07-12-2019, 07:49 PM
तब दीपा तरुण के कानों में फुसफुसाई, " पर बाबा, यह तुम्हारा लण्ड इतना मोटा और लंबा एक घोड़े के लण्ड जैसा है। मेरी चूत का छेद तो छोटा सा है। उसमें कैसे डालोगे? अगर तुमने डाल भी दिया और जल्दबाजी की तो मैं तो मर ही जाऊंगी। ज़रा ध्यान रखना। मुझे मार मत डालना। और फिर दीपा ने तरुण को अपनी बाहों में इतना सख्त जकड़ा और इतने जोश से उसे चुबन करने लगी और तरुण की जीभ को चूसने लगी की मैं तो देखता ही रह गया।
तरुण ने तब दीपा को ढाढस देते हुए कहा, "आप ज़रा भी चिंता मत करो। मैं ध्यान रखूँगा।" उस बार मैंने अपनी पत्नी का पर पुरुष गामिनी वाला पहलु पहली बार देखा। तब तक मैं उसे निष्ठावान, पतिव्रता और रूढ़िवादी मानता रहा था। आज उसने मुझे अपने वह पहलु के दर्शन दिए जो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। पर हाँ, उसे यहां तक लाने में मेरा पूरा योगदान था।
तरुण खड़ा हो कर अपना लण्ड लहराता हुआ एक अलमारी की और गया और उसमें से उसने एक बोतल निकाली। बोतल में कोई आयल था। तरुण ने उसे अपने लण्ड पर लगाया और दीपा की चूत में भी उसे उदारता से लगाया। फिर बोतल को बाजू में टेबल पर रख कर तरुण ने ध्यान से अपने मोटे और लम्बे लण्ड को दीपा के प्रेम छिद्र के केंद्र में रखा। फिर उसे उसकी चूत के होठों पर प्यार से रगड़ने लगा। मेरी पत्नी की नाली में से तो जैसे रस की धार बह रही थी। तरुण का बड़ा घंटा भी तो रस बहा रहा था। तरुण का डंड़ा तब सारे रस से सराबोर लथपथ था। उसने धीरे से अपने लण्ड को दीपा की चूत में थोड़ा घुसाया। दीपा ने भी तरुण के लण्ड को थोड़ा अंदर घुसते हुए महसूस किया। उसे कोई भी दर्द महसूस नहीं हुआ। तरुण की आँखे हर वक्त दीपा के चेहरे पर टिकी हुयी थीं। कहीं दीपा के चहेरे पर थोड़ी सी भी दर्द की शिकन आए तो वह थम जाएगा, यही वह सोच रहा था।
तरुण ने तरुण ने थोड़ा और धक्का दे कर अपना लण्ड दीपा की चूत में थोड़ा और घुसेड़ा। अब दीपा को तरुण के लण्ड की मोटाई महसूस होने लगी। फिर भी उसको ज्यादा दर्द नहीं हो रहा था। तरुण ने जब अपना लण्ड थोड़ा और जोर से दीपा की चूत में धकेला तो दीपा के मुंह से आह निकल पड़ी।
दीपा की आह सुनकर तरुण थोड़ी देर थम गया। उसने धीरे से अपना लण्ड थोड़ा निकाला। दीपा को थोड़ी सी राहत हुयी। तब उसकी बात सुन कर मैं तो भौचका ही रह गया। उसने तरुण से कहा, "डालो अंदर। दर्द तो हो रहा है पर यह दर्द भी मीठा है।"
दीपा कि बात सुन कर मैं भौंचक्का सा हो गया। तरुण ने अपना पेंडू से थोड़ा धक्का दिया और अपने बड़े लण्ड को थोड़ा और घुसेड़ा। दीपा ने अपनी आँख सख्ती से भींच ली थी। उसको कितना दर्द हो रहा होगा यह दिख रहा था। पर वह कुछ नहीं बोली और अपने हाथ से तरुण की कमर को खिंच रही थी और यह इशारा कर रही थी की तरुण अपना लण्ड और अंदर डाले, रुके नहीं।
तरुण बड़े असमंजस में था। उसने धीरे धीरे एक बार अपना लण्ड दीपा की चूत में थोड़ा अंदर घुसेड़ा तो थोड़ा बाहर निकाला। इस तरह धीरे धीरे और अंदर घुसाता गया। मैं समझता हूँ की उस समय दीपा की चूत की दिवार अपने चरम पर खिंच चुकी होगी।
