07-12-2019, 07:41 PM
अपनी इतनी ज्यादा तारीफ़ सुनकर दीपा तो जैसे बौखला ही गयी। मेरी प्यारी बीबी के गाल तरुण की भूरी भूरी प्रशंषा के कारण शर्म के मारे लाल लाल हो रहे थे। वह यह समझ नहीं पायी की वह उस गाउन में पूरी नंगी सी दिख रही थी। पर उसके चेहरे की लालिमा से यह तो लगता ही था की उसे शायद आईडिया हो गया था की उस गाउन में उसके अंग काफी साफ़ दिख रहे थे। पर उसने उस गाउन को पहनने में एतराज नहीं किया क्यूंकि कहीं मैं उसे यह कह कर ना चिढाऊँ की मेरी बीबी एक औरत होने के कारण वह ऐसे कपडे पहनने से डरतीं थीं। जिन और व्हिस्की का जो मिश्रण उसके दिमाग को घुमा रहा था और उद्दंड बना रहा था उससे वह ऐसी छोटीमोटी चिंताओं से ऊपर जा चुकी थी।
बल्कि वह तो तरुण की प्रशंषा के पूल बाँधने से इतनी खुश हुयी की वह अनायास ही तरुण के पास आई और तरुण ने जब अपने हाथ फैलाए तो वह मुस्कुराती हुयी उसमें समा गयी। मेरी बीबी के फुले हुए गुम्बज के सामान दो गोरे गोरे अल्लड स्तन और उनकी चोटी सम हलकी चॉकलेटी रंग की निप्पलँे जो पतले गाउन में साफ़ दिख रहीं थीं वह सुनील के बाजुओं को छू रहीं थीं। इस बात से दीपा या तो बेखबर थी या उसको उस बात की चिंता नहीं थी। मैं अपनी भोली और सरल पत्नी के कारनामे देख कर दंग रह गया। दीपा ने मेरी और देखा और ऐसे मुंह बनाया जैसे मैं उसका कोई प्रतिद्वंदी हूँ।
वह तरुण के बाँहों में से बाहर आकर तरुण के ही बगल मैं बैठ गयी। दीपा ने मुझे भी अपने पास बुलाया और अपने दूसरी और बिठाया। दीपा मेरे और तरुण के बीचमें बैठी हुयी थी। दीपा ने अपना एक हाथ मेरे और एक हाथ तरुण के हाथ में दे रखा था। हम तीनों एक अजीब से बंधन मैं बंधे हुए लग रहे थे।
दीपा ने तरुण का हाथ थाम कर कुछ हलके से लहजे में पूछा, "तरुण यार मेरी तारीफों के पुल बाँधना छोडो और अब यह बताओ की वह कौनसी ऐसी समस्या है जिस के कारण तुम इतने ज्यादा परेशान हो। तुम आज निस्संकोच हमें बताओ।"
तरुण ने दीपा का हाथ अपने हाथ में लेकर उसे सेहलना शुरू किया और बोला, "दीपक और दीपा, आप दोनों मेरे लिए एक बहुत बड़े सहारे हो। मैं आज अकेला हूँ पर आप दोनों के कारण मैं अकेला नहीं फील कर रहा हूँ। मैं तुम्हें अब एक बड़ी गम्भीर बात कहने वाला हूँ। कुछ ख़ास कारण से मैंने सबसे यह बात छुपाके रखी है। यहां तक की मैंने अपने माता और पिता तक को नहीं बताया।"
अचानक हम सब गम्भीर हो गए।
तरुण ने कहा, "मुझे मेरी कंपनी की और से निकासी का आर्डर मिल गया है। मुझे एक महीने का नोटिस मिला है। दर असल मेरी कंपनी के बड़े बॉस से कोई बात को लेकर मेरी कुछ बहस हो गयी थी जिसके अंत में बॉस ने मुझे नोटिस दे दिया है। उसी कारण से टीना और मेरे बिच में भी तनाव हो गया है। मेरे बॉस से झगडे से टीना खुश नहीं है। ऊपर से उसे मुझ पर एक मेरी पुरानी दोस्त के साथ रिश्ते के बारे में भी कुछ जबरदस्त गलत फहमी हुई है। मुझसे झगड़ कर टीना पिछले १५ दिनसे मायके चली गयी है। मैंने उसे समझाने