26-12-2019, 11:40 AM
अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड अपनी छोटी छोटी हथेलियों में लिया और उसे सहलाने और हिलाने लगी। वह चाहती थी की जीतूजीका वीर्य स्खलन उसकी उँगलियों में हो और वह भले ही उस वीर्य को अपनी चूत में ना डाल सके पर जीतूजी की ख़ुशी के लिए वह उस वीर्य काआस्वादन जरूर करेगी। अपर्णा ने जीतूजी के लण्ड को पहले धीरे से और बाद में जैसे जैसे जीतूजी का उन्माद बढ़ता गया, वैसे वैसे जोर से हिलाने लगी। साथ साथ में अपर्णा और जीतूजी मुस्काते हुए एक प्यार भरे प्रगाढ़ चुम्बनमें खो गए।
कुछ मिनटों की ही बात थी प्यार भरी बातें और साथ साथ में अपर्णा की कोमल मुठी में मुश्किल से पकड़ा हुआ लम्बे घने सख्त छड़ जैसा जीतूजी का लण्ड जोरसे हिलाते हिलाते अपर्णा की बाहें भी थक रही थीं तब जीतूजी का बदन एकदम अकड़ गया। उन्होंने अपर्णा के स्तनों को जोरसे दबाया और "ओह.... अपर्णा..... तुम कमाल हो....." कहते हुए अचानक ही जीतूजी के लण्ड के छिद्र से जैसे एक फव्वारा फूट पड़ा जो अपर्णा के चेहरे पर ऐसे फ़ैल गया जैसे अपर्णा का चेहरा कोई मलाई से बना हो। उस दिन सुबह ही सुबह अपर्णा ने ब्रेकफास्ट में वह नाश्ता किया जो उसने पहले कभी नहीं किया था। अपर्णा ने जीतूजी से एक वचन माँगते हुए कहा, "जीतूजी मैं और आप दोनों, आपकी पत्नी श्रेया को और मेरे पति रोहित को हमारे बिच हुई प्रेम क्रीड़ा के बारे में कुछ भी नहीं बताएँगे। वैसे तो उनसे छुपाने वाली ऐसी कोई बात तो हुई ही नहीं जिसे छिपाना पड़े पर जो कुछ भी हुआ है उसे भी हम जाहिर नहीं करेंगे l मैं हमारे बिच हुई प्रेम क्रीड़ा को मेरे पति रोहित और आप की पत्नी श्रेया से छिपा के रखना चाहती हूँ ताकि सही समय पर उन्हें मैं इसे धमाके से पेश करुँगी की दोनों चौंक जाएंगे और तब बड़ा मजा आएगा।"
कर्नल साहब अपर्णा की और विस्मय से जब देखने लगे तब अपर्णा ने जीतूजी का हाथ थाम कर कहा, "आप कैसे क्या करना है वह सब मुझ पर छोड़ दीजिये। मैं चाहती हूँ की आपकी पत्नी और मेरी दीदी श्रेया से मेरे पति रोहित का ऐसा धमाकेदार मिलन हो की बस मजा आ जाये!" अपर्णा का आगे बोलते हुए मुंह खिन्नता और निराशा से मुरझा सा गया जब वह बोली, "मेरे कारण मैं आपको चरम पर ले जा कर उस उन्मादपूर्ण सम्भोग का आनंद नहीं दे पायी जहां मेरे साथ मैं आपको ले जाना चाहती थी l पर मैं चाहती हूँ की वह दोनों हमसे कहीं ज्यादा उस सम्भोग का आनंद लें, उनके सम्भोग का रोमांच और उत्तेजना इतनी बढ़े की मजा आ जाए। इस लिए जरुरी है की हम दोनों ऐसा वर्तन करेंगे जैसे हमारे बीच कुछ हुआ ही नहीं और हम दोनों एक दूसरे के प्रति वैसे ही व्यवहार करेंगे जैसे पहले करते थे। आप श्रेया से हमेशा मेरे बारे में ऐसे बात करना जैसे मैं आपके चुंगुल में फँसी ही नहीं हूँ।" जीतूजी ने अपर्णा अपनी बाहों में ले कर कहा, "बात गलत भी तो नहीं है। तुम इतनी मानिनी हो की मेरी लाख मिन्नतें करने पर भी तुम कहाँ मानी हो? आखिरकार तुमने अपनी माँ का नाम देकर मुझे अंगूठा दिखाही दियाना?" जब अपर्णा यह सुनकर रुआंसी सी हो गयी, तो जीतूजी ने अपर्णा को कस कर चुम्बन करते हुए कहा, "अरे पगली, मैं तो मजाक कर रहा था। पर अब जब तुमने हमारी प्रेम क्रीड़ा को एक रहस्य के परदेमें रखने की ठानी ही है तो फिर मैं एक्टिंग करने में कमजोर हूँ। मैं अब मेरे मन से ऐसे ही मान लूंगा की जैसे की तुमने वाकई में मुझे अंगूठा दिखा दिया है और मेरे मन में यह रंजिश हमेशा रखूँगा और हो सकता है की कभी कबार मेरे मुंहसे ऐसे कुछ जले कटे शब्द निकल भी जाए। तब तुम बुरा मत मानना क्यूंकि मैं अपने दिमाग को यह कन्विंस कर दूंगा की तुम कभी शारीरिक रूप से मेरे निकट आयी ही नहीं और आज जो हुआ वह हुआ ही नहीं l आज जो हुआ उसे मैं अपनी मेमोरी से इरेज कर दूंगा, मिटा दूंगा। ठीक है? तुम भी जब मैं ऐसा कुछ कहूं या ऐसा वर्तन करूँ तो यह मत समझना की मैं वाकई में ऐसा सोचता हूँ। पर ऐसा करना तो पडेगा ही। तो बुरा मत मानना, प्लीज?"
