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Misc. Erotica लिहाफ
#30
'अरे...अरे...अरे रोकिए ना। उसने भैया का हाथ छूकर कहा, 'बडी गुस्सावर हैं आपकी मम्मी। उसने मेरी तरफ मुँह फेरकर कहा।
इंट्रोडक्शन कराना हमारी सोसायटी में बहुत कम हुआ करता है और फिर भाभी का किसी से इंट्रोडक्शन कराना अजीब-सा लगता था। वो तो सूरत से ही घर की ब लगती थी। शबनम की बात पर हम सब कहकहा मारकर हँस पडे। भाभी मुन्ने का हाथ पकडकर घसीटती हुई अंदर चल दी।
'अरे ये तो हमारी भाभी है। मैंने भाभी को धम्म-धम्म जाते हुए देखकर कहा।
'भाभी? शबनम हैरतजदा होकर बोली।
'इनकी, भैया की बीवी।
'ओह! उसने संजीदगी से अपनी नजरें झुका लीं। 'मैं...मैं...समझी! उसने बात अधूरी छोड दी।
'भाभी की उम्र तेईस साल है। मैंने वजाहत (स्पष्टता) की।
'मगर, डोंट बी सिली...। शबनम हँसी, भैया भी उठकर चल दिए।
'खुदा की कसम!
'ओह...जहालत...।
'नहीं...भाभी ने मारटेज से पंद्रह साल की उम्र में सीनियर कैम्ब्रिज किया था।
'तुम्हारा मतलब है ये मुझसे तीन साल छोटी हैं। मैं छब्बीस साल की हूँ।
'तब तो कतई छोटी हैं।
'उफ, और मैं समझी वो तुम्हारी मम्मी हैं। दरअसल मेरी ऑंखें कमजोर हैं। मगर मुझे ऐनक से नफरत है। बुरा लगा होगा उन्हें?
'नहीं, भाभी को कुछ बुरा नहीं लगता।
'च:...बेचारी!
'कौन...कौन भाभी? न जाने मैंने क्यों कहा।
'भैया अपनी बीवी पर जान देते हैं। सफिया ने बतौर वकील कहा।
'बेचारी की बहुत बचपन में शादी कर दी गई होगी?
'पच्चीस-छब्बीस साल के थे।
'मगर मुझे तो मालूम भी न था कि बीसवीं सदी में बगैर देखे शादियाँ होती हैं। शबनम ने हिकारत से मुस्कराकर कहा।
'तुम्हारा हर अंदाजा गलत निकल रहा है...भैया ने भाभी को देखकर बेहद पसंद कर लिया था, तब शादी हुई थी। मगर जब वो कँवल के फूल जैसी नाजुक और हसीन थीं।
'फिर ये क्या हो गया शादी के बाद?
'होता क्या... भाभी अपने घर की मल्लिका हैं, बच्चों की मल्लिका हैं। कोई फिल्म एक्ट्रेस तो हैं नहीं। दूसरे भैया को सूखी-मारी लडकियों से घिन आती है। मैंने जानकर शबनम को चोट दी। वो बेवकूफ न थी।
'भई चाहे कोई मुझसे प्यार करे या न करे। मैं तो किसी को खुश करने के लिए हाथी का बच्चा कभी न बनूँ...और मुआफ करना, तुम्हारी भाभी कभी बहुत खूबसूरत होंगी मगर अब तो...।
'ऊँह, आपका नजरिया भैया से अलग है। मैंने बात टाल दी और जब वो बल खाती सीधी-सुडौल टाँगों को आगे-पीछे झुलाती, नन्हे-नन्हे कदम रखती मुँडेर की तरफ जा रही थी, भैया बरामदे में खडे थे। उनका चेहरा सफेद पड गया था और बार-बार अपनी गुद्दी सहला रहे थे। जैसे किसी ने वहाँ जलती हुई आग रख दी हो। चिडिया की तरह फुदककर वो मुँडेर फलाँग गई। पल भर को पलटकर उसने अपनी शरबती ऑंखों से भैया को तौला और छलावे की तरह कोठी में गायब हो गई।
भाभी लॉन पर झुकी हुई तकिया आदि समेट रही थी। मगर उसने एक नजर न आने वाला तार देख लिया। जो भैया और शबनम की निगाहों के दरमियान दौड रहा था।
