25-12-2019, 07:22 PM
कर्नल साहब की बात सुनकर अपर्णा का रोना और तेज हो गया। वह कर्नल साहब से और कस के लिपट गयी बोली, "मेरे पिता जी भी लड़ाई में ही अपनी जान देना चाहते थे। उनको बड़ा अफ़सोस था की वह लड़ाई में शहीद नहीं हो पाए।" कर्नल साहब ने तब अपर्णा का सर चूमते हुए कहा, "अपर्णा डार्लिंग, जो शूरवीर होते हैं, उनकी मौत पर रो कर नहीं, उनके असूलों को अमल में लाकर, इनके आदर्शों की राह पर चलकर, जो काम वह पूरा ना कर पाए इन कामों को पूरा कर उनके जीवन और उनके देहांत का गौरव बढ़ाते हैं। यही उनके चरणों में हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उनके क्या उसूल थे? उन्होंने किस काम में अपना जीवन समर्पण किया था यह तो बताओ मुझे, डिअर?"
उनकी बात सुनकर अपर्णा कुछ देर तक कर्नल साहब से लिपटी ही रही। उसका रोना धीरे धीरे कम हो गया। फिर वह अपने को सम्हालते हुए कर्नल साहब से धीरे से अलग हुई और उनकी और देख कर उनका हाथ अपने हाथ में ले कर बोली, "कर्नल साहब, आप ने मुझे चंद शब्दों में ही जीवन का फलसफा समझा दिया। मैं आपका शुक्रिया कैसे अदा करूँ?" कर्नल साहब ने अपर्णा की हथेली दबाते हुए कहा, "तुम मुझे जीतू, कह कर बुलाओगी तो मेरा अहसान चुकता हो जाएगा।" अपर्णा ने कहा, "कर्नल साहब मेरे लिए आप एक गुरु सामान हैं। मैं आपको जीतू कह कर कैसे बुला सकती हूँ?" कर्नल साहब ने कहा, "चलो ठीक है। तो तुम मुझे जीतू जी कह कर तो बुला सकती हो ना?" अपर्णा कर्नल साहब की बात सुनकर हंस पड़ी और बोली, "जीतूजी, आपका बहुत शुक्रिया, मुझे सही रास्ता दिखाने के लिए। मेरे पिताजी ने अपना जीवन देश की सेवा में लगा दिया था। उनका एक मात्र उद्देश्य यह था की हमारा देश की सीमाएं हमेशा सुरक्षित रहे। उस पर दुश्मनों की गन्दी निगाहें ना पड़े। उनका दुसरा ध्येय यह था की देश की सेवा में शहीद हुए जवानों के बच्चे, कुटुंब और बेवा का जीवन उन जवानों के मरने से आर्थिक रूप से आहत ना हो।"
कर्नल ने कहा, "आओ, हम भी मिलकर यह संकल्प करें की हम हमारी सारी ताकत उन के दिखाए हुए रास्ते पर चलने में ही लगा दें। हम निर्भीकता से दुश्मनों का मुकाबला करें और शहीदों के कौटुम्बिक सुरक्षा में अपना योगदान दें। यही उनके देहांत पर उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी और उनका सच्चा श्राद्ध होगा।" अपर्णा की आँखों में आँसू आ गये। अपर्णा कर्नल से लिपट गयी और बोली, "जीतूजी, जितना योगदान मुझसे बन पडेगा मैं दूंगी और उसमें आपको मेरा पथ प्रदर्शक और मार्ग दर्शक बनना होगा।" कर्नल ने मुस्कराते हुए कहा, "यह मेरा सौभाग्य होगा। पर डार्लिंग, मुझमें एक कमजोरी है और मैं तुम्हें इससे अँधेरे में नहीं रखना चाहता हूँ। जब मैं तुम्हारी सुन्दरता, जांबाज़ी और सेक्सीपन से रूबरू होता हूँ तो अपने रंगीलेपन पर नियत्रण नहीं रख पाता हूँ। मैं आपका पूरा सम्मान करता हूँ पर मुझसे कभी कहीं कोई गलती हो जाए तो आप बुरा मत मानना प्लीज?"
