26-12-2019, 11:38 AM
जीतूजी फिर भी बड़े प्यार से अपर्णा के स्तनों को दबाते और सँवारते रहे। अपर्णा ने जीतूजी के हाथों को दबा कर यह संकेत दिया की वह जाग गयी थी। अपर्णा ने फिर जीतूजी के हाथों को ऊपर उठा कर अपने होठों से लगाया और दोनों हाथों को धीरे से बड़े प्यार से चूमा। फिर अपना सर घुमा कर अपर्णा ने जीतूजी की और देखा और मुस्काई। हालांकि अपर्णा जीतूजी को आगे बढ़ने से रोकना जरूर चाहती थी पर उन्हें कोई सदमा भी नहीं देना चाहती थी। अपर्णा खुद जीतूजी से चुदवाना चाहती थी। पर उसे अपनी मर्यादा का पालन भी करना था। अपर्णा ने धीरे से करवट बदली और जीतूजी के हाथों और टाँगों की पकड़ को थोड़ा ढीले करते हुए वह पलटी और जीतूजी के सामने चेहरे से चेहरा कर प्रस्तुत हुई।
अपर्णा ने जीतूजी जी की आँखों से आँखें मिलाई और हल्का सा मुस्कुराते हुए जीतूजी को धीरे से कहा, "जीतूजी, मैं आपके मन के भाव समझती हूँ। मैं जानती हूँ की आप क्या चाहते हैं। मेरे मन के भाव भी अलग नहीं हैं। जो आप चाहते हैं, वह मैं भी चाहती हूँ l जीतूजी आप मुझे अपनी बनाना चाहते हो, तो मैं भी आपकी बनना चाहती हूँ। आप मेरे बदन की चखना करते हो तो मैं भी आपके बदन से अपने बदन को पूरी तरह मिलाना चाहती हूँ। पर इसमें मुझे मेरी माँ को दिया हुआ वचन रोकता है। मैं आपको इतना ही कहना चाहती हूँ की आप मेरे हो या नहीं यह मैं नहीं जानती, पर मैं आपको कहती हूँ की मैं मन कर्म और वचन से आपकी हूँ और रहूंगी। बस यह तन मैं आपको पूरी तरह से इस लिए नहीं सौंप सकती क्यूंकि मैं वचन से बंधी हूँ l इसके अलावा मैं पूरी तरह से आपकी ही हूँ। यदि आप मुझे आधा अधूरा स्वीकार कर सकतेहो तो मुझे अपनी बाँहों में ही रहने दो और मुझे स्वीकार करो। बोलो क्या आप मुझे आधा अधूरा स्वीकार करने के लिए तैयार हो?
यह सुनकर कर्नल साहब की आँखों में आँसू भर आये। उन्होंने कभी सोचा नहीं था की वास्तव में कोई उनसे इतना प्रेम कर सकता है। उन्होंने अपर्णा को अपनी बाँहों में कस के जकड़ा और बोले, "अपर्णा, मैं तुम्हें कोई भी रूप में कैसे भी अपनी ही मानता हूँ।" यह सुनकर कर अपर्णा ने अपनी दोनों बाँहें जीतूजी के गले में डालीं और थोड़ा ऊपर की और खिसक कर अपर्णा ने अपने होँठ जीतूजी से होँठ पर चिपका दिए। जीतूजी भी पागल की तरह अपर्णा के होठों को चूसने और चूमने लगे। उन्होंने अपर्णा की जीभ को अपने मुंह में चूस लिया जीभ को वह प्यार से चूसने लगे और अपर्णा के मुंह की सारी लार वह अपने मुंह में लेकर उसे गले के निचे उतारकर उसका रसास्वादन करने लगे। उन्हें ऐसा महसूस हुआ की अपर्णा ने उनसे नहीं चुदवाया फिर भी जैसे उन्हें अपर्णा का सब कुछ मिल गया हो।
जीतूजी गदगद हो कर बोले, "मेरी प्यारी अपर्णा, चाहे हमारे मिले हुए कुछ ही दिन हुए हैं, पर मुझे ऐसा लगता है जैसे तुम मेरी कई जीवन की संगिनीं हो।" अपर्णा ने जीतूजी की नाक अपनी उँगलियों में पकड़ी और हँसती हुई बोली, "मैं कहीं श्रेया का हक़ तो नहीं छीन रही?" जीतूजी ने भी हंस कर कहा, "तुम बीबी नहीं साली हो। और साली आधी घरवाली तो होती ही है ना? श्रेया का हक़ छीनने का सवाल ही कहाँ है?"
