07-12-2019, 07:45 PM
मैंने हलके से दीपा की सुंदरता को ढकने के प्रयास करते हुए दीपा के दोनों हाथ उसकी चूत और स्तनों पर से हटा लिए। मैं अपने सपने में ही यह दृश्य की कल्पना कर सकता था। जो मेरे सामने भी ऐसी नंगी खड़ी होने में शर्माती थी वह मेरी बीबी उस रात मेरे और तरुण के सामने समूर्ण नग्न खड़ी हुई रति के सामान खूबसूरती, कामुकता , नजाकत और स्त्री सुलभ लज्जा का एक अद्भुत संगम सी दिख रही थी। यह उसका पहला अनुभव था जब वह अपने पति के अलावा किसी और व्यक्ति के सामने नंगी खड़ी थी।
तरुण और मैं दोनों दीपा के कमसिन जिस्म को देखते ही रह गए। हालाँकि मैंने कई बार मेरी पत्नीको निर्वस्त्र देखा था, परंतु उस रात वह जैसे मत्स्यांगना की तरह अद्भुत सुन्दर लग रही थी। तरुण ने दीपा को बड़ी तेज नजर से ऊपर से नीचे तक, आगे, पीछे सब तरफ से घूर कर देखने लगा। मेरी पत्नी शर्म से पानी पानी हुयी जा रही थी। एक तरफ वह अब अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार हो रही थी तो दूसरी और स्त्री सहज लज्जा उसे मार रही थी। वह अपनी नजर फर्श पर गाड़े हुए ऐसे खड़ी थी जैसे कोई अद्भुत शिल्पकार ने एकसुन्दर नग्न स्त्री की मूर्ति बना कर वहां रक्खी हो।
शायद कहीं ना कहीं उसके मन में यह जूनून था की वह कभी ना कभी तरुण को अपना यह रूप जरूर दिखाएगी ताकि तरुण को पता लगे की दीपा भी टीना से अगर ज्यादा नहीं तो कम सेक्सी भी नहीं थी। टीना की वह बिकिनी में मुश्किल से अपने सेक्सी बदन को छुपाती हुई तस्वीरों को देखकर अपने मन ही मन में दीपा की स्त्री सहज जलन का यह शायद रोमांचक नतीजा था।
तरुण बेचारा भौंचक्का सा दीपा के नग्न बदन को देखता ही रहा। उसका मुंह खुला का खुला ही रह गया। जिसके नंगे बदन की कल्पना वह दिन रात सपनों में करता रहता था, वह उसके सामने नग्न खड़ी थी। तरुण ने दीपा का अर्ध नग्न बदन तो कई बार देखा था पर पूरा अनावृत बदन अपनी पूरी छटा में पहली बार उसने देखा और उसके चेहरे के भाव से लग रहा था की दीपा का साक्षात नंगा बदन उसकी कल्पना से भी कई गुना सुन्दर उसको लगा।
तरुण नंगी खड़ी हुई दीपा को देखता ही रह गया। दीपा की गालों, कंधे और छाती पर बिखरे हुए केश दीपा के उन्मत्त गुम्बज के सामान फुले हुए पर बिनाझुके खड़े हुए और दो चोटियों के सामान निप्पलों से आच्छादित स्तन मण्डल को छुपाने में असमर्थ थे। उस रोशनी में भी दीपा की स्तनों की चोटियों की चारों और फैली हुई एरोला अद्भुत कामुक लग रही थीं। दीपा के स्तनों की एरोला में कई फुंसियां खड़ी थीं जो दीपा की उत्तेजना की चुगली खा रहीं थीं।
दीपा की कमर ऐसे लग रही थी जैसे दो पर्वतों के बिच में खाई हो। उसके उरोज से उसकी कमर का उतार और फिर उसकी कमर से कूल्हों का उभार इतना रोमांचक और अद्भुत था की देखते ही बनता था। उसके सर को छोड़ कहीं बाल का एक तिनका भी नहीं था। उसके दो पांव के बिच में उसकी चूत का उभार कोई भी शरीफ आदमी का ईमान खराब कर देने वाला था। उसकी चूत के होठ एकदम साफ़ और सुन्दर गुलाब की पंखुड़ियों की तरह थे। उसकी चूत में से रस चू रहा था। वह दीपा के हालात को बयाँ रहा था।
तरुण ने आगे बढ़कर दीपा को अपनी बाहों में लिया। तरुण ने अपने बदन से दीपा का नग्न बदन चिपका कर दीपा को कहा, "दीपा भाभी, आज मैं सौगंध खा कर कहता हूँ की मैंने इतनी सारी लडकियां और औरतें के बदन देखे हैं, पर आपका सा सेक्सी बदन मैंने नहीं देखा।"
दीपा ने शर्माते हुए धीमी दबी हुई कहा, "अच्छा जनाब? झूठ मत बोलो। तुम तो दीपक को कह रहे थे, मैं सुन्दर तो हूँ, पर टीना जैसी सेक्सी नहीं?"
