26-12-2019, 11:39 AM
जीतूजी कुछ समझे इसके पहले अपर्णा ने जीतूजी की दो जॉंघोंके बिचमें से उनका लण्ड पयजामेके ऊपरसे पकड़ा। अपर्णा ने अपने हाथ से पयजामा के बटन खोल दिए और उसके हाथ में जीतूजी इतना मोटा और लम्बा लण्ड आ गया की जिसको देख कर और महसूस कर कर अपर्णा की साँसे ही रुक गयीं। उसने फिल्मों में और रोहित जी का भी लंड देखा था। पर जीतूजी का लण्ड वाकई उनके मुकाबले कहीं मोटा और लंबा था। उसके लण्ड के चारों और इर्दगिर्द उनके पूर्वश्राव पूरी चिकनाहट फैली हुई थी। अपर्णा की हथेली में भी वह पूरी तरहसे समा नहीं पाता था। अपर्णा ने उसके इर्दगिर्द अपनी छोटी छोटी उंगलियां घुमाईं और उसकी चिकनाहट फैलाई। अगर उसकी चूतमें ऐसा लण्ड घुस गया तो उसका क्या हाल होगा यह सोच कर ही वह भय और रोमांच से कांपने लगी। उसे एक राहत थी की उसे उस समय वह लण्ड अपनी चूत में नहीं लेना था। अपर्णा सोचने लगीकी श्रेया जब जीतूजी से चुदवाती होंगी तो उनका क्या हाल होता होगा? शायद उनकी चूत रोज इस लण्ड से चुद कर इतनी चौड़ी तो हो ही गयी होगी की उन्हें अब जीतूजी के लण्ड को घुसाने में उतना कष्ट नहीं होता होगा जितना पहले होता होगा।
अपर्णा ने जीतूजी से कहा, "जीतूजी, हमारे बिच की यह बात हमारे बिचही रहनी चाहिए। हालांकि मैं किसीसे और ख़ास कर मेरे पति और आपकी पत्नी से यह बात छुपाना नहीं चाहती। पर मैं चाहती हूँ की यह बात मैं उनको सही वक्त आने पर कह सकूँ। इस वक्त मैं उनको इतना ही इशारा कर दूंगी की रोहित श्रेया के साथ अपना टाँका भिड़ा सकते हैं। डार्लिंग, आपको तो कोई एतराज नहीं ना?"
जीतूजी ने हँसते हुए कहा, "मुझे कोई एतराज नहीं। मैं तुम्हारा यानी मेरी पारो का देवदास ही सही पर मैं मेरी चंद्र मुखी को रोहित की बाँहों में जाने से रोकूंगा नहीं। मेरी तो वह है ही।" अपर्णा को बुरा लगा की जीतूजी ने बात ही बात में अपने आपकी तुलना देवदास से करदी। उसे बड़ा ही अफ़सोस हो रहा था की वह जीतूजी की उसे चोदने की मन की चाह पूरी नहीं कर पायी और उसके मन की जीतूजी से चुदवाने की चाह भी पूरी नहीं कर पायी पर उसने मन ही मन प्रभु से प्रार्थना की की "हे प्रभु, कुछ ऐसा करो की साँप भी मरे और लाठी भी ना टूटे। मतलब ऐसा कुछ हो की जीतूजी अपर्णाको चोद भी सके और माँ का वाचन भंग भी ना हो।" पर अपर्णा यह जानती थी की यह सब तो मन का तरंग ही था। अगर माँ ज़िंदा होती तो शायद अपर्णा उनसे यह वचन से उसे मुक्त करने के लिए कहती पर माँ का स्वर्ग वास हो चुका था। इस कारण अब इस जनम में तो ऐसा कुछ संभव नहीं था। रेल की दो पटरियों की तरह अपर्णा को इस जनम में तो जीतूजी का लण्ड देखते हुए और महसूस करते हुए भी अपनी चूत में डलवाने का मौक़ा नहीं मिल पायेगा। यह हकीकत थी।
अपर्णा ने जीतूजी से कहा, "जीतूजी, हमारे बिच की यह बात हमारे बिचही रहनी चाहिए। हालांकि मैं किसीसे और ख़ास कर मेरे पति और आपकी पत्नी से यह बात छुपाना नहीं चाहती। पर मैं चाहती हूँ की यह बात मैं उनको सही वक्त आने पर कह सकूँ। इस वक्त मैं उनको इतना ही इशारा कर दूंगी की रोहित श्रेया के साथ अपना टाँका भिड़ा सकते हैं। डार्लिंग, आपको तो कोई एतराज नहीं ना?"
जीतूजी ने हँसते हुए कहा, "मुझे कोई एतराज नहीं। मैं तुम्हारा यानी मेरी पारो का देवदास ही सही पर मैं मेरी चंद्र मुखी को रोहित की बाँहों में जाने से रोकूंगा नहीं। मेरी तो वह है ही।" अपर्णा को बुरा लगा की जीतूजी ने बात ही बात में अपने आपकी तुलना देवदास से करदी। उसे बड़ा ही अफ़सोस हो रहा था की वह जीतूजी की उसे चोदने की मन की चाह पूरी नहीं कर पायी और उसके मन की जीतूजी से चुदवाने की चाह भी पूरी नहीं कर पायी पर उसने मन ही मन प्रभु से प्रार्थना की की "हे प्रभु, कुछ ऐसा करो की साँप भी मरे और लाठी भी ना टूटे। मतलब ऐसा कुछ हो की जीतूजी अपर्णाको चोद भी सके और माँ का वाचन भंग भी ना हो।" पर अपर्णा यह जानती थी की यह सब तो मन का तरंग ही था। अगर माँ ज़िंदा होती तो शायद अपर्णा उनसे यह वचन से उसे मुक्त करने के लिए कहती पर माँ का स्वर्ग वास हो चुका था। इस कारण अब इस जनम में तो ऐसा कुछ संभव नहीं था। रेल की दो पटरियों की तरह अपर्णा को इस जनम में तो जीतूजी का लण्ड देखते हुए और महसूस करते हुए भी अपनी चूत में डलवाने का मौक़ा नहीं मिल पायेगा। यह हकीकत थी।