26-12-2019, 11:35 AM
अपर्णा गहरी नींद में बेहोश सी हालत में जीतूजी के मुंह में अपना एक स्तन धरे हुए जीतूजी के ऊपर अपना बदन झुका कर ही सो गयी। कर्नल साहब भी बुखार के कारण आधी निंद और आधे जागृत अवस्था में थे। उनके जहन में अजीब सा रोमांच था। उनके सपनों की रानी अपर्णा उनपर अपना पूरा बदन टिका कर सो रही थी। उसका एक मद मस्त स्तन जीतूजी के मुंह में था जिसका रसास्वादन वह कर रहे थे, हालांकि अपर्णा ने ब्लाउज और ब्रा पहन रक्खी थी।
जब कर्नल साहब थोड़ा अपनी तंद्रा से बाहर आये तो उन्होंने अपर्णा का आधा बदन अपने बदन पर पाया। कर्नल साहब जानते थे की अपर्णा एक मानिनी थी। वह किसी भी मर्द को अपना तन आसानी से देने वाली नहीं थी। श्रेया ने उनको बताया था की अपर्णा एक राजपूतानी थी और उसने प्रण लिया था की वह अगर किसीको अपना तन देगी तो उसको देगी जो अपर्णा के ऊपर अपना प्राण तक न्योछवर करने के लिए तैयार हो। किसी भी ऐसे वैसे मर्द को अपर्णा अपना तन कभी नहीं देगी। कर्नल साहब ऐसी महिलाओं की इज्जत करना जानतेथे। वह कभी भी स्त्रियोंकी कमजोरी का फायदा उठाने में विश्वास नहीं रखते थे। यह उनके उसूल के खिलाफ था। पर उनकी भी हालत ख़राब थी। वह ना सिर्फ अपर्णा के बदन के, बल्कि अपर्णा के पुरे व्यक्तित्व से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। अपर्णा की सादगी, भोलापन, शूरवीरता, देश प्रेम, जोशके वह कायलथे। अपर्णा की बातें करते हुए हाथों और उँगलियों को हिलाना, आँखों को नचाना बगैरह अदा पर वह फ़िदा थे। और फिर उन्होंने अपर्णा को इस हाल में अपने पर गिरने के लिए मजबूर भी तो नहीं किया था। अपर्णा अपने आप ही आकर उनकी इतनी करीबी सेवा में लग गयी थी। उन्होंने अपने लण्ड पर भी अपर्णा का हाथ महसूस किया था। कर्नल साहब भी क्या करे? क्या अपर्णा उनपर अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार थी? यह सब सवाल कर्नल साहब को भी खाये जा रहे थेl
खैर कर्नल साहब थोड़ा खिसके और अपर्णा के स्तन को मुंह से निकाल कर अपर्णा को धीरे से अपने बगल में सुला दिया। अपर्णा का ब्लाउज और उसकी ब्रा जीतूजी के मुंह की लार के कारण पूरी तरह गीली हो चुकी थी। जीतूजी को अपर्णा के स्तन के बिच में गोला किये हुए अपर्णा के स्तन का गहरे बादामी रंग का एरोला और उसके बिलकुल केंद्र में स्थित फूली हुई निप्पल की झांकी हो रही थी। कर्नल साहब की समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या करे। पर उस समय उन्होंने देखा की अपर्णा गहरी नींद सो रही थी। उन्होंने अपर्णा को एक करवट लेकर ऐसे लिटा दिया जिससे अपर्णा का पिछवाड़ा कर्नल साहब की और हो। अपर्णा की गाँड़ कर्नल साहब के लण्ड से टकरा रही थी। कर्नल साहब ने अपना हाथ अपर्णा की बाँह और कंधेके ऊपर से अपर्णा के स्तन पर रख दिया। वह इतना तो समझ गए थे की अपर्णा को अपना बदन जीतूजी से छुआ ने में कोई भारी आपत्ति नहीं होगी। क्यूंकि जीतूजी ने पहले भी तो अपर्णा के स्तन छुए थे। उस समय अपर्णा ने कोई विरोध नहीं किया था। अपर्णा गहरी नींद में एक सरीखी साँसे लेती हुई मुर्दे की तरह लेटी हुई थी। उसे कुछ होश न था। जीतूजी ने धीरे से अपर्णा के ब्लाउज के बटन खोल दिए। फिर उन्होंने दूसरे हाथ से पीछे से अपर्णा की ब्रा के हुक खोल दिए। अपर्णा के अल्लड़ करारे स्तन पूरी स्वच्छंदता से आज़ाद हो चुके थे। जीतूजी बदन में रोमांचक सिहरनें उठ रही थी। जीतूजी के रोंगटे खड़े हो गए थे। जीतूजी ने दुसरा हाथ धीरे से अपर्णा के बदन के निचे से घुसा कर अपर्णा को अपनी बाँहों में ले लिया। जीतूजी दोनों हाथोँ से अपर्णा के स्तनोँ को दबाने मसलने और अपर्णा के स्तनोँ की निप्पलोँ को पिचकाने में लग गए। अपने हाथों की हाथेलियों में अपर्णा के दोनों स्तनोँ को महसूस करते ही जीतूजी का लण्ड फुंफकार मारने लगा था। कर्नल साहब ने अपर्णा का निचला बदन अपनी दोनों टाँगों के बीचमें ले लिया। अपर्णा उस समय जीतूजी की दोनों बाँहों में और उनकी दोनों टांगों के बिच कैद थी।