एक दिन मैंने खिडकी में से देखा। शबनम फूला हुआ स्कर्ट और सफेद खुले गले का ब्लाउज पहने पप्पू के साथ सम्बा नाच रही थी। उसका नन्हा-सा पिकनीज कुत्ता टाँगों में उलझ रहा था। वो ऊँचे-ऊँचे कहकहे लगा रही थी। उसकी सुडौल साँवली टाँगें हरी-हरी घास पर थिरक रही थीं। काले-रेशमी बाल हवा में छलक रहे थे। पाँच साल का पप्पू बंदर की तरह फुदक रहा था। मगर वो नशीली नागिन की तरह लहरा रही थी। उसने नाचते-नाचते नाक पर ऍंगूठा रखकर मुझे चिडाया। मैंने भी जवाब में घूँसा दिखा दिया। मगर फौरन ही मुझे उसकी निगाहों का पीछा करके मालूम हुआ कि ये इशारा वो मेरी तरफ नहीं कर रही थी।
भैया बरामदे में अहमकों की तरह खडे गुद्दी सहला रहे थे और वो उन्हें मुँह चिडाकर जला रही थी। उसकी कमर में बल पड रहे थे। कूल्हे मटक रहे थे। बाँहें थरथरा रही थीं। होंठ एक-दूसरे से जुदा लरज रहे थे। उसने साँप की तरह लप से जुबान निकालकर अपने होंठों को चाटा। भैया की ऑंखें चमक रही थीं और वो खडे दाँत निकाल रहे थे। मेरा दिल धक से रह गया। ...भाभी गोदाम में अनाज तुलवाकर बावर्ची को दे रही थी।
'शबनम की बच्ची मैंने दिल में सोचा। ...मगर गुस्सा मुझे भैया पर भी आया। उन्हें दाँत निकालने की क्या जरूरत थी। इन्हें तो शबनम जैसे काँटों से नफरत थी। इन्हें तो ऍंगरेजी नाचों से घिन आती थी। फिर वो क्यों खडे उसे तक रहे थे और ऐसी भी क्या बेसुधी कि उनका जिस्म सम्बा की ताल पर लरज रहा था और उन्हें खबर न थी।
इतने में ब्वॉय चाय की ट्रे लेकर लॉन पर आ गया... भैया ने हम सबको आवाज दी और ब्वॉय से कहा भाभी को भेज दे।
रस्मन शबनम को भी बुलावा देना पडा। मेरा तो जी चाह रहा था कतई उसकी तरफ से मुँह फेरकर बैठ जाऊँ मगर जब वो मुन्ने को पद्दी पर चढाए मुँडेर फलाँगकर आई तो न जाने क्यों मुझे वो कतई मासूम लगी। मुन्ना स्कार्फ लगामों की तरह थामे हुए था और वो घोडे की चाल उछलती हुई लॉन पर दौड रही थी। भैया ने मुन्ने को उसकी पीठ पर से उतारना चाहा। मगर वो और चिमट गया।
'अभी और थोडा चले आंटी।
'नहीं बाबा, आंटी में दम नहीं...। शबनम चिल्लाई। बडी मुश्किल से भैया ने मुन्ने को उतारा। मुँह पर एक चाँटा लगाया। एक दम तडपकर शबनम ने उसे गोद में उठा लिया और भैया के हाथ पर जोर का थप्पड लगाया।
'शर्म नहीं आती...इतने बडे ऊँट के ऊँट छोटे से बच्चे पर हाथ उठाते हैं। भाभी को आता देखकर उसने मुन्ने को गोद में दे दिया। उसका थप्पड खाकर भैया मुस्करा रहे थे।
'देखिए तो कितनी जोर से थप्पड मारा है। मेरे बच्चे को कोई मारता तो हाथ तोडकर रख देती। उसने शरबत की कटोरियों में जहर घोलकर भैया को देखा। 'और फिर हँस रहे हैं बेहया।
'हूँ...दम भी है जो हाथ तोडोगी...। भैया ने उसकी कलाई मरोड़ी . वो बल खाकर इतनी जोर से चीखी कि भैया ने कांप कर उसे छोड़ दिया और वो हंसते-हंसते जमीन पर लोट गई. चाय के दरमियान भी शबनम की शरारतें चलती रहीं। वो बिलकुल कमसिन छोकरियों की तरह चुहलें कर रही थी। भाभी गुमसुम बैठी थीं। आप समझे होंगे शबनम के वजूद से डरकर उन्होंने अपनी तरफ तवज्जो देनी शुरू कर दी होगी। जी कतई नहीं। वो तो पहले से भी ज्यादा मैली रहने लगीं। पहले से भी ज्यादा खातीं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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लिहाफ - by neerathemall - 09-12-2019, 03:25 PM
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RE: लिहाफ - by sri7869 - 31-03-2024, 12:53 PM



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