26-12-2019, 10:58 AM
श्रेया को यह सुनने की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। श्रेया ने पूछा, "मेरा योगदान? मैंने क्या किया है?"
अपर्णा तुरंत सोफे से निचे उतर गयी और श्रेया के पॉंव से हाथ लगाती हुई बोली, "दीदी, अगर आप ने मुझे अपने पति से टूशन लेने का सुझाव ना दिया होता और यदि आपने अपने पति यानी की जीतूजी को मेरे लिए इतना समय देनेके लिए प्रोत्साहित ना किया होता तो मैं जानती हूँ, वह मुझे इतना समय ना दे पाते। और तब मैं ऐसे नंबर ना ला पाती!
मैंने अपनी खिड़की से कई बार देखा था की जब जीतूजी रात रात भर जागते थे तो आप उन्हें आधी रात को चाय बना कर पीलाती थीं। आप भी पूरी तरह नहीं सोती थीं। दूसरा जब जीतूजी काफी समय तक मेरे साथ अकेले होते थे तब कभी भी आपने उन्हें टोका नहीं या रोका नहीं। यह आपका बहुत बड़ा बड़प्पन है।"
श्रेया ने अपर्णा को ऊपर की और उठाया और अपनी बाहों में लिया और बोली, "अपर्णा, जितना तुम्हारा तन सुन्दर है, उतना तुम्हारा मन भी सुन्दर है। तुम जो नंबर लायी हो वह तुम्हारी महेनत का नतीजा है। हम ने तो बस तुम्हें रास्ता दिखाया है। देखो तुम्हारी गुरु निष्ठा और लगन ने ही तुम्हें यहाँ पहुंचाया है। अक्सर जीतूजी तुम्हारे बारे में बोलने से थकते नहीं। तुम कितनी महेनति, कितनी बुद्धि में तेज और निष्ठावान हो यह वह हमेशा मुझे बताते रहते थे। जहां तक तुम्हारी और मेरे पति के अकेले होने की बात है तो मुझे अपने पति पर पूरा विश्वास है।" श्रेया जी ने अपर्णा को अपने और करीब खींचा और बोली, "अपर्णा, तुम मेरी छोटी बहन जैसी हो। आजसे मैं तुम्हें अपनी छोटी बहन ही मानूंगी। क्या तुम्हें इसमें कोई एतराज तो नहीं?"
अपर्णा ने कहा, "दीदी, मैं तो कभी से आपको मेरी दीदी ही मानती हूँ। आप कुछ कह रहे थे?"
श्रेया ने अपर्णा की गोद में अपना हाथ रख कर कहा, मैं जो कहने जा रही हूँ उसे सुनकर तुम्हें बहुत आश्चर्य हो सकता है। हो सकता है तुम्हें धक्का भी लगे। पर मैं बेबाक सच बोलने में मानती हूँ l देखो मेरी छोटी बहन अपर्णा, मैं जानती हूँ की मेरे पति और तुम्हारे गुरु जीतूजी तुम पर कुछ ज्यादा ही नरम हैं। तुम एक औरत हो और औरत मर्द की लोलुप नजर फ़ौरन पहचान लेती हैl वह तुम्हें ना सिर्फ घूर घूर कर नज़ारे चुराकर देखते हैं और ना सिर्फ उन्होने कई बार तुमसे कुछ हरकतें भी की हैं, पर वह तुम्हें पाना चाहते हैं। तुम कुछ समझी?" अपर्णा ने अपनी मुंडी हिलाकर ना कहा, वह कुछ नहीं समझी। अपर्णा के हाथ अपने हाथ में लेकर श्रेया बोली, "बहन एक बात कहूं? पहले तुम कसम लो की मेरी बात का बुरा नहीं मानोगी और मेरी बात पर कोई भी बखेड़ा नहीं खड़ा करोगी?"
अपर्णा ने श्रेया जी की और देखा और बोली, "दीदी मैं कसम लेती हूँ। मैं ना तो बुरा मानूंगी और ना ही कुछ भी करुँगी, पर दीदी तुम क्या कहना चाहती हो?"
