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चारु की चड्डी और अन्य कहानियाँ
#33
बात तब की है जब मैं 11वीं मे था. नई जगह पर शिफ्ट हुए थे. नोएडा में. पिताजी का ट्रान्सफर एक बैंक से दूसरे बैंक मे होता रहता था. इससे पहले चेन्नई मे थे. चेन्नई के मुक़ाबले नोएडा बहुत ज़्यादा मॉडर्न था. जहां चेन्नई में सभी लड़कियां ढीली ढाली सलवार ही पहनती थी वहीं नोएडा मे सब कुछ एक दम अलग था. उम्र का पड़ाव भी ऐसा था जहां नज़र खुद ब खुद लड़कियों की गांड, और चुचचीयों की तरफ चला जाता था. नोएडा आने से पहले, चेन्नई मे, लड़कियां ऐसी होती ही नहीं थी कि उनकी गांड कि या चुच्ची कि तरफ जाये. केवल एक आंटीयाँ ही थीं जिनको देखकर हिलाता था. चेन्नई के पानी मे पता नहीं क्या था. लड़कियां ज़रा भी माल नहीं होती थी. लेकिन शादी होकर चुदने के बाद ही पता नहीं क्यों आंटियों कि गांड और चुचचे मोटे हो जाते थे. कमर पर भी थोड़ी चर्बी चढ़ जाती थी.

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Society की आंटीयों के अलावा घर मे काम करने वाली आंटी को भी देखता था. 
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मल्लू के हिसाब से काफी गोरी थी. मल्लू के जैसे उतनी मोटी भी नहीं थी. थोड़ा मैंटेन भी रखती थी खुद को. जब हो झुक झुक कर पोंछा लगाती, या गांड मटकाकर चलती तो मेरा जवान लण्ड उसकी चूत मे घुसने के लिए आतुर हो जाता !! और रही सही कसर मस्तराम की कहानियों ने पूरी कर रखी थी. उनको पढ़कर तो मन करता इसको बस एक बार लण्ड दिखा दो, ये खुद ब खुद ही चूसने आ जाएगी. वो सुबह आती और रात तक रहती. घर का सारा काम करती थी. उसको प्रिया दीदी बुलाता था मैं.

दोपहर को हमारे ही drawing room मे सोती थी. कुछ घंटों के लिए. एक दिन दोपहर को घर पर कोई नहीं था. मम्मी पिताजी दोनों ऑफिस मे थे. और मैं तो था ही सिंगल child. मैंने सोचा आज प्रिया दीदी को देख कर मूठ मारता हूँ. सोचकर ही बहनचोद लण्ड खड़ा हो गया. क्यूकी मैं मस्तराम की कहानी का पात्र तो था नहीं. कि जिसको मर्ज़ी चोदता फिरूँ. दीदी drawing room मे सोफ़े पर सो रही थी. मैंने अपने कमरे का दरवाजा हल्का सा खोला और उसमे से हलक सा झांक कर दीदी को देखने कि कोशिश की. लेकिन वहाँ से दीदी दिखाई नहीं दे रही थी. साला मूड ही खराब हो गया. सोचा आज भी पॉर्न देखकर ही मुट्ठ मारना पड़ेगा. लेकिन उस दिन मेरे सर पर हवस सवार था. शायद ज़िंदगी मे पहली बार. मैंने सोचा आज तो प्रिया दीदी को देखकर ही मुट्ठ मारेंगे.
मैं कमरे से निकला और drawing room मे रखे dining table की ओर गया. हाथ मे एक किताब थी. मैंने सोचा था dininig table पर किताब पढ़ने के बहाने से बैठूँगा और वहाँ से सोती हुई प्रिआ दीदी को देखकर मुट्ठ मारूँगा. Table पर बिआता तो देखा दीदी उल्टी तरफ मुंह करके सो रही थी. मेरी तरफ उनकी गांड थी. मैंने सोचा अच्छा ही हुआ. इसकी उभरी हुई गांड और बिखरे बाल देखकर हिला लेता हूँ.
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मैं table पर बैठा और शॉर्ट्स के अंदर हाथ घुसा कर लण्ड को चड्डी के बाहर निकाला. और हल्के हल्के मसलने लगा. हथेली की मुट्ठी बनाकर लण्ड के ऊपर नीचे घूमा रहा था. उस दिन दीदी ने पीली लेगिंग पहनी हुई थी. जो उनकी जांघ और गांद के ऊपर ज़ोर से लिपटी थी. उनकी गोरी टांगों के नीचे एक पाजेब भी थी. जो कि उनको हद्द से ज़्यादा सेक्सी बना रही थी. उनकी गांड कि गोलाई देखकर लगता था कि एक छोटा सा मटका है. मन कर रहा था उसके गांड कि छेद मे उंगली दे दूँ और उनको गोदी मे बिठाकर चोदूँ. ऐसा मैंने एक पॉर्न क्लिप मे देखा था.
मैं मुट्ठ पेले जा रहा था. तभी दीदी थोड़ा सा हिलीं. एक पल के लिए मैं डर गया कि कहीं जाग तो नहीं गयी. हालांकि अगर जाग भी जाती तब भी बहाना तो रैडि था. रूम मे मन नहीं लग रहा था तो मैं यहाँ आ गया था. लेकिन दीदी उठी नहीं बस अपनी लेग्गिंग के अंदर हाथ डाल लिया.
उनकी आँखें अभी भी बंद थी. लेकिन वो अपने हाथ को धीरे धीरे चला रही थी लेग्गिंग के अंदर.