की और मनाने की लाख कोशिश की पर वह मुझ पर इतनी नाराज है की वापस आने का नाम ही नहीं लेती। अब मेरे पास कोई जॉब नहीं है, बीबी मुझे छोड़ कर चली गयी है। अगर मैं १५ दिन में कोई और जॉब नहीं ढूंढ पाया तो मुझे घर बैठना पड़ेगा। भाभी, बात यहां तक बिगड़ चुकी है की मुझे समझ नहीं आता की मैं घर का इन्सटॉलमेंट कैसे भर पाउँगा और मैं करूँ तो क्या करूँ? मुझे अपने से और अपनी खुदकी जिंदगी से नफरत हो गयी है।" कमरे में जैसे एक मायूस सा वातावरण फ़ैल गया।
तरुण की बात सुनकर मैं और मेरी बीबी दीपा हम दोनों भौंचक्के से एक दूसरे को देखते ही रहे। दीपा का तो हाल ही खराब लग रहा था। वह जो अब तक सुरूर और जोश में थी, तरुण की बात सुनकर उसे जबरदस्त झटका लगा।
अब तरुण वह तरुण नहीं लग रहा था। हम जानते थे की तरुण का पूरा घर उसीकी आमदनी से चलता था। अगर आमदनी रुक गयी तो सब की हालत क्या होगी यह सोचना भी मुश्किल था। कमरे में जैसे समशान सी शान्ति छा गयी। दीपा ने तरुण का हाथ थामा तो तरुण की आँखों में आंसू भर आये। वह अपने आप को सम्हाल नहीं पा रहा था। मैंने और दीपा ने तरुण को थामा और उसको ढाढस देने की कोशिश करने लगे। पर तरुण के आंसू थम ने का नाम नहीं ले रहे थे।
दीपा तरुण के एकदम करीब जा बैठी और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर उसे दबा कर सहलाने लगी। इससे तो तरुण के आंसूं की धार बहने लगी। तरुण अपने जज्बात पर कण्ट्रोल करने की कोशिश कर रहा था। वह दीपा के हाथों को चूमते हुए बोलने लगा, "भाभी जी कोई क्या कर सकता है? आप भी क्या कर सकती हैं? जब टीना ही मुझे छोड़ कर चली गयी तो और क्या हो सकता है? जब अपने ही अपने नहीं रहे तो मैं आपसे क्या उम्मीद रखूं? आप बहुत अच्छीं है। आप मुझे अपना समझती हैं यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। मैं आपको इतना परेशान कर रहा हूँ फिर भी आप मुझे झेल रहे हो इससे मुझे कितना सकून मिलता है यह आप नहीं जानतीं। पर आखिर में आपकी भी तो मजबूरियां है ना? इसमें आपका क्या दोष है? मेरा तो जो होगा देखा जाएगा। मैं जानता हूँ की आप पर भाई काअधिकार है मेरा नहीं। भाभी मैं तो आपको छेड़ कर अपना दिल बहला लेता हूँ, थोड़ी देर के लिए एक खूबसूरत सपना देख लेता हूँ बस। मैं आपसे मेरी हरकतों के लिए माफ़ी माँगता हूँ। आप मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिये। जब मेरे अपने ही मुझे छोड़ कर चले गए तो मेरे रहने ना रहने से क्या फर्क पड़ता है?" ऐसा कहता हुआ तरुण एकदम उठ खड़ा हुआ और अपने आँसूं पोंछता हुआ बैडरूम से निकल कर ड्राइंग रूम को पार कर हमसे दूर बाहर बरामदे में जा कर बाहर सोफे पर बैठ कर दूर दूर अँधेरे में सुनी सड़क को सुनी आँखों से ताकने लगा। मैं उसे बैडरूम और ड्राइंग रूम के खुले दवाजे में से देख सकता था, हालांकि हमारी आवाज तरुण तक नहीं पहुँच सकती थी। उस समय उसके जहन में क्या उथल पुथल हो रही थी वह किसी को नहीं पता।
