26-12-2019, 01:14 PM
गौरव: "सिर्फ टाँगें ही तो टच कर रहीं है। हमारे बदन तो दूर हैं ना?"
अंकिता: "कमाल है, कप्तान साहब! अभी हमें मिले दो घंटे भी हुए नहीं और आप हमारे बदन एक दूसरे से मिलाने का ख्वाब देख रहे हो?"
गौरव: "क्यों भाई? क्या ख्वाब देखने पर की कोई पाबंदी है? और मान लो हमें मिले हुए एक दिन पूरा हो गया होता तो क्या होता?"
अंकिता: "नहीं कप्तान साहब ख्वाब देखने पर कोई पाबंदी नहीं है। आप जरूर ख्वाब देखिये। जब ख्वाब ही देखने है तो कंजूसी कैसी? और जहां तक मिलने के एक दिन के बाद की बात है तो वह तो एक दिन बीतेगा तब देखेंगे। अभी तो सिर्फ शुरुआत है। अभी से इतनी बेसब्री क्यों?"
गौरव: "क्या मतलब?"
अंकिता: "अरे जब ख्वाब ही देखने हैं तो फिर ख्वाब में सब कुछ ही देखिये। खाली बदन एक दूसरे से करीब आये यही क्यों रुकना भला? ख्वाब पर कोई लगाम लगाने की क्या जरुरत है? हाँ ख्वाब के बाहर जो असली दुनिया है, वहाँ सब्र रखना जरुरी है।"
गौरव: "मोहतरमा, आप कहना क्या चाहती हो? मैं ख्वाब में क्या देखूं? जहां तक सब्र का सवाल है तो मैं यह मानता हूँ की मुझमें सब्र की कमी है।"
अंकिता: "कमाल है कप्तान साहब! अब मुझे ही बताना पडेगा की आप ख्वाब में क्या देखो? भाई देश आजाद है। जो देखना हो वह ख्वाब में देख सकते हो। मुझे क्या पता आप ख्वाब में क्या देखना चाहते हो? पर ख्वाब की दुनिया और असलियत में फर्क होता है।"
गौरव: "मैं बताऊँ मैं ख्वाब में क्या देखना चाहता हूँ?"
अंकिता: "फिर वही बात? भाई जो देखना चाहो देखो। बताओ, क्या देखना चाहते हो?"
गौरव: "अगर मैं सच सच बोलूं तो आप बुरा तो नहीं मानोगे?"
अंकिता: "कमाल है! आप ख्वाब देखो तो उसमें मुझे बुरा मानने की क्या बात है? कहते हैं ना, की नींद तुम्हारी ख्वाब तुम्हारे। बताओ ना क्या ख्वाब देखना चाहते हो?"
गौरव: "हाँ यह तो सही कहा आपने। तो मैं ख्वाब देखना चाहता हूँ की आप मेरी बाँहों में हो और मैं आपको खूब प्यार कर रहा हूँ।"
अंकिता: "अरे! अभी तो हम ढंग से मिले भी नहीं और आप मुझे बाँहों में ले कर प्यार करने के ख्वाब देखने लगे?"
गौरव: "आपने ही तो कहा था की ख्वाब देखने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है? जहां तक ढंग से मिलने का सवाल है तो बताइये ना हम कैसे ढंग से मिल सकते हैं?"
अंकिता: "ढंग से मिलने का मतलब है आपस में एक दूसरे को जानना एक दूसरे के करीब आने के लिए समय निकालना, एक दूसरे की ख़ुशी और भले के लिए कुछ बलिदान करना, बगैरह बगैरह। हाँ, मैंने कहा तो था ख्वाब देखने पर कोई पाबंदी नहीं है, पर ख्वाब भी सोच समझ कर देखने चाहिए।"
अंकिता: "कमाल है, कप्तान साहब! अभी हमें मिले दो घंटे भी हुए नहीं और आप हमारे बदन एक दूसरे से मिलाने का ख्वाब देख रहे हो?"
गौरव: "क्यों भाई? क्या ख्वाब देखने पर की कोई पाबंदी है? और मान लो हमें मिले हुए एक दिन पूरा हो गया होता तो क्या होता?"
अंकिता: "नहीं कप्तान साहब ख्वाब देखने पर कोई पाबंदी नहीं है। आप जरूर ख्वाब देखिये। जब ख्वाब ही देखने है तो कंजूसी कैसी? और जहां तक मिलने के एक दिन के बाद की बात है तो वह तो एक दिन बीतेगा तब देखेंगे। अभी तो सिर्फ शुरुआत है। अभी से इतनी बेसब्री क्यों?"
गौरव: "क्या मतलब?"
अंकिता: "अरे जब ख्वाब ही देखने हैं तो फिर ख्वाब में सब कुछ ही देखिये। खाली बदन एक दूसरे से करीब आये यही क्यों रुकना भला? ख्वाब पर कोई लगाम लगाने की क्या जरुरत है? हाँ ख्वाब के बाहर जो असली दुनिया है, वहाँ सब्र रखना जरुरी है।"
गौरव: "मोहतरमा, आप कहना क्या चाहती हो? मैं ख्वाब में क्या देखूं? जहां तक सब्र का सवाल है तो मैं यह मानता हूँ की मुझमें सब्र की कमी है।"
अंकिता: "कमाल है कप्तान साहब! अब मुझे ही बताना पडेगा की आप ख्वाब में क्या देखो? भाई देश आजाद है। जो देखना हो वह ख्वाब में देख सकते हो। मुझे क्या पता आप ख्वाब में क्या देखना चाहते हो? पर ख्वाब की दुनिया और असलियत में फर्क होता है।"
गौरव: "मैं बताऊँ मैं ख्वाब में क्या देखना चाहता हूँ?"
अंकिता: "फिर वही बात? भाई जो देखना चाहो देखो। बताओ, क्या देखना चाहते हो?"
गौरव: "अगर मैं सच सच बोलूं तो आप बुरा तो नहीं मानोगे?"
अंकिता: "कमाल है! आप ख्वाब देखो तो उसमें मुझे बुरा मानने की क्या बात है? कहते हैं ना, की नींद तुम्हारी ख्वाब तुम्हारे। बताओ ना क्या ख्वाब देखना चाहते हो?"
गौरव: "हाँ यह तो सही कहा आपने। तो मैं ख्वाब देखना चाहता हूँ की आप मेरी बाँहों में हो और मैं आपको खूब प्यार कर रहा हूँ।"
अंकिता: "अरे! अभी तो हम ढंग से मिले भी नहीं और आप मुझे बाँहों में ले कर प्यार करने के ख्वाब देखने लगे?"
गौरव: "आपने ही तो कहा था की ख्वाब देखने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है? जहां तक ढंग से मिलने का सवाल है तो बताइये ना हम कैसे ढंग से मिल सकते हैं?"
अंकिता: "ढंग से मिलने का मतलब है आपस में एक दूसरे को जानना एक दूसरे के करीब आने के लिए समय निकालना, एक दूसरे की ख़ुशी और भले के लिए कुछ बलिदान करना, बगैरह बगैरह। हाँ, मैंने कहा तो था ख्वाब देखने पर कोई पाबंदी नहीं है, पर ख्वाब भी सोच समझ कर देखने चाहिए।"