25-12-2019, 07:13 PM
श्रेया ने अपनी गाँड़ ऊपर उठायी और एक बड़ी सुनामी की लहर जैसे उसके पुरे बदन में दौड़ पड़ी। वह गहरी साँस ले कर कराह ने लगी, "कप्तान साहब काफी हो गया। अब तुम प्लीज मुझे चोदो। अपना लण्ड मेरी भूखी चूत में डालो और उसकी भूख शांत करो।" अभिजीत सिंह ने श्रेया से कहा, "तुम्हारे लिए मैं कप्तान साहब नहीं, मैं अभिजीत सिंह भी नहीं। मैं तुम्हारे लिए जीतू हूँ। आज से तुम मुझे जीतू कह कर ही बुलाना।" श्रेया ने तब अपनी रिक्वेस्ट फिरसे दुहराते हुए कहा, "जीतू जी काफी हो गया। अब तुम प्लीज मुझे चोदो। अपना लण्ड मेरी भूखी चूत में डालो और उसकी भूख शांत करो।" जीतू जी ने देखा की श्रेया अब मानसिक रूप से उनसे चुदवाने के लिए बिलकुल तैयार थी तो वह श्रेया की दोनों टाँगों के बिच आगये और उन्होंने अपना लण्ड श्रेया के छोटे से छिद्र के केंद्र बिंदु पर रखा। श्रेया के लिए उस समय जैसे क़यामत की रात थी। वह पहली बार किसी का लण्ड अपनी चूत में डलवा रही थी। और पहली ही बार उसे महसूस हुआ जैसे "प्रथम ग्राहे मक्षिका" मतलब पहले हे निवालें में किसी के मुंह में जैसे मछली आजाये तो उसे कैसा लगेगा? वैसे ही अपनी पहली चुदाई में ही उसे इतने मोटे लण्ड को चूत में डलवाना पड़ रहा था। श्रेया को अफ़सोस हुआ की क्यों नहीं उसने पहले किसी लड़के से चुदवाई करवाई? अगर उसने पहले किसी लड़के से चुदवाया होता तो उसे चुदवाने की कुछ आदत होती और यह डर ना लगता। पर अब डर के मारे उसकी जान निकली जा रही थी। पर अब वह करे तो क्या करे? उसे तो चुदना ही था। उसने खुद जीतूजी को चोदने के लिए आमंत्रित किया था। अब वह छटक नहीं सकती थी। श्रेया ने अपनी आँखें मुंदी और जीतूजी का लण्ड पकड़ कर अपनी चूत की गीली सतह पर रगड़ने लगी ताकि उसे लण्ड को उसकी चूत के अंदर घुसने में कम कष्ट हो। वैसे भी जीतूजी का लण्ड अपने ही छिद्र से पूर्व रस से चिकनाहट से सराबोर लिपटा हुआ था।
जैसे ही श्रेया की चूत के छिद्र पर उसे निशाना बना कर रख दिया गया की तुरंत उसमें से पूर्व रस की बूंदें बन कर टपकनी शुरू हुई। श्रेया ने अपनी आँखें मूँद लीं और जीतू के लण्ड के घुसने से जो शुरुआती दर्द होगा उसका इंतजार करने लगी। अभिजीत सिंहने अपना लण्ड हलकेसे श्रेया की चूत में थोड़ा घुसेड़ा। श्रेया को कुछ महसूस नहीं हुआ। अभिजीत सिंह ने यह देखा कर उसे थोड़ा और धक्का दिया और खासा अंदर डाला। तब श्रेया के मुंह से आह निकली। उसके चेहरे से लग रहा था की उसे काफी दर्द महसूस हुआ होगा। अभिजीत सिंह को डर लगा की कहीं शायद उसका कौमार्य पटल फट ना गया हो, क्यूंकि श्रेया की चूत से धीरे धीरे खून निकलने लगा। तभी अभिजीत सिंह ने अपना लण्ड निकाल कर साफ़ किया। उनके लिए यह कोई बार पहली बार नहीं था। पर श्रेया खून देखकर थोड़ी सहम गयी। हालांकि उसे भी यह पता था की कँवारी लडकियां जब पहली बार चुदती हैं तो अक्सर यह होता है। श्रेया ने सोचा की अब घबरा ने से काम चलेगा नहीं। जब चुदवाना ही है तो फिर घबराना क्यों? उसने अभिजीत सिंह से कहा, "जीतू जी आप ने आज मुझे एक लड़की से औरत बना दिया। अब मैं ज्यादा इंतजार नहीं करना चाहती। आप मेरी चिंता मत कीजिये। मैं आपके सामने टाँगे फैला कर लेटी हूँ। अब प्लीज देर मत कीजिये। मुझे जी भर कर चोदिये। मैं इस रात का महीनों से इंतजार कर रही थी।"
जैसे ही श्रेया की चूत के छिद्र पर उसे निशाना बना कर रख दिया गया की तुरंत उसमें से पूर्व रस की बूंदें बन कर टपकनी शुरू हुई। श्रेया ने अपनी आँखें मूँद लीं और जीतू के लण्ड के घुसने से जो शुरुआती दर्द होगा उसका इंतजार करने लगी। अभिजीत सिंहने अपना लण्ड हलकेसे श्रेया की चूत में थोड़ा घुसेड़ा। श्रेया को कुछ महसूस नहीं हुआ। अभिजीत सिंह ने यह देखा कर उसे थोड़ा और धक्का दिया और खासा अंदर डाला। तब श्रेया के मुंह से आह निकली। उसके चेहरे से लग रहा था की उसे काफी दर्द महसूस हुआ होगा। अभिजीत सिंह को डर लगा की कहीं शायद उसका कौमार्य पटल फट ना गया हो, क्यूंकि श्रेया की चूत से धीरे धीरे खून निकलने लगा। तभी अभिजीत सिंह ने अपना लण्ड निकाल कर साफ़ किया। उनके लिए यह कोई बार पहली बार नहीं था। पर श्रेया खून देखकर थोड़ी सहम गयी। हालांकि उसे भी यह पता था की कँवारी लडकियां जब पहली बार चुदती हैं तो अक्सर यह होता है। श्रेया ने सोचा की अब घबरा ने से काम चलेगा नहीं। जब चुदवाना ही है तो फिर घबराना क्यों? उसने अभिजीत सिंह से कहा, "जीतू जी आप ने आज मुझे एक लड़की से औरत बना दिया। अब मैं ज्यादा इंतजार नहीं करना चाहती। आप मेरी चिंता मत कीजिये। मैं आपके सामने टाँगे फैला कर लेटी हूँ। अब प्लीज देर मत कीजिये। मुझे जी भर कर चोदिये। मैं इस रात का महीनों से इंतजार कर रही थी।"