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Adultery कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED}
#84
जीतूजी ने फिर थम कर थोड़ी गंभीरतासे अपर्णा की और देख कर कहा, "पर जानूं, मैं भी आज तुमसे एक वादा करता हूँ। चाहे मुझे अपनी जान से ही क्यों ना खेलना पड़े, अपनी जान की बाजी क्यों ना लगानी पड़े, एक दिन ऐसा आएगा जब तुम सामने चल कर मेरे पास आओगी और मुझे अपना सर्वस्व समर्पण करोगी l मैं अपनी जान हथेली में रख कर घूमता हूँ। मेरे देश के लिए इसे मैंने आज तक हमारी सेना में गिरवी रखा था। अब मैं तुम्हारे हाथ में भी इसे गिरवी रखता हूँ l अगर तुम राजपूतानी हो तो मैं भी हिंदुस्तानी फ़ौज का जाँबाज़ सिपाही हूँ। मैं तुम्हें वचन देता हूँ की जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक मैं तुम पर अपना वचन भंग करने का कोई मानसिक दबाव नहीं बनाऊंगा। इतना ही नहीं, मैं तुम्हें भी कमजोर नहीं होने दूंगा की तुम अपना वचन भंग करो।"

अपर्णा ने जब जीतूजी से यह वाक्य सुने तो वह गदगद हो गयी। अपर्णा के हाथ में जीतूजी का आधा तना हुआ लंड था जिसे वह प्यार से सेहला रही थी। अचानक ही अपर्णा के मन में क्या उफान आया की वह जीतूजी के लण्ड पर झुक गयी और उसे चूमने लगी। अपर्णा की आँखों में आँसू छलक रहे थे l अपर्णा जीतूजी के लण्ड को चूमते हुए और उनके लण्ड को सम्बोधित करते हुए बोली, "मेरे प्यारे जीतूजी के प्यारे सिपाही! मुझे माफ़ करना की मैं तुम्हें तुम्हारी सहेली, जो मेरी दो जॉंघों के बिच है, उसके घर में घुस ने की इजाजत नहीं दे सकती। तुम मुझे बड़े प्यारे हो। मैं तुम्हें तुम्हारी सहेली से भले ही ना मिला पाऊँ पर मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ।" अपर्णा ने जीतूजी के पॉंव सीधे किये और फिर से सख्त हुए उनके लण्ड के ऊपर अपना मुंह झुका कर लण्ड को अपने मुंह में लेकर उसे चूमने और चूसने लगी। हर बार जब भी वह जीतूजी के लण्ड को अपने मुंह से बाहर निकालती तो आँखों में आँसूं लिए हुए बोलती, "मुझे माफ़ करना मेरे जीतूजी के दूत, मुझे माफ़ करना। मैं तुम्हें तुम्हारी सखी से मिला नहीं सकती।" अपर्णा ने फिर से जीतूजी के लण्ड को कभी हाथों से तो कभी मुंह में चूस कर और हिला कर इतना उन्माद पूर्ण और उत्तेजित किया की एक बार फिर जीतूजी का बदन ऐसे अकड़ गया और एक बार फिर जीतूजी के लण्ड के छिद्र में से एक पिचकारी के सामान फव्वारा छूटा और उस समय अपर्णा ने उसे पूरी तरह से अपने मुंह में लिया और उसे गटक गटक कर पी गयी।

उस दिन तक अपर्णा ने कभी कभार अपने पति का लंड जरूर चूमा था और एक बार हल्का सा चूसा भी था, पर उनका वीर्य अपने मुंह में नहीं लिया था। अपर्णा को ऐसा करना अच्छा नहीं लगता था। पर आज बिना आग्रह किये अपर्णा ने अपनी मर्जी से जीतूजी का पूरा वीर्य पी लिया। अपर्णा को उस समय जरासी भी घिन नहीं हुई और शायद उसे जीतूजी के वीर्य का स्वाद अच्छा भी लगा। कहते हैं ना की अप्रिय का सुन्दर चेहरा भी अच्छा नहीं लगता पर अपने प्रिय की तो गाँड़ भी अच्छी लगती है। काफी देर तक अपर्णा आधे नंगे जीतूजी की बाँहों में ही पड़ी रही। अब उसे यह डर नहीं था की कहीं जीतूजी उसे चुदने के लिए मजबूर ना करे। जीतूजी के बदन की और उनके लण्ड की गर्मी अपर्णा ने ठंडी कर दी थी। जीतूजी अब काफी अच्छा महसूस कर रहे थे। अपर्णा उठ खड़ी हुई और अपनी साडी ठीक ठाक कर उसने जीतूजी को चूमा और बोली, "जीतूजी, मैं एक बात आपसे पूछना भूल ही गयी। मैं आपसे यह पूछना चाहती थी की आप कुछ वास्तव में छुपा रहे हो ना, उस पीछा करने वाले व्यक्ति के बारे में? सच सच बताना प्लीज?"
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RE: "कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED} - by usaiha2 - 26-12-2019, 11:41 AM



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