23-12-2019, 10:29 AM
ननद भउजाई
रितू भाभी ने उन्हें जोर से आँख मारी और घचाक से मेरी गाण्ड में उंगली पेलते हुई-
“छिनार, सातभतरी, तेरी सारी ननदों की गाण्ड मारूं, बुर चोदूं, क्या कचकचौवा गाण्ड है साल्ली…”
गाली शुरू कर दी।
“तेरे नन्दोई बहनचोद की बहन चोदूँ, भौजी तोहरो गाण्ड में खूब माल भरल हौ…”
एक के जवाब में दो उंगली मैंने पेल दी, रितू भाभी की कसी-कसी गाण्ड में।
“तेरी सास का भोंसड़ा मारू, ससुराल में अपनी ननदों के साथ खूब कबड्डी खेल के आई है, छिनाल…”
रितू भाभी ने जवाब दिया।
“अरे भौजी मेरी साली ननदें हैं, भाईचोद। एक के ऊपर दस-दस चढ़ते हैं, तेरे मादरचोद नन्दोई की माँ का भोंसड़ा, जिसमें गदहे घोड़े सब घुसते हैं…”
उनकी गाण्ड में गोल-गोल उंगली घुमाते मैं बोली।
इस लेस्बियन रेस्लिंग के साथ गालियों ने उनकी हालत और खराब कर दी।
गालियां हम दोनों दे रही थी लेकिन टारगेट उन्हीं की माँ बहने थी।
रितू भाभी ने जोर से मुझे आलिंगन में दबोच लिया था।
मैंने उनके कान में फुसफुसाया-
“अरे भौजी, हम दोनों टापलेस हो गए हैं और आपके नन्दोई अभी भी…”
बस कहने की देर थी।
रितू भाभी,
अगले पल पलंग पे उनके पीछे बैठी थी और उनके भाले की नोक की तरह चूचियों के निपल, उनकी पीठ में छेद कर रहे थे।
और उनकी टी-शर्ट पहले रितू भाभी के हाथ में और फिर मिड आन पे मेरे हाथ में,
वो भी हम दोनों की तरह टापलेस हो गए सिर्फ शार्ट में।
रितू भाभी ने अपनी मस्त चूचियां उनकी पीठ पे रगड़ते हुए, हल्के से उनका गाल काटा
और जैसे कोई मर्द किसी कच्ची कली के टिकोरों को पकड़कर दबोच ले, उनके दोनों टिट्स को पकड़कर मसल दिया।
उनके मुँह से चीख और सिसकारी दोनों निकल गई।
“क्या नन्दोई जी, लौंडिया की तरह सिसक रहे हो अभी दिलवाती हूँ, तुझे टिकोरों का मजा…”
और साथ ही शार्ट सरका के उन्होंने उनके मस्त खूंटे को बाहर निकाल लिया। एकदम मस्त कड़ियल, फुँफकारता,
“हे आज कोई रहमदिली मत दिखाना, कर देना खून खच्चर, चीखने चिल्लाने देना साली को, एक बार में हचक के पूरा 9” इंच ठेल देना…”
भौजी उनके लण्ड को सहलाते और उकसा रही थीं। और फिर एक झटके में उन्होंने चमड़ा खोल दिया।
मोटा छोटे टमाटर ऐसा लाल, गुस्साया खूब कड़ा सुपाड़ा बाहर।
और मैं भौजी को याद दिलाती, उसके पहले उन्हें खुद याद आ गया।
(रितू भाभी पीछे पड़ी थीं की सूखे लण्ड से छुटकी की कच्ची चूत फाड़ी जाय,
लेकिन मेरे बहुत समझाने पे ये तय हुआ था की चलिए आज, तो ये वैसलीन लगा लेंगे, लेकिन रात में ट्रेन में सिर्फ थूक लगा के और,
उनके गाँव में जब उसकी गाण्ड फटेगी तो एकदम सूखी)
“अरे नौवीं में पढ़नी वाली मेरी कच्ची ननद
कैसे घोंट पाएगी ये मुट्ठी ऐसा सुपाड़ा, जरा वैसलीन तो लगा दूँ…”
रितू भाभी बोलीं और वैसलीन की शीशी उठाकर ले आई। और फिर सिर्फ उंगली की टिप वैसलीन से छुला के,
उन्होंने मुझे चिढ़ाते हुए दिखा के, सिर्फ उनके सुपाड़े पे पेशाब के छेद पे,
जैसे कोई बच्चे को नजर से बचाने केलिए टीका लगा दे, बस वैसे ही, वहां लगा दिया।
“भाभी ये फाउल है…”
मैं चीखी लेकिन उन्होंने किसी दलबदलू नेता को भी मात देते हुए, पाला बदल लिया था और रितू भौजी का साथ दे रहे थे।
“क्यों?”