तरुण का मोटा लण्ड लगभग आधा अंदर जा चूका था। मेरी बीबी की चूत के दोनों होठ पुरे फुले हुए थे और तरुण के लौड़े को बड़ी सख्ती से अपने में जकड़ा हुआ था। तरुण के लण्ड और दीपा की चूत के मिलन सतह पर चारों और उनके रस की मलाई फैली हुई थी। ऐसे लग रहा था जैसे एक पिस्टन सिलिंडर से अंदर बाहर होता है तब चारो और आयल फैला हुआ होता है।
मुझे तरुण के मोटे लौड़े को दीपा की छोटी सी चूत में जकड़ा हुआ देख कर आश्चर्य और उत्तेजना दोनों हुए। जैसे एक गुब्बारेको उसकी क्षमता से ज्यादा खिंच कर उंगली पर लपेटने से उसकी चमड़ी कितनी पतली हो जाती है और अगर और ज्यादा खींचा जाए तो फट जाती है, ठीक वैसे ही, मेरी प्यारी बीवी की चूत की चमड़ी एकदम पतली हो गयी हो ऐसे दिखती थी और मुझे डर था की कहीं वह फट न जाय और खून न बहने लगे।
तरुण ने एक और धक्का दिया और मेरे देखते ही देखते उसका तीन चौथाई लण्ड अंदर चला गया। दीपा के ललाट से पसीने की बूंदें टपकने लगीं। पर उस बार दीपा ने एक भी आह न निकाली। उसे काफी दर्द हो रहा होगा यह मैं उसके चेहरे के भाव अभिव्यक्ति से अनुभव कर रहा था। वैसे भी, दीपा जब मुझसे भी चुदाई करवाती थी तब भी हमेशा उसे थोड़ी सी परेशानी जरूर महसूस होती थी। खास कर तब जब वह मूड मैं नहीं होती थी, उसकी चूत सुखी होती थी और वह चुदाई करवाते परेशान हो जाती थी।
तरुण का लौड़ा तो मेरे से काफी मोटा था। परेशानी तो उसे जरूर हुयी होगी। पर उसकी चूत रस से सराबोर थी। उपरसे तरुण का लौड़ा भी चिकनाई से लथपथ था। उसे दर्द तो हुआ पर शायद उतना नहीं जितना हो सकता था। पर मैंने देखा की तरुण के मोटे और लंबे लण्ड के धीरे धीरे अंदर बहार होने से अब मेरी बीबी की कामुकता बढ़ रही थी और उसी अनुपात में उसका दर्द उसे मीठा लगने लगा था। धीरे धीरे अंदर बहार करते हुए तरुण ने जब देखा की अब दीपा काम क्रीड़ा के मज़े लेने लगी है तो एक थोड़े जोर का धक्का दे कर उस ने अपना पूरा लण्ड दीपा की संकड़ी चूत में पेल दिया।
मेरी प्यारी बीवी के मुंह से एक जोरों की चीख निकल गयी। तरुण एकदम रुक गया और जैसे ही अपना लौड़ा निकाल ने लगा था, की दीपा बोल पड़ी, "तरुण मत रुको। मुझे यह दर्द बहुत अच्छा लग रहा है। अब तुम मुझे बगैर रुके चोदो। मेरे दर्द की परवाह मत करो। मैं जानती हूँ यह दर्द जल्द ही गायब हो जायगा और अगर तुम थम गए तो मेरी कामाग्नि की भूख मैं सहन कर नहीं पाऊंगी। मैं बहोत गरम हो चुकी हूँ। सच कहती हूँ, जब जब तुम मुझे छेड़ते थे तो मैं बहोत गरम हो जाती थी। उस समय अगर तुमने और थोड़ी ज्यादा जबरदस्ती की होती तो मैं तुम्हें मुझे चोदने से नहीं रोक पाती। इस लिए नहीं की तुम मुझसे ज्यादा ताकतवर थे, पर इस लिए की तुम ने मुझे इतना गरम कर दिया था मैं सारी मर्यादाओं को तोड़कर तुमसे चुदवाने के लिए मजबूर हो जाती। अब जब कोई बंधन और मर्यादा नहीं है तो मैं तुमसे बिना थमे चुदना चाहती हूँ।"
मेरी शर्मीली पत्नी का रम्भा रूप या अभद्र भाषा में कहें तो छिनाल रूप तब मैंने देखा। अब तरुण से मेरी बीबी बेझिझक चुदना चाहती थी। यह मेरी वही पत्नी थी जो तरुण के नजदीक आने से भी डरती थी और एक नागिन की तरह तरुण को अपना गुस्सा और फुंफकार दिखा कर उसे दूर रखती थी।
