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Adultery चाहत... {completed}
#25
Tongue 
दीपा ने मेरी और मूड़ कर देखा और बोली, "तो फिर आओ, आप दोनों और मैं हम तीनों मिलकर सही मायने में होली मनाएं। तुम तो एम.एम.एफ. थ्रीसम के एक्सपर्ट हो ना? तो आज तुम दो मर्दों के साथ मैं एक बेचारी अकेली औरत हूँ। चलो हम वही थ्रीसम मनाएं। हम अपने ग़म भूल जाएँ और एक दूसरे को पूरा आनंद दें और एक दूसरे से पूरा आनंद लें।" ऐसा कह कर मेरी बीबी ने मुझे भी अपनी बाँहों में लिया और अपने रसीले होँठ मुझे चूमने के लिए प्रस्तुत किये।


दीपा सीधी बैठी और तरुण और मुझे अपनी दोनों बाँहों में लिया। दीपा की एक बाँह में जाते ही मैं दीपा की और घूम गया। दीपा के चेहरे के सामने अपना चेहरा रख कर मैंने दीपा के रसीले होँठों पर अपने होँठ रख दिए और उसके होँठों को चूसने लगा। मेरी बीबी के रसीले होँठ चूमते और चूसते हुए मैंने मेरी बीबी से कहा, "डार्लिंग, तरुण सच कहता है। मैं बहोत ही लकी हूँ की मुझे तुम्हारे जैसी हिम्मतवान, प्यार भरी, संवेदन शील और सेक्सी बीबी मिली है।"

मैंने तरुण की और घूम कर देखा और बोला, "तरुण तुम्हारी हाजरी की ऐसी की तैसी। मैं आज मेरी बीबी को प्यार किये बिना रह नहीं सकता और डार्लिंग तुम मुझे मत रोकना।"

दीपा ने अपनी आँखें बंद कर ली। फिर मेरी नाक से अपनी नाक रगड़ती हुई बोली, "मैंने तुम लोगों को मुझे प्यार करने से कहाँ रोका है? इसके लिए बेचारे तरुण को क्यों बदनाम कर रहे हो?"

प्यार की उत्तेजना में दीपा भूल गयी की उसके मुंह से गलती से "तुम्हें" की बजाय निकल गया "तुम लोगों को" . इसका मतलब यह हुआ की तरुण भी उसमें शामिल था। फिर मैंने सोचा क्या दीपा भूल गयी थी या जानबूझ कर उसने "तुम लोगों" बोला?

ऐसा बोल कर दीपा मेरे साथ आँखे बंद कर चुम्बन में मशगूल हो गयी। तरुण ने हमें चुम्बन करते देखा तो वह भी मेरे साथ ही दीपा के सामने आ गया। उसने भी "तुम लोगों" सूना था। अब तो दीपा ने उसे भी प्यार करने का अधिकार दे दिया था। तरुण ने हमारे मुंह के बिच अपना मुँह घुसेड़ दिया। जब मैंने देखा की तरुण भी दीपा के रसीले होंठो को चूसने और उसे किस करने के लिए उतावला हो रहा था तो मैंने बीचमें से अपना मुंह हटा लिया।

तरुण और दीपा के रसभरे होंठ मिल गये और तरुण ने दीपा का सर अपने हाथ में पकड़ कर दीपा के होठों को चूसना शुरू किया। दीपा की आँखे बंद थीं। पर जैसे ही तरुण की मूछें उसने महसूस की, तो उसने आँख खोली और तरुण को उस से चुम्बन करते पाया। वह थोड़ी छटपटाई। पर तरुण ने उसका सर कस के पकड़ा था। वह हिल न पायी और उसने तरुण को अपना प्यार देनेका वादा किया था। यह सोच कर वह शांत हो गई और तरुण के चुम्बन में उसकी सहभागिनी हो गयी।

तरुण ने दीपा के रस भरे होंठों को चूमते हुए कहा, "भाभी सच कहता हूँ, जब आप ने मुझे इतना सम्मान दिया है की आपने अपने आपको मेरे हवाले किया है और आप और दीपक मुझे इतना हौसला देते हो तो मुझे चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है। मैं मुसीबतों से लडूंगा और विजयी हूँगा। पर मुझे आपका साथ चाहिए।"

