25-12-2019, 07:20 PM
रोहित ने दरवाजा खोल कर कर्नल साहब का स्वागत किया। कर्नल साहब आये है यह सुनकर अपर्णा बाहर आयी तो कर्नल साहब ने देखा की अपर्णा की आँखें रो रो कर सूजी हुई थीं। कर्नल साहब के लिए अपर्णा रसोई घर में चाय बनाने के लिए गयी तो उसको वापस आने में देर लगी। रोहित और कर्नल साहब ने रसोई में ही अपर्णा की रोने की आवाज सुनी तो कर्नल साहब ने रोहित की और देखा। रोहित अपने कंधे उठा कर बोला, "पता नहीं उसे क्या हो गया है। वह बार बार पिताजी की याद आते ही रो पड़ती है। मैं हमेशा उसे शांत करने की कोशिश करता हूँ पर कर नहीं पाता हूँ। चाहो तो आप जाकर उसे शांत करने की कोशिश कर सकते हो। हो सकता है वह आपकी बात मान ले।" रोहित ने रसोई की और इशारा करते हुए कर्नल साहब को कहा। कर्नल साहब उठ खड़े हुए और रसोई की और चल पड़े। रोहित खड़ा हो कर घर के बाहर आँगन में लॉन पर टहलने के लिए चल पड़ा।
कर्नल साहब ने रसोई में पहुँचते ही देखा की अपर्णा रसोई के प्लेटफार्म के सामने खड़ी सिसकियाँ ले कर रो रही थी। अपर्णा की पीठ कर्नल साहब की और थी। कर्नल साहब ने पीछे से धीरे से अपर्णा के कंधे पर हाथ रखा। अपर्णा मूड़ी तो उसने कर्नल साहब को देखा। उन्हें देख कर अपर्णा उनसे लिपट गयी और अचानक ही जैसे उसके दुखों का गुब्बारा फट गया। वह फफक फफक कर रोने लगी। अपर्णा के आँखों से आंसूं फव्वारे के सामान बहने लगे। कर्नल साहब ने अपर्णा को कसके अपनी बाँहों में लिया और अपनी जेब से रुमाल निकाला और अपर्णा की आँखों से निकले और गालों पर बहते हुए आंसू पोंछने लगे। उन्होंने धीरे से पीछे से अपर्णा की पीठ को सहलाते हुए कहा, "अपर्णा, तुमने कभी किसी आर्मी अफसर की लड़ाई में मौत होते हुए देखि है?" अपर्णा ने अपना मुंह ऊपर उठाकर कर्नल साहब की और देखा। रोते रोते ही उसने अपनी मुंडी हिलाते हुए इशारा किया की उसने नहीं देखा। तब कर्नल साहब ने कहा, "मैंने एक नहीं, एक साथ मेरे दो भाइयों को दुश्मन की गोली यों से भरी जवानी में शहीद होते हुए देखा है। मैंने मेरी दो भाभियों को बेवा होते देखा है। मैं उनके दो दो बच्चों को अनाथ होते हुए देखा है। और जानती हो उनके बच्चों ने क्या कहा था?" कर्नल साहब की बात सुनकर अपर्णा का रोना बंद हो गया और वह अपना सर ऊपर उठाकर कर्नल साहब की आँखों में आँखें डालकर देखने लगी पर कुछ ना बोली। फिर कर्नल साहब ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "मैं जब बच्चों को ढाढस देने के लिए गया, तो दोनों बच्चे मुझसे लिपट कर कहने लगे की वह भी लड़ाई में जाना चाहते है और दुश्मनों को मार कर उनके पिता का बदला जब लेंगे तब ही रोयेंगे। जो देश के लिए कुर्बानी देना चाहते हैं वह वह रो कर अपना जोश और जस्बात आंसूं के रूप में जाया नहीं करते।"
कर्नल साहब ने रसोई में पहुँचते ही देखा की अपर्णा रसोई के प्लेटफार्म के सामने खड़ी सिसकियाँ ले कर रो रही थी। अपर्णा की पीठ कर्नल साहब की और थी। कर्नल साहब ने पीछे से धीरे से अपर्णा के कंधे पर हाथ रखा। अपर्णा मूड़ी तो उसने कर्नल साहब को देखा। उन्हें देख कर अपर्णा उनसे लिपट गयी और अचानक ही जैसे उसके दुखों का गुब्बारा फट गया। वह फफक फफक कर रोने लगी। अपर्णा के आँखों से आंसूं फव्वारे के सामान बहने लगे। कर्नल साहब ने अपर्णा को कसके अपनी बाँहों में लिया और अपनी जेब से रुमाल निकाला और अपर्णा की आँखों से निकले और गालों पर बहते हुए आंसू पोंछने लगे। उन्होंने धीरे से पीछे से अपर्णा की पीठ को सहलाते हुए कहा, "अपर्णा, तुमने कभी किसी आर्मी अफसर की लड़ाई में मौत होते हुए देखि है?" अपर्णा ने अपना मुंह ऊपर उठाकर कर्नल साहब की और देखा। रोते रोते ही उसने अपनी मुंडी हिलाते हुए इशारा किया की उसने नहीं देखा। तब कर्नल साहब ने कहा, "मैंने एक नहीं, एक साथ मेरे दो भाइयों को दुश्मन की गोली यों से भरी जवानी में शहीद होते हुए देखा है। मैंने मेरी दो भाभियों को बेवा होते देखा है। मैं उनके दो दो बच्चों को अनाथ होते हुए देखा है। और जानती हो उनके बच्चों ने क्या कहा था?" कर्नल साहब की बात सुनकर अपर्णा का रोना बंद हो गया और वह अपना सर ऊपर उठाकर कर्नल साहब की आँखों में आँखें डालकर देखने लगी पर कुछ ना बोली। फिर कर्नल साहब ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "मैं जब बच्चों को ढाढस देने के लिए गया, तो दोनों बच्चे मुझसे लिपट कर कहने लगे की वह भी लड़ाई में जाना चाहते है और दुश्मनों को मार कर उनके पिता का बदला जब लेंगे तब ही रोयेंगे। जो देश के लिए कुर्बानी देना चाहते हैं वह वह रो कर अपना जोश और जस्बात आंसूं के रूप में जाया नहीं करते।"