दीपा भी भावुक हो रही थी। वैसे ही मेरी संवेदनशील बीबी से किसीकी परेशानी देखि नहीं जाती। उपर से उस रात को इतनी अठखेलियां मजाक और छेड़खानी करने के बाद अचानक ही तरुण का ऐसा हाल देख कर दीपा घबड़ा गयी। तरुण की ऐसी हालत उससे देखी नहीं जा रही थी। दीपा उठकर मेरे पास आई। उसकी आँखों में आंसू थे। वह बोली, "अरे देखो तो, तरुण का कैसा हाल हो रहा है। उसे क्या हो गया? इतना जाबांज और नटखट छैले की तरह बात कर रहा था वह, अब क्या हो गया? यार तुम उसके दोस्त हो। जाओ और उसे सम्हालो। टीना को इस वक्त तरुण के पास होना चाहिए था। वह पगली तरुण को ऐसे वक्त में क्यों छोड़ कर चली गयी? तुम क्या कर रहे हो? जाओ अपने दोस्त को सांत्वना दो। उसके पास बैठो, उसको गले लगाओ।"
तब मैंने अपनी पत्नी को अपनी बाँहों में लेते हुए कहा, "देखो आज होली है। आज आनंद का त्यौहार है। तुम क्यों परेशान हो रही हो? हाँ, यह सही है की हमें तरुण को अपने प्यार से शांत करना चाहिए। पर तरुण मेरे ढाढस देने से शांत नहीं होगा। वह तुम्हें इतना चाहता है तुम्हारी खूबसूरती, सेक्सीपन और अक्ल पर इतना फ़िदा है और तुम्हारी इतनी रेस्पेक्ट करता है पर वह तुम से भी नहीं माना तो मेरे कहने से वह थोड़े ही मानेगा? ऐसे वक्त में तो एक पत्नी ही पति को अपना शारीरिक प्रेम देकर शांत कर सकती है। मैं कुछ नहीं कर सकता। तुम्हारी टीना वाली बात बिलकुल सही है।"
दीपा ने मेरी और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा और पूछा, "कौनसी बात?"
मैंने कहा, "इस वक्त टीना को यहां तरुण के पास होना चाहिए था। अगर वह होती तो बेझिझक तरुण को अपनी बाँहों में ले लेती और उससे लिपट कर अपनी छाती में उसका सर छुपाकर अपने बूब्स तरुण के मुंह में दे देती, और उसे अपने बच्चे की तरह अपना दूध चूसने देती, खूब प्यार करती और उसे समझा बुझा कर शांत करती। पर अफ़सोस वह पिछले पंद्रह दिन से यहां नहीं है। तरुण बेचारा वैसे ही पंद्रह दिनों से टीना के बगैर और स्त्री के संग के बगैर ब्रह्मचर्य रख कर तड़प रहा है। उसके जैसे वीर्यवान पुरुष के लिए इतने दिनों तक ब्रह्मचर्य रखना बहुत मुश्किल है। शायद इसी लिए उसने तुमको आज ज्यादा परेशान किया।"
मेरी बात सुन कर दीपा ने सहमति में कुछ भी बोले बगैर अपना सर हिलाया। मेरी पत्नी सोच में पड़ गयी। मैंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, "देखो तरुण ने क्या कहा? उसने कहा की जब अपने, मतलब टीना, ही यहां नहीं है तो वह तुमसे क्या उम्मीद रखे? इसका मतलब है अभी तक तरुण तुम्हें अपनी नहीं समझता। क्या तुम तरुण को अपना समझती हो? तरुण शायद यही कहना चाह रहा था की अपने ही उसे शांत कर सकते हैं।"
मेरी बात सुन कर दीपा का चेहरा कुछ मुरझा सा गया। उसने कहा, "मैंने तरुण को हमेशा अपना समझा है। तभी तो उसकी इतनी सारी छेड़ने वाली हरकतों के बावजूद भी मैंने उसे ज्यादा कुछ नहीं कहा। क्या इतना कुछ करने पर भी तरुण मुझे अपनी नहीं समझता? यह तो गलत है ना?"