मुश्कुरा के वो बोले-
“अरे तुमने ही तो कहा था की आज वैसलीन लगा के, तो मेरी सलहज ने अपनी छोटी ननद का ख्याल करते हुए वैसलीन लगा तो दी है।
ये थोड़ी ही तय हुआ था की, कितने ग्राम लगाएंगे या कितना इंच लगाएंगे…”
“अच्छा चल तू कह रही है तो, तू भी क्या याद करेगी किस दिलदार से पाला पड़ा है…”
रितू भाभी हँसकर बोली और सुपाड़े के पेशाब के छेद पर लगे वैसलीन को फैला करके,
उन्होंने सुपाड़े के ऊपरी एक तिहाई भाग पे फैला दिया।
मैं उनकी बदमाशी अच्छी तरह समझ रही थी। वो अपने नन्दोई को खुल के फेवर कर रही थीं।
किसी चिकने तेज धार वाले चाकू की तरह, अब उनका सुपाड़ा छुटकी की कसी चूत में घुस जाएगा, कम से कम उसका एक तिहाई हिस्सा, जहाँ तक वैसलीन लगा है, और फिर वो लाख अपने चूतड़ पटके, इनका सुपाड़ा निकल नहीं सकता
और उसके बाद तो जैसे कोई भोथरे चाकू से किसी मेमने को हलाल करे, बस एकदम उसी तरह से।
मैं कुछ बोलती, उसके पहले छुटकी के पैरों की आहट सुनाई पड़ी और रितू भाभी ने शेर को फिर से पिंजड़े में बंद कर दिया।
और हम दोनों ने अपने ब्लाउज को ठीक कर लिया (बटन तो दोनों की टूट चुकी थीं, हाँ बस चूची के ऊपर कर लिया)।
और छुटकी आई तो,
उसकी कसी-कसी छोटी कॉलेज की टाप के नीचे दोनों छोटे-छोटे चूजे चोंच मार रहे थे।
वो कच्चे-कच्चे टिकोरे, जिसके न सिर्फ वो, बल्की मेरे नंदोई भी दीवाने थे, टाप के नीचे से साफ झलक रहे थे।
और उसे देखकर न सिर्फ मुँह सूख गया उनका, बल्की खड़ा खूंटा और तन के शार्ट के बाहर से झांकने लगा।
और अब मुँह सूखने की बारी छुटकी की थी।
जान सूख गई थी, उसकी। उसे मालूम पड़ गया था कि अब थोड़ी देर में यहाँ क्या होने वाला था।
और ऊपर से रितू भाभी, उन्होंने शार्ट नीचे सरका दिया और रामपुरी 9” इंच के स्प्रिंग वाले चाकू की तरह, मोटा कड़ियल पगलाया लण्ड बाहर-
“क्यों लेगी इसे?”
मुट्ठी में उसे सहलाते, दबाते रितू भाभी ने पूछा।
कितने अहसास एक साथ छुटकी के चेहरे पर से उतर गए।
1॰ लालच- मन कर रहा था बस गप्प से अंदर ले ले।
2॰ डर, और दहशत- क्या हालत होगी उस बिचारी की छोटी सी बिल की, जब ये कलाई ऐसा मोटा बालिश्त भर लम्बा, फाड़ता हुआ घुसेगा अंदर।
3॰ चाहत- कितना मजा आएगा, सुबह वो अपनी दो सहेलियों को देख चुकी थी, इसे घोंटते दोनों चीख चिल्ला रही थी लेकिन बाद में कितना मजा आया। और… और मंझली ने भी तो लिया था, इसे। एक ही साल तो बड़ी है वो।
4॰ घबड़ाहट- बहुत दर्द होगा, और खून भी निकलेगा। खून से बहुत डरती थी वो।
वो हिरणी की तरह डर के मेरी ओर मुड़ी, पर रितू भाभी की कोई ननद बच सके तो रितू भाभी कैसी।
उन्होंने उचक कर उसे पकड़कर पलंग पर खींच लिया-
“अरे छुटकी इससे डर लगता है, मुझसे तो नहीं…”
और प्यार से उसे अपने बाँहों में भींच लिया।
वो भी सिमटते हुए बोली-
“अरे भाभी, आपसे क्यों डरूँगी?”
