26-12-2019, 01:08 PM
जीतूजी अपने लम्बे कद के कारण थोड़ा सा पॉंव लंबा करने में कष्ट महसूस कर रहे थे। अपर्णा ने जब यह देखा तो जीतूजी के दोनों पाँव उठाकर अपनी गोद में ले लिए। जीतूजी को ठण्ड ना लगे इस लिए अपर्णा ने एक और रक्खी एक चद्दर और उसके ऊपर रक्खा पड़ा हुआ कम्बल खिंच निकाला और जीतूजी के पुरे शरीर को उस कम्बल से ढक दिया। कम्बल के निचे एक चद्दर भी लगा दी। वही कम्बल और चद्दर का दुसरा छोर अपनी गोद और छाती पर भी डाल दिया। इस तरह ठण्ड से थोड़ी राहत पाकर अपर्णा प्यार से जीतूजी की टाँगों को अपनी गोद में रख कर उस पर हाथ फिरा कर हल्का सा मसाज करने लगी। उसे जीतूजी के पाँव अपनी गोद में पाकर अच्छा लग रहा था। उसे अपने गुरु और अपने प्यारे प्रेमी की सेवा करने का मौक़ा मिला था। वह उन दिनों को याद करने लगी जब वह अपने पिताजी के पॉंव तब तक दबाती रहती थी जब तक वह सो नहीं जाते थे। पाँव दबाते हुए अपर्णा जीतूजी की और सम्मान और प्यार भरी नज़रों से देखती रहती थी। उसे जीतूजी के पाँव अपनी गोद में रखने में कोई भी झिझक नहीं महसूस हुई।
अपर्णा ने अपनी टांगें भी लम्बीं कीं और अपने पति रोहित की गोद में रख दीं। रोहित खर्राटे मार रहे थे। कुछ पल के लिए वह उठ गए और उन्होंने आँखें खोलीं जब उन्होंने अपनी पत्नी की टाँगें अपनी गोद में पायीं। उन्होंने अपर्णा की और देखा। उन्होंने देखा की जीतूजी की टाँगें उनकी पत्नी अपर्णा की गोद में थीं और अपर्णा उन्हें हलके से मसाज कर रही थी। अपर्णा ने देखा की वह कुछ मुस्काये और फिर आँखें बंद कर अपनी नींद की दुनिया में वापस चले गए।
अपर्णा जीतूजी की टाँगों को सहला और दबा रही थी तब उसे जीतूजी के हाथका स्पर्श हुआ। जीतूजी ने कम्बल के निचे से अपना एक हाथ लंबा कर अपर्णा के हाथ को हलके से थामा और धीरे से उसे दबा कर ऊपर की और खिसका कर उसे अपनी दो जाँघों के बिचमें रख दिया। अब अपर्णा समझ गयी की जीतूजी चाहते थे की अपर्णा जीतूजी के लण्ड को अपने हाथोँ में पकड़ कर सहलाये। अपर्णा जीतूजी की इस हरकतसे चौंक गयी। वह इधर उधर दिखने लगी। सब गहरी नींद सो रहे थे। अपर्णा का हाल देखने जैसा था। अपर्णा ने जब चारों और देखा तो पाया की कम्बल के निचे की उनकी हरकतों को और कोई आसानी से नहीं देख सकता था। सारे परदे फैले हुए होने के कारण अंदर काफी कम रौशनी थी। करीब करीब अँधेरा जैसा ही था।