दीपा ने तरुण को चूमते हुए टूटेफूटे शब्दों में कहा, "तरुण, मैं और दीपक पराये नहीं हैं। दीपक भी तुम्हारे हैं और मैं भी तुम्हारी हूँ।" मेरी पत्नी और कुछ बोल नहीं पायी क्यूंकि उसके होंठ पर तरुण के होंठों ने कब्जा कर लिया था।

मेरे लिए यह एक अकल्पनीय द्रष्य था। मेरी रूढ़िवादी पत्नी मेरे प्रिय मित्र को लिपट कर किस कर रही थी। दीपा ने जब महसूस किया की तरुण उसकी जीभ को भी चूसना चाहता था तब दीपा ने तरुण के मुंह में अपनी जीभ को जाने दिया।

तरुण मेरी प्रिय पत्नी को ऐसे चुम्बन कर रहा था जैसे वह अब उसे नहीं छोड़ेगा। दीपा ने एक हाथ से मुझे पीछे से चिपकने का इशारा किया और फौरन, तरुण का सर अपनी हाथोँ में कस के पकड़ा और तरुण के होँठों को अपने होँठों पर और कसके दबाया और तरुण को बेतहाशा चुम्बन करने लग गयी।

तरुण ने सामने से और मैंने पीछे से दीपा को कस के अपनी बाँहों में जकड लिया। मेरी और तरुण की बाँहों के बिच में मेरी प्यारी दीपा जकड़ी हुई थी। हम दोनों दीपा को अपनी बाँहों में जकड़े हुए पलंग पर लेट गए। दीपा का मुंह तरुण की और था। मैं दीपा के पीछे लेटा था। दीपा और जोश से तरुण को चुम्बन करने लगी। तब तरुण और मेरी पत्नी ऐसे चुम्बन कर रहे थे जैसे दो प्रेमी सालों के बाद मिले हों। दीपा के दोनों हाथ तरुण के सर को जकड़े हुए थे। तरुण ने भी मेरी पत्नी को कमर से कस के अपनी बाँहों में जकड़ा हुआ था।

यह द्रष्य मेरे लिए एकदम उत्तेजित करने वाला था। मेरा लण्ड एकदम कड़क खड़ा हो गया था। मैंने दीपा को पीछे से मेरी बाहोँ में जकड़ा हुआ था। दीपा के गाउन के ऊपर से मेरी पत्नी के दोनों स्तनों को अपने दोनों हाथों में पकड़ कर मैंने मसलना शुरू किया। हम तीनों पलंग पर लेटे हुए थे। मैंने फिर मेंरे कड़े लण्ड को मेरी पत्नी के गाउन ऊपर से उसकी गाँड़ में डालना चाहा। मैं उसे पीछे से धक्का दे रहा था। इस कारण वह तरुण में घुसी जा रही थी। तरुण पलंग के उस छौर पर पहुँच गया जहाँ दीवार थी और उसके लिए और पीछे खिसकना संभव नहीं था।

अचानक दीपा जोर से हँस पड़ी। उसे हँसते देख तरुण ने पूछा, "भाभीजी, क्या बात है? आप क्यों हंस रही हो?"

तब दीपा सहज रूप से बोल पड़ी, "तुम्हारे भैया मुझे पिछेसे धक्का दे रहे हैं। उनका कड़क लण्ड वह मेरे पिछवाड़े में घुसेड़ ने की कोशिश कर रहे है। इनकी हालत देख मुझे हंसी आ गयी।"

मैंने पहली बार मेरी रूढ़ि वादी पत्नी के मुंह से तरुण के सामने इतने सहज भाव से लण्ड शब्द का इस्तमाल करते हुए सुना। मुझे लगा की जीन और व्हिस्की की मिलावट के दो पुरे पेग पीनेसे अब मेरी बीबी बेफिक्र हो गयी थी। साथ में वह अब तरुण से पहले से काफी अधिक घनिष्ठता महसूस कर रही थी।