कुछ मिनटों की ही बात थी प्यार भरी बातें और साथ साथ में अपर्णा की कोमल मुठी में मुश्किल से पकड़ा हुआ लम्बे घने सख्त छड़ जैसा जीतूजी का लण्ड जोरसे हिलाते हिलाते अपर्णा की बाहें भी थक रही थीं तब जीतूजी का बदन एकदम अकड़ गया। उन्होंने अपर्णा के स्तनों को जोरसे दबाया और "ओह.... अपर्णा..... तुम कमाल हो....." कहते हुए अचानक ही जीतूजी के लण्ड के छिद्र से जैसे एक फव्वारा फूट पड़ा जो अपर्णा के चेहरे पर ऐसे फ़ैल गया जैसे अपर्णा का चेहरा कोई मलाई से बना हो। उस दिन सुबह ही सुबह अपर्णा ने ब्रेकफास्ट में वह नाश्ता किया जो उसने पहले कभी नहीं किया था। अपर्णा ने जीतूजी से एक वचन माँगते हुए कहा, "जीतूजी मैं और आप दोनों, आपकी पत्नी श्रेया को और मेरे पति रोहित को हमारे बिच हुई प्रेम क्रीड़ा के बारे में कुछ भी नहीं बताएँगे। वैसे तो उनसे छुपाने वाली ऐसी कोई बात तो हुई ही नहीं जिसे छिपाना पड़े पर जो कुछ भी हुआ है उसे भी हम जाहिर नहीं करेंगे l मैं हमारे बिच हुई प्रेम क्रीड़ा को मेरे पति रोहित और आप की पत्नी श्रेया से छिपा के रखना चाहती हूँ ताकि सही समय पर उन्हें मैं इसे धमाके से पेश करुँगी की दोनों चौंक जाएंगे और तब बड़ा मजा आएगा।"
कर्नल साहब अपर्णा की और विस्मय से जब देखने लगे तब अपर्णा ने जीतूजी का हाथ थाम कर कहा, "आप कैसे क्या करना है वह सब मुझ पर छोड़ दीजिये। मैं चाहती हूँ की आपकी पत्नी और मेरी दीदी श्रेया से मेरे पति रोहित का ऐसा धमाकेदार मिलन हो की बस मजा आ जाये!" अपर्णा का आगे बोलते हुए मुंह खिन्नता और निराशा से मुरझा सा गया जब वह बोली, "मेरे कारण मैं आपको चरम पर ले जा कर उस उन्मादपूर्ण सम्भोग का आनंद नहीं दे पायी जहां मेरे साथ मैं आपको ले जाना चाहती थी l पर मैं चाहती हूँ की वह दोनों हमसे कहीं ज्यादा उस सम्भोग का आनंद लें, उनके सम्भोग का रोमांच और उत्तेजना इतनी बढ़े की मजा आ जाए। इस लिए जरुरी है की हम दोनों ऐसा वर्तन करेंगे जैसे हमारे बीच कुछ हुआ ही नहीं और हम दोनों एक दूसरे के प्रति वैसे ही व्यवहार करेंगे जैसे पहले करते थे। आप श्रेया से हमेशा मेरे बारे में ऐसे बात करना जैसे मैं आपके चुंगुल में फँसी ही नहीं हूँ।" जीतूजी ने अपर्णा अपनी बाहों में ले कर कहा, "बात गलत भी तो नहीं है। तुम इतनी मानिनी हो की मेरी लाख मिन्नतें करने पर भी तुम कहाँ मानी हो? आखिरकार तुमने अपनी माँ का नाम देकर मुझे अंगूठा दिखाही दियाना?" जब अपर्णा यह सुनकर रुआंसी सी हो गयी, तो जीतूजी ने अपर्णा को कस कर चुम्बन करते हुए कहा, "अरे पगली, मैं तो मजाक कर रहा था। पर अब जब तुमने हमारी प्रेम क्रीड़ा को एक रहस्य के परदेमें रखने की ठानी ही है तो फिर मैं एक्टिंग करने में कमजोर हूँ। मैं अब मेरे मन से ऐसे ही मान लूंगा की जैसे की तुमने वाकई में मुझे अंगूठा दिखा दिया है और मेरे मन में यह रंजिश हमेशा रखूँगा और हो सकता है की कभी कबार मेरे मुंहसे ऐसे कुछ जले कटे शब्द निकल भी जाए। तब तुम बुरा मत मानना क्यूंकि मैं अपने दिमाग को यह कन्विंस कर दूंगा की तुम कभी शारीरिक रूप से मेरे निकट आयी ही नहीं और आज जो हुआ वह हुआ ही नहीं l आज जो हुआ उसे मैं अपनी मेमोरी से इरेज कर दूंगा, मिटा दूंगा। ठीक है? तुम भी जब मैं ऐसा कुछ कहूं या ऐसा वर्तन करूँ तो यह मत समझना की मैं वाकई में ऐसा सोचता हूँ। पर ऐसा करना तो पडेगा ही। तो बुरा मत मानना, प्लीज?"