26-12-2019, 11:17 AM
अपर्णा की ऐसी कामुकता भरी बातें सुनकर श्रेया गरम हो रहीथी। वैसे भी अपर्णा के उँगलियों से चोदने से काफी गरम पहले से ही थी। श्रेया की साँसे तेज चलने लगीं.. उन्होंने कहा, "अपर्णा, मैं अब झड़ने वाली हूँ।" अपर्णा ने उँगलियों से चोदने की फुर्ती बढ़ाई और देखते ही देखते श्रेया एक या दो बार पलंग पर अपने कूल्हे उठाके, "आह... ऑफ़... हायरे..." बोलती हुई उछली और फिर पलंग पर अपनी गाँड़ रगड़ती हुई एकदम निढाल हो कर चुप हो गयी। उसकी साँसे तेज चल रही थी। श्रेया का छूट गया और वह शांत हो गयी। परन्तु उनके मन में से अपन पति से अपर्णा को चुदवाने का विचार अभी गया नहीं था। वह इस बात को पक्का करना चाहती थी।
साँस थमने पर श्रेया ने अपर्णाका हाथ अपने हाथ में ले कर पूछा, "मेरी प्यारी बहन, तू क्या बोलती है? जब तुझे सारी बातें साफ़ है तो फिर कुछ करते हैं जिससे तू जीतूजी के लण्ड का अनुभव कर सके।"
श्रेया जी की बात सुनकर अपर्णा थोड़ी सकपका गयी, क्यूंकि वह जो बोलने वाली थी उससे श्रेया काफी हतोत्साहित हो सकती थी। अपर्णा ने दबे स्वर में बड़ी ही गंभीरता से कहा, "दीदी मैं आपसे माफ़ी मांगना चाहती हूँ। पर दीदी, मैं आपसे एक बात बताना चाहती हूँ की ऐसा हो नहीं पाएगा। ऐसा नहीं है की मैं जीतूजी को पसंद नहीं करती। मैं ना सिर्फ उन्हें पसंद करती हूँ बल्कि दीदी मैं आज आपसे नहीं छुपाउंगी की मैं जब भी उनको देखती हूँ तब मैं उनपर वारी वारी जाती हूँ। अगर आप की शादी उनसे नहीं हुई होती और अगर मैं उनसे पहले मिली होती तो मैं जरूर उनको आपके हाथों लगने नहीं देती। जैसे आपने उनको और स्त्रियों से छीन लिया था ऐसे मैं भी कोशिश करती की मैं उनको आपके हाथों से छीन लूँ और वह मेरे हो जाएं । पर अब जो हो चुका वह हो चुका। वह आपके हैं और हमेशा आपके रहेंगे। पर मेरी मजबूरी है की मेरी कितनी भी इच्छा होते हुए भी मैं आपकी मँशा पूरी नहीं कर सकती।"
अपर्णा की बात सुनकर श्रेया को बड़ा झटका लगा। उन्हें लगा था की अपर्णा तो बस अब फँसने वाली ही है, पर यह तो सब उल्टापुल्टा हो रहा था। श्रेया ने पूछा, "पर क्यों तुम ऐसा नहीं कर सकती? क्या तुम्हें अपने पति से डर है? या फिर लज्जा, या कोई धार्मिक आस्था का सवाल है? आखिर बात क्या है?"
अपर्णा ने सरलता से कहा, "श्रेया बात थोड़ी समझने में मुश्किल है। मैं एक राजपूतानी हूँ। मेरी माँ की मैं चहेती बेटी थी। मेरी माँ मुझसे सारी बातें स्पष्ट रूप से करती थीं। जब कोई लड़कों के बारेमें बात होती थी तो मुझे माँ ने बचपन से ही यह सिखाया था की औरत का शील ही उसका सबकुछ है। उसके साथ कभी छेड़ छाड़ मत करना।"
साँस थमने पर श्रेया ने अपर्णाका हाथ अपने हाथ में ले कर पूछा, "मेरी प्यारी बहन, तू क्या बोलती है? जब तुझे सारी बातें साफ़ है तो फिर कुछ करते हैं जिससे तू जीतूजी के लण्ड का अनुभव कर सके।"
श्रेया जी की बात सुनकर अपर्णा थोड़ी सकपका गयी, क्यूंकि वह जो बोलने वाली थी उससे श्रेया काफी हतोत्साहित हो सकती थी। अपर्णा ने दबे स्वर में बड़ी ही गंभीरता से कहा, "दीदी मैं आपसे माफ़ी मांगना चाहती हूँ। पर दीदी, मैं आपसे एक बात बताना चाहती हूँ की ऐसा हो नहीं पाएगा। ऐसा नहीं है की मैं जीतूजी को पसंद नहीं करती। मैं ना सिर्फ उन्हें पसंद करती हूँ बल्कि दीदी मैं आज आपसे नहीं छुपाउंगी की मैं जब भी उनको देखती हूँ तब मैं उनपर वारी वारी जाती हूँ। अगर आप की शादी उनसे नहीं हुई होती और अगर मैं उनसे पहले मिली होती तो मैं जरूर उनको आपके हाथों लगने नहीं देती। जैसे आपने उनको और स्त्रियों से छीन लिया था ऐसे मैं भी कोशिश करती की मैं उनको आपके हाथों से छीन लूँ और वह मेरे हो जाएं । पर अब जो हो चुका वह हो चुका। वह आपके हैं और हमेशा आपके रहेंगे। पर मेरी मजबूरी है की मेरी कितनी भी इच्छा होते हुए भी मैं आपकी मँशा पूरी नहीं कर सकती।"
अपर्णा की बात सुनकर श्रेया को बड़ा झटका लगा। उन्हें लगा था की अपर्णा तो बस अब फँसने वाली ही है, पर यह तो सब उल्टापुल्टा हो रहा था। श्रेया ने पूछा, "पर क्यों तुम ऐसा नहीं कर सकती? क्या तुम्हें अपने पति से डर है? या फिर लज्जा, या कोई धार्मिक आस्था का सवाल है? आखिर बात क्या है?"
अपर्णा ने सरलता से कहा, "श्रेया बात थोड़ी समझने में मुश्किल है। मैं एक राजपूतानी हूँ। मेरी माँ की मैं चहेती बेटी थी। मेरी माँ मुझसे सारी बातें स्पष्ट रूप से करती थीं। जब कोई लड़कों के बारेमें बात होती थी तो मुझे माँ ने बचपन से ही यह सिखाया था की औरत का शील ही उसका सबकुछ है। उसके साथ कभी छेड़ छाड़ मत करना।"