इसे सुनकर तरुण ने रिसियायी आवाज में कहा, "भाभीजी, एक बात कहूं? आपने अपने पति की हालत तो देखी पर मेरे हाल नहीं देखे। यह देखिये मेरा क्या हाल है?" ऐसा कहते ही दीपा को कोई मौका ना देते हुए तरुण ने दीपा का हाथ पकड़ कर अपने दोनों पांव के बीच अपने लण्ड पर रख दिया और ऊपर से दीपा के हाथ को जोरों से अपने लण्ड ऊपर दबाने लगा। मेरे पीछे से धक्का देने के कारण दीपा के बहुत कोशिश करने पर भी वह वहां से हाथ जब हटा नहीं पायी तब दीपा ने तरुण के लण्ड को अपने हाथों में पकड़ा। तरुण का पाजामा उस जगह पर चिकनाहट से भरा हुआ गिला हो चुका था। यह देख कर मैं ख़ुशी से पागल हो रहा था।

मैंने तब दीपा को पीछे से धक्का मारना बंद किया और मैं पीछे हट गया। अब दीपा चाहती तो अपना हाथ वहां से हटा सकती थी। परंतु मुझे यह दीख रहा था की दीपा ने अपना हाथ वहां ही रखा। वह शायद तरुण के लण्ड की लंबाई और मोटाई भाँप ने की कोशीश कर रही थी। तरुण के पाजामे के ऊपर से भी उसे तरुण के लंबे और मोटे लण्ड की पैमायश का अंदाज तो हो ही गया था।

मेरी प्यारी बीबी जब तरुण के लण्ड की पैमाइश कर रही थी तब अचानक ही उसके गाउन की ज़िप का लीवर मेरे हाथों लगा। मैंने कुछ न सोचते हुए उसे नीचे सरकाया और उसको दीपा की कमर तक ले गया।

उसके गाउन के दोनों पट खुल गए। दीपा ने अंदर कुछ भी नहीं पहन रखा था। जैसे ही गाउन के पट खुले और ज़िप कमर तक पहुँच गयी तो उसके दो बड़े बड़े अनार मेरे हाथों में आ गये। जैसे ही तरुण ने दीपा के नंगे स्तनों को देखा तो वह पागल सा हो गया। इन स्तनों को ब्लाउज के निचे दबे हुए वह कई बार चोरी चोरी देखता था। तरुण ने उनको अधखुले हुए भी देखा था। उस समय उसने सपने में भी यह सोचा नहीं होगा की एक समय वह उन मम्मों को कोई भी आवरण के बिना बिलकुल खुले हुए देख पायेगा।

तरुण को और कुछ नहीं चाहिए था। वह तो दीपा के दूध को पीने के लिए अधीरा था। परंतु मुझे तब बड़ा आश्चर्य यह हुआ की उसके सामने दीपा के बड़े बड़े और सख्त मम्मे गुरुत्वाकर्षण के नियम को न मानते हुए उद्दंड से ऐसे खड़े थे जैसे तरुण को चुनौती दे रहे हों। फिर भी तरुण ने उन्हें हाथों में न पकड़ते हुए दीपा के कानों में कुछ कहा। यह सुनकर दीपा मुस्कायी और उसने अपना सर हामी दर्शाते हुए हिलाया। मुझसे अपनी जिज्ञासा रोकी नहीं गयी। मैंने तरुण से पूछा, "तुमने दीपा से क्या कहा?

तरुण ने इसका कोई जवाब न देते हुए मेरी पत्त्नी के दोनों स्तनों को अपने दोनों हाथों में भरते हुए कहा, "मैंने दीपा भाभी से इनसे खेलने की इजाजत मांगी।"

मैं तरुण की इस हरकत से हैरान रह गया। कमीना, उसने अपना काम भी करवा लिया और ऊपर से शराफत का नाटक भी कर के दीपा की आँखों में शरीफ बन गया।

उसने दीपा की दोनों बड़ी पूरी फूली हुई गोरी गोरी चूँचियों को अपने दोनों हाथों में बड़ी मुश्किल समाते हुए रखा और बोला, "भाभीजी, आपके स्तनों का कोई मुकाबला नहीं। मैंने कभी किसी भी औरत के इतने सुन्दर बॉल नहीं देखे। इसमें टीना भी शामिल है। आज मैं आप से छिपाऊंगा नहीं की जब पहले दिन मैंने आपको देखा था उस दिन से मैं आपके इन बड़े और सख्त मम्मों को देखने के लिए पागल हो रहा था, पर आपने मुझे अब तक बिलकुल मौक़ा नहीं दिया।अब मुझे मत रोकिये प्लीज?"