अपर्णा ने भी शरारती मुस्कान देते हुए कहा, "आप के रँगीलेपन को मैंने महसूस भी किया और वह दिख भी रहा है।" क्या अपर्णा का इशारा कर्नल की टाँगों के बिच के फुले हुए हिस्से की और था? पता नहीं। शायद अपर्णा ने जब कर्नल साहब को जफ्फी दी तो जरूर उसने कर्नल साहब का रँगीलापन महसूस किया होगा।
उनकी बात सुनकर अपर्णा कुछ देर तक कर्नल साहब से लिपटी ही रही। उसका रोना धीरे धीरे कम हो गया। फिर वह अपने को सम्हालते हुए कर्नल साहब से धीरे से अलग हुई और उनकी और देख कर उनका हाथ अपने हाथ में ले कर बोली, "कर्नल साहब, आप ने मुझे चंद शब्दों में ही जीवन का फलसफा समझा दिया। मैं आपका शुक्रिया कैसे अदा करूँ?" कर्नल साहब ने अपर्णा की हथेली दबाते हुए कहा, "तुम मुझे जीतू, कह कर बुलाओगी तो मेरा अहसान चुकता हो जाएगा।" अपर्णा ने कहा, "कर्नल साहब मेरे लिए आप एक गुरु सामान हैं। मैं आपको जीतू कह कर कैसे बुला सकती हूँ?" कर्नल साहब ने कहा, "चलो ठीक है। तो तुम मुझे जीतू जी कह कर तो बुला सकती हो ना?" अपर्णा कर्नल साहब की बात सुनकर हंस पड़ी और बोली, "जीतूजी, आपका बहुत शुक्रिया, मुझे सही रास्ता दिखाने के लिए। मेरे पिताजी ने अपना जीवन देश की सेवा में लगा दिया था। उनका एक मात्र उद्देश्य यह था की हमारा देश की सीमाएं हमेशा सुरक्षित रहे। उस पर दुश्मनों की गन्दी निगाहें ना पड़े। उनका दुसरा ध्येय यह था की देश की सेवा में शहीद हुए जवानों के बच्चे, कुटुंब और बेवा का जीवन उन जवानों के मरने से आर्थिक रूप से आहत ना हो।"
कर्नल ने कहा, "आओ, हम भी मिलकर यह संकल्प करें की हम हमारी सारी ताकत उन के दिखाए हुए रास्ते पर चलने में ही लगा दें। हम निर्भीकता से दुश्मनों का मुकाबला करें और शहीदों के कौटुम्बिक सुरक्षा में अपना योगदान दें। यही उनके देहांत पर उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी और उनका सच्चा श्राद्ध होगा।" अपर्णा की आँखों में आँसू आ गये। अपर्णा कर्नल से लिपट गयी और बोली, "जीतूजी, जितना योगदान मुझसे बन पडेगा मैं दूंगी और उसमें आपको मेरा पथ प्रदर्शक और मार्ग दर्शक बनना होगा।" कर्नल ने मुस्कराते हुए कहा, "यह मेरा सौभाग्य होगा। पर डार्लिंग, मुझमें एक कमजोरी है और मैं तुम्हें इससे अँधेरे में नहीं रखना चाहता हूँ। जब मैं तुम्हारी सुन्दरता, जांबाज़ी और सेक्सीपन से रूबरू होता हूँ तो अपने रंगीलेपन पर नियत्रण नहीं रख पाता हूँ। मैं आपका पूरा सम्मान करता हूँ पर मुझसे कभी कहीं कोई गलती हो जाए तो आप बुरा मत मानना प्लीज?"
अपर्णा ने भी शरारती मुस्कान देते हुए कहा, "आप के रँगीलेपन को मैंने महसूस भी किया और वह दिख भी रहा है।" क्या अपर्णा का इशारा कर्नल की टाँगों के बिच के फुले हुए हिस्से की और था? पता नहीं। शायद अपर्णा ने जब कर्नल साहब को जफ्फी दी तो जरूर उसने कर्नल साहब का रँगीलापन महसूस किया होगा।