अपर्णा ने जीतूजी की टाँगों के बिच हाथ डालते हुए कहा, "जीतूजी, आप मुझे एक इजाजत दीजिये। एक तरीके से ना सही तो दूसरे तरीके से आप मुझे आपकी कुछ गर्मी कम करने की इजाजत तो दीजिये। भले मैं इसमें खुद वह आनंद ना ले पाऊं जो मैं लेना चाहती हूँ पर आपको तो कुछ सकून दे सकूँ।"
अपर्णा ने जीतूजी जी की आँखों से आँखें मिलाई और हल्का सा मुस्कुराते हुए जीतूजी को धीरे से कहा, "जीतूजी, मैं आपके मन के भाव समझती हूँ। मैं जानती हूँ की आप क्या चाहते हैं। मेरे मन के भाव भी अलग नहीं हैं। जो आप चाहते हैं, वह मैं भी चाहती हूँ l जीतूजी आप मुझे अपनी बनाना चाहते हो, तो मैं भी आपकी बनना चाहती हूँ। आप मेरे बदन की चखना करते हो तो मैं भी आपके बदन से अपने बदन को पूरी तरह मिलाना चाहती हूँ। पर इसमें मुझे मेरी माँ को दिया हुआ वचन रोकता है। मैं आपको इतना ही कहना चाहती हूँ की आप मेरे हो या नहीं यह मैं नहीं जानती, पर मैं आपको कहती हूँ की मैं मन कर्म और वचन से आपकी हूँ और रहूंगी। बस यह तन मैं आपको पूरी तरह से इस लिए नहीं सौंप सकती क्यूंकि मैं वचन से बंधी हूँ l इसके अलावा मैं पूरी तरह से आपकी ही हूँ। यदि आप मुझे आधा अधूरा स्वीकार कर सकतेहो तो मुझे अपनी बाँहों में ही रहने दो और मुझे स्वीकार करो। बोलो क्या आप मुझे आधा अधूरा स्वीकार करने के लिए तैयार हो?
यह सुनकर कर्नल साहब की आँखों में आँसू भर आये। उन्होंने कभी सोचा नहीं था की वास्तव में कोई उनसे इतना प्रेम कर सकता है। उन्होंने अपर्णा को अपनी बाँहों में कस के जकड़ा और बोले, "अपर्णा, मैं तुम्हें कोई भी रूप में कैसे भी अपनी ही मानता हूँ।" यह सुनकर कर अपर्णा ने अपनी दोनों बाँहें जीतूजी के गले में डालीं और थोड़ा ऊपर की और खिसक कर अपर्णा ने अपने होँठ जीतूजी से होँठ पर चिपका दिए। जीतूजी भी पागल की तरह अपर्णा के होठों को चूसने और चूमने लगे। उन्होंने अपर्णा की जीभ को अपने मुंह में चूस लिया जीभ को वह प्यार से चूसने लगे और अपर्णा के मुंह की सारी लार वह अपने मुंह में लेकर उसे गले के निचे उतारकर उसका रसास्वादन करने लगे। उन्हें ऐसा महसूस हुआ की अपर्णा ने उनसे नहीं चुदवाया फिर भी जैसे उन्हें अपर्णा का सब कुछ मिल गया हो।
जीतूजी गदगद हो कर बोले, "मेरी प्यारी अपर्णा, चाहे हमारे मिले हुए कुछ ही दिन हुए हैं, पर मुझे ऐसा लगता है जैसे तुम मेरी कई जीवन की संगिनीं हो।" अपर्णा ने जीतूजी की नाक अपनी उँगलियों में पकड़ी और हँसती हुई बोली, "मैं कहीं श्रेया का हक़ तो नहीं छीन रही?" जीतूजी ने भी हंस कर कहा, "तुम बीबी नहीं साली हो। और साली आधी घरवाली तो होती ही है ना? श्रेया का हक़ छीनने का सवाल ही कहाँ है?"
अपर्णा ने जीतूजी की टाँगों के बिच हाथ डालते हुए कहा, "जीतूजी, आप मुझे एक इजाजत दीजिये। एक तरीके से ना सही तो दूसरे तरीके से आप मुझे आपकी कुछ गर्मी कम करने की इजाजत तो दीजिये। भले मैं इसमें खुद वह आनंद ना ले पाऊं जो मैं लेना चाहती हूँ पर आपको तो कुछ सकून दे सकूँ।"