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Misc. Erotica लिहाफ
#29
शबनम भैया को अपनी तीखी मस्कारा लगी ऑंखों से घूर रही थी। भैया मंत्र-मुग्ध सन्नाटे में उसे तक रहे थे। एक करंट उन दोनों के दरमियान दौड रहा था। भाभी इस करंट से कटी हुई जैसे कोसों दूर खडी थी। उसका फुदकता हुआ पेट सहमकर रुक गया। हँसी ने उसके होंठों पर लडखडाकर दम तोड दिया। उसके हाथ ढीले हो गए। प्लेट के पापड घास पर गिरने लगे। फिर एकदम वो दोनों जाग पडे और ख्वाबों की दुनिया से लौट आए।
शबनम फुदककर मुंडेर पर चढ गई। 'आइए चाय पी लीजिए, मैंने ठहरी हुई फिजाँ को धक्का देकर आगे खिसकाया।
एक लचक के साथ शबनम ने अपने पैर मुंडेर के उस पार से इस पार झुलाए। शबनम का रंग पिघले हुए सोने की तरह लौ दे रहा था। उसके बाल स्याह भौंरा थे। मगर ऑंखें जैसे स्याह कटोरियों में किसी ने शहद भर दिया हो। नीबू के रंग के ब्लाउज का गला बहुत गहरा था। होंठ तरबूजी रंग के और उसी रंग की नेल पॉलिश लगाए वो बिलकुल किसी अमेरिकी इश्तिहार का मॉडल मालूम हो रही रही थी। भाभी से कोई फुट भर लंबी लग रही थी, हालाँकि मुश्किल से दो इंच ऊँची होगी। उसकी हड्डी बडी नाजुक थी। इसलिए कमर तो ऐसी कि छल्ले में पिरो लो।
भैया कुछ गुमसुम से बैठे थे। भाभी उन्हें कुछ ऐसे ताक रही थी जैसे बिल्ली पर तौलते हुए परिंदे को घूरती है कि जैसे ही पर फडफडाए बढकर दबोच ले। उसका चेहरा तमतमा रहा था, होंठ भिंचे हुए थे, नथुने फडफडा रहे थे।
इतने में मुन्ना आकर उसकी पीठ पर धम्म से कूदा। वो हमेशा उसकी पीठ पर ऐसे ही कूदा करता था जैसे वो गुदगुदा-सा तकिया हो। भाभी हमेशा ही हँस दिया करती थी मगर आज उसने चटाख-चटाख दो-चार चाँटे जड दिए।
शबनम परेशान हो गई।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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लिहाफ - by neerathemall - 09-12-2019, 03:25 PM
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RE: लिहाफ - by sri7869 - 31-03-2024, 12:53 PM



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