26-12-2019, 11:31 AM
जीतूजी अपर्णा को देख कर थम गए और आश्चर्य से बोल पड़े, "अरे अपर्णा तुम, इस वक्त. यहां? क्या बात है?" शायद श्रेयाने अपने पतिको नहीं बताया था की उन्होंने अपर्णा को आने के लिए कहा था।
अपर्णा ने पूछा, "अरे आपको बुखार है ना? आप तैयार क्यों हो रहे हैं?"
जीतूजी, "अरे ऐसा छोटा मोटा बुखार तो आता रहता है। इससे घबराएंगे तो काम कैसे चलेगा? लगता है तुम्हें श्रेया ने बता दिया है। श्रेया तो फ़ालतू में बात का बतंगड़ बना रही है।"
अपर्णा ने आगे बढ़ कर जीतूजी का हाथ थामा तो पाया की उनका बदन काफी गरम था। अपर्णा ने जीतूजी का हाथ सख्ती से पकड़ा और बोली, "यह छोटा मोटा बुखार ही? आपका बदन आग जैसे तप रहा है। अब हरबार आपकी नहीं चलेगी। चलो कपडे निकालो।"
कर्नल साहब यह सुनकर आश्चर्य से अपर्णा की और देखने लगे और बोले, "कपडे निकालूँ? क्यों?"
अपर्णा को समझ आया की जीतूजी कहीं उसकी बात का गलत मतलब ना निकालें। उसने तुरंत ही कहा, "मेरा मतलब है, कपडे बदलो। ऑफिस जाने की कोई जरुरत नहीं है। आज आप घर में ही आराम करेंगे। यह मेरा हुकम है।"
कर्नल साहब चुपचाप अपर्णा की अधिकारपूर्ण आवाज सुन कर सकपका गए। आज तक कभी उन्होंने अपर्णा की ऐसी सख्त आवाज सुनी नहीं थी। वह चुपचाप पीछे हटे, अपर्णा को अंदर आने दिया और खुद एक हाथ का टेका ले कर सोफे पर बैठ गए। उनकी कमजोरी साफ़ दिख रही थी।
अपर्णा ने कहा, "कपडे निकाल कर पयजामा पहन लीजिये। दफ्तर में फ़ोन करिये की आज आप नहीं आएंगे। मैं आपके सर पर ठन्डे पानी का कपड़ा लगा कर बुखार को कम करने की कोशिश करती हूँ।" कर्नल साहब चुपचाप बैडरूम में अंदर चले गए और पतलून निकाल कर पजामा पहन कर पलंग पर लेट गए। अपर्णा ने बर्फ के कुछ टुकड़े निकाल कर एक कटोरी में डाले और एक साफ़ कपड़ा लेकर वह जीतूजी के बगल में उनके सीने के पास ही अपने कूल्हे टिका कर पलंग पर बैठ गयी। जीतूजी का बुखार काफी तेज था। अपर्णा ने कपड़ा भिगोया और उसे निचोड़ कर जीतूजी के कपाल पर लगाया और प्यार से उसे दबा कर जीतूजी के सर पर हाथ फिराने लगी। जीतूजी आँखें बंद कर अपर्णा के कोमल हाथोँ के स्पर्श का आनंद लेरहे थे।
अपर्णा ने पूछा, "अरे आपको बुखार है ना? आप तैयार क्यों हो रहे हैं?"
जीतूजी, "अरे ऐसा छोटा मोटा बुखार तो आता रहता है। इससे घबराएंगे तो काम कैसे चलेगा? लगता है तुम्हें श्रेया ने बता दिया है। श्रेया तो फ़ालतू में बात का बतंगड़ बना रही है।"
अपर्णा ने आगे बढ़ कर जीतूजी का हाथ थामा तो पाया की उनका बदन काफी गरम था। अपर्णा ने जीतूजी का हाथ सख्ती से पकड़ा और बोली, "यह छोटा मोटा बुखार ही? आपका बदन आग जैसे तप रहा है। अब हरबार आपकी नहीं चलेगी। चलो कपडे निकालो।"
कर्नल साहब यह सुनकर आश्चर्य से अपर्णा की और देखने लगे और बोले, "कपडे निकालूँ? क्यों?"
अपर्णा को समझ आया की जीतूजी कहीं उसकी बात का गलत मतलब ना निकालें। उसने तुरंत ही कहा, "मेरा मतलब है, कपडे बदलो। ऑफिस जाने की कोई जरुरत नहीं है। आज आप घर में ही आराम करेंगे। यह मेरा हुकम है।"
कर्नल साहब चुपचाप अपर्णा की अधिकारपूर्ण आवाज सुन कर सकपका गए। आज तक कभी उन्होंने अपर्णा की ऐसी सख्त आवाज सुनी नहीं थी। वह चुपचाप पीछे हटे, अपर्णा को अंदर आने दिया और खुद एक हाथ का टेका ले कर सोफे पर बैठ गए। उनकी कमजोरी साफ़ दिख रही थी।
अपर्णा ने कहा, "कपडे निकाल कर पयजामा पहन लीजिये। दफ्तर में फ़ोन करिये की आज आप नहीं आएंगे। मैं आपके सर पर ठन्डे पानी का कपड़ा लगा कर बुखार को कम करने की कोशिश करती हूँ।" कर्नल साहब चुपचाप बैडरूम में अंदर चले गए और पतलून निकाल कर पजामा पहन कर पलंग पर लेट गए। अपर्णा ने बर्फ के कुछ टुकड़े निकाल कर एक कटोरी में डाले और एक साफ़ कपड़ा लेकर वह जीतूजी के बगल में उनके सीने के पास ही अपने कूल्हे टिका कर पलंग पर बैठ गयी। जीतूजी का बुखार काफी तेज था। अपर्णा ने कपड़ा भिगोया और उसे निचोड़ कर जीतूजी के कपाल पर लगाया और प्यार से उसे दबा कर जीतूजी के सर पर हाथ फिराने लगी। जीतूजी आँखें बंद कर अपर्णा के कोमल हाथोँ के स्पर्श का आनंद लेरहे थे।