20-12-2019, 08:39 PM
रीमा के दबे हुए अरमान ने अपनी मंजिल हासिल कर ली थी रीमा की तृप्ति का एहसास सिर्फ सीमा ही महसूस कर सकती थी हालांकि रीमा के नैतिक मन में एक अपराध बोध तो था लेकिन अपनी वासना की तृप्ति के एहसास के आगे उस अपराध बोध का कोई मोल नहीं था रीमा इस तरह से लंड से चुदना पसंद है रीमा को चुदाई पसंद है रीमा को अच्छे-अच्छे हट्टे कट्टे मर्द पसंद है और सबसे बड़ी बात है रीमा को खुद को चुदवाना पसंद यही बात रीमा के मन में सबसे ज्यादा संतोष भर रही थी आखिर उसने खुद से शर्माना छोड़ दिया उसने खुद से छिपना छोड़ दिया आखिर उसने खुद से झिझकना छोड़ दिया | वो नकली मुखौटा लगाकर नहीं जी रही | वह जैसी अंदर है वैसी ही जीना चाहती है और वह अंदर से बहुत ही वाइल्ड वाइल्ड और खुद की जिंदगी जीना चाहती है अपने जिस्म की जवानी जीना चाहती है अपने जिस्म की जवानी की प्यास बुझाना चाहती है उसे प्चायार चाहिए और चुदाई भी | कुछ दिन पहले तक वो जितेश को जानती तक नहीं थी लेकिन कुछ दिनों में इतना गहरा रिश्ता बन गया उसकी जिस्म की गुलाबी मखमली सुरंगों में उसका मोटा मुसल लेटा हुआ आराम फरमा रहा है | उसे अब संस्कारी सुशील बनने की एक्टिंग नहीं करनी पड़ रही है | यही असली रीमा है बोल्ड एंड वाइल्ड एंड ब्यूटीफुल | उसे अपनी ख्वाइशो के लिए किसी अनजान लंड से चुदने में कोई शर्म नहीं है | कितनी अजीब है जिंदगी, रीमा इसका अहसास कर पा रही थी | जिस लंड को गली-गली कोने-कोने , शहर के हर चौराहे पर ढूढती थी वो इस तरह से एक अवैध बस्ती के एक छोटे से लकड़ी के बने हुए कमरे में मिलेगा उसे तो इसका अंदाजा भी नहीं था |
जिंदगी कितनी अजीब और अनीयोजित है यहां कुछ भी योजना बनाकर नहीं होता बस हो जाता है आज भी यही हुआ अपने पति की मौत के बाद अपने मन के कोने में दबे जिस सपनों के सौदागर को वह इधर से उधर ढूंढ रही थी जिसको हर रोज हो हर गली हर चौराहे पर ढूंढने की कोशिश करती थी वह जितेश था शायद जितेश था पता नहीं जितेश था भी या नहीं या फिर वह बस भावनाओं के सागर में बह रही थी अगर वह जितेश था तो फिर रोहित क्या है नहीं जितेश रोहित नहीं है और रोहित जितेश नहीं है लेकिन जितेश ही उसकी मंजिल है नही नहीं जितेश उसकी मंजिल कैसे हो सकता है वह तो इस कुटिया में बंद है बस यह बस एक भावनाओं का दौर है जो समय के साथ बह जाएगा और फिर से हकीकत में वापस आना ही होगा रोहित ही उसकी हकीकत है जितेश नहीं उसकी हकीकत है लेकिन जितेश भी उसकी हकीकत में ऐसा हो सकता है नहीं ऐसा नहीं हो सकता है पता नहीं क्या होगा क्या नहीं होगा रीमा के मन में बहुत गड़बड़ चल रही थी और यही सब सोचते सोचते हैं वह सोने की कोशिश करने लगी उसे इस बात का अहसास था कि जितेश उसके जिस्म के अंदर आराम फरमा रहा है और इसमें रीमा को कोई आपत्ति नहीं थी आखिर उसने इतनी देर रीमा के जिस्म के अंदर ही तो सफर तय किया है तो अब उसकी थकान मिटाने के लिए अगर वह चीमा के जिस्म के अंदर ही सो रहा है तो इसमें गलत क्या है | रीमा अपने खयालो में खोयी रही और जितेश उसे चूमता रहा सहलातालाता रहा और उसे चिपका रहा उसका लंड रीमा की चूत में घुसा रहा हालांकि उसमें पहले जैसा कड़ापन नहीं था लेकिन वह इतना भी नरम नहीं था कि रीमा की चूत से फिसल के बाहर आ जाए | रीमा थक गयी थी और तृप्त थी | मन में संतोष का अहसास था वो बेचैनी जो उसे हर वक्त जकड़े रखती थी कही गायब सी हो गयी शायद वो रीमा की दबी वासना थी |