अपर्णा ने धीरे से अपना हाथ ऊपर की और किया और थोड़ा जीतूजी की और झुक कर जीतूजी के लण्ड को उनकी पतलून के ऊपर से ही अपने हाथ में पकड़ा। जीतूजी का लण्ड अभी पूरा कड़क नहीं हुआ था। पर बड़ी जल्दी कड़क हो रहा था। तभी अपर्णा ने चारोँ और सावधानी से देख कर जीतूजी के पतलून की ज़िप ऊपरकी और खिसकायी और बड़ी मशक्कत से उनकी निक्कर हटा कर उनके लण्ड को आज़ाद किया और फिर उस नंगे लण्ड को अपने हाथ में लिया। अपर्णा के हाथ के स्पर्श मात्र से जीतूजी का लण्ड एकदम टाइट और खड़ा हो गया और अपना पूर्व रस छोड़ने लगा। अपर्णा का हाथ जीतूजी के पूर्व रस की चिकनाहट से लथपथ हो गया था। फिर अपर्णा ने अपनी उँगलियों की मुट्ठी बना कर उसे अपनी छोटी सी उँगलियों में लिया। वह जीतूजी का पूरा लण्ड अपनी मुट्ठी में तो नहीं ले पायी पर फिर भी जीतूजी के लण्ड की ऊपरी त्वचा को दबा कर उसे सहलाने और हिलाने लगी।
अपर्णा ने अपनी टांगें भी लम्बीं कीं और अपने पति रोहित की गोद में रख दीं। रोहित खर्राटे मार रहे थे। कुछ पल के लिए वह उठ गए और उन्होंने आँखें खोलीं जब उन्होंने अपनी पत्नी की टाँगें अपनी गोद में पायीं। उन्होंने अपर्णा की और देखा। उन्होंने देखा की जीतूजी की टाँगें उनकी पत्नी अपर्णा की गोद में थीं और अपर्णा उन्हें हलके से मसाज कर रही थी। अपर्णा ने देखा की वह कुछ मुस्काये और फिर आँखें बंद कर अपनी नींद की दुनिया में वापस चले गए।
अपर्णा जीतूजी की टाँगों को सहला और दबा रही थी तब उसे जीतूजी के हाथका स्पर्श हुआ। जीतूजी ने कम्बल के निचे से अपना एक हाथ लंबा कर अपर्णा के हाथ को हलके से थामा और धीरे से उसे दबा कर ऊपर की और खिसका कर उसे अपनी दो जाँघों के बिचमें रख दिया। अब अपर्णा समझ गयी की जीतूजी चाहते थे की अपर्णा जीतूजी के लण्ड को अपने हाथोँ में पकड़ कर सहलाये। अपर्णा जीतूजी की इस हरकतसे चौंक गयी। वह इधर उधर दिखने लगी। सब गहरी नींद सो रहे थे। अपर्णा का हाल देखने जैसा था। अपर्णा ने जब चारों और देखा तो पाया की कम्बल के निचे की उनकी हरकतों को और कोई आसानी से नहीं देख सकता था। सारे परदे फैले हुए होने के कारण अंदर काफी कम रौशनी थी। करीब करीब अँधेरा जैसा ही था।
अपर्णा ने धीरे से अपना हाथ ऊपर की और किया और थोड़ा जीतूजी की और झुक कर जीतूजी के लण्ड को उनकी पतलून के ऊपर से ही अपने हाथ में पकड़ा। जीतूजी का लण्ड अभी पूरा कड़क नहीं हुआ था। पर बड़ी जल्दी कड़क हो रहा था। तभी अपर्णा ने चारोँ और सावधानी से देख कर जीतूजी के पतलून की ज़िप ऊपरकी और खिसकायी और बड़ी मशक्कत से उनकी निक्कर हटा कर उनके लण्ड को आज़ाद किया और फिर उस नंगे लण्ड को अपने हाथ में लिया। अपर्णा के हाथ के स्पर्श मात्र से जीतूजी का लण्ड एकदम टाइट और खड़ा हो गया और अपना पूर्व रस छोड़ने लगा। अपर्णा का हाथ जीतूजी के पूर्व रस की चिकनाहट से लथपथ हो गया था। फिर अपर्णा ने अपनी उँगलियों की मुट्ठी बना कर उसे अपनी छोटी सी उँगलियों में लिया। वह जीतूजी का पूरा लण्ड अपनी मुट्ठी में तो नहीं ले पायी पर फिर भी जीतूजी के लण्ड की ऊपरी त्वचा को दबा कर उसे सहलाने और हिलाने लगी।