मैं समझ गया कि दीदी भी हस्त मैथुन कर रही है. या यूं कहें चूत मे उंगली कर रही है. मेरी हालत खराब हो गयी और मैं और ज़ोर ज़ोर से मुट्ठी मारने लगा. उधर दीदी के हाथ भी तेज़ चलने लगा. मेरा लण्ड ज़िंदगी मे पहली बार इतना सख्त हुआ था. मैं कुर्सी पर बैठे बैठे मुट्ठ मार रहा था, लेकिन जब मैं झड़ने के एक दम करीब पहुँच गया तो मैं खुद ही कुर्सी पर उछलने लगा. जैसे मैं हवा को ही चोद रहा हूँ.

मेरी पैर कि उँगलियाँ भिंच गईं. पैर से, जांघों से होते हुए कुछ आता हुआ महसूस हुआ और लण्ड से धार बनकर निकलने लगा. पहला शॉट हवा मे बहुत ऊपर तक गया. मेरे मुंह से अपने आप ही – प्रिया, प्रिया, मेरी रंडी प्रिया निकलने लगा. उधर दीदी कि टांगें भी अकड़ गयी थी और उनका कमर भी झटके ले रहा था. लेकिन मैं कुर्सी पर निढाल होकर बैठ गया. लण्ड से अभी भी cum निकले जा रहा था.

जब झड़ना बंद हुआ एक ज़ोर का थकान महसूस हुआ जो कि मुट्ठ मारने का बाद होता है और साथ ही एक डर और शर्म भी आई. मैं उसी हालत मे, लण्ड बिना ढके भाग कर अपने कमरे मे आ गया. लण्ड अभी भी सख्त था. मैं बिस्तर पर गिर कर सो गया.

शाम को उठा तो एक डर के साथ. कहीं प्रिया दीदी ये बात सबको न बोल दे. लेकिन मेरेको चाय देते वक़्त हो कुछ नहीं बोली. बस हल्के हल्के मुस्कुरा रही थी. चाय रखकर जाते हुए बोली – भैया, अगली बार अपने कमरे मे ही करना.

मैंने बोलना चाहा कि – तुमने भी तो उंगली कि मेरे सामने. लेकिन बोला नहीं. इस बात को वो आगे नहीं खींच रही थी यही बहुत था.

कुछ दिनों के बाद पिताजी का ट्रान्सफर हो गया. नोएडा मे सब कुछ अलग था. एयरपोर्ट से सोसाइटी तक आते आते ही मैंने इतना कुछ देख लिया था कि घर जाते ही मुट्ठ मारना चाहता था.
चाहे वो यंग लड़की हो, या newly married, या aunty या साड़ी मे, या ऑटो मे बैठी हर कोई जैसे माल लग रही थी.

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मैं समझ गया कि यहाँ तो मुट्ठ कि नदियां बहने वाली हैं !!!!! 

***

वो बातें याद कर कर के मैं वहीं होटल के 17वी फ्लोर कि बाल्कनी मे ही लण्ड को मसलने लगा.
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RE: चारु की चड्डी और अन्य कहानियाँ - by savitasharma - 13-12-2019, 11:47 AM



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