मैंने कहा, "वह शायद इस लिए तुम्हें अपनी नहीं समझता क्यों की तरुण जब जोश में आ कर तुम्हारे साथ कभी कुछ ज्यादा छूट ले लेता है तो तुम बिगड़ जाती हो। बात तो सही है। क्यूंकि तुम तरुण और मेरे बिच में फर्क समझती हो। तरुण अगर तुम्हें अपनी मान भी ले तो तुम उसे पत्नी की तरह प्यार थोड़े ही करने दोगी? मेरा यह मानना है की तरुण के इस हाल में औपचारिक ढाढस देने से कोई फर्क नहीं पडेगा। अभी तो प्यार से उसका दिमाग घुमाने की जरुरत है और वह एक पत्नी ही कर सकती है। हाँ अगर चाहो तो तुम जरूर कर सकती हो, क्यूंकि वह तो तुम्हें अपनी पत्नी की तरह ही मानने के और प्यार करने के सपने देखता है, पर वह जानता है की तुम उसे अपना नहीं मानती। क्या मैं गलत कह रहा हूँ?"
मुझे मेरी बीबी का अभिप्राय जानना था। दीपा की आँखें भर आयी थीं। उसने मेरी और देखा और बोली, "दीपक मुझे तुमको एक बात बतानी है। तुम ठीक कह रहे हो। उस दिन जब वह आटे के डिब्बे वाला किस्सा हुआ था ना? याद है? उस दिन बाथरूम में तरुण ने मुझे बहुत परेशान किया था। उसने मेरी ब्रेअस्ट्स दबायी मसली और मुझे लिपट कर किस भी की। वह तो मैंने तुम्हें बताया पर एक बात मैंने तुमसे छुपाई वह यह थी की मैं जब निचे बैठकर उसके पतलून से आटा साफ़ कर रही थी तब उसने अपना लण्ड मेरे मुंह में घुसा दिया था। मतलब लण्ड पतलून के अंदर था पर उसने धक्का मार कर उसे मेरे मुंह में डाल दिया। मैं उसकी हरकतों से इतनी परेशान हो गयी थी की मैंने उसे हाथ जोड़कर मुझे छोड़ने के लिए यह कहा की मैं बाद में वह जो कहेगा वह करुँगी पर उस समय मुझे जाने दे।"
मैं मेरी बीबी की और खुले मुंह देखता ही रहा। मेरा चेहरा देख कर दीपा कुछ सहम गयी और बोली, "मुझे माफ़ कर देना पर मुझे अपने आप पर इतनी नफरत हो गयी थी की क्या बताऊं? तुम्हें यह बता नहीं सकी। मैं उसके चंगुल से भागना चाहती थी। और आज शामको जब हम बाहर निकले और तुम जब फ़ोन पर तुम्हारी बहन से बात कर रहे थे तब पता है उसने क्या किया?"
मैंने पूछा, "क्या किया?"
दीपा ने कहा, "उसने मुझसे वह वचन पूरा करने को कहा।""
मरे लिए तो मेरी भोली बीबी की यह बात एक बिजली गिरने जैसी थी। हालांकि मैं समझ गया था की तरुण ने क्या माँगा होगा, फिर भी मैंने पूछा, "क्या वचन माँगा उसने?"
दीपा ने मुरझाती हुई आवाज में नजरें झुकाते हुए कहा, "उसने मुझे उससे चुदवाने का वचन आज मांग लिया।"
मैंने जैसे बिजली गिरी हो ऐसे आश्चर्य दिखाते हुए पूछा, "क्या? दीपा तुम क्या कह रही हो? फिर तुमने क्या कहा?"
दीपा की आँखों में आँसूं भर आये। वह बोल नहीं पा रही थी। आखिर में उसने कहा, "मैं क्या कहती? मैंने उसे कहा, यह उसने गलत किया है। उसने मुझसे धोखाधड़ी की है। पर मैं करूँ तो क्या करूँ? मैंने उसे वचन जो दे दिया था?" उसने मेरी और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा।
मैंने मेरी बीबी को ढाढस दिलाते हुए कहा, "धोखे से दिया गया वचन पालने की तुम्हें कोई जरुरत नहीं है। वैसे मुझे लगता है की यह अच्छा ही हुआ की तुमने उसे ऐसा वचन दिया।"
दीपा ने मेरी और पैनी नजर से देखा और पूछा, "क्यों? तुम ऐसा क्यों कहते हो?"