“तो चल मेरे साथ मजा ले न…”
हसंते हुए वो बोली।
बिचारी छुटकी को क्या मालूम, वो खुद फँस के बड़े शिकारी के चंगुल में जा रही है।
फटनी तो उसकी है ही वो भी आज और अभी।
रितू भाभी ने उन्हें जोर से आँख मारी और घचाक से मेरी गाण्ड में उंगली पेलते हुई-
“छिनार, सातभतरी, तेरी सारी ननदों की गाण्ड मारूं, बुर चोदूं, क्या कचकचौवा गाण्ड है साल्ली…”
गाली शुरू कर दी।
“तेरे नन्दोई बहनचोद की बहन चोदूँ, भौजी तोहरो गाण्ड में खूब माल भरल हौ…”
एक के जवाब में दो उंगली मैंने पेल दी, रितू भाभी की कसी-कसी गाण्ड में।
“तेरी सास का भोंसड़ा मारू, ससुराल में अपनी ननदों के साथ खूब कबड्डी खेल के आई है, छिनाल…”
रितू भाभी ने जवाब दिया।
“अरे भौजी मेरी साली ननदें हैं, भाईचोद। एक के ऊपर दस-दस चढ़ते हैं, तेरे मादरचोद नन्दोई की माँ का भोंसड़ा, जिसमें गदहे घोड़े सब घुसते हैं…”
उनकी गाण्ड में गोल-गोल उंगली घुमाते मैं बोली।
इस लेस्बियन रेस्लिंग के साथ गालियों ने उनकी हालत और खराब कर दी।
गालियां हम दोनों दे रही थी लेकिन टारगेट उन्हीं की माँ बहने थी।
रितू भाभी ने जोर से मुझे आलिंगन में दबोच लिया था।
मैंने उनके कान में फुसफुसाया-
“अरे भौजी, हम दोनों टापलेस हो गए हैं और आपके नन्दोई अभी भी…”
बस कहने की देर थी।
रितू भाभी,
अगले पल पलंग पे उनके पीछे बैठी थी और उनके भाले की नोक की तरह चूचियों के निपल, उनकी पीठ में छेद कर रहे थे।
और उनकी टी-शर्ट पहले रितू भाभी के हाथ में और फिर मिड आन पे मेरे हाथ में,
वो भी हम दोनों की तरह टापलेस हो गए सिर्फ शार्ट में।
रितू भाभी ने अपनी मस्त चूचियां उनकी पीठ पे रगड़ते हुए, हल्के से उनका गाल काटा
और जैसे कोई मर्द किसी कच्ची कली के टिकोरों को पकड़कर दबोच ले, उनके दोनों टिट्स को पकड़कर मसल दिया।
उनके मुँह से चीख और सिसकारी दोनों निकल गई।
“क्या नन्दोई जी, लौंडिया की तरह सिसक रहे हो अभी दिलवाती हूँ, तुझे टिकोरों का मजा…”
और साथ ही शार्ट सरका के उन्होंने उनके मस्त खूंटे को बाहर निकाल लिया। एकदम मस्त कड़ियल, फुँफकारता,
“हे आज कोई रहमदिली मत दिखाना, कर देना खून खच्चर, चीखने चिल्लाने देना साली को, एक बार में हचक के पूरा 9” इंच ठेल देना…”
भौजी उनके लण्ड को सहलाते और उकसा रही थीं। और फिर एक झटके में उन्होंने चमड़ा खोल दिया।
मोटा छोटे टमाटर ऐसा लाल, गुस्साया खूब कड़ा सुपाड़ा बाहर।
और मैं भौजी को याद दिलाती, उसके पहले उन्हें खुद याद आ गया।
(रितू भाभी पीछे पड़ी थीं की सूखे लण्ड से छुटकी की कच्ची चूत फाड़ी जाय,
लेकिन मेरे बहुत समझाने पे ये तय हुआ था की चलिए आज, तो ये वैसलीन लगा लेंगे, लेकिन रात में ट्रेन में सिर्फ थूक लगा के और,
उनके गाँव में जब उसकी गाण्ड फटेगी तो एकदम सूखी)
“अरे नौवीं में पढ़नी वाली मेरी कच्ची ननद
कैसे घोंट पाएगी ये मुट्ठी ऐसा सुपाड़ा, जरा वैसलीन तो लगा दूँ…”
रितू भाभी बोलीं और वैसलीन की शीशी उठाकर ले आई। और फिर सिर्फ उंगली की टिप वैसलीन से छुला के,
उन्होंने मुझे चिढ़ाते हुए दिखा के, सिर्फ उनके सुपाड़े पे पेशाब के छेद पे,
जैसे कोई बच्चे को नजर से बचाने केलिए टीका लगा दे, बस वैसे ही, वहां लगा दिया।
“भाभी ये फाउल है…”
मैं चीखी लेकिन उन्होंने किसी दलबदलू नेता को भी मात देते हुए, पाला बदल लिया था और रितू भौजी का साथ दे रहे थे।
“क्यों?”