दीपा के चूत में तरुण के लण्ड का घुसना और बादमें अंदर बाहर होने का दृश्य मेरे लिए कोई अद्भुत दृश्य से कम नहीं था। एक बड़ा रबर का चिकनाहट से लोथपोथ गोरे रंग का मोटा और लंबा रस्सा जैसे मेरी बीबी की चूत के अंदरबाहर हो रहा था और दीपा की चूत की त्वचा उस रस्से के आसपास सख्ती से चिपकी हुई थी और तरुण के लण्ड के अंदर बाहर होने से चूत की गहराइयों में कभी वह चूत के अंदर चली जाती थी तो कभी तरुण के लण्ड के वापस बाहर निकालने के समय बाहर निकल आती थी। मैंने पहले कभी किसी मर्द औरत को चुदाई करते हुए देखा नहीं था। मेरे लिए यह पहला मौक़ा था। और मैं अपनी पत्नी को ही मेरे ही दोस्त से चुदाई करवाते हुए देख रहा था।
जैसे जैसे तरुण ने अपनी चोदने की गति बढ़ायी वैसे ही दीपा का दर्द उसकी कामाग्नि में जल कर राख हो गया अब वह अग्नि दीपा के बदन को वासना से जला रही थी। मेरी पत्नी की चुदाई की भूख बढ़ती ही जा रही थी। वह उँह... उँह...की उंह्कार देती हुयी चुदवाने का मजा ले रही थी। जैसे ही तरुण दीपा की चूत में जोर का धक्का देता था वैसे ही दीपा के मुंह से अनायास ही उँह की आवाज निकल जाती थी। अचानक दीपा ने तरुण को थमने का इशारा किया और मुझे एक तकिया अपने कूल्हे के नीचे रखने को कहा।
मैंने फ़टाफ़ट एक तकिया मेरी बीबी की गाँड़ के नीचे रखा। दीपा ने तरुण का मुंह अपने दोनों हाथों में पकड़ा और उसका लण्ड अपनी चूत में रखे रहते हुए तरुण को पुरे जोश से अपनी बाँहों में लिया। उसने तरुण के होठों से अपने होंठ भिड़ा दिए और एक अगाढ़ चुम्बन मैं तरुण और दीपा जकड गए। तरुण की जीभ को दीपा ने अपने मुंह में लिया और उसे चूसने लगी। उसने फिर तरुण को उसकी जीभ अपने मुंह में अंदर बाहर करने का इशारा किया। मुझे ऐसे लगा जैसे दीपा अपना मुंह भी तरुण की जीभ से चुदवाना चाहती थी। तरुण को तो जैसे सातवाँ आसमान मिल गया। वह अपने लण्ड से दीपा की चूत के साथ साथ दीपा का मुंह अपनी जिह्वा से चोदने लगा।
धीरे धीरे तरुण ने दीपा की चूत में हलके से धक्के मारने के बजाय जोर से धक्के मारने शुरू किये। तरुण का लंड दीपा की चूत में कोई ज्यादा कष्ट नहीं दे रहा था। जैसे जैसे वह आसानी से दीपा की चूत में घुस रहा था वैसे तरुण के झटके और शक्ति शाली होते गए। लगभग तीन चौथाई लण्ड डालने के बाद तरुण एक ऐसा जबरदस्त धक्का मार कर अपना लण्ड दीपा की चूत में जोर से घुसाता था की दीपा का पूरा बदन हिल जाता था। पर दीपा तरुण के ऐसे धक्कों को बहुत एन्जॉय कर रही थी ऐसा उसके चेहरे से लगता था।
दीपा अपने कूल्हे को उठा उठा कर तरुण के लण्ड के एक एक धक्के को अपने अंदर पूरी तरह से घुसड़वा रही थी। उसदिन दीपा तरुण के लण्ड को अपने बदन की वह गहराईयों तक ले जाना चाहती थी जहां उसका पति भी नहीं पहुँच पाया था। अपनी वासना की धधकती आग में जलते हुए मेरी बीबी ने तब तरुण को मेरे सुनते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा, "तरुण आज पूरी रात तुम मुझे एक रंडी की तरह चोदो। यह मत सोचो की मैं तुम्हारी भाभी हूँ। तुम यह सोचो की मैं तुम्हारी चोरी छुपी से मिलने वाली प्रियतमा हूँ, जिसे तुम सालों से चोदना चाहते थे। आज अचानक मैं तुम्हारे हाथ लग गयी हूँ और तुम मुझे ऐसा चोदो की जैसा तुमने टीना को कभी नहीं चोदा।"
