26-12-2019, 10:55 AM
अपर्णा को श्रेया के पति जीतूजी से इर्षा हुई जो श्रेया के उन उरोजों पर अपना अधिकार रखते थे की उन्हें जब चाहे थाम ले, दबाले या मसल ले।
जब श्रेया जी ने अपर्णा की निगाहें अपने उरोजों पर टिकी हुई पायी तो मुस्करा दीं। अपर्णा ने अपनी नजर उन चूँचियों से हटा कर निचे की और देखा तो उसकी नजर श्रेया के तौलिये के दूसरे निचले छोर पर गयी। हायरे दैया!! जिस ढंग से श्रेया अपने कूल्हे पलंग के कोने पर टिका कर पलंग के निचे अपने पॉंव लटका कर बैठी थी और उसके कारण उनका तौलिया श्रेया की कड़क और करारी जाँघें दोनों टाँगें जहां मिलती थीं, वहा तक चढ़ गया था और उनकी चूत अगर थोड़ा अन्धेरा सा ना होता तो जरूर साफ़ दिख जाती। फिर भी उनकी चूत की कुछ कुछ झांकी जरूर हो रही थी। श्रेया की जाँघें देखकर अपर्णा से रहा नहीं गया और वह अनायास ही बोल पड़ी, "श्रेया आप कितनी अद्भुत सुन्दर हो? मुझे आज आपके पति जीतूजी की कितनी इर्षा हो रही है की आप जैसी खूबसूरत सुंदरी देवी के वह पति हैं।" श्रेया ने थोड़ा सा आगे बढ़ कर अपर्णा, जो की उनसे बिलकुल सटकर खड़ी थी, अपनी बाहों में प्रगाढ़ आलिंगन में ले लिया। अपर्णा भौंचक्का सी श्रेया को देखती ही रही और वह श्रेया की बाहों में उनसे जुड़ गयी। अपर्णा को स्वाभाविक ही कुछ हिचकिचाहट हुई तब श्रेया ने कहा, "देखो बहन, तुम मुझसे छोटी हो और शायद अनुभव में भी कम हो। हालांकि बुद्धिमत्ता में तुम मुझसे कहीं आगे हो। मैं बेबाक और खुला बोलती हूँ। श्रेया जी ने अपना हाथ अपर्णा के बदन पर सरकाते हुए अपर्णा के कँधों को सहलाना शुरू किया।
श्रेया ने कहा, "देखो मैं तुमसे कुछ बातें खुल्लमखुल्ला बात करना चाहती हूँ। हो सकता है की तुम्हें मेरी भाषा अश्लील लगे। मुझे लपेड़ चपेड़ कर चिकनी चुपड़ी बातें करना नहीं आता। क्या मैं तुम्हारे साथ खुल्लमखुल्ला बात कर सकती हूँ?"
अपर्णा क्या बोलती? उसने अपना सर हिला कर हामी भरी। अपर्णा ने भी ऐसी बेबाक और निर्भीक लेडी को पहले कभी नहीं देखा था। वह उनको देखती ही रही।
तब श्रेया बोली, "तुमने आज तक मेरे जैसी बेबाक और खुली औरत नहीं देखि होगी। मैं जो मनमें होता है वह बोल देती हूँ। मैं मानती हूँ यह मुझमें कमी है। पर मैं जो हूँ सो हूँ।"
अपर्णा के हाथ में हाथ ले कर अपर्णा के हाथ को सहलाते हुए पूछा, "पर पहले तो तुम यह बताओ की तुम क्या कहना चाहती थी? बताओ क्या बात है?"
अपर्णा ने श्रेया के हाथ अपने हाथोँमें लेते हुए कहा, "दीदी, मेरी सफलता में कर्नल साहब का जितना योगदान है उतना ही आपका भी योगदान है। कल हम मिल नहीं पाए थे तो मैं उसके लिए आज आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करने आयी हूँ।"
जब श्रेया जी ने अपर्णा की निगाहें अपने उरोजों पर टिकी हुई पायी तो मुस्करा दीं। अपर्णा ने अपनी नजर उन चूँचियों से हटा कर निचे की और देखा तो उसकी नजर श्रेया के तौलिये के दूसरे निचले छोर पर गयी। हायरे दैया!! जिस ढंग से श्रेया अपने कूल्हे पलंग के कोने पर टिका कर पलंग के निचे अपने पॉंव लटका कर बैठी थी और उसके कारण उनका तौलिया श्रेया की कड़क और करारी जाँघें दोनों टाँगें जहां मिलती थीं, वहा तक चढ़ गया था और उनकी चूत अगर थोड़ा अन्धेरा सा ना होता तो जरूर साफ़ दिख जाती। फिर भी उनकी चूत की कुछ कुछ झांकी जरूर हो रही थी। श्रेया की जाँघें देखकर अपर्णा से रहा नहीं गया और वह अनायास ही बोल पड़ी, "श्रेया आप कितनी अद्भुत सुन्दर हो? मुझे आज आपके पति जीतूजी की कितनी इर्षा हो रही है की आप जैसी खूबसूरत सुंदरी देवी के वह पति हैं।" श्रेया ने थोड़ा सा आगे बढ़ कर अपर्णा, जो की उनसे बिलकुल सटकर खड़ी थी, अपनी बाहों में प्रगाढ़ आलिंगन में ले लिया। अपर्णा भौंचक्का सी श्रेया को देखती ही रही और वह श्रेया की बाहों में उनसे जुड़ गयी। अपर्णा को स्वाभाविक ही कुछ हिचकिचाहट हुई तब श्रेया ने कहा, "देखो बहन, तुम मुझसे छोटी हो और शायद अनुभव में भी कम हो। हालांकि बुद्धिमत्ता में तुम मुझसे कहीं आगे हो। मैं बेबाक और खुला बोलती हूँ। श्रेया जी ने अपना हाथ अपर्णा के बदन पर सरकाते हुए अपर्णा के कँधों को सहलाना शुरू किया।
श्रेया ने कहा, "देखो मैं तुमसे कुछ बातें खुल्लमखुल्ला बात करना चाहती हूँ। हो सकता है की तुम्हें मेरी भाषा अश्लील लगे। मुझे लपेड़ चपेड़ कर चिकनी चुपड़ी बातें करना नहीं आता। क्या मैं तुम्हारे साथ खुल्लमखुल्ला बात कर सकती हूँ?"
अपर्णा क्या बोलती? उसने अपना सर हिला कर हामी भरी। अपर्णा ने भी ऐसी बेबाक और निर्भीक लेडी को पहले कभी नहीं देखा था। वह उनको देखती ही रही।
तब श्रेया बोली, "तुमने आज तक मेरे जैसी बेबाक और खुली औरत नहीं देखि होगी। मैं जो मनमें होता है वह बोल देती हूँ। मैं मानती हूँ यह मुझमें कमी है। पर मैं जो हूँ सो हूँ।"
अपर्णा के हाथ में हाथ ले कर अपर्णा के हाथ को सहलाते हुए पूछा, "पर पहले तो तुम यह बताओ की तुम क्या कहना चाहती थी? बताओ क्या बात है?"
अपर्णा ने श्रेया के हाथ अपने हाथोँमें लेते हुए कहा, "दीदी, मेरी सफलता में कर्नल साहब का जितना योगदान है उतना ही आपका भी योगदान है। कल हम मिल नहीं पाए थे तो मैं उसके लिए आज आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करने आयी हूँ।"