दोनों एक दूसरे की बाहों में उसी तरह से लेटे लेटे एक दूसरे से चिपके रहे और कुछ देर तक एक दूसरे को सहलाते चूसते हुए पता नहीं कब थक हार कर सो गए | जितेश का लंड रीमा की चूत में उसके वासना मंथन से निकले लावे और रीमा के चूत रस से सना हुआ उसी की गुलाबी सुरंग में घुसा हुआ ही पड़ा रहा और दोनों गहरी नींद में सो गए |
दोनों थके हारे एक दूसरे की बाहों में लिपटकर सो गए , शरीर के अपने नियम है, झड़ने के बाद लंड को मुरझाना ही है | मुरझाया लंड चूत में कैसे टिक सकता है | उस चूत में तो बिलकुल नहीं जहाँ सारा का सारा लंड रस अपने अन्दर समेटी बैठी हो | इतनी चिकनी चूत में तो खड़ा लंड फिसल कर बाहर आ जायेगा | कुछ देर बाद जितेश का लंड रीमा की चूत से बाहर आ गया और उसके साथ रीमा की मखमली चूत में भरी हुई सफेद गाड़ी मलाई भी रिस कर बाहर आने लगी | रीमा की जांघो और चुताड़ो को भिगोती हुई बिस्तर को गीला करने लगी |
जिंदगी कितनी अजीब और अनीयोजित है यहां कुछ भी योजना बनाकर नहीं होता बस हो जाता है आज भी यही हुआ अपने पति की मौत के बाद अपने मन के कोने में दबे जिस सपनों के सौदागर को वह इधर से उधर ढूंढ रही थी जिसको हर रोज हो हर गली हर चौराहे पर ढूंढने की कोशिश करती थी वह जितेश था शायद जितेश था पता नहीं जितेश था भी या नहीं या फिर वह बस भावनाओं के सागर में बह रही थी अगर वह जितेश था तो फिर रोहित क्या है नहीं जितेश रोहित नहीं है और रोहित जितेश नहीं है लेकिन जितेश ही उसकी मंजिल है नही नहीं जितेश उसकी मंजिल कैसे हो सकता है वह तो इस कुटिया में बंद है बस यह बस एक भावनाओं का दौर है जो समय के साथ बह जाएगा और फिर से हकीकत में वापस आना ही होगा रोहित ही उसकी हकीकत है जितेश नहीं उसकी हकीकत है लेकिन जितेश भी उसकी हकीकत में ऐसा हो सकता है नहीं ऐसा नहीं हो सकता है पता नहीं क्या होगा क्या नहीं होगा रीमा के मन में बहुत गड़बड़ चल रही थी और यही सब सोचते सोचते हैं वह सोने की कोशिश करने लगी उसे इस बात का अहसास था कि जितेश उसके जिस्म के अंदर आराम फरमा रहा है और इसमें रीमा को कोई आपत्ति नहीं थी आखिर उसने इतनी देर रीमा के जिस्म के अंदर ही तो सफर तय किया है तो अब उसकी थकान मिटाने के लिए अगर वह चीमा के जिस्म के अंदर ही सो रहा है तो इसमें गलत क्या है | रीमा अपने खयालो में खोयी रही और जितेश उसे चूमता रहा सहलातालाता रहा और उसे चिपका रहा उसका लंड रीमा की चूत में घुसा रहा हालांकि उसमें पहले जैसा कड़ापन नहीं था लेकिन वह इतना भी नरम नहीं था कि रीमा की चूत से फिसल के बाहर आ जाए | रीमा थक गयी थी और तृप्त थी | मन में संतोष का अहसास था वो बेचैनी जो उसे हर वक्त जकड़े रखती थी कही गायब सी हो गयी शायद वो रीमा की दबी वासना थी |
दोनों एक दूसरे की बाहों में उसी तरह से लेटे लेटे एक दूसरे से चिपके रहे और कुछ देर तक एक दूसरे को सहलाते चूसते हुए पता नहीं कब थक हार कर सो गए | जितेश का लंड रीमा की चूत में उसके वासना मंथन से निकले लावे और रीमा के चूत रस से सना हुआ उसी की गुलाबी सुरंग में घुसा हुआ ही पड़ा रहा और दोनों गहरी नींद में सो गए |
दोनों थके हारे एक दूसरे की बाहों में लिपटकर सो गए , शरीर के अपने नियम है, झड़ने के बाद लंड को मुरझाना ही है | मुरझाया लंड चूत में कैसे टिक सकता है | उस चूत में तो बिलकुल नहीं जहाँ सारा का सारा लंड रस अपने अन्दर समेटी बैठी हो | इतनी चिकनी चूत में तो खड़ा लंड फिसल कर बाहर आ जायेगा | कुछ देर बाद जितेश का लंड रीमा की चूत से बाहर आ गया और उसके साथ रीमा की मखमली चूत में भरी हुई सफेद गाड़ी मलाई भी रिस कर बाहर आने लगी | रीमा की जांघो और चुताड़ो को भिगोती हुई बिस्तर को गीला करने लगी |