दीपा की बात सुनकर तरुण आश्चर्य से मेरी और देखने लगा और बोला, "भाई, मैंने यह कब कहा? मैं यह सपने में भी नहीं कह सकता। भाभी, जिसे देख कर कोई भी मर्द का लण्ड खड़ा हो जाए और वह उसे चोदने के लिए बेचैन हो जाए उसीको सेक्सी कहते हैं। सेक्सी होना खूबसूरत होने से कहीं आगे है। टीना बेशक खूबसूरत और कुछ हद तक सेक्सी भी है, पर चाहे आप सीधी सी साडी पहनो चाहे जीन्स, आपको देख कर जो मेरे अंदर के हॉर्मोन्स कूदने लगते हैं ऐसा टीना के साथ कभी नहीं हुआ।"
मैं तरुण की बात सुनकर सकपका गया और बोला, "दीपा, मुझे माफ़ करना, तरुण ने ऐसा कभी नहीं कहा। वह तो तुम्हें बहकाने के लिए मैंने ही वह बात बना दी थी।"
दीपा ने टेढ़ी नजर कर मुझे कहा, "पता नहीं और भी कितनी सारी बातें तुमने मुझे उकसाने के लिए कही होंगी?"
उस रात मेरी शर्मीली पत्नी ने यह मन बना लिया था की आज वह मेरी और तरुण ख्वाहिश पूरी करेगी। वह तरुण की बाँहों में समां गयी और उस ने शर्म से अपनी आँखें झुका ली। तरुण को तो जैसे स्वर्ग मिल गया। वह अपने हाथोँ से दीपा के नंगे बदन को सहला रहा था। उसके दोनोँ हाथ दीपा के पीछे, उसकी रीढ़ की खाई में ऊपर नीचे हो रहे थे। कभी वह अपना हाथ दीपा के चूतड़ों के ऊपर रखता और दीपा की गाँड़ के गालों को दबाता, तो कभी अपनी उंगली को उस गाँड़ के होठों के बिच की दरार में डालता था। उसने मेरी पत्नीको इस हालात में देखने की कल्पना मात्र की थी। उसे यह मानना बड़ा अजीब लग रहा था की तब दीपा का वह बदन उसका होने वाला था।
तरुण नीचे झुक कर दीपा के पीछे गया। वह अपना सर ऊपर कर मेरी और देखते हुए बोला, "क्या मैं भाभी के कूल्हों को महसूस कर सकता हूँ? मैं कई महीनों से, जबसे मैंने दीपा भाभी को पहली बार देखा था तबसे इन कूल्हों को सहलाने के लिए तड़प रहा हूँ।"
दीपा पहले मुस्काई और फिर थोड़ा हीचकिचाते हुए मेरी और देखा। मैंने अपनी पलकें झुका और गर्दन हिला कर तरुण को अपनी अनुमति दे दी। तरुण ने अपने घुटनों पर बैठ कर तुरंत ही मेरी बीबी की सुडौल गाँड़ के दोनों गालों को चूमा और काफी देर तक चूमता ही रहा। दीपा की गाँड़ का घुमाव और उसकी वक्रता में तरुण अपनी जीभ घुसा कर उन्हें चूमने और अपने हाथों से सहलाने लगा। जब उसने दीपा की गाँड़ के छिद्र में अपनी जीभ घुसाई तो दीपा के बदन में कम्पन होने लगा। उस समय जरूर मेरी बीबी के सारे रोंगटे खड़े हो गए होंगे और सिहरन उसके पुरे बदन में फ़ैल गयी होगी, क्यूंकि मैं महसूस कर रहा था की वह मारे रोमांच के काँप रही थी।
मैं उन दोनो की और आगे बढ़ा। मैंने धीरे से तरुण को मेरी बीबी के बिलकुल सामने खड़ा किया और दीपा का हाथ तरुण की टांगों के बिच में रखा और उसके लण्ड को हिलाने के लिए उसे प्रेरित किया। दीपा मेरा इशारा समझ गयी और तरुण के लण्ड को उसके पाजामे के उपरसे सहलाने लगी। मैं धीरे से तरुण के पीछे गया और अपना हाथ तरुण की कमर के आसपास लपेटते हुए तरुण के पाजामे का नाड़ा मैंने खोल दिया।
तरुण पागल हुआ जा रहा था। जैसे ही उसका पाजामा फर्श पर गिरा तो उसका लंबा और मोटा लण्ड हवा में लहराने लगा। वह एकदम कड़क हो चूका था। वह बिलकुल बिना झुके अपना सर उठा के खड़ा हुआ था। ऐसे लग रहा था जैसे वह दीपा की चूत की और जाने को मचल रहा था। तरुण के नंगे होते ही दीपा की आँखें तरुण का लण्ड देख कर फटी की फटी ही रह गयीं। जिस तरह तरुण का लण्ड जो उसके पाजामे में गोल घूम कर समाया हुआ था वह पाजामें का बंधन खुलते ही जैसे एक अजगर या बड़ा साँप अपनी टोकरी में से सर निकालते हुए बाहर निकल कर शान से अपना फ़न फैलाता हुआ अकड़ कर खड़ा होता है वैसे ही एकदम दीपा की चूत के सामने खड़ा हो गया। तरुण के लण्ड की लम्बाई और मोटाई देख कर मेरी बीबी दो कदम पीछे हट गयी शायद उसे डर लगा की कहीं तरुण का इतना लंबा लण्ड इतनी दुरी से भी बिना कुछ जोर लगाए उसकी चूत में सीधा घुस ना जाए।