तरुण ने तब दीपा को ढाढस देते हुए कहा, "आप ज़रा भी चिंता मत करो। मैं ध्यान रखूँगा।" उस बार मैंने अपनी पत्नी का पर पुरुष गामिनी वाला पहलु पहली बार देखा। तब तक मैं उसे निष्ठावान, पतिव्रता और रूढ़िवादी मानता रहा था। आज उसने मुझे अपने वह पहलु के दर्शन दिए जो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। पर हाँ, उसे यहां तक लाने में मेरा पूरा योगदान था।
तरुण खड़ा हो कर अपना लण्ड लहराता हुआ एक अलमारी की और गया और उसमें से उसने एक बोतल निकाली। बोतल में कोई आयल था। तरुण ने उसे अपने लण्ड पर लगाया और दीपा की चूत में भी उसे उदारता से लगाया। फिर बोतल को बाजू में टेबल पर रख कर तरुण ने ध्यान से अपने मोटे और लम्बे लण्ड को दीपा के प्रेम छिद्र के केंद्र में रखा। फिर उसे उसकी चूत के होठों पर प्यार से रगड़ने लगा। मेरी पत्नी की नाली में से तो जैसे रस की धार बह रही थी। तरुण का बड़ा घंटा भी तो रस बहा रहा था। तरुण का डंड़ा तब सारे रस से सराबोर लथपथ था। उसने धीरे से अपने लण्ड को दीपा की चूत में थोड़ा घुसाया। दीपा ने भी तरुण के लण्ड को थोड़ा अंदर घुसते हुए महसूस किया। उसे कोई भी दर्द महसूस नहीं हुआ। तरुण की आँखे हर वक्त दीपा के चेहरे पर टिकी हुयी थीं। कहीं दीपा के चहेरे पर थोड़ी सी भी दर्द की शिकन आए तो वह थम जाएगा, यही वह सोच रहा था।
तरुण ने तरुण ने थोड़ा और धक्का दे कर अपना लण्ड दीपा की चूत में थोड़ा और घुसेड़ा। अब दीपा को तरुण के लण्ड की मोटाई महसूस होने लगी। फिर भी उसको ज्यादा दर्द नहीं हो रहा था। तरुण ने जब अपना लण्ड थोड़ा और जोर से दीपा की चूत में धकेला तो दीपा के मुंह से आह निकल पड़ी।
दीपा की आह सुनकर तरुण थोड़ी देर थम गया। उसने धीरे से अपना लण्ड थोड़ा निकाला। दीपा को थोड़ी सी राहत हुयी। तब उसकी बात सुन कर मैं तो भौचका ही रह गया। उसने तरुण से कहा, "डालो अंदर। दर्द तो हो रहा है पर यह दर्द भी मीठा है।"
दीपा कि बात सुन कर मैं भौंचक्का सा हो गया। तरुण ने अपना पेंडू से थोड़ा धक्का दिया और अपने बड़े लण्ड को थोड़ा और घुसेड़ा। दीपा ने अपनी आँख सख्ती से भींच ली थी। उसको कितना दर्द हो रहा होगा यह दिख रहा था। पर वह कुछ नहीं बोली और अपने हाथ से तरुण की कमर को खिंच रही थी और यह इशारा कर रही थी की तरुण अपना लण्ड और अंदर डाले, रुके नहीं।
तरुण बड़े असमंजस में था। उसने धीरे धीरे एक बार अपना लण्ड दीपा की चूत में थोड़ा अंदर घुसेड़ा तो थोड़ा बाहर निकाला। इस तरह धीरे धीरे और अंदर घुसाता गया। मैं समझता हूँ की उस समय दीपा की चूत की दिवार अपने चरम पर खिंच चुकी होगी।
तरुण का मोटा लण्ड लगभग आधा अंदर जा चूका था। मेरी बीबी की चूत के दोनों होठ पुरे फुले हुए थे और तरुण के लौड़े को बड़ी सख्ती से अपने में जकड़ा हुआ था। तरुण के लण्ड और दीपा की चूत के मिलन सतह पर चारों और उनके रस की मलाई फैली हुई थी। ऐसे लग रहा था जैसे एक पिस्टन सिलिंडर से अंदर बाहर होता है तब चारो और आयल फैला हुआ होता है।