मैंने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा, "यह तो बहुत ही अच्छा हुआ क्यूंकि अब तुम्हें अगर तरुण चोदता भी है तो तुम्हें कोई रंज नहीं होना चाहिए। वैसे भी तो तुम्हें उससे चुदवाना पडेगा ही क्यों की तुमने वचन जो दिया है? तो बेहतर ही की तुम तरुण को यह एहसास दिलाओ की टीना नहीं है तो क्या हुआ? तुम पत्नी भले ही नहीं हो पर तुम उसे पत्नी का प्यार क्यों नहीं दे सकती? तुम उसे यह एहसास दिलाओ की तरुण भी तुम्हारा अपना है। तरुण का भी तुम पर अधिकार है। तुम सिर्फ अपने पति की ही नहीं, तरुण की जरुरत का भी ध्यान तुम एक पत्नी की तरह रख सकती हो। जैसे टीना नहीं है तो तुम तरुण के खाने का ख्याल रख सकती हो वैसे ही आज जब टीना नहीं है तो क्या तुम तरुण की दूसरी जरूरतों का ध्यान नहीं रख सकती? क्या तुम तरुण को एक पत्नी का प्यार नहीं दे सकती? क्या तुम तरुण को नयी जिंदगी नहीं दे सकती? क्या प्यार का मतलब सिर्फ छेड़खानी करना या हंसी मजाक करना ही है?"
मेरी बात सुनकर दीपा सहम गयी और कुछ देर तक सोचने लग गयी। फिर बोली, "आप की बात तो सही है, पर अगर मैंने उसे अपने गले लगाकर शांत करने की कोशिश की और जो आपने कहा वह सब मैंने उसे कहा तो तरुण को तो आप जानते ही हो। वह तो अपने आप को रोकने से रहा। फिर तो मेरा सारा काम तमाम ही हो जाएगा ना?"
मैंने कहा, "तो क्या होगा? याद करो, जब मैंने तुम्हें तरुण को उकसाने के लिए कहा था तब तुमने मुझसे यही सवाल किया था की कुछ ऊपर निचे हो गया तो? तब मैंने क्या कहा था? मेरा आज भी वही जवाब है। अगर कुछ भी हो जाये तो मैं तुम्हें दोष नहीं दूंगा। तरुण तुम्हें क्या कर लेगा जो आज तक उसने नहीं किया। सुबह और अभी कुछ देर पहले ही उसने तुम्हारे बॉल दबाये तो क्या हुआ? कौन सा आसमान टूट पड़ा? वह उन्हें दुबारा दबाएगा और मलेगा? शायद वह तुम्हें मुंह पर चुम्बन कर सकता है। पहले भी तो तुम्हें मुंह में चूमा तो है ही ना? तुम तो कह रही थी की उसने तुम्हारे मुंह में अपना पतलून में ढका हुआ लण्ड भी डाल दिया है? तुम्हारे कूल्हे उसने दबाये है, उसने सब कुछ तो किया है। और क्या करेगा? हाँ उसने तुम्हें चोदा नहीं है। ज्यादा से ज्यादा वह क्या करेगा? उसका लण्ड तुमने पकड़ा या चूसा नहीं है। तो शायद वह तुम्हारे हाथ में उसका लण्ड पकड़ा देगा? तुम्हें चोदने की कोशिश करेगा ना? मानलो की अगर आवेश में उसने तुम्हें चोदने की जिद की और तुम अगर उसे मना नहीं कर पायी तो मैं तुम्हें दोषी नहीं ठहराऊंगा। और तुम्हारा दिया हुआ वचन भी पूरा हो जाएगा।"
मेरी बात सुनकर दीपा चौंक कर मेरी और देख कर बोली, "राज, आप क्या कह रहे हो? आपको कुछ ख्याल भी है की आप क्या कह रहे हो?"