शायद उस समय पहली बार दीपा को तरुण के लण्ड की लम्बाई और मोटाई का सही सही अंदाज हुआ जो उसके पहले के अंदाज से कहीं ज्यादा चौंकाने वाला था। तरुण का लण्ड मेरे लण्ड से कहीं ज्यादा लंबा और मोटा भी था। जैसे ही तरुण का पाजामा नीचे गिरा दीपा का हाथ अनायास ही तरुण के लण्ड को छू गया। अब तक मेरी प्यारी बीबी ने कोई पराये मर्द का लण्ड देखा नहीं था। उसके लिए तो यह एक अजूबा सा था। इतना मोटा और लंबा लण्ड देख दीपा के चेहरे की भाव भंगिमा देखते ही बनती थी।
तरुण का लण्ड देखते ही बिना सोचे समझे दीपा के मुंह से आवाज निकल गयी, "बापरे! इतना बड़ा?" बोल कर वह चुप हो गयी। और कुछ बोल नहीं पायी।
दीपा ने तरुण का लण्ड देखने के बाद मेरी और देखा। मैं समझ गया की वह तरुण के लण्ड की लम्बाई और मोटाई, जो मेरे लण्ड से कहीं ज्यादा थी, से उत्तेजित हो रही थी। शायद उसे भी यह महसूस होगा की मैं भी यह देख कर छोटा महसूस ना करूँ।
तरुण का इतना तगड़ा लण्ड देखते ही मैंने देखा की अनायास ही मेरी बीबी ने अपनी दोनों टाँगे इकट्ठी कर लीं। वह क्या सोच रही थी, मैं उसकी कल्पना ही कर सकता था। शायद वह यह सोच रही होगी की कभी न कभी तो उस लण्ड को उसकी चूत में घुसना ही था। उस समय उसका क्या हाल होगा उसे कैसा महसूस होगा शायद वह यही सोच रही होगी। यह सोच कर थोड़ी देर के लिए दीपा जैसे ठिठक सी गयी। फिर दीपा ने से धीरे से तरुण का लण्ड अपने हाथ में लिया। वह अपनी मुठी में उसे पूरी तरह से ले न पायी, पर फिर भी उसने अपनी आधी मुठी से ही तरुण के लण्ड को सहलाना शुरू किया। वह शायद तरुण को कुछ सुकून देने के लिए उसके लण्ड को कुछ देर तक सहलाती रही।
तरुण ने वहां तक पहुँचने के लिए कितनी जहमत उठाई थी वह दीपा भली भाँती जानती थी। दीपा को पटाने के लिए तरुण ने क्या क्या नहीं किया? आखिर में जाकर उसने दीपा को पटा ही लिया।
तरुण का लण्ड हलकी सी रोशनी में भी चमक रहा था। तरुण की तरह उसका लण्ड भी गोरा था। उसकी पूरी गोलाई पर उसका पूर्व रस फैला हुआ था। चारों और से चिकनी मलाई फ़ैल जाने के कारण वह स्निग्ध दिख रहा था। सबसे खूबसूरत उसकी पूरी लंबाई पर बिछी हुयी रगें थीं। उसकी गोरी चमड़ी पर थोड़ी सी श्यामल रंग की नसोँ का जाल बिछा हुआ था। जिस वक्त दीपा ने तरुण का लण्ड अपने हाथ में लिया उसके लण्ड की चमड़ी के तले बिछी हुयी नसोँ में जैसे गरम खून का सैलाब फर्राटे मारता हुआ दौड़ने लगा। उसकी नसें फूल रही थीं। तरुण का लण्ड पूरी तरह अपनी चरम ताकत से खड़ा था।
तरुण के तने हुए लण्ड को देख दीपा के गाल एकदम लाल हो गए। उसे महसूस हुआ की वह अपने पति के मित्र के सामने नंग धड़ंग खड़ी थी और उसके पति का मित्र भी नंगा उसके सामने खड़ा था और अपने लंबे, मोटे लण्ड का प्रदर्शन कर रहा था। ऐसा वास्तव में हो सकेगा यह कभी उसने सोचा भी नहीं था। हाँ उसने कभी अपने सपने में ऐसा होने की उम्मीद जरूर की होगी।
दीपा के मुंह के भाव को तरुण समझ गया और उसने मेरी पत्नी को अपने आहोश में लेकर थोड़ा झुक कर पहले उसके गालोँ पर और फिर उसके होठों पर अपने होँठ रख दिए और वह दीपा को बेतहाशा चूमने लगा। दीपा को होठों पर चूमते चूमते थोड़ा और झुक कर तरुण दीपा के स्तनों को भी चूमने और चाटने लगा। दीपा से उसका जी नहीं भर रहा था।
मेरी निष्ठावान पत्नी भी तरुण से लिपट गयी और उसके होठों को चूसने और चूमने लगी। मुझे ऐसा लगा जैसे उसे अपनी कितने सालों की प्यास बुझाने का मौका मिल गया था। मेरी पत्नी और मेरा ख़ास दोस्त अब मेरे ही सामने एक दूसरे से ऐसे लिपटे हुए एक दूसरे को चुम्बन कर रहे थे जैसे काफी अरसे के बाद मिलन के लिए तड़पते हुए वह पति पत्नी या घनिष्ठ प्रेमी हों।
मैं उन दोनों को देखता ही रहा। उस वक्त कुछ क्षणों के लिए मेरे मनमे जरा सा ईर्ष्या का भाव आया। इस तरह का उन्मत्त चुम्बन करने के बाद, जब मेरी पत्नी ने मेरी और देखा तो वह मेरे मन के भावों को ताड़ गयी। वह तुरंत तरुण की बाँहों में से निकल कर मेरे पास आयी और मुझे अपनी बाँहों में लेने के लिए मेरी और देखने लगी।
मैंने तुरंत ही उसे अपनी बाहों में लिया, तब उसने तरुण भी सुन सके ऐसे कहा, "अपनी बीबी को किसी और मर्द की बाँहों में देख कर कुछ जलन सी हो रही है ना?"