मुझे तरुण के मोटे लौड़े को दीपा की छोटी सी चूत में जकड़ा हुआ देख कर आश्चर्य और उत्तेजना दोनों हुए। जैसे एक गुब्बारेको उसकी क्षमता से ज्यादा खिंच कर उंगली पर लपेटने से उसकी चमड़ी कितनी पतली हो जाती है और अगर और ज्यादा खींचा जाए तो फट जाती है, ठीक वैसे ही, मेरी प्यारी बीवी की चूत की चमड़ी एकदम पतली हो गयी हो ऐसे दिखती थी और मुझे डर था की कहीं वह फट न जाय और खून न बहने लगे।
तरुण ने एक और धक्का दिया और मेरे देखते ही देखते उसका तीन चौथाई लण्ड अंदर चला गया। दीपा के ललाट से पसीने की बूंदें टपकने लगीं। पर उस बार दीपा ने एक भी आह न निकाली। उसे काफी दर्द हो रहा होगा यह मैं उसके चेहरे के भाव अभिव्यक्ति से अनुभव कर रहा था। वैसे भी, दीपा जब मुझसे भी चुदाई करवाती थी तब भी हमेशा उसे थोड़ी सी परेशानी जरूर महसूस होती थी। खास कर तब जब वह मूड मैं नहीं होती थी, उसकी चूत सुखी होती थी और वह चुदाई करवाते परेशान हो जाती थी।
तरुण का लौड़ा तो मेरे से काफी मोटा था। परेशानी तो उसे जरूर हुयी होगी। पर उसकी चूत रस से सराबोर थी। उपरसे तरुण का लौड़ा भी चिकनाई से लथपथ था। उसे दर्द तो हुआ पर शायद उतना नहीं जितना हो सकता था। पर मैंने देखा की तरुण के मोटे और लंबे लण्ड के धीरे धीरे अंदर बहार होने से अब मेरी बीबी की कामुकता बढ़ रही थी और उसी अनुपात में उसका दर्द उसे मीठा लगने लगा था। धीरे धीरे अंदर बहार करते हुए तरुण ने जब देखा की अब दीपा काम क्रीड़ा के मज़े लेने लगी है तो एक थोड़े जोर का धक्का दे कर उस ने अपना पूरा लण्ड दीपा की संकड़ी चूत में पेल दिया।
मेरी प्यारी बीवी के मुंह से एक जोरों की चीख निकल गयी। तरुण एकदम रुक गया और जैसे ही अपना लौड़ा निकाल ने लगा था, की दीपा बोल पड़ी, "तरुण मत रुको। मुझे यह दर्द बहुत अच्छा लग रहा है। अब तुम मुझे बगैर रुके चोदो। मेरे दर्द की परवाह मत करो। मैं जानती हूँ यह दर्द जल्द ही गायब हो जायगा और अगर तुम थम गए तो मेरी कामाग्नि की भूख मैं सहन कर नहीं पाऊंगी। मैं बहोत गरम हो चुकी हूँ। सच कहती हूँ, जब जब तुम मुझे छेड़ते थे तो मैं बहोत गरम हो जाती थी। उस समय अगर तुमने और थोड़ी ज्यादा जबरदस्ती की होती तो मैं तुम्हें मुझे चोदने से नहीं रोक पाती। इस लिए नहीं की तुम मुझसे ज्यादा ताकतवर थे, पर इस लिए की तुम ने मुझे इतना गरम कर दिया था मैं सारी मर्यादाओं को तोड़कर तुमसे चुदवाने के लिए मजबूर हो जाती। अब जब कोई बंधन और मर्यादा नहीं है तो मैं तुमसे बिना थमे चुदना चाहती हूँ।"
मेरी शर्मीली पत्नी का रम्भा रूप या अभद्र भाषा में कहें तो छिनाल रूप तब मैंने देखा। अब तरुण से मेरी बीबी बेझिझक चुदना चाहती थी। यह मेरी वही पत्नी थी जो तरुण के नजदीक आने से भी डरती थी और एक नागिन की तरह तरुण को अपना गुस्सा और फुंफकार दिखा कर उसे दूर रखती थी।
