्वाब देखते हो? क्या ख्वाब पर हमारा कोई कण्ट्रोल होता है क्या?"
अंकिता गौरव की बात सुनकर चुप हो गयी। उसके चेहरे पर गंभीरता दिखाई पड़ी। अंकिता की आँखें कुछ गीली से हो गयीं। गौरव को यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। वह अंकिता को चुपचाप देखता रहा। अंकिता के चेहरे पर मायूसी देख कर गौरव ने कहा, "मुझे माफ़ करना अंकिताजी, अगर मैंने कुछ ऐसा कह दिया जिससे आपको कोई दुःख हुआ हो। मैं आपको किसी भी तरह का दुःख नहीं देना चाहता।"
अंकिता ने अपने आपको सम्हालते हुए कहा, "नहीं कप्तान साहब ऐसी कोई बात नहीं। जिंदगी में कुछ ऐसे मोड़ आते हैं जिन्हें आपको झेलना ही पड़ता है और उन्हें स्वीकार कर चलने में ही सबकी भलाई है।"
गौरव: "अंकिताजी, पहेलियाँ मत बुझाइये। कहिये क्या बात है।"
अंकिता ने बात को मोड़ देकर गौरव के सवाल को टालते हुए कहा, "कप्तान साहब मैं आपसे छोटी हूँ। आप मुझे अंकिताजी कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम अंकिता है और मुझे आप अंकिता कह कर ही बुलाइये।" अंकिता ने फिर अपने आपको सम्हाला। थोड़ा सा सोचमें पड़ने के बाद अंकिता ने शायद मन ही मन फैसला किया की वह गौरव को अपनी असलियत (की वह शादी शुदा है) उस वक्त नहीं बताएगी।
गौरव: "तो फिर आप भी सुनिए। आप मुझे कप्तान साहब कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम गौरव है। आप मुझे सिर्फ गौरव कह कर ही बुलाइये।"
अंकिता का मन डाँवाडोल हो रहा था। वह गौरव के साथ आगे बढे या नहीं? पति (ब्रिगेडियर साहब) ने तो उसे इशारा कर ही दिया था की अंकिता को अगर कहीं कुछ मौक़ा मिले तो उसे चोरी छुपी शारीरिक भूख मिटाने से उनको कोई आपत्ति नहीं होगी, बशर्ते की सारी बात छिपी रहे। अंकिताके लिए यह अनूठा मौक़ा था। उसका मनपसंद हट्टाकट्टा हैंडसम नवयुवक उसे ललचा कर, फाँस कर, उससे शारीरिक सम्बन्ध बनाने की ने भरसक कोशिश में जुटा हुआ था। अब अंकिता पर निर्भर था की वह अपना सम्मान बनाये रखते हुए उस युवक को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करे या नहीं। अंकिता ने सोचा यह पहली बार हुआ था की इतना हैंडसम युवक उसे ललचा कर फाँसने की कोशिश कर रहा था। पहले भी कई युवक अंकिता को लालच भरी नजर से तो देखते थे, पर किसीभी ऐसे हैंडसम युवक ने आगे बढ़कर उसके करीब आकर उसे ललचाने की इतनी भरसक कोशिश नहीं की थी। फिर भी भला वह कैसे अपने आप आगे बढ़ कर किसी युवक को कहे की "आओ और मेरी शारीरिक भूख मिटाओ?" आखिर वह भी तो एक मानिनी भारतीय नारी थी। उसे भी तो अपना सम्मान बनाये रखना था।
अंकिता गौरव की बात सुनकर चुप हो गयी। उसके चेहरे पर गंभीरता दिखाई पड़ी। अंकिता की आँखें कुछ गीली से हो गयीं। गौरव को यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। वह अंकिता को चुपचाप देखता रहा। अंकिता के चेहरे पर मायूसी देख कर गौरव ने कहा, "मुझे माफ़ करना अंकिताजी, अगर मैंने कुछ ऐसा कह दिया जिससे आपको कोई दुःख हुआ हो। मैं आपको किसी भी तरह का दुःख नहीं देना चाहता।"
अंकिता ने अपने आपको सम्हालते हुए कहा, "नहीं कप्तान साहब ऐसी कोई बात नहीं। जिंदगी में कुछ ऐसे मोड़ आते हैं जिन्हें आपको झेलना ही पड़ता है और उन्हें स्वीकार कर चलने में ही सबकी भलाई है।"
गौरव: "अंकिताजी, पहेलियाँ मत बुझाइये। कहिये क्या बात है।"
अंकिता ने बात को मोड़ देकर गौरव के सवाल को टालते हुए कहा, "कप्तान साहब मैं आपसे छोटी हूँ। आप मुझे अंकिताजी कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम अंकिता है और मुझे आप अंकिता कह कर ही बुलाइये।" अंकिता ने फिर अपने आपको सम्हाला। थोड़ा सा सोचमें पड़ने के बाद अंकिता ने शायद मन ही मन फैसला किया की वह गौरव को अपनी असलियत (की वह शादी शुदा है) उस वक्त नहीं बताएगी।
गौरव: "तो फिर आप भी सुनिए। आप मुझे कप्तान साहब कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम गौरव है। आप मुझे सिर्फ गौरव कह कर ही बुलाइये।"
अंकिता का मन डाँवाडोल हो रहा था। वह गौरव के साथ आगे बढे या नहीं? पति (ब्रिगेडियर साहब) ने तो उसे इशारा कर ही दिया था की अंकिता को अगर कहीं कुछ मौक़ा मिले तो उसे चोरी छुपी शारीरिक भूख मिटाने से उनको कोई आपत्ति नहीं होगी, बशर्ते की सारी बात छिपी रहे। अंकिताके लिए यह अनूठा मौक़ा था। उसका मनपसंद हट्टाकट्टा हैंडसम नवयुवक उसे ललचा कर, फाँस कर, उससे शारीरिक सम्बन्ध बनाने की ने भरसक कोशिश में जुटा हुआ था। अब अंकिता पर निर्भर था की वह अपना सम्मान बनाये रखते हुए उस युवक को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करे या नहीं। अंकिता ने सोचा यह पहली बार हुआ था की इतना हैंडसम युवक उसे ललचा कर फाँसने की कोशिश कर रहा था। पहले भी कई युवक अंकिता को लालच भरी नजर से तो देखते थे, पर किसीभी ऐसे हैंडसम युवक ने आगे बढ़कर उसके करीब आकर उसे ललचाने की इतनी भरसक कोशिश नहीं की थी। फिर भी भला वह कैसे अपने आप आगे बढ़ कर किसी युवक को कहे की "आओ और मेरी शारीरिक भूख मिटाओ?" आखिर वह भी तो एक मानिनी भारतीय नारी थी। उसे भी तो अपना सम्मान बनाये रखना था।