मैं चुप रहा तो दीपा बोली, "यही तो मैं आपको समझाने की कशिश कर रही थी। मर्दों के लिए पत्नी को किसी गैर मर्द के साथ बाँटना उनके अहम् को आहत करता है, क्यूंकि वह अपनी पत्नी पर एक तरह से अधिपत्य यानी मालिकाना भाव रखते हैं। वैसी औरतों को कुछ हद तक ऐसा मालिकाना भाव अच्छा भी लगता है, पर सिर्फ कुछ हद तक। हालांकि आप में यह मालिकाना भाव उतना ज्यादा नहीं है। ठीक होता अगर आप मुझे और तरुण को एक दूसरे के करीबी जातीय संपर्क में आने के लिए ना उकसाते। पर यकीन मानो अगर आप ने यह किया है तो इससे कुछ नहीं बदलेगा। आप मेरे सर्वस्व हैं और हमेशा रहेंगे। आज कुछ भी हो जाए, मैं आप की ही हूँ और हमेशा रहूंगी। मैं आप के बिना अधूरी हूँ और आपके बिना रहने का सोच भी नहीं सकती। आप दुनिया के सर्वोत्तम पति हो यह मैं निसंकोच कह सकती हूँ।
आज मैं यह मानती हूँ की मेरे मन में तरुण के प्रति जातीय आकर्षण था। आपने भी शायद इसे भाँप लिया था। आप मुझे हमेशा तरुण के साथ सेक्स करने का अनुभव करने के लिए कहते रहे और उकसाते रहे। मैं उसका विरोध करती रही। आखिर में आपने और तरुण ने मिलकर मेरे तरुण के प्रति जातीय भाव को इतना भड़का दिया की मैं तरुण से चुदवाने के लिए तैयार हो गयी। आज रात आपने मेरे और तरुण के शारीरिक सम्भोग की व्यवस्था करही दी, और मुझे भी इतने सारे तिकड़म कर तैयार कर ही दिया। आपने जो किया वह आप नहीं करते तो मैं आज ऐसे यहाँ ना होती। यदि आप मुझे इसके लिये मजबूर न करते तो मैं कभी तरुण को अपने बदन को छूने भी नहीं देती। आज जो भी हो, मैं आपकी थी, आपकी हूँ और हमेशा आपकी रहूंगी। इसको कोई भी व्यक्ति बदल नहीं सकता।"
तरुण ने दीपा की बात सुनी और उसे अपने आहोश में लेते हुए तरुण ने मेरी और देखा और बोला, "दीपक, मैं ना कहता था की मेरी भाभी जितनी खूबसूरत और सेक्सी भी है उतनी ही समझदार भी है? कई औरतें जिनको मैंने चोदा, वह मुझसे शादी तक करने के लिए तैयार हो जाती थीं। पर भाभी ने आज एक मर्यादा की रेखा खिंच दी है और मैं उसका सम्मान करता हूँ। अब दीपा भाभी ने मन बना ही लिया है तो मुझे उनकी चमचागिरी करने की कोई जरुरत नहीं पर मैं यह कहना चाहता हूँ की आप बहुत ही खुशनसीब हो की आप को दीपा भाभी जैसी बीबी मिली। वह मेरी भाभी है और आप की बीबी है। मैंने तो उन्हें एक रात के लिए आप से उधार मांगा है।"
दीपा ने तब तरुण की और टेढ़ी नज़रों से देखा और पट से कहा, "क्यों भाई, जब तुम दोनों ने मुझे फँसा ही दिया है तो फिर एक रात के लिए ही क्यों? कहते हैं ना की खून एक करो या दस, फाँसी तो एक ही बार मिलनी है। तो फिर एक बार क्यों? अब तो तीर कमान से निकल चुका है। अब तो मैं जब मर्जी चाहे तरुण से चुदवाउंगी। मेरे पति को मुझे इसकी इजाजत देनी पड़ेगी।"
तरुण दीपा की बात सुनकर हँस पड़ा और बोला, "ना भाभी ना। आप तो टेम्पररी की बात कर रहे हो, मैं तो भैया को यह कहूंगा की अगर भगवान ना करे और आपकी और भाभी की लड़ाई हो जाए और ऐसी नौबत आ जाये की आप दोनों को तलाक़ लेना पड़े तो भाभी, मेरा खुला आमंत्रण है की आप दीपक को छोड़ मेरे साथ शादी कर लेना, मैं टीना को तलाक़ दे कर आपसे शादी करने के लिए तैयार हूँ।"
दीपा भी ताव में आ कर धीरे से बोली, "तरुण, यह शादी तलाक के चक्कर छोडो। तुम्हारा जब मन करे तुम आ जाना और हमारे साथ रहना। दीपक ना भी हो तो रात को चुपचाप आ जाना। सुबह होने से पहले चले जाना। तुम्ही ने तो कहा था ना की मैं तुम में और दीपक में फर्क ना समझूँ? तुम भी टीना में और मुझ में फर्क ना समझना। जब दीपक मुझसे ऊब जाएँ या जब तुम टीना से ऊब जाओ तब तुम मेरे पास आ जाना और दीपक को मैं टीना के पास भेज दूंगी। तलाक़ जैसी फ़ालतू चीज़ों के लफड़े में पड़ने की क्या जरुरत है? फिर जब तुम्हारा मन मुझसे भर जाए और दीपक का मन टीना से भर जाए तब वापस आ जाना।"
तरुण ने तालियां बजाते हुए कहा, "वाह मेरी भाभी वाह! क्या दिमाग पाया है? देखो भाई, कितना सटीक हल निकाला है भाभी ने? साला ऐसा आईडिया अपुन के दिमाग नहीं आया?" तरुण की सराहना सुनकर मेरी बीबी ने गर्व से सर ऊंचा कर मेरी और देखा।