मैंने बिना रुके कहा, "हाँ मैं जानता हूँ की मैं क्या कह रहा हूँ। देखो, अब बनने की क्या जरुरत है। उसने तुम्हें चुदवाने के लिए राजी कर ही लिया है ना? तरुण ऐसा कुछ नहीं कर सकता जो तुम उसे करने नहीं दोगी। जो तुम्हें अच्छा ना लगे वह बिलकुल मत करना। मैं तो तुम्हारे साथ हूँ ना? तुम्हें जो मंजूर है वह तुम्हें करने से मैं नहीं रोकूंगा और जो तुम्हें नामंजूर है वह मैं तरुण को करने नहीं दूंगा। वह क्या करेगा, क्या नहीं करेगा, तुमसे अच्छा कौन जानता है? तुम तरुण को भली भाँती जानती हो। देखो डार्लिंग, अगर उसने तुम्हें चोद दिया तो क्या होगा? आखिर बात तो अपनों की है। अगर अपने हमें कुछ कष्ट भी देते हैं तो हम झेलते हैं की नहीं?"
मेरी प्यारी बीबी गहरे सोच में डूबी हुई मेरी बात बड़े ध्यान से सुन रही थी और बार बार अपना सर हिला अपनी सहमति जता रही थी। दीपा की सकारत्मक प्रक्रिया देख कर मैं रुकने वाला कहाँ था? मैंने कहा, "मैं तो यहां हूँ ना? फिर तुम्हें डर कैसा? तुम खुद ही तो कह रही थी की तरुण एक बड़ा ही सभ्य व्यक्ति है? वह तुम्हें इतना प्यार करता है, वह तुम्हारा इतना सम्मान जो करता है? तुम्हारे पीछे पागल है और एक देवी की तरह तुम्हें पूजता है। तो फिर अगर तुम नहीं चाहोगी तो वह तुम्हारे साथ असभ्य वर्तन क्यों करेगा? और अगर वह तुम्हें चोदेगा तो वह कभी भी तुम्हारी बदनामी नहीं करेगा। इसका तुम्हें पूरा भरोसा है या नहीं?"
दीपा ने कहा, "हाँ डार्लिंग, उसका तो मुझे पूरा भरोसा है, वरना मैं तरुण को क्या आगे बढ़ने देती? पर यह वक्त बहोत नाजुक है। तरुण बड़ी ही संवेदनशील अवस्था में है। मुझे उसे ढाढस देने के लिए उसके काफी करीब जाना पडेगा। उसको गले लगाना पडेगा। मैंने जो पहना है वह तो तुम देख ही रहे हो। ऐसे हालात में तरुण जैसे एक वीर्यवान मर्द को मैं कैसे रोक पाउंगी? वैसे ही वह मुझ पर पागल है और ऐसी हालत में और भी पगला जाएगा। खैर यह ठीक है की वह जबरदस्ती नहीं करेगा। मेरे साफ़ मना करने पर वह आगे नहीं बढ़ सकता। पर अगर उसने जिद की तो मैं इस हालात में उसको रोक भी कैसे सकती हूँ? मैं उसको और दुखी करना नहीं चाहती। और अगर बात कुछ आगे बढ़ी तो फिर उसके बाद हमारा कोई कण्ट्रोल नहीं रह जाएगा। यह तो बड़ी गड़बड़ बात हो गयी। काश टीना यहाँ होती।"
दीपा की बात सुनकर मैं तो मन ही मन दुखी हो गया। मेरे इतना कहने पर मेरी पत्नी इधर उधर की बात कर रही थी पर सीधी चुदवाने की बात पर आ नहीं रही थी। मुझे इतना तो यकीन हो गया था की मेरी बीबी अपने आप को तरुण से चुदवाने के लिए मानसिक रूप से तैयार कर रही थी। वह रात को ही शायद हमारा ध्येय सिद्ध होने वाला था। मेरा दिल तेजी से धड़क धड़क कर रहा था। जल्द ही मेरी बीबी तरुण से चुदने वाली थी उसकी मुझे काफी उम्मीद लग रही थी। बस अब मुझे आखिरी चाल चलनी थी।
