21-12-2019, 12:58 PM
एक बार और ,
इनके लैपी के बैग में इनका टिकट , पर्स में कार्ड , पैसा सब कुछ ,... लेकिन कपड़ा पहनाते समय ये अड़ गए ,...
एक बार और ,...
पर तब तक मैं भी साडी ब्लाउज , ब्रा सब पहन चुकी थी , ... और घड़ी मैडम दस बजा रही थीं ,
" अरे यार अभी तो ,... फिर तेरी फ्लाइट ,... सासु जी भी ,... खाने की देर हो जायेगी ,... "
मैंने दस बहाने बनाये , पर इनकी इस बात की जिद के आगे मैं भी हार जाती थी , ... वो मेरी सब बात मान लेते थे पर , इस बात पर ,...
और सच बोलूं तो मन तो मेरा भी करता था , ... बहुत करता था , इनसे कम नहीं करता था ,... पर
मैं थोड़ी सी ढीली पड़ी और उन्होंने वहीँ ड्रेसिंग टेबल के सामने ही
स्टूल पकड़ कर मैं झुक गयी और ये पीछे से , ...
सब कुछ ड्रेसिंग टेबल के शीशे में दिख रहा था ,
मैं ना ना करती रही ,
लेकिन ये लड़का सुनने वाला था क्या ,
और इस लड़के को क्यों ब्लेम करूँ , मेरी अपनी देह भी कहाँ अब अपनी थी , ...
ऊपर से इस लड़के की उँगलियाँ , हथेली , होंठ ,...
कभी वो मेरी फैली जाँघों के बीच हाथ डालकर मेरी गुलाबो को मसल देता ,
तो कभी गच्चाक से एक ऊँगली जड़ तक चूत में ठेल देता ,
दूसरा हाथ तो इतने कस कस के मेरे जोबन को दबोचे हुए था , कभी रगड़ता तो कभी मसलता ,..
कभी निपल्स को फ्लिक कर देता , ...
दो चार मिनट में ही मैं एकदम गीली हो गयी , मेरे जोबन पथरा गए थे , चिड़िया फुदक रही थी , मैं सिसक रही थी ,
और बस यही मन कर रहा था , ... ये लड़का पेल दे , ठेल दे , ...
शीशे में उसका तन्नाया एकदम खड़ा बौराया मूसल मैं देख रही थी।
और वो सिर्फ मेरे भगोष्ठों पर रगड़ रगड़ , घिस घिस कर के मुझे और पागल कर रहे थे ,
मैं भी पागल हो रही थी , और शीशे में ' उसे ' देख कर और मन कर रहा था ,
मेरे मन की बात उनसे ज्यादा कौन समझता , ... बस
उन्होंने ठेल दिया , एक करारा धक्का , और पूरा का पूरा सुपाड़ा अंदर ,
फिर पिछली चुदाई की मलाई एकदम अंदर तक , और उससे बढ़िया वैसलीन क्या होती ,
झट से अंदर चला गया ,
लेकिन न आज ये रुकने के मूड में थे न मैं ,
तेजी से चलती घडी का अहसास इन्हे भी था और मुझे भी , बस आधे घंटे का समय था हम दोनों के पास , ...
फिर क्या तूफानी चुदाई की उन्होंने ,
और साथ मैं भी दे रही थी , आधे घंटे तक उनके धक्के एकदम रुके नहीं , साथ में मैं भी कमर हिलाकर , धक्के का जवाब पीछे दे कर ,
शीशे में साफ़ साफ़ दिख रहा था केसे उनका मोटा लंड ,
मेरी चूत फाड़ता फैलाता अंदर बाहर हो रहा था ,
पूरे आधे घंटे तक ,...
हम दोनों साथ साथ और जैसे ही वो झड़े ,...
मैं कटे पेड़ की तरह गिर पड़ी , पांच मिनट तक हम दोनों ऐसे ही पड़े रहे , फिर मैं ही उठी पहले
जल्दी से ब्रा , ब्लाउज पहना , फिर पेटीकोट और साडी , ...
ससुराल में जबतक ये रहते मैंने पैंटी पहनना बंद कर दिया था ,
क्या पता कब इनका मन कर जाए , फिर तो कहीं भी , कभी भी ,
निहुरा के ,
लिटा के ,
टाँगे उठा के , फैला के ,...
और ये भी अबतक अपनी चड्ढी बनियान जो मैंने निकाली थी , पहन ली थी।
फिर मैंने उन्हें शर्ट पेंट दी , मोज़े पहनाने का काम मेरा ही था ,
कितनी बार ये दोनों पैरों में अलग अलग रंग के मोज़े पहन लेते थे , नाक तो मेरी कटती न। बेल्ट लगाने का काम भी मेरा था ,
और साथ में मैंने एक बार फिर पैंट के ऊपर से ही उसे दबोच कर रगड़ दिया , आखिर चोली के ऊपर से मेरे उभारों को मसलने का ये कोई मौका नहीं छोड़ता था
एक मिनट के लिए मेरा मन दुःखी हो गया , ...
कैसे कटेंगे अब ये पांच दिन ,... ये तो लग गया था की अब ये लड़का हर सैटरडे को आ जाएगा ,
लेकिन पांच दिन मैं जानती थी , पांच युग हो जायेंगे ,... मैंने किसी तरह अपने को रोका , मेरे चेहरे पर लेश मात्र दुःख की छाया भी ,...
और इस लड़के को पता चल जाता ही था और मुझसे भी सौ गुना ज्यादा , ...
और मैं नहीं चाहती थी की इस लड़के पर दुःख की छाया भी पड़े ,...
पौने ग्यारह बजने ही वाले थे , इन्होने अपना सामान उठाया ( सामान क्या था , बस इनकी लैपी )
और मैंने नाश्ते की प्लेटों की ट्रे ,... और हम दोनों नीचे ,
जेठानी जी नीचे टेबल सेट कर रही थीं।
उन्होंने जेठानी जी के पैर छूने का उपक्रम किया पर उनकी भाभी ने उन्हें गले से लगा लिया और कस के कान ऐंठे ,
" चोर , आधी रात को , ... " कस के छेड़ा उन्होंने।
इनके लैपी के बैग में इनका टिकट , पर्स में कार्ड , पैसा सब कुछ ,... लेकिन कपड़ा पहनाते समय ये अड़ गए ,...
एक बार और ,...
पर तब तक मैं भी साडी ब्लाउज , ब्रा सब पहन चुकी थी , ... और घड़ी मैडम दस बजा रही थीं ,
" अरे यार अभी तो ,... फिर तेरी फ्लाइट ,... सासु जी भी ,... खाने की देर हो जायेगी ,... "
मैंने दस बहाने बनाये , पर इनकी इस बात की जिद के आगे मैं भी हार जाती थी , ... वो मेरी सब बात मान लेते थे पर , इस बात पर ,...
और सच बोलूं तो मन तो मेरा भी करता था , ... बहुत करता था , इनसे कम नहीं करता था ,... पर
मैं थोड़ी सी ढीली पड़ी और उन्होंने वहीँ ड्रेसिंग टेबल के सामने ही
स्टूल पकड़ कर मैं झुक गयी और ये पीछे से , ...
सब कुछ ड्रेसिंग टेबल के शीशे में दिख रहा था ,
मैं ना ना करती रही ,
लेकिन ये लड़का सुनने वाला था क्या ,
और इस लड़के को क्यों ब्लेम करूँ , मेरी अपनी देह भी कहाँ अब अपनी थी , ...
ऊपर से इस लड़के की उँगलियाँ , हथेली , होंठ ,...
कभी वो मेरी फैली जाँघों के बीच हाथ डालकर मेरी गुलाबो को मसल देता ,
तो कभी गच्चाक से एक ऊँगली जड़ तक चूत में ठेल देता ,
दूसरा हाथ तो इतने कस कस के मेरे जोबन को दबोचे हुए था , कभी रगड़ता तो कभी मसलता ,..
कभी निपल्स को फ्लिक कर देता , ...
दो चार मिनट में ही मैं एकदम गीली हो गयी , मेरे जोबन पथरा गए थे , चिड़िया फुदक रही थी , मैं सिसक रही थी ,
और बस यही मन कर रहा था , ... ये लड़का पेल दे , ठेल दे , ...
शीशे में उसका तन्नाया एकदम खड़ा बौराया मूसल मैं देख रही थी।
और वो सिर्फ मेरे भगोष्ठों पर रगड़ रगड़ , घिस घिस कर के मुझे और पागल कर रहे थे ,
मैं भी पागल हो रही थी , और शीशे में ' उसे ' देख कर और मन कर रहा था ,
मेरे मन की बात उनसे ज्यादा कौन समझता , ... बस
उन्होंने ठेल दिया , एक करारा धक्का , और पूरा का पूरा सुपाड़ा अंदर ,
फिर पिछली चुदाई की मलाई एकदम अंदर तक , और उससे बढ़िया वैसलीन क्या होती ,
झट से अंदर चला गया ,
लेकिन न आज ये रुकने के मूड में थे न मैं ,
तेजी से चलती घडी का अहसास इन्हे भी था और मुझे भी , बस आधे घंटे का समय था हम दोनों के पास , ...
फिर क्या तूफानी चुदाई की उन्होंने ,
और साथ मैं भी दे रही थी , आधे घंटे तक उनके धक्के एकदम रुके नहीं , साथ में मैं भी कमर हिलाकर , धक्के का जवाब पीछे दे कर ,
शीशे में साफ़ साफ़ दिख रहा था केसे उनका मोटा लंड ,
मेरी चूत फाड़ता फैलाता अंदर बाहर हो रहा था ,
पूरे आधे घंटे तक ,...
हम दोनों साथ साथ और जैसे ही वो झड़े ,...
मैं कटे पेड़ की तरह गिर पड़ी , पांच मिनट तक हम दोनों ऐसे ही पड़े रहे , फिर मैं ही उठी पहले
जल्दी से ब्रा , ब्लाउज पहना , फिर पेटीकोट और साडी , ...
ससुराल में जबतक ये रहते मैंने पैंटी पहनना बंद कर दिया था ,
क्या पता कब इनका मन कर जाए , फिर तो कहीं भी , कभी भी ,
निहुरा के ,
लिटा के ,
टाँगे उठा के , फैला के ,...
और ये भी अबतक अपनी चड्ढी बनियान जो मैंने निकाली थी , पहन ली थी।
फिर मैंने उन्हें शर्ट पेंट दी , मोज़े पहनाने का काम मेरा ही था ,
कितनी बार ये दोनों पैरों में अलग अलग रंग के मोज़े पहन लेते थे , नाक तो मेरी कटती न। बेल्ट लगाने का काम भी मेरा था ,
और साथ में मैंने एक बार फिर पैंट के ऊपर से ही उसे दबोच कर रगड़ दिया , आखिर चोली के ऊपर से मेरे उभारों को मसलने का ये कोई मौका नहीं छोड़ता था
एक मिनट के लिए मेरा मन दुःखी हो गया , ...
कैसे कटेंगे अब ये पांच दिन ,... ये तो लग गया था की अब ये लड़का हर सैटरडे को आ जाएगा ,
लेकिन पांच दिन मैं जानती थी , पांच युग हो जायेंगे ,... मैंने किसी तरह अपने को रोका , मेरे चेहरे पर लेश मात्र दुःख की छाया भी ,...
और इस लड़के को पता चल जाता ही था और मुझसे भी सौ गुना ज्यादा , ...
और मैं नहीं चाहती थी की इस लड़के पर दुःख की छाया भी पड़े ,...
पौने ग्यारह बजने ही वाले थे , इन्होने अपना सामान उठाया ( सामान क्या था , बस इनकी लैपी )
और मैंने नाश्ते की प्लेटों की ट्रे ,... और हम दोनों नीचे ,
जेठानी जी नीचे टेबल सेट कर रही थीं।
उन्होंने जेठानी जी के पैर छूने का उपक्रम किया पर उनकी भाभी ने उन्हें गले से लगा लिया और कस के कान ऐंठे ,
" चोर , आधी रात को , ... " कस के छेड़ा उन्होंने।