तरुण और मैं दोनों दीपा के कमसिन जिस्म को देखते ही रह गए। हालाँकि मैंने कई बार मेरी पत्नीको निर्वस्त्र देखा था, परंतु उस रात वह जैसे मत्स्यांगना की तरह अद्भुत सुन्दर लग रही थी। तरुण ने दीपा को बड़ी तेज नजर से ऊपर से नीचे तक, आगे, पीछे सब तरफ से घूर कर देखने लगा। मेरी पत्नी शर्म से पानी पानी हुयी जा रही थी। एक तरफ वह अब अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार हो रही थी तो दूसरी और स्त्री सहज लज्जा उसे मार रही थी। वह अपनी नजर फर्श पर गाड़े हुए ऐसे खड़ी थी जैसे कोई अद्भुत शिल्पकार ने एकसुन्दर नग्न स्त्री की मूर्ति बना कर वहां रक्खी हो।
शायद कहीं ना कहीं उसके मन में यह जूनून था की वह कभी ना कभी तरुण को अपना यह रूप जरूर दिखाएगी ताकि तरुण को पता लगे की दीपा भी टीना से अगर ज्यादा नहीं तो कम सेक्सी भी नहीं थी। टीना की वह बिकिनी में मुश्किल से अपने सेक्सी बदन को छुपाती हुई तस्वीरों को देखकर अपने मन ही मन में दीपा की स्त्री सहज जलन का यह शायद रोमांचक नतीजा था।
तरुण बेचारा भौंचक्का सा दीपा के नग्न बदन को देखता ही रहा। उसका मुंह खुला का खुला ही रह गया। जिसके नंगे बदन की कल्पना वह दिन रात सपनों में करता रहता था, वह उसके सामने नग्न खड़ी थी। तरुण ने दीपा का अर्ध नग्न बदन तो कई बार देखा था पर पूरा अनावृत बदन अपनी पूरी छटा में पहली बार उसने देखा और उसके चेहरे के भाव से लग रहा था की दीपा का साक्षात नंगा बदन उसकी कल्पना से भी कई गुना सुन्दर उसको लगा।
तरुण नंगी खड़ी हुई दीपा को देखता ही रह गया। दीपा की गालों, कंधे और छाती पर बिखरे हुए केश दीपा के उन्मत्त गुम्बज के सामान फुले हुए पर बिनाझुके खड़े हुए और दो चोटियों के सामान निप्पलों से आच्छादित स्तन मण्डल को छुपाने में असमर्थ थे। उस रोशनी में भी दीपा की स्तनों की चोटियों की चारों और फैली हुई एरोला अद्भुत कामुक लग रही थीं। दीपा के स्तनों की एरोला में कई फुंसियां खड़ी थीं जो दीपा की उत्तेजना की चुगली खा रहीं थीं।
दीपा की कमर ऐसे लग रही थी जैसे दो पर्वतों के बिच में खाई हो। उसके उरोज से उसकी कमर का उतार और फिर उसकी कमर से कूल्हों का उभार इतना रोमांचक और अद्भुत था की देखते ही बनता था। उसके सर को छोड़ कहीं बाल का एक तिनका भी नहीं था। उसके दो पांव के बिच में उसकी चूत का उभार कोई भी शरीफ आदमी का ईमान खराब कर देने वाला था। उसकी चूत के होठ एकदम साफ़ और सुन्दर गुलाब की पंखुड़ियों की तरह थे। उसकी चूत में से रस चू रहा था। वह दीपा के हालात को बयाँ रहा था।
तरुण ने आगे बढ़कर दीपा को अपनी बाहों में लिया। तरुण ने अपने बदन से दीपा का नग्न बदन चिपका कर दीपा को कहा, "दीपा भाभी, आज मैं सौगंध खा कर कहता हूँ की मैंने इतनी सारी लडकियां और औरतें के बदन देखे हैं, पर आपका सा सेक्सी बदन मैंने नहीं देखा।"
दीपा ने शर्माते हुए धीमी दबी हुई कहा, "अच्छा जनाब? झूठ मत बोलो। तुम तो दीपक को कह रहे थे, मैं सुन्दर तो हूँ, पर टीना जैसी सेक्सी नहीं?"
दीपा की बात सुनकर तरुण आश्चर्य से मेरी और देखने लगा और बोला, "भाई, मैंने यह कब कहा? मैं यह सपने में भी नहीं कह सकता। भाभी, जिसे देख कर कोई भी मर्द का लण्ड खड़ा हो जाए और वह उसे चोदने के लिए बेचैन हो जाए उसीको सेक्सी कहते हैं। सेक्सी होना खूबसूरत होने से कहीं आगे है। टीना बेशक खूबसूरत और कुछ हद तक सेक्सी भी है, पर चाहे आप सीधी सी साडी पहनो चाहे जीन्स, आपको देख कर जो मेरे अंदर के हॉर्मोन्स कूदने लगते हैं ऐसा टीना के साथ कभी नहीं हुआ।"
मैं तरुण की बात सुनकर सकपका गया और बोला, "दीपा, मुझे माफ़ करना, तरुण ने ऐसा कभी नहीं कहा। वह तो तुम्हें बहकाने के लिए मैंने ही वह बात बना दी थी।"
दीपा ने टेढ़ी नजर कर मुझे कहा, "पता नहीं और भी कितनी सारी बातें तुमने मुझे उकसाने के लिए कही होंगी?"