अपर्णा तुरंत सोफे से निचे उतर गयी और श्रेया के पॉंव से हाथ लगाती हुई बोली, "दीदी, अगर आप ने मुझे अपने पति से टूशन लेने का सुझाव ना दिया होता और यदि आपने अपने पति यानी की जीतूजी को मेरे लिए इतना समय देनेके लिए प्रोत्साहित ना किया होता तो मैं जानती हूँ, वह मुझे इतना समय ना दे पाते। और तब मैं ऐसे नंबर ना ला पाती!
मैंने अपनी खिड़की से कई बार देखा था की जब जीतूजी रात रात भर जागते थे तो आप उन्हें आधी रात को चाय बना कर पीलाती थीं। आप भी पूरी तरह नहीं सोती थीं। दूसरा जब जीतूजी काफी समय तक मेरे साथ अकेले होते थे तब कभी भी आपने उन्हें टोका नहीं या रोका नहीं। यह आपका बहुत बड़ा बड़प्पन है।"
श्रेया ने अपर्णा को ऊपर की और उठाया और अपनी बाहों में लिया और बोली, "अपर्णा, जितना तुम्हारा तन सुन्दर है, उतना तुम्हारा मन भी सुन्दर है। तुम जो नंबर लायी हो वह तुम्हारी महेनत का नतीजा है। हम ने तो बस तुम्हें रास्ता दिखाया है। देखो तुम्हारी गुरु निष्ठा और लगन ने ही तुम्हें यहाँ पहुंचाया है। अक्सर जीतूजी तुम्हारे बारे में बोलने से थकते नहीं। तुम कितनी महेनति, कितनी बुद्धि में तेज और निष्ठावान हो यह वह हमेशा मुझे बताते रहते थे। जहां तक तुम्हारी और मेरे पति के अकेले होने की बात है तो मुझे अपने पति पर पूरा विश्वास है।" श्रेया जी ने अपर्णा को अपने और करीब खींचा और बोली, "अपर्णा, तुम मेरी छोटी बहन जैसी हो। आजसे मैं तुम्हें अपनी छोटी बहन ही मानूंगी। क्या तुम्हें इसमें कोई एतराज तो नहीं?"
अपर्णा ने कहा, "दीदी, मैं तो कभी से आपको मेरी दीदी ही मानती हूँ। आप कुछ कह रहे थे?"
श्रेया ने अपर्णा की गोद में अपना हाथ रख कर कहा, मैं जो कहने जा रही हूँ उसे सुनकर तुम्हें बहुत आश्चर्य हो सकता है। हो सकता है तुम्हें धक्का भी लगे। पर मैं बेबाक सच बोलने में मानती हूँ l देखो मेरी छोटी बहन अपर्णा, मैं जानती हूँ की मेरे पति और तुम्हारे गुरु जीतूजी तुम पर कुछ ज्यादा ही नरम हैं। तुम एक औरत हो और औरत मर्द की लोलुप नजर फ़ौरन पहचान लेती हैl वह तुम्हें ना सिर्फ घूर घूर कर नज़ारे चुराकर देखते हैं और ना सिर्फ उन्होने कई बार तुमसे कुछ हरकतें भी की हैं, पर वह तुम्हें पाना चाहते हैं। तुम कुछ समझी?" अपर्णा ने अपनी मुंडी हिलाकर ना कहा, वह कुछ नहीं समझी। अपर्णा के हाथ अपने हाथ में लेकर श्रेया बोली, "बहन एक बात कहूं? पहले तुम कसम लो की मेरी बात का बुरा नहीं मानोगी और मेरी बात पर कोई भी बखेड़ा नहीं खड़ा करोगी?"
अपर्णा ने श्रेया जी की और देखा और बोली, "दीदी मैं कसम लेती हूँ। मैं ना तो बुरा मानूंगी और ना ही कुछ भी करुँगी, पर दीदी तुम क्या कहना चाहती हो?"