मेरी बीबी ने तरुण को अपनी और खींचा और उसके मुंह को अपने स्तनों में घुसा दिया। तरुण को तो जैसे जन्नत मिल गयी। दीपा ने तरुण के कानों में कहा, "देवरजी, अभी भी पूछ रहे हो? तुम्हें रोका किसने है? और फिर अगर मैं रोकूंगी भी तो क्या तुम रुकोगे?"


बस और क्या था? अब तो तरुण को जैसे लाइसेंस मिल गया था। तरुण का मुंह बारी बारी कभी एक मम्मे को तो कभी दूसरे को जोर से चूसने लगा। जब वह मेरी बीबी के एक स्तन को चूसता था तो दूसरे को जोर से दबाता और खींचता था और अपनी उँगलियों में दीपा की निप्पलों को जैसे चूंटी भर रहा हो ऐसे दबाता था। कई बार तो वह इतना जोर से दबा देता की दीपा के मुंह से टीस सी निकल जाती। तब वह तरुण को धीरे दबाने का इशारा करती।

मैंने भी दीपा के रस से भरे मम्मों को चूसना शुरू किया। अब तरुण कहाँ रुकने वाला था? वह दीपा के दूसरे मम्मे को अपने मुंह में रख कर उसकी निप्पल को काट ने लगा। दीपा के हाल का क्या कहना? उसकी जिंदगी में पहली बार उसके स्तनों को दो मर्द एक साथ चूस रहे थे। दीपा इतनी गरम और उत्तेजित हो गयी थी की वह अपने आप को सम्हाल नहीं पा रही थी। अब तक जो मर्यादा का बांध उसके अपने मन में था अब वह टूट चुका था। अपने स्तनों पर तरुण के मुंह के स्पर्श से ही अब वह पागल सी हो रही थी।

मैंने झुक कर प्यार से मेरी प्यारी पत्नी के रसीले होठों पर चुम्बन किया और उसके कानों में फुसफुसा कर बोला, "मेरी जान, आज तूमने मुझे वह गिफ्ट दिया है जिसके लिए में तुम्हारा ऋणी हूँ। तुमने मेरे कहने पर अपनी लज्जा का बलिदान किया है इसका ऋण मैं चूका नहीं सकता। दीपा मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और अब तो मैं तुमसे और भी प्यार करने लगा हूँ। मैं चाहता हूँ की आज तुम लज्जा को एक तरफ रख कर हम दोनों से चुदाई का पूरा आनंद लो और हमें चुदाई का पूरा आनंद दो। आज तुम हम दोनों के साथ यह समझ कर खुल कर सेक्स करो जैसे हम दोनों ही आज रात के लिए तुम्हारे पति हैं।"

दीपा आँखे बंद कर मेरी बात ध्यान से सुन रही थी। जब वह कुछ न बोली तो मैंने उसे कहा, "डार्लिंग, अब आँखे खोलो और मुझे जवाब दो।"

तब मेरी शर्मीली खूबसूरत पत्नी ने अपनी आँखे खोली और और मेरी आँखों में आँखे डाल कर मुस्काई। उसने मेरा सर अपने दोनों हाथों में लेकर मेरे होंठ अपने होंठो पर दबा दिए और मेरे मुंह में अपनी जीभ डाल दी। ऐसे थोड़ी देर चुम्बन करने के बाद धीमी आवाज में बोली, "देखो, जो आज हुआ वह तो होना ही था। जिस तरह से तुम तरुण से चुदवाने के लिए मुझे राजी करने के लिए मेरे पीछे पड़े थे , मैं जान गयी थी की तुम मुझे तरुण से चुदवाये बगैर चैन नहीं लोगे। मुझे फाँसने का यह सब प्लान तुम दोनों ने मिल कर पहले से ही बना लिया था ना? सच बोलो? मैं भी समझ गयी थी। पर मैं भी तो तुम्हारी बीबी हूँ। आसानी से थोड़ी ही पटने वाली थी मैं? मैंने तय किया था की अब मैं भी देखती हूँ तुम और तरुण कितने पापड़ बेलते हो मुझे पाने के लिए? कहते हैं ना की मेहनत का फल मीठा। तुमको मैंने वादा किया था ना की मैं मौज कराउंगी? उसी समय मैं समझ गयी थी की मुझे आज रात को तुम दोनों से चुदवाना ही पडेगा। तो अब मैं तुम दोनों के लिए तैयार हूँ।"