उस रात मेरी शर्मीली पत्नी ने यह मन बना लिया था की आज वह मेरी और तरुण ख्वाहिश पूरी करेगी। वह तरुण की बाँहों में समां गयी और उस ने शर्म से अपनी आँखें झुका ली। तरुण को तो जैसे स्वर्ग मिल गया। वह अपने हाथोँ से दीपा के नंगे बदन को सहला रहा था। उसके दोनोँ हाथ दीपा के पीछे, उसकी रीढ़ की खाई में ऊपर नीचे हो रहे थे। कभी वह अपना हाथ दीपा के चूतड़ों के ऊपर रखता और दीपा की गाँड़ के गालों को दबाता, तो कभी अपनी उंगली को उस गाँड़ के होठों के बिच की दरार में डालता था। उसने मेरी पत्नीको इस हालात में देखने की कल्पना मात्र की थी। उसे यह मानना बड़ा अजीब लग रहा था की तब दीपा का वह बदन उसका होने वाला था।
तरुण नीचे झुक कर दीपा के पीछे गया। वह अपना सर ऊपर कर मेरी और देखते हुए बोला, "क्या मैं भाभी के कूल्हों को महसूस कर सकता हूँ? मैं कई महीनों से, जबसे मैंने दीपा भाभी को पहली बार देखा था तबसे इन कूल्हों को सहलाने के लिए तड़प रहा हूँ।"
दीपा पहले मुस्काई और फिर थोड़ा हीचकिचाते हुए मेरी और देखा। मैंने अपनी पलकें झुका और गर्दन हिला कर तरुण को अपनी अनुमति दे दी। तरुण ने अपने घुटनों पर बैठ कर तुरंत ही मेरी बीबी की सुडौल गाँड़ के दोनों गालों को चूमा और काफी देर तक चूमता ही रहा। दीपा की गाँड़ का घुमाव और उसकी वक्रता में तरुण अपनी जीभ घुसा कर उन्हें चूमने और अपने हाथों से सहलाने लगा। जब उसने दीपा की गाँड़ के छिद्र में अपनी जीभ घुसाई तो दीपा के बदन में कम्पन होने लगा। उस समय जरूर मेरी बीबी के सारे रोंगटे खड़े हो गए होंगे और सिहरन उसके पुरे बदन में फ़ैल गयी होगी, क्यूंकि मैं महसूस कर रहा था की वह मारे रोमांच के काँप रही थी।
मैं उन दोनो की और आगे बढ़ा। मैंने धीरे से तरुण को मेरी बीबी के बिलकुल सामने खड़ा किया और दीपा का हाथ तरुण की टांगों के बिच में रखा और उसके लण्ड को हिलाने के लिए उसे प्रेरित किया। दीपा मेरा इशारा समझ गयी और तरुण के लण्ड को उसके पाजामे के उपरसे सहलाने लगी। मैं धीरे से तरुण के पीछे गया और अपना हाथ तरुण की कमर के आसपास लपेटते हुए तरुण के पाजामे का नाड़ा मैंने खोल दिया।
तरुण पागल हुआ जा रहा था। जैसे ही उसका पाजामा फर्श पर गिरा तो उसका लंबा और मोटा लण्ड हवा में लहराने लगा। वह एकदम कड़क हो चूका था। वह बिलकुल बिना झुके अपना सर उठा के खड़ा हुआ था। ऐसे लग रहा था जैसे वह दीपा की चूत की और जाने को मचल रहा था। तरुण के नंगे होते ही दीपा की आँखें तरुण का लण्ड देख कर फटी की फटी ही रह गयीं। जिस तरह तरुण का लण्ड जो उसके पाजामे में गोल घूम कर समाया हुआ था वह पाजामें का बंधन खुलते ही जैसे एक अजगर या बड़ा साँप अपनी टोकरी में से सर निकालते हुए बाहर निकल कर शान से अपना फ़न फैलाता हुआ अकड़ कर खड़ा होता है वैसे ही एकदम दीपा की चूत के सामने खड़ा हो गया। तरुण के लण्ड की लम्बाई और मोटाई देख कर मेरी बीबी दो कदम पीछे हट गयी शायद उसे डर लगा की कहीं तरुण का इतना लंबा लण्ड इतनी दुरी से भी बिना कुछ जोर लगाए उसकी चूत में सीधा घुस ना जाए।
शायद उस समय पहली बार दीपा को तरुण के लण्ड की लम्बाई और मोटाई का सही सही अंदाज हुआ जो उसके पहले के अंदाज से कहीं ज्यादा चौंकाने वाला था। तरुण का लण्ड मेरे लण्ड से कहीं ज्यादा लंबा और मोटा भी था। जैसे ही तरुण का पाजामा नीचे गिरा दीपा का हाथ अनायास ही तरुण के लण्ड को छू गया। अब तक मेरी प्यारी बीबी ने कोई पराये मर्द का लण्ड देखा नहीं था। उसके लिए तो यह एक अजूबा सा था। इतना मोटा और लंबा लण्ड देख दीपा के चेहरे की भाव भंगिमा देखते ही बनती थी।
