26-12-2019, 11:45 AM
अपर्णा ने पति रोहित के पायजामे का नाड़ा खोला और उसमें हाथ डाल कर वह अपने पति का लण्ड सहलाने लगी। तब उसे जीतूजी का मोटा और लंबा लण्ड जैसे अपनी आँखों के सामने दिखने लगा। अनायास ही अपर्णा अपने पति के लण्ड के साथ जीतूजी के लण्ड की तुलना करने लगी। रोहित का लण्ड काफी लंबा और मोटा था और जब तक अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड नहीं महसुस किया था तब तक तो वह यही समझ रही थी की अपने पति रोहित के लण्ड जितना लंबा और मोटा शायद ही किसी मर्द का लण्ड होगा। पर जीतूजी का लण्ड देखने के बाद उसकी गलतफहमी दूर हो गयी थी। हो सकता है की जीतूजी के लण्ड से भी लंबा और मोटा किसी और मर्द का लण्ड हो।
लेकिन अपर्णा यह समझ गयी थी की किसी भी औरतकी पूर्णतयः कामुक संतुष्टि केलिए जीतूजी का लण्ड ना सिर्फ काफी होगा बल्कि शुरू शुरू में काफी कष्टसम भी हो सकता है। यही बात श्रेया ने भी तो अपर्णा को कही थी। अपनी कामुकता को छिपाते हुए स्त्री सुलभ लज्जा के नखरे दिखाते हुए अपर्णा ने अपने पति के लण्ड को हिलाना शुरू किया और बोली, "देखो जानू! मुझसे यह सब मत करवाओ। मुझे तुम अपनी ही रहने दो। तुम जो सोच रहे या कह रहे हो ऐसा सोचने से या करने से गड़बड़ हो सकती है। तुम जीतूजी को तो भली भांति जानते हो ना? तुम्हें तो पता है, उस दिन सिनेमा हॉल में क्या हुआ था? तुम्हारे जीतूजी कितने उत्तेजित हो गए थे और मेरे साथ क्या क्या करने की कोशिश कर रहे थे और मैं भी उन्हें रोक नहीं पा रही थी? वह तो अच्छा था की हम सब इतने बड़े हॉल में सब की नज़रों में थे l वरना पता नहीं क्या हो जाता? हाँ मैं यह जानती हूँ की तुम श्रेया पर बड़ी लाइन मार रहे हो और उन्हें अपने चंगुल में फाँसने की कोशिश कर रहे हो। तो मैं तुम्हें पूरी छूट देती हूँ की यदि उन दोनों को इसमें कोई आपत्ति नहीं है तो तुम खूब उनके साथ घूमो फिरो और जो चाहे करो। मुझे उसमें कोई आपत्ति नहीं है।"
अपर्णा की धड़कन तेज हो गयी थीं। वह अपने पति के ऊपर चढ़ गयी। उनके होँठों पर अपने होँठ रख कर अपर्णा उनको गहरा चुम्बन करने लगी। अपर्णा का अपने आप पर काबू नहीं रख पा रही थी। पर अपर्णा को आखिर अपने आप पर नियत्रण तो रखना ही पडेगा। उसने अपने आपको सम्हालते हुए कहा, "जहां तक जीतूजी का ऋण चुकाने का सवाल है तो जैसे आप कहते हो अगर श्रेया को एतराज नहीं हो तो मैं जीतूजी का पूरा साथ दूंगी, पर तुम मुझसे यह उम्मीद मत रखना की मैं उससे कुछ ज्यादा आगे बढ़ पाउंगी। तुम मेरी मँशा और मज़बूरी भली भाँती जानते हो।" रोहित ने निराशा भरे स्वर में कहा, "हाँ मैं जानता हूँ की तुम अपनी माँ से वचनबद्ध हो की तुम सिर्फ उसीको अपना सर्वस्व अर्पण करोगी जो तुम पर जान न्योछावर करता है। खैर तुम उन्हें कंपनी तो दे ही सकती हो ना?" अपर्णा ने अपने पति की नाक, कपाल और बालों को चुम्बन करते हुए कहा, अरे भाई कंपनी क्या होती है? हम सब साथ में ही तो होंगे ना? तो फिर मैं उन्हें कैसे कंपनी दूंगी? कंपनी देने का तो सवाल तब होता है ना अगर वह अकेले हों?"
