26-12-2019, 11:55 AM
रोहित श्रेया की बर्थ पर बैठे हुए थे। श्रेया जी खिड़की के पास नींद में थीं। जीतूजी भी सामने की खिड़की वाली सीट पर थे जबकि अपर्णा बर्थ की गैलरी वाले छोर पर बैठी थी। कम्पार्टमेंट का ए.सी. काफी तेज चल रहा था। देखते ही देखते कम्पार्टमेंट एकदम ठंडा हो गया था। अपर्णा ने चद्दर निकाली अपने बदन पर डाल दी। चद्दर का दूसरा छोर अपर्णा ने जीतूजी को दिया जो उन्होंने भी अपने कंधे पर डालदी। थोड़ी ही देर में जीतूजी की आँखें गहरा ने लगीं, तो वह पॉंव लम्बे कर लेट गए। चद्दर के निचे जीतूजी के पॉंव अपर्णा की जाँघों को छू रहे थे। कप्तान गौरव और अंकिता एक दूसरे से काफी जोश से पर बड़ी ही धीमी आवाज में बात कर रहे थे। बिच बिच में वह एक दूसरे का हाथ भी पकड़ रहे थे यह अपर्णा ने देखा। उन दोनों की बातों को छोड़ कम्पार्टमेंट में करीब करीब सन्नाटा सा था। ट्रैन छूटे हुए करीब एक घंटा हो चुका था तब एक और टिकट निरीक्षक पुरे कम्पार्टमेंट का टिकट चेक करते हुए अपर्णा, रोहित, जीतूजी और श्रेया जी के सामने खड़े हुए और टिकट माँगा।
उन सब के लिए तो यह बड़े आश्चर्य की बात थी। कर्नल साहब ने टिकट चेकर से पूछा, "टी टी साहब, आप कितनी बार टिकट चेक करेंगे? अभी अभी तो एक टी टी साहब आकर टिकट चेक कर गए हैं। आप एक ही घंटे में दूसरे टी टी हैं। यह कैसे हुआ?" टी टी साहब आश्चर्य से कर्नल साहब की और देख कर बोले, "अरे भाई साहब आप क्या कह रहे हैं? इस कम्पार्टमेंट ही नहीं, मैं सारे ए.सी.डिब्बों के टिकट चेक करता हूँ। इस ट्रैन में ए.सी. के छे डिब्बे हैं। इन डिब्बों के लिए मेरे अलावा और कोई टी.टी. नहीं है। शायद कोई बहरूपिया आपको बुद्धू बना गया। क्या आपके पैसे तो नहीं गए ना?"
रोहित ने कहा, "नहीं, कोई पैसे हमने दिए और ना ही उसने मांगे।"
टी टी साहब ने चैन की साँस लेते हुए कहा, " चलो, अच्छा है। फ्री में मनोरंजन हो गया। कभी कभी ऐसे बहुरूपिये आ जाते हैं। चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है।" यह कह कर टी टी साहब सब के टिकट चेक कर चलते बने। रोहित ने जीतूजी की और देखा। जीतूजी गहरी सोच में डूबे हुए थे। वह चुप ही रहे। अपर्णा चुपचाप सब कुछ देखती रही। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
अपर्णा ने अपने दिमाग को ज्यादा जोर ना देते हुए, उस युवा अंकिता लड़की को "हाय" किया । उस को अपने पास बुलाया और अपने बाजूमें बिठाया और बातचित शुरू हुई। अपर्णा ने अपने बैग में से कुछ फ्रूट्स निकाल कर अंकिता को दिए। अंकिता ने एक संतरा लिया और अपर्णा और अंकिता बातों में लग गए। अपर्णा की आदत अनुसार अपर्णा और अंकिता की बहुत ही जल्दी अच्छी खासी दोस्ती हो गयी। अपर्णा को पता लगा की उसका नाम मिसिस अंकिता खन्ना था। सब अंकिता के बारे में सोच ही रहे थे की ऐसा कैसे हुआ की इतनी कम उम्र की युवा लड़की अंकिता की शादी ब्रिगेडियर खन्ना के साथ हुई। अपर्णा ने धीरे धीरे अंकिता के साथ इतनी करीबी बना ली की अंकिता पट पट अपर्णा को अपनी सारी राम कहानी कहने लगी।
उन सब के लिए तो यह बड़े आश्चर्य की बात थी। कर्नल साहब ने टिकट चेकर से पूछा, "टी टी साहब, आप कितनी बार टिकट चेक करेंगे? अभी अभी तो एक टी टी साहब आकर टिकट चेक कर गए हैं। आप एक ही घंटे में दूसरे टी टी हैं। यह कैसे हुआ?" टी टी साहब आश्चर्य से कर्नल साहब की और देख कर बोले, "अरे भाई साहब आप क्या कह रहे हैं? इस कम्पार्टमेंट ही नहीं, मैं सारे ए.सी.डिब्बों के टिकट चेक करता हूँ। इस ट्रैन में ए.सी. के छे डिब्बे हैं। इन डिब्बों के लिए मेरे अलावा और कोई टी.टी. नहीं है। शायद कोई बहरूपिया आपको बुद्धू बना गया। क्या आपके पैसे तो नहीं गए ना?"
रोहित ने कहा, "नहीं, कोई पैसे हमने दिए और ना ही उसने मांगे।"
टी टी साहब ने चैन की साँस लेते हुए कहा, " चलो, अच्छा है। फ्री में मनोरंजन हो गया। कभी कभी ऐसे बहुरूपिये आ जाते हैं। चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है।" यह कह कर टी टी साहब सब के टिकट चेक कर चलते बने। रोहित ने जीतूजी की और देखा। जीतूजी गहरी सोच में डूबे हुए थे। वह चुप ही रहे। अपर्णा चुपचाप सब कुछ देखती रही। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
अपर्णा ने अपने दिमाग को ज्यादा जोर ना देते हुए, उस युवा अंकिता लड़की को "हाय" किया । उस को अपने पास बुलाया और अपने बाजूमें बिठाया और बातचित शुरू हुई। अपर्णा ने अपने बैग में से कुछ फ्रूट्स निकाल कर अंकिता को दिए। अंकिता ने एक संतरा लिया और अपर्णा और अंकिता बातों में लग गए। अपर्णा की आदत अनुसार अपर्णा और अंकिता की बहुत ही जल्दी अच्छी खासी दोस्ती हो गयी। अपर्णा को पता लगा की उसका नाम मिसिस अंकिता खन्ना था। सब अंकिता के बारे में सोच ही रहे थे की ऐसा कैसे हुआ की इतनी कम उम्र की युवा लड़की अंकिता की शादी ब्रिगेडियर खन्ना के साथ हुई। अपर्णा ने धीरे धीरे अंकिता के साथ इतनी करीबी बना ली की अंकिता पट पट अपर्णा को अपनी सारी राम कहानी कहने लगी।