ऐसा लगता था जैसे उस समय अपर्णा थी ही नहीं।
जब कर्नल साहब थोड़ा अपनी तंद्रा से बाहर आये तो उन्होंने अपर्णा का आधा बदन अपने बदन पर पाया। कर्नल साहब जानते थे की अपर्णा एक मानिनी थी। वह किसी भी मर्द को अपना तन आसानी से देने वाली नहीं थी। श्रेया ने उनको बताया था की अपर्णा एक राजपूतानी थी और उसने प्रण लिया था की वह अगर किसीको अपना तन देगी तो उसको देगी जो अपर्णा के ऊपर अपना प्राण तक न्योछवर करने के लिए तैयार हो। किसी भी ऐसे वैसे मर्द को अपर्णा अपना तन कभी नहीं देगी। कर्नल साहब ऐसी महिलाओं की इज्जत करना जानतेथे। वह कभी भी स्त्रियोंकी कमजोरी का फायदा उठाने में विश्वास नहीं रखते थे। यह उनके उसूल के खिलाफ था। पर उनकी भी हालत ख़राब थी। वह ना सिर्फ अपर्णा के बदन के, बल्कि अपर्णा के पुरे व्यक्तित्व से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। अपर्णा की सादगी, भोलापन, शूरवीरता, देश प्रेम, जोशके वह कायलथे। अपर्णा की बातें करते हुए हाथों और उँगलियों को हिलाना, आँखों को नचाना बगैरह अदा पर वह फ़िदा थे। और फिर उन्होंने अपर्णा को इस हाल में अपने पर गिरने के लिए मजबूर भी तो नहीं किया था। अपर्णा अपने आप ही आकर उनकी इतनी करीबी सेवा में लग गयी थी। उन्होंने अपने लण्ड पर भी अपर्णा का हाथ महसूस किया था। कर्नल साहब भी क्या करे? क्या अपर्णा उनपर अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार थी? यह सब सवाल कर्नल साहब को भी खाये जा रहे थेl
खैर कर्नल साहब थोड़ा खिसके और अपर्णा के स्तन को मुंह से निकाल कर अपर्णा को धीरे से अपने बगल में सुला दिया। अपर्णा का ब्लाउज और उसकी ब्रा जीतूजी के मुंह की लार के कारण पूरी तरह गीली हो चुकी थी। जीतूजी को अपर्णा के स्तन के बिच में गोला किये हुए अपर्णा के स्तन का गहरे बादामी रंग का एरोला और उसके बिलकुल केंद्र में स्थित फूली हुई निप्पल की झांकी हो रही थी। कर्नल साहब की समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या करे। पर उस समय उन्होंने देखा की अपर्णा गहरी नींद सो रही थी। उन्होंने अपर्णा को एक करवट लेकर ऐसे लिटा दिया जिससे अपर्णा का पिछवाड़ा कर्नल साहब की और हो। अपर्णा की गाँड़ कर्नल साहब के लण्ड से टकरा रही थी। कर्नल साहब ने अपना हाथ अपर्णा की बाँह और कंधेके ऊपर से अपर्णा के स्तन पर रख दिया। वह इतना तो समझ गए थे की अपर्णा को अपना बदन जीतूजी से छुआ ने में कोई भारी आपत्ति नहीं होगी। क्यूंकि जीतूजी ने पहले भी तो अपर्णा के स्तन छुए थे। उस समय अपर्णा ने कोई विरोध नहीं किया था। अपर्णा गहरी नींद में एक सरीखी साँसे लेती हुई मुर्दे की तरह लेटी हुई थी। उसे कुछ होश न था। जीतूजी ने धीरे से अपर्णा के ब्लाउज के बटन खोल दिए। फिर उन्होंने दूसरे हाथ से पीछे से अपर्णा की ब्रा के हुक खोल दिए। अपर्णा के अल्लड़ करारे स्तन पूरी स्वच्छंदता से आज़ाद हो चुके थे। जीतूजी बदन में रोमांचक सिहरनें उठ रही थी। जीतूजी के रोंगटे खड़े हो गए थे। जीतूजी ने दुसरा हाथ धीरे से अपर्णा के बदन के निचे से घुसा कर अपर्णा को अपनी बाँहों में ले लिया। जीतूजी दोनों हाथोँ से अपर्णा के स्तनोँ को दबाने मसलने और अपर्णा के स्तनोँ की निप्पलोँ को पिचकाने में लग गए। अपने हाथों की हाथेलियों में अपर्णा के दोनों स्तनोँ को महसूस करते ही जीतूजी का लण्ड फुंफकार मारने लगा था। कर्नल साहब ने अपर्णा का निचला बदन अपनी दोनों टाँगों के बीचमें ले लिया। अपर्णा उस समय जीतूजी की दोनों बाँहों में और उनकी दोनों टांगों के बिच कैद थी।
ऐसा लगता था जैसे उस समय अपर्णा थी ही नहीं।