तरुण का लण्ड देखते ही बिना सोचे समझे दीपा के मुंह से आवाज निकल गयी, "बापरे! इतना बड़ा?" बोल कर वह चुप हो गयी। और कुछ बोल नहीं पायी।
दीपा ने तरुण का लण्ड देखने के बाद मेरी और देखा। मैं समझ गया की वह तरुण के लण्ड की लम्बाई और मोटाई, जो मेरे लण्ड से कहीं ज्यादा थी, से उत्तेजित हो रही थी। शायद उसे भी यह महसूस होगा की मैं भी यह देख कर छोटा महसूस ना करूँ।
तरुण का इतना तगड़ा लण्ड देखते ही मैंने देखा की अनायास ही मेरी बीबी ने अपनी दोनों टाँगे इकट्ठी कर लीं। वह क्या सोच रही थी, मैं उसकी कल्पना ही कर सकता था। शायद वह यह सोच रही होगी की कभी न कभी तो उस लण्ड को उसकी चूत में घुसना ही था। उस समय उसका क्या हाल होगा उसे कैसा महसूस होगा शायद वह यही सोच रही होगी। यह सोच कर थोड़ी देर के लिए दीपा जैसे ठिठक सी गयी। फिर दीपा ने से धीरे से तरुण का लण्ड अपने हाथ में लिया। वह अपनी मुठी में उसे पूरी तरह से ले न पायी, पर फिर भी उसने अपनी आधी मुठी से ही तरुण के लण्ड को सहलाना शुरू किया। वह शायद तरुण को कुछ सुकून देने के लिए उसके लण्ड को कुछ देर तक सहलाती रही।
तरुण ने वहां तक पहुँचने के लिए कितनी जहमत उठाई थी वह दीपा भली भाँती जानती थी। दीपा को पटाने के लिए तरुण ने क्या क्या नहीं किया? आखिर में जाकर उसने दीपा को पटा ही लिया।
तरुण का लण्ड हलकी सी रोशनी में भी चमक रहा था। तरुण की तरह उसका लण्ड भी गोरा था। उसकी पूरी गोलाई पर उसका पूर्व रस फैला हुआ था। चारों और से चिकनी मलाई फ़ैल जाने के कारण वह स्निग्ध दिख रहा था। सबसे खूबसूरत उसकी पूरी लंबाई पर बिछी हुयी रगें थीं। उसकी गोरी चमड़ी पर थोड़ी सी श्यामल रंग की नसोँ का जाल बिछा हुआ था। जिस वक्त दीपा ने तरुण का लण्ड अपने हाथ में लिया उसके लण्ड की चमड़ी के तले बिछी हुयी नसोँ में जैसे गरम खून का सैलाब फर्राटे मारता हुआ दौड़ने लगा। उसकी नसें फूल रही थीं। तरुण का लण्ड पूरी तरह अपनी चरम ताकत से खड़ा था।
तरुण के तने हुए लण्ड को देख दीपा के गाल एकदम लाल हो गए। उसे महसूस हुआ की वह अपने पति के मित्र के सामने नंग धड़ंग खड़ी थी और उसके पति का मित्र भी नंगा उसके सामने खड़ा था और अपने लंबे, मोटे लण्ड का प्रदर्शन कर रहा था। ऐसा वास्तव में हो सकेगा यह कभी उसने सोचा भी नहीं था। हाँ उसने कभी अपने सपने में ऐसा होने की उम्मीद जरूर की होगी।
दीपा के मुंह के भाव को तरुण समझ गया और उसने मेरी पत्नी को अपने आहोश में लेकर थोड़ा झुक कर पहले उसके गालोँ पर और फिर उसके होठों पर अपने होँठ रख दिए और वह दीपा को बेतहाशा चूमने लगा। दीपा को होठों पर चूमते चूमते थोड़ा और झुक कर तरुण दीपा के स्तनों को भी चूमने और चाटने लगा। दीपा से उसका जी नहीं भर रहा था।
मेरी निष्ठावान पत्नी भी तरुण से लिपट गयी और उसके होठों को चूसने और चूमने लगी। मुझे ऐसा लगा जैसे उसे अपनी कितने सालों की प्यास बुझाने का मौका मिल गया था। मेरी पत्नी और मेरा ख़ास दोस्त अब मेरे ही सामने एक दूसरे से ऐसे लिपटे हुए एक दूसरे को चुम्बन कर रहे थे जैसे काफी अरसे के बाद मिलन के लिए तड़पते हुए वह पति पत्नी या घनिष्ठ प्रेमी हों।
मैं उन दोनों को देखता ही रहा। उस वक्त कुछ क्षणों के लिए मेरे मनमे जरा सा ईर्ष्या का भाव आया। इस तरह का उन्मत्त चुम्बन करने के बाद, जब मेरी पत्नी ने मेरी और देखा तो वह मेरे मन के भावों को ताड़ गयी। वह तुरंत तरुण की बाँहों में से निकल कर मेरे पास आयी और मुझे अपनी बाँहों में लेने के लिए मेरी और देखने लगी।
मैंने तुरंत ही उसे अपनी बाहों में लिया, तब उसने तरुण भी सुन सके ऐसे कहा, "अपनी बीबी को किसी और मर्द की बाँहों में देख कर कुछ जलन सी हो रही है ना?"
