
जीवन की भूलभुलैया में कुछ ऐसे लम्हे आते हैं। जिन को हम कितना ही चाहें फिर भी न कभी भूल पाते हैं।।
जब मानिनियोँ का मन लाखों मिन्नत मन्नत नहीं मानता है। तब कभी कभी कोई बिरला रख जान हथेली ठानता है।।
कमसिन कातिल कामिनियाँ भी होती कुर्बां कुर्बानी पर। न्यौछावर कर देती वह सब कुछ ऐसी वीरल जवानी पर।।
राहों में मिले चलते चलते हमराही हमारे आज हैं वह। जिनको ना कभी देखा भी था देखो हम बिस्तर आज हैं वह।।
वह क्या दिन थे? आज भी उन दिनों की याद आते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वह खूबसूरत वादियां, वह दिलचश्प नज़ारे, वह जीवन और मौत की टक्कर, वह तनाव भरे दिन और रातें, वह उन्मादक बाहें, वह टेढ़ी निगाहें, वह गर्म आहें, वह दुर्गम राहें और वह बदन से बदन के मिलन की चाहें!!
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जरुरी सुचना: यह कहानी सिर्फ मनोरंजन के आशय से लिखी गयी है। इनका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कुछ भी लेना देना नहीं है, और यह कहानी किसी भी सरकारी या गैर सरकारी संस्थान या समाज की ना तो सच्चाई दर्शाता है और ना ही यह कहानी उन पर कोई समीक्षा या टिपण्णी करने के आशय से लिखी गयी है।
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मेरी फितरत नही किसी की चीज़ को अपने नाम करू...
so as i always say... all credit goes to unsung original writer...
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