दीपा के चूत में तरुण के लण्ड का घुसना और बादमें अंदर बाहर होने का दृश्य मेरे लिए कोई अद्भुत दृश्य से कम नहीं था। एक बड़ा रबर का चिकनाहट से लोथपोथ गोरे रंग का मोटा और लंबा रस्सा जैसे मेरी बीबी की चूत के अंदरबाहर हो रहा था और दीपा की चूत की त्वचा उस रस्से के आसपास सख्ती से चिपकी हुई थी और तरुण के लण्ड के अंदर बाहर होने से चूत की गहराइयों में कभी वह चूत के अंदर चली जाती थी तो कभी तरुण के लण्ड के वापस बाहर निकालने के समय बाहर निकल आती थी। मैंने पहले कभी किसी मर्द औरत को चुदाई करते हुए देखा नहीं था। मेरे लिए यह पहला मौक़ा था। और मैं अपनी पत्नी को ही मेरे ही दोस्त से चुदाई करवाते हुए देख रहा था।
जैसे जैसे तरुण ने अपनी चोदने की गति बढ़ायी वैसे ही दीपा का दर्द उसकी कामाग्नि में जल कर राख हो गया अब वह अग्नि दीपा के बदन को वासना से जला रही थी। मेरी पत्नी की चुदाई की भूख बढ़ती ही जा रही थी। वह उँह... उँह...की उंह्कार देती हुयी चुदवाने का मजा ले रही थी। जैसे ही तरुण दीपा की चूत में जोर का धक्का देता था वैसे ही दीपा के मुंह से अनायास ही उँह की आवाज निकल जाती थी। अचानक दीपा ने तरुण को थमने का इशारा किया और मुझे एक तकिया अपने कूल्हे के नीचे रखने को कहा।
मैंने फ़टाफ़ट एक तकिया मेरी बीबी की गाँड़ के नीचे रखा। दीपा ने तरुण का मुंह अपने दोनों हाथों में पकड़ा और उसका लण्ड अपनी चूत में रखे रहते हुए तरुण को पुरे जोश से अपनी बाँहों में लिया। उसने तरुण के होठों से अपने होंठ भिड़ा दिए और एक अगाढ़ चुम्बन मैं तरुण और दीपा जकड गए। तरुण की जीभ को दीपा ने अपने मुंह में लिया और उसे चूसने लगी। उसने फिर तरुण को उसकी जीभ अपने मुंह में अंदर बाहर करने का इशारा किया। मुझे ऐसे लगा जैसे दीपा अपना मुंह भी तरुण की जीभ से चुदवाना चाहती थी। तरुण को तो जैसे सातवाँ आसमान मिल गया। वह अपने लण्ड से दीपा की चूत के साथ साथ दीपा का मुंह अपनी जिह्वा से चोदने लगा।
धीरे धीरे तरुण ने दीपा की चूत में हलके से धक्के मारने के बजाय जोर से धक्के मारने शुरू किये। तरुण का लंड दीपा की चूत में कोई ज्यादा कष्ट नहीं दे रहा था। जैसे जैसे वह आसानी से दीपा की चूत में घुस रहा था वैसे तरुण के झटके और शक्ति शाली होते गए। लगभग तीन चौथाई लण्ड डालने के बाद तरुण एक ऐसा जबरदस्त धक्का मार कर अपना लण्ड दीपा की चूत में जोर से घुसाता था की दीपा का पूरा बदन हिल जाता था। पर दीपा तरुण के ऐसे धक्कों को बहुत एन्जॉय कर रही थी ऐसा उसके चेहरे से लगता था।
दीपा अपने कूल्हे को उठा उठा कर तरुण के लण्ड के एक एक धक्के को अपने अंदर पूरी तरह से घुसड़वा रही थी। उसदिन दीपा तरुण के लण्ड को अपने बदन की वह गहराईयों तक ले जाना चाहती थी जहां उसका पति भी नहीं पहुँच पाया था। अपनी वासना की धधकती आग में जलते हुए मेरी बीबी ने तब तरुण को मेरे सुनते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा, "तरुण आज पूरी रात तुम मुझे एक रंडी की तरह चोदो। यह मत सोचो की मैं तुम्हारी भाभी हूँ। तुम यह सोचो की मैं तुम्हारी चोरी छुपी से मिलने वाली प्रियतमा हूँ, जिसे तुम सालों से चोदना चाहते थे। आज अचानक मैं तुम्हारे हाथ लग गयी हूँ और तुम मुझे ऐसा चोदो की जैसा तुमने टीना को कभी नहीं चोदा।"