मुश्कुरा के वो बोले-
“अरे तुमने ही तो कहा था की आज वैसलीन लगा के, तो मेरी सलहज ने अपनी छोटी ननद का ख्याल करते हुए वैसलीन लगा तो दी है।
ये थोड़ी ही तय हुआ था की, कितने ग्राम लगाएंगे या कितना इंच लगाएंगे…”
“अच्छा चल तू कह रही है तो, तू भी क्या याद करेगी किस दिलदार से पाला पड़ा है…”
रितू भाभी हँसकर बोली और सुपाड़े के पेशाब के छेद पर लगे वैसलीन को फैला करके,
उन्होंने सुपाड़े के ऊपरी एक तिहाई भाग पे फैला दिया।
मैं उनकी बदमाशी अच्छी तरह समझ रही थी। वो अपने नन्दोई को खुल के फेवर कर रही थीं।
किसी चिकने तेज धार वाले चाकू की तरह, अब उनका सुपाड़ा छुटकी की कसी चूत में घुस जाएगा, कम से कम उसका एक तिहाई हिस्सा, जहाँ तक वैसलीन लगा है, और फिर वो लाख अपने चूतड़ पटके, इनका सुपाड़ा निकल नहीं सकता
और उसके बाद तो जैसे कोई भोथरे चाकू से किसी मेमने को हलाल करे, बस एकदम उसी तरह से।
मैं कुछ बोलती, उसके पहले छुटकी के पैरों की आहट सुनाई पड़ी और रितू भाभी ने शेर को फिर से पिंजड़े में बंद कर दिया।
और हम दोनों ने अपने ब्लाउज को ठीक कर लिया (बटन तो दोनों की टूट चुकी थीं, हाँ बस चूची के ऊपर कर लिया)।
और छुटकी आई तो,
उसकी कसी-कसी छोटी कॉलेज की टाप के नीचे दोनों छोटे-छोटे चूजे चोंच मार रहे थे।
वो कच्चे-कच्चे टिकोरे, जिसके न सिर्फ वो, बल्की मेरे नंदोई भी दीवाने थे, टाप के नीचे से साफ झलक रहे थे।
और उसे देखकर न सिर्फ मुँह सूख गया उनका, बल्की खड़ा खूंटा और तन के शार्ट के बाहर से झांकने लगा।
और अब मुँह सूखने की बारी छुटकी की थी।
जान सूख गई थी, उसकी। उसे मालूम पड़ गया था कि अब थोड़ी देर में यहाँ क्या होने वाला था।
और ऊपर से रितू भाभी, उन्होंने शार्ट नीचे सरका दिया और रामपुरी 9” इंच के स्प्रिंग वाले चाकू की तरह, मोटा कड़ियल पगलाया लण्ड बाहर-
“क्यों लेगी इसे?”
मुट्ठी में उसे सहलाते, दबाते रितू भाभी ने पूछा।
कितने अहसास एक साथ छुटकी के चेहरे पर से उतर गए।
1॰ लालच- मन कर रहा था बस गप्प से अंदर ले ले।
2॰ डर, और दहशत- क्या हालत होगी उस बिचारी की छोटी सी बिल की, जब ये कलाई ऐसा मोटा बालिश्त भर लम्बा, फाड़ता हुआ घुसेगा अंदर।
3॰ चाहत- कितना मजा आएगा, सुबह वो अपनी दो सहेलियों को देख चुकी थी, इसे घोंटते दोनों चीख चिल्ला रही थी लेकिन बाद में कितना मजा आया। और… और मंझली ने भी तो लिया था, इसे। एक ही साल तो बड़ी है वो।
4॰ घबड़ाहट- बहुत दर्द होगा, और खून भी निकलेगा। खून से बहुत डरती थी वो।
वो हिरणी की तरह डर के मेरी ओर मुड़ी, पर रितू भाभी की कोई ननद बच सके तो रितू भाभी कैसी।
उन्होंने उचक कर उसे पकड़कर पलंग पर खींच लिया-
“अरे छुटकी इससे डर लगता है, मुझसे तो नहीं…”
और प्यार से उसे अपने बाँहों में भींच लिया।
वो भी सिमटते हुए बोली-
“अरे भाभी, आपसे क्यों डरूँगी?”
“तो चल मेरे साथ मजा ले न…”
हसंते हुए वो बोली।
बिचारी छुटकी को क्या मालूम, वो खुद फँस के बड़े शिकारी के चंगुल में जा रही है।
फटनी तो उसकी है ही वो भी आज और अभी।