मैंने मेरी स्वीटी को मेरी बाँहों में ले लिया और उसे कहा, "डार्लिंग, देखो, टीना होती तो क्या होता यह कौन जानता है? पर आज तुम तो टीना की जगह हो ना? इस समय जरुरी क्या है? जरुरी है अपने दोस्त को ढाढस देना। वह जैसा भी है, हमारा हमदर्द है। देखो तरुण ने तुमसे इतनी बदतमीजी या छेड़छाड़ की पर आखिर में जा कर तुमने क्यों माफ़ कर दिया? क्या कोई और होता तो तुम माफ़ करती? नहीं करती। तुमने माफ़ किया क्यूंकि तुम सच्चे दिल से उसे चाहती हो। हम दोनों तरुण को चाहते हैं। उसे प्यार करते हैं। यह हकीकत है की तुम भी तरुण को चाहती हो, उसे अपना मानती हो। सच सच बोलो तुम तरुण को चाहती हो की नहीं?" मैंने दीपा को जवाब देने पर मजबूर किया। यह एक कांटे की बात थी और मुझे दीपा से कबुल करवाना ही था।
दीपा कुछ देर तक मुझे अजीब सी नज़रों से देखती रही। फीर धीरे से उसने अपनी मुंडी हिलाकर "हाँ, हम दोनों तरुण को चाहते हैं। तुम मुझसे कहलवाना चाहते हो तो मैं कहती हूँ की मैं भी तरुण को चाहती हूँ तभी तो ऐसे यहां तक तुम दोनों के साथ आयी हूँ।"
मेरे लिए यह आखरी तीर था जो अब दीपा के जिगर के पार हो चुका था। अब तो बस फ़तेह करनी थी।
बल्कि वह तो तरुण की प्रशंषा के पूल बाँधने से इतनी खुश हुयी की वह अनायास ही तरुण के पास आई और तरुण ने जब अपने हाथ फैलाए तो वह मुस्कुराती हुयी उसमें समा गयी। मेरी बीबी के फुले हुए गुम्बज के सामान दो गोरे गोरे अल्लड स्तन और उनकी चोटी सम हलकी चॉकलेटी रंग की निप्पलँे जो पतले गाउन में साफ़ दिख रहीं थीं वह सुनील के बाजुओं को छू रहीं थीं। इस बात से दीपा या तो बेखबर थी या उसको उस बात की चिंता नहीं थी। मैं अपनी भोली और सरल पत्नी के कारनामे देख कर दंग रह गया। दीपा ने मेरी और देखा और ऐसे मुंह बनाया जैसे मैं उसका कोई प्रतिद्वंदी हूँ।
वह तरुण के बाँहों में से बाहर आकर तरुण के ही बगल मैं बैठ गयी। दीपा ने मुझे भी अपने पास बुलाया और अपने दूसरी और बिठाया। दीपा मेरे और तरुण के बीचमें बैठी हुयी थी। दीपा ने अपना एक हाथ मेरे और एक हाथ तरुण के हाथ में दे रखा था। हम तीनों एक अजीब से बंधन मैं बंधे हुए लग रहे थे।
दीपा ने तरुण का हाथ थाम कर कुछ हलके से लहजे में पूछा, "तरुण यार मेरी तारीफों के पुल बाँधना छोडो और अब यह बताओ की वह कौनसी ऐसी समस्या है जिस के कारण तुम इतने ज्यादा परेशान हो। तुम आज निस्संकोच हमें बताओ।"
तरुण ने दीपा का हाथ अपने हाथ में लेकर उसे सेहलना शुरू किया और बोला, "दीपक और दीपा, आप दोनों मेरे लिए एक बहुत बड़े सहारे हो। मैं आज अकेला हूँ पर आप दोनों के कारण मैं अकेला नहीं फील कर रहा हूँ। मैं तुम्हें अब एक बड़ी गम्भीर बात कहने वाला हूँ। कुछ ख़ास कारण से मैंने सबसे यह बात छुपाके रखी है। यहां तक की मैंने अपने माता और पिता तक को नहीं बताया।"
अचानक हम सब गम्भीर हो गए।