तरुण ने जब हमारा आपस में प्रेमआलाप देखा और सूना तो वह भी मुस्काया और समझ गया की अब दीपा भी हमारे साथ है। मैंने प्यार से दीपा को पलंग पर लिटा दिया। हम दोनों उसके दोनों और लेट गए और उसकी चूचियों को चूसने लगे। दीपा ने अपना हाथ बढ़ाया और पाजामे के ऊपर से हम दोनों के लण्ड को एक एक हाथ से दुलार से सहलाने लगी। जाहिर है की हम दोनों के लण्ड तन कर खड़े हो चुके थे। पाजामें के अंदर कुछ नहीं पहने होने के कारण पाजामे का वह हिस्सा चिकनाहट से गीला हो चुका था। दीपा ने हमें प्यार भरी नजर से देखा और फिर अपनी आँखें बंद करली। अब वह हमारे प्यार का आनंद ले रही थी।

दीपा हम दोनों मर्दों के बिच में सीधी लेटी हुई थी। उसका कुल्हा बिस्तर पर था और चूँचियाँ फुले हुए गुब्बारे के समान बिना दबे हुए ऊपर की और उठी हुई अक्कड़ थीं। हम दोनों मिलकर उन चूँचियों को अपने मुंह में लेकर उनका रसास्वादन कर रहे थे। हमारे दोनों के दीपा की उभरी चूँचियों को चूसने और निप्पलोँ को काटने से उसकी चूत में गजब की हलचल हो रही होगी जो उसके पलंग पर मचलने से साफ़ दिखाई दे रही थी। तरुण बार बार दीपा की चूत वाले हिस्से को अपने हाथों से हलके से कुरेद कर दीपा की चूत को और उन्मादित कर रहा था। दीपा को ऐसा अनुभव कभी नहीं हुआ था। आज तक उसने सिर्फ मेरे प्यार का ही अनुभव किया था। अब उसे दो प्रेमियों के दो मुँह और चार हाथोँ का एक साथ प्यार का आनंद मिल रहा था। आगे चलकर यह अनुभव क्या रंग लाएगा उसकी कल्पना मात्र से ही वह उत्तेजित हो रही थी और मैंने वह उसके शरीर में हो रहे कम्पन से महसूस किया।

मैंने धीरे से मेरा हाथ उसके गाउन के अंदर डाला। उसकी नाभि और उसके पतले पेट का जो उभार था उसको मैं प्यार से सहलाने लगा। मेरी पत्नी मेरे स्पर्श से काँप उठी। मैंने मेरे हाथ दीपा की पीठ के नीचे डाल दिए और उसे धीरे से बैठाया। उसे बिठाते ही उसका खुला गाउन नीचेकी और सरक गया और वह आगे और पीछे से ऊपर से नंगी हो गयी। तरुण जिसकी मात्र कल्पना ही तब तक करता था वह दीपा के कमसिन जिस्म को ऊपर से पूरा नंगा देख कर उसे तो कुबेर का खजाना ही जैसे मिल गया।

तरुण ने दीपा के दोनों स्तनों को ऐसे ताकत से पकड़ रखा था की जैसे वह उन्हें छोड़ना ही नहीं चाहता था। कभी वह उन्हें मसाज करता था तो कभी निप्पलों को अपनी उँगलियों में दबाता तो कभी झुक कर एक को चूसता और दूसरे को जोरों से दबाता।

दीपा अब हम दोनों प्रेमियों का उसके मम्मों को चूसना और मलने की प्रक्रिया से इतनी कामोत्तेजित हो चुकी थी के उस से अपने जिस्म को नियत्रण में रखना मुश्किल हो रहा था। दीपा की उन्माद भरी अवस्था को मैं ऐसे महसूस कर पाता था की उसकी हम दोनों मर्दों के लण्ड सेहलानी की गति उसके उन्माद के साथ बढ़ती जाती थी। वह उन्मादपूर्ण अवस्था में कभी मेरी आँखों में आँखें मिला रही थी तो कभी तरुण की आँखों में। जब वह कुछ देर के लिए हमें बारी बारी से देखती थी तब दीपा की आँखों में वही प्यार और कामुकता भरा उन्माद नजर आरहा था। पर ज्यादातर तो वह आँखें मूँद कर ही हमारी हरकतों का आनंद ले रही थी।

मैं देख रहा था की वह हम दोनों के उसके स्तन मंडल के साथ प्यार करने से अब वह अपने कामोन्माद से एकदम असहाय सी लग रही थी। दीपा तब अपनी कमर और अपनी नीचे के बदन को उछालते हुए बोलने लगी, "दीपक, तरुण जल्दी करो, और चुसो जल्दी। ... आह्ह्ह्ह्ह... ओह्ह्ह्ह... मेरी चूंचियां और दबाव ओओफ़फ़फ़। तब मुझे लगा की वह अपनी चरम सीमा पर पहुँच रही थी। मैंने तरुण को इशारा किया और हम दोनों उसके मम्मों को और फुर्ती से दबाने और चूसने लगे।

जल्द ही मेरी प्रियतमा एक दबी हुयी टीस और आह के साथ उस रात पहली बार झड़ गयी। उसकी साँसे तेज चल रहीं थी। थोड़ी देर के बाद उसने अपनी आँखें खोली और हम दोनों की और देखा। कुछ देर तक कमरे में मेरी बीबी की गर्म साँसों की तेज गति के अलावा सब सुनसान था।

मैंने दीपा से कहा, "डार्लिंग, अब हम लोगों से क्या परदा? अब हमें अपना लुभावना सुन्दर जिस्म के दर्शन कराओ। अब मत शर्माओ। दीपा ने मेरी और देखा पर कुछ न बोली। मैंने तरुण को इशारा किया की अब वह काम हम ही कर लेते हैं। तरुण थोड़ा हिचकिचाता आगे बढ़ा और दीपा के बदन से गाउन निकालने लगा। दीपा ने शर्म के मारे अपना गाउन को तरुण को उतारने नहीं दिया और अपने हांथों में पकड़ रखा। मैंने दीपा को खड़ा होने को कहा तो वह शर्मा कर बोली, "आप पहले लाइटें बुझा दीजिये।"

यह बात मेरी समझ में नहीं आती। हमारी भारतीय स्त्रियाँ चुदवाने के लिए तो तैयार हो जाती है और चुदवाती भी है, पर अपने स्तनोँ का, अपनी चूत का दर्शन कराने में क्यों झिझकती है, यह मैं आज तक समझ नहीं पाया हूँ।

तरुण ने उठकर कमरे की सारी लाइटें बुझा दी, बस एक डिम लाइट चालू रक्खी। वह धीमी रोशनी भी कमरे में काफी प्रकाश फैलाये हुए थी। बाहर की रोड लाइटों का प्रकाश भी कमरे में आ रहा था। दीपा जब उठ खड़ी हुयी तब उसका गाउन अपने आप ही नीचे सरक गया और मेरी शर्मीली रूढ़ि वादी पत्नी हम दोनों के सामने पूर्णतः निर्वस्त्र हो गयी। पर फिर भी स्त्री सुलभ लज्जा के कारण दीपा ने अपना एक हाथ अपने स्तनों के ऊपर और दुसरा हाथ अपनी खूब सूरत चूत को ढकने के लिए आगे किया। मैंने मेरी बीबी के होंठों को हलके से चूमा और कहा, "दीपा अब छोडो भी। मैंने तो तुम्हारा पूरा बदन कई बार देखा है। तरुण बेचारा तुम्हारे नंगे बदन के दर्शन के लिए कभी से तड़प रहा है। तुम्हारी सुंदरता को उसे भी तो निहारने दो।"

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चाहत... {completed} - by usaiha2 - 07-12-2019, 07:05 PM
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RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 07-12-2019, 07:49 PM
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RE: चाहत... {completed} - by kamdev99008 - 15-12-2019, 01:51 AM
RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 22-01-2020, 04:25 PM
RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 07-04-2020, 10:43 PM
RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 12-05-2021, 09:50 AM
RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 01-08-2021, 04:09 PM
RE: चाहत... {completed} - by dickcassidy - 08-08-2021, 01:15 AM
RE: चाहत... {completed} - by raj500265 - 21-08-2022, 01:01 AM
RE: चाहत... {completed} - by koolme98 - 01-02-2023, 04:34 PM



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