मैं चुप रहा तो दीपा बोली, "यही तो मैं आपको समझाने की कशिश कर रही थी। मर्दों के लिए पत्नी को किसी गैर मर्द के साथ बाँटना उनके अहम् को आहत करता है, क्यूंकि वह अपनी पत्नी पर एक तरह से अधिपत्य यानी मालिकाना भाव रखते हैं। वैसी औरतों को कुछ हद तक ऐसा मालिकाना भाव अच्छा भी लगता है, पर सिर्फ कुछ हद तक। हालांकि आप में यह मालिकाना भाव उतना ज्यादा नहीं है। ठीक होता अगर आप मुझे और तरुण को एक दूसरे के करीबी जातीय संपर्क में आने के लिए ना उकसाते। पर यकीन मानो अगर आप ने यह किया है तो इससे कुछ नहीं बदलेगा। आप मेरे सर्वस्व हैं और हमेशा रहेंगे। आज कुछ भी हो जाए, मैं आप की ही हूँ और हमेशा रहूंगी। मैं आप के बिना अधूरी हूँ और आपके बिना रहने का सोच भी नहीं सकती। आप दुनिया के सर्वोत्तम पति हो यह मैं निसंकोच कह सकती हूँ।
आज मैं यह मानती हूँ की मेरे मन में तरुण के प्रति जातीय आकर्षण था। आपने भी शायद इसे भाँप लिया था। आप मुझे हमेशा तरुण के साथ सेक्स करने का अनुभव करने के लिए कहते रहे और उकसाते रहे। मैं उसका विरोध करती रही। आखिर में आपने और तरुण ने मिलकर मेरे तरुण के प्रति जातीय भाव को इतना भड़का दिया की मैं तरुण से चुदवाने के लिए तैयार हो गयी। आज रात आपने मेरे और तरुण के शारीरिक सम्भोग की व्यवस्था करही दी, और मुझे भी इतने सारे तिकड़म कर तैयार कर ही दिया। आपने जो किया वह आप नहीं करते तो मैं आज ऐसे यहाँ ना होती। यदि आप मुझे इसके लिये मजबूर न करते तो मैं कभी तरुण को अपने बदन को छूने भी नहीं देती। आज जो भी हो, मैं आपकी थी, आपकी हूँ और हमेशा आपकी रहूंगी। इसको कोई भी व्यक्ति बदल नहीं सकता।"
तरुण ने दीपा की बात सुनी और उसे अपने आहोश में लेते हुए तरुण ने मेरी और देखा और बोला, "दीपक, मैं ना कहता था की मेरी भाभी जितनी खूबसूरत और सेक्सी भी है उतनी ही समझदार भी है? कई औरतें जिनको मैंने चोदा, वह मुझसे शादी तक करने के लिए तैयार हो जाती थीं। पर भाभी ने आज एक मर्यादा की रेखा खिंच दी है और मैं उसका सम्मान करता हूँ। अब दीपा भाभी ने मन बना ही लिया है तो मुझे उनकी चमचागिरी करने की कोई जरुरत नहीं पर मैं यह कहना चाहता हूँ की आप बहुत ही खुशनसीब हो की आप को दीपा भाभी जैसी बीबी मिली। वह मेरी भाभी है और आप की बीबी है। मैंने तो उन्हें एक रात के लिए आप से उधार मांगा है।"
दीपा ने तब तरुण की और टेढ़ी नज़रों से देखा और पट से कहा, "क्यों भाई, जब तुम दोनों ने मुझे फँसा ही दिया है तो फिर एक रात के लिए ही क्यों? कहते हैं ना की खून एक करो या दस, फाँसी तो एक ही बार मिलनी है। तो फिर एक बार क्यों? अब तो तीर कमान से निकल चुका है। अब तो मैं जब मर्जी चाहे तरुण से चुदवाउंगी। मेरे पति को मुझे इसकी इजाजत देनी पड़ेगी।"
तरुण दीपा की बात सुनकर हँस पड़ा और बोला, "ना भाभी ना। आप तो टेम्पररी की बात कर रहे हो, मैं तो भैया को यह कहूंगा की अगर भगवान ना करे और आपकी और भाभी की लड़ाई हो जाए और ऐसी नौबत आ जाये की आप दोनों को तलाक़ लेना पड़े तो भाभी, मेरा खुला आमंत्रण है की आप दीपक को छोड़ मेरे साथ शादी कर लेना, मैं टीना को तलाक़ दे कर आपसे शादी करने के लिए तैयार हूँ।"
दीपा भी ताव में आ कर धीरे से बोली, "तरुण, यह शादी तलाक के चक्कर छोडो। तुम्हारा जब मन करे तुम आ जाना और हमारे साथ रहना। दीपक ना भी हो तो रात को चुपचाप आ जाना। सुबह होने से पहले चले जाना। तुम्ही ने तो कहा था ना की मैं तुम में और दीपक में फर्क ना समझूँ? तुम भी टीना में और मुझ में फर्क ना समझना। जब दीपक मुझसे ऊब जाएँ या जब तुम टीना से ऊब जाओ तब तुम मेरे पास आ जाना और दीपक को मैं टीना के पास भेज दूंगी। तलाक़ जैसी फ़ालतू चीज़ों के लफड़े में पड़ने की क्या जरुरत है? फिर जब तुम्हारा मन मुझसे भर जाए और दीपक का मन टीना से भर जाए तब वापस आ जाना।"
तरुण ने तालियां बजाते हुए कहा, "वाह मेरी भाभी वाह! क्या दिमाग पाया है? देखो भाई, कितना सटीक हल निकाला है भाभी ने? साला ऐसा आईडिया अपुन के दिमाग नहीं आया?" तरुण की सराहना सुनकर मेरी बीबी ने गर्व से सर ऊंचा कर मेरी और देखा।