तरुण ने कहा, "मुझे मेरी कंपनी की और से निकासी का आर्डर मिल गया है। मुझे एक महीने का नोटिस मिला है। दर असल मेरी कंपनी के बड़े बॉस से कोई बात को लेकर मेरी कुछ बहस हो गयी थी जिसके अंत में बॉस ने मुझे नोटिस दे दिया है। उसी कारण से टीना और मेरे बिच में भी तनाव हो गया है। मेरे बॉस से झगडे से टीना खुश नहीं है। ऊपर से उसे मुझ पर एक मेरी पुरानी दोस्त के साथ रिश्ते के बारे में भी कुछ जबरदस्त गलत फहमी हुई है। मुझसे झगड़ कर टीना पिछले १५ दिनसे मायके चली गयी है। मैंने उसे समझाने की और मनाने की लाख कोशिश की पर वह मुझ पर इतनी नाराज है की वापस आने का नाम ही नहीं लेती। अब मेरे पास कोई जॉब नहीं है, बीबी मुझे छोड़ कर चली गयी है। अगर मैं १५ दिन में कोई और जॉब नहीं ढूंढ पाया तो मुझे घर बैठना पड़ेगा। भाभी, बात यहां तक बिगड़ चुकी है की मुझे समझ नहीं आता की मैं घर का इन्सटॉलमेंट कैसे भर पाउँगा और मैं करूँ तो क्या करूँ? मुझे अपने से और अपनी खुदकी जिंदगी से नफरत हो गयी है।" कमरे में जैसे एक मायूस सा वातावरण फ़ैल गया।
तरुण की बात सुनकर मैं और मेरी बीबी दीपा हम दोनों भौंचक्के से एक दूसरे को देखते ही रहे। दीपा का तो हाल ही खराब लग रहा था। वह जो अब तक सुरूर और जोश में थी, तरुण की बात सुनकर उसे जबरदस्त झटका लगा।
अब तरुण वह तरुण नहीं लग रहा था। हम जानते थे की तरुण का पूरा घर उसीकी आमदनी से चलता था। अगर आमदनी रुक गयी तो सब की हालत क्या होगी यह सोचना भी मुश्किल था। कमरे में जैसे समशान सी शान्ति छा गयी। दीपा ने तरुण का हाथ थामा तो तरुण की आँखों में आंसू भर आये। वह अपने आप को सम्हाल नहीं पा रहा था। मैंने और दीपा ने तरुण को थामा और उसको ढाढस देने की कोशिश करने लगे। पर तरुण के आंसू थम ने का नाम नहीं ले रहे थे।
दीपा तरुण के एकदम करीब जा बैठी और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर उसे दबा कर सहलाने लगी। इससे तो तरुण के आंसूं की धार बहने लगी। तरुण अपने जज्बात पर कण्ट्रोल करने की कोशिश कर रहा था। वह दीपा के हाथों को चूमते हुए बोलने लगा, "भाभी जी कोई क्या कर सकता है? आप भी क्या कर सकती हैं? जब टीना ही मुझे छोड़ कर चली गयी तो और क्या हो सकता है? जब अपने ही अपने नहीं रहे तो मैं आपसे क्या उम्मीद रखूं? आप बहुत अच्छीं है। आप मुझे अपना समझती हैं यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। मैं आपको इतना परेशान कर रहा हूँ फिर भी आप मुझे झेल रहे हो इससे मुझे कितना सकून मिलता है यह आप नहीं जानतीं। पर आखिर में आपकी भी तो मजबूरियां है ना? इसमें आपका क्या दोष है? मेरा तो जो होगा देखा जाएगा। मैं जानता हूँ की आप पर भाई काअधिकार है मेरा नहीं। भाभी मैं तो आपको छेड़ कर अपना दिल बहला लेता हूँ, थोड़ी देर के लिए एक खूबसूरत सपना देख लेता हूँ बस। मैं आपसे मेरी हरकतों के लिए माफ़ी माँगता हूँ। आप मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिये। जब मेरे अपने ही मुझे छोड़ कर चले गए तो मेरे रहने ना रहने से क्या फर्क पड़ता है?" ऐसा कहता हुआ तरुण एकