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Adultery कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED}
#80
अपर्णा और जीतूजी दोनों जैसे एक ही लग रहे थे। जीतूजी का लण्ड इतना फुंफकार रहा था की जीतूजी उसे रोकना नामुमकिन सा महसूस कर रहे थे। जीतूजी महीनों से अपर्णा को अपने इतने करीब अपनी बाहों में लाने के सपने देख रहे थे। अपर्णा के स्तन, उसकी गाँड़, उसका पूरा बदन और ख़ास कर उसकी चूत चूसने के लिए वह कितने व्याकुल थे? उसी तरह उनकी मँशा थी की एक ना एक दिन अपर्णा भी उनका लण्ड बड़े प्यार से चूसेगी और अपर्णा एक दिन उनसे आग्रह करेगी वह अपर्णा को चोदे। यह उनका सपना था। यह सब सोच कर भला ऊनका लण्ड कहाँ रुकता? जीतूजी का लण्ड तो अपनी प्यारी सखी अपर्णा की चूत में घुसने के लिए बेचैन था। उसे अपर्णा की चूत में अपना नया घर जो बनाना था। अपर्णा उस समय साडी पहने हुए थी। कर्नल साहब ने देखा की अपर्णा को ऊपर निचे खिसकाने के कारण अपर्णा की साडी उसकी जाँघों से ऊपर तक उठ चुकी थी। अपर्णा की करारी मांसल सुडौल नंगी जाँघें देख कर जीतूजी का मन मचल रहा था। पर जैसे तैसे उन्होंने अपने आप पर नियत्रण रक्खा और अपर्णा को खिंच कर कस कर अपनी बाँहों में और अपनी टाँगों के बिच दबोचा और अपर्णा के बदन का आनंद लेने लगे।

जाहिर था की जीतूजी का मोटा लंबा लण्ड पजामें में परेशान हो रहा था। एक शेर को कैद में बंद करने से वह जैसे दहाड़ता है वैसे ही जीतूजी लण्ड पयजामे में फुंफकार मार रहा था। अपर्णा की गाँड़ और उसकी ऊपर उठी हुई साडी के कारण जीतूजी का लण्ड अपर्णा की गाँड़ की बिच वाली दरार में घुसने के लिए बेताब हो रहा था। पर बिच में साडी का मोटासा लोचा था। जीतूजी अपर्णा की गाँड़ में साडी के कपडे के पीछे अपना लण्ड घुसा कर संतोष लेने की कोशिश कर रहे थे। पर अपर्णा के नंगे स्तन उनकी हथेलियों में खेल रहे थे। उसे सहलाने में, उन्हें दबानेमें और मसलने में और उन स्तनोँ की निप्पलोँ को पिचकाने में जीतूजी मशगूल ही थे की उन्हें लगा की अपर्णा जाग रही थी।

अपनी नींद की गहरी तंद्रा में अपर्णा ने ऐसे महसूस किया जैसे वह अपने प्यारे जीतूजी की बाँहों में थी। उसे ऐसा लगा जैसे जीतूजी उसकी चूँचियों को बड़े प्यार से तो कभी बड़ी बेरहमी से दबाते, मसलते तो कभी उसकी निप्पलों को अपनी उँगलियों में कुचलते थे। वह मन ही मन बड़ा आनंद महसूस कर रही थी। उसे यह सपना बड़ा प्यारा लग रहा था। बेचारी को क्या पता था की वह सपना नहीं असलियत थी? जब धीरे धीरे अपर्णा की तंद्रा टूटी तो उसने वास्तव में पाया की वह सचमुच में ही जीतूजी की बाँहों और टाँगों के बिच में फँसी हुई थी। जीतूजी का मोटा और लम्बा लण्ड उसकी गाँड़ की दरार को टोंच रहा था। हालांकि उसकी गाँड़ नंगी नहीं थी। बिच में साडी, घाघरा और पेंटी थी, वरना शायद जीतूजी का लण्ड उसकी गाँड़ में या तो चूत में चला ही जाता। शायद अपर्णा की गाँड़ में तो जीतूजी का मोटा लण्ड घुस नहीं पाता पर चूत में तो जरूर वह चला ही जाता। अपर्णा ने यह भी अनुभव किया की वास्तव में ही जीतूजी उसके दोनों स्तनों को बड़े प्यार से तो कभी बड़ी बेरहमी से दबाते, मसलते और कुचलते थे। वह इस अद्भुत अनुभव का कुछ देर तक आनंद लेती रही। वह यह सुनहरा मौक़ा गँवा देना नहीं चाहती थी। ऐसे ही थोड़ी देर पड़े रहने के बाद उसने सोचा की यदि वह ऐसे ही पड़ी रही तो शायद जीतूजी उसे स्वीकृति मानकर उसकी साडी, घाघरा ऊपर कर देंगे और उसकी पेंटी को हटा कर उसको चोदने के लिए उस के ऊपर चढ़ जाएंगे और तब अपर्णा उन्हें रोक नहीं पाएगी। अपर्णा ने धीरे से अपने स्तनों को सहलाते और दबाते हुए जीतूजी के दोनों हाथ अपने हाथ में पकडे। जीतूजी का विरोध ना करते हुए अपर्णा ने उन्हें अपने स्तनोँ के ऊपर से नहीं हटाया। बस जीतूजी के हाथों को अपने हाथों में प्यार से थामे रक्खा।
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RE: "कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED} - by usaiha2 - 26-12-2019, 11:36 AM



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