09-12-2019, 03:54 PM
इस्मत का अपना अंजाम भी अगर कुछ इसी तौर पर हुआ और मैं उसे देखने के लिए ज़िन्दा रहा तो मुझे कोई ताज्जुब न होगा.
इस्मत से मिलते-जुलते मुझे पांच-छह बरस हो गये हैं. दोनों की आतिशगीर और भक से उड़ जाने वाली तबीयत के पेशे-नज़र एहतिमाल तो इसी बात का था कि सैकड़ों लड़ाइयां होतीं, मगर ताज्जुब है कि इस दौरान में सिर्फ़ एक बार चख़ हुई, और वह भी हल्की-सी.
शाहिद और इस्मत के मदऊ करने पर मैं और मेरी बीवी सफ़िया दोनों (बम्बई मुज़ाफ़ात में एक के जगह जहां शाहिद बॉम्बे टॉकीज की मुलाज़मत के दौरान में मुक़ीम था) गये हुए थे. रात का खाना खाने के बाद बातों-बातों में शाहिद ने कहा, ‘‘मण्टो, तुमसे अब भी ज़बान की गलतियां हो जाती हैं.’’
इस्मत से मिलते-जुलते मुझे पांच-छह बरस हो गये हैं. दोनों की आतिशगीर और भक से उड़ जाने वाली तबीयत के पेशे-नज़र एहतिमाल तो इसी बात का था कि सैकड़ों लड़ाइयां होतीं, मगर ताज्जुब है कि इस दौरान में सिर्फ़ एक बार चख़ हुई, और वह भी हल्की-सी.
शाहिद और इस्मत के मदऊ करने पर मैं और मेरी बीवी सफ़िया दोनों (बम्बई मुज़ाफ़ात में एक के जगह जहां शाहिद बॉम्बे टॉकीज की मुलाज़मत के दौरान में मुक़ीम था) गये हुए थे. रात का खाना खाने के बाद बातों-बातों में शाहिद ने कहा, ‘‘मण्टो, तुमसे अब भी ज़बान की गलतियां हो जाती हैं.’’
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.