रोहित ने अपनी पत्नीके मदमस्त कूल्होंपर अपनी हथेली फेरते हुए और उसकी गाँड़ के गालोँ को अपनी उँगलियों से दबाते हुए कहा, "अरे मेरी बुद्धू बीबी, मेरे कहने का मतलब है दिन में या इधर उधर घूमते हुए, जब हम सब अलग हों या साथ में भी हों तब भी तुम जीतूजी के साथ रहना , मैं श्रेया के साथ रहूंगा। हम हमारा क्रम बदल देंगे। रात में तो फिर हम पति पत्नी रोज की तरह एक साथ हो ही जाएंगे ना? इसमें तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं?"
लेकिन अपर्णा यह समझ गयी थी की किसी भी औरतकी पूर्णतयः कामुक संतुष्टि केलिए जीतूजी का लण्ड ना सिर्फ काफी होगा बल्कि शुरू शुरू में काफी कष्टसम भी हो सकता है। यही बात श्रेया ने भी तो अपर्णा को कही थी। अपनी कामुकता को छिपाते हुए स्त्री सुलभ लज्जा के नखरे दिखाते हुए अपर्णा ने अपने पति के लण्ड को हिलाना शुरू किया और बोली, "देखो जानू! मुझसे यह सब मत करवाओ। मुझे तुम अपनी ही रहने दो। तुम जो सोच रहे या कह रहे हो ऐसा सोचने से या करने से गड़बड़ हो सकती है। तुम जीतूजी को तो भली भांति जानते हो ना? तुम्हें तो पता है, उस दिन सिनेमा हॉल में क्या हुआ था? तुम्हारे जीतूजी कितने उत्तेजित हो गए थे और मेरे साथ क्या क्या करने की कोशिश कर रहे थे और मैं भी उन्हें रोक नहीं पा रही थी? वह तो अच्छा था की हम सब इतने बड़े हॉल में सब की नज़रों में थे l वरना पता नहीं क्या हो जाता? हाँ मैं यह जानती हूँ की तुम श्रेया पर बड़ी लाइन मार रहे हो और उन्हें अपने चंगुल में फाँसने की कोशिश कर रहे हो। तो मैं तुम्हें पूरी छूट देती हूँ की यदि उन दोनों को इसमें कोई आपत्ति नहीं है तो तुम खूब उनके साथ घूमो फिरो और जो चाहे करो। मुझे उसमें कोई आपत्ति नहीं है।"
अपर्णा की धड़कन तेज हो गयी थीं। वह अपने पति के ऊपर चढ़ गयी। उनके होँठों पर अपने होँठ रख कर अपर्णा उनको गहरा चुम्बन करने लगी। अपर्णा का अपने आप पर काबू नहीं रख पा रही थी। पर अपर्णा को आखिर अपने आप पर नियत्रण तो रखना ही पडेगा। उसने अपने आपको सम्हालते हुए कहा, "जहां तक जीतूजी का ऋण चुकाने का सवाल है तो जैसे आप कहते हो अगर श्रेया को एतराज नहीं हो तो मैं जीतूजी का पूरा साथ दूंगी, पर तुम मुझसे यह उम्मीद मत रखना की मैं उससे कुछ ज्यादा आगे बढ़ पाउंगी। तुम मेरी मँशा और मज़बूरी भली भाँती जानते हो।" रोहित ने निराशा भरे स्वर में कहा, "हाँ मैं जानता हूँ की तुम अपनी माँ से वचनबद्ध हो की तुम सिर्फ उसीको अपना सर्वस्व अर्पण करोगी जो तुम पर जान न्योछावर करता है। खैर तुम उन्हें कंपनी तो दे ही सकती हो ना?" अपर्णा ने अपने पति की नाक, कपाल और बालों को चुम्बन करते हुए कहा, अरे भाई कंपनी क्या होती है? हम सब साथ में ही तो होंगे ना? तो फिर मैं उन्हें कैसे कंपनी दूंगी? कंपनी देने का तो सवाल तब होता है ना अगर वह अकेले हों?"
रोहित ने अपनी पत्नीके मदमस्त कूल्होंपर अपनी हथेली फेरते हुए और उसकी गाँड़ के गालोँ को अपनी उँगलियों से दबाते हुए कहा, "अरे मेरी बुद्धू बीबी, मेरे कहने का मतलब है दिन में या इधर उधर घूमते हुए, जब हम सब अलग हों या साथ में भी हों तब भी तुम जीतूजी के साथ रहना , मैं श्रेया के साथ रहूंगा। हम हमारा क्रम बदल देंगे। रात में तो फिर हम पति पत्नी रोज की तरह एक साथ हो ही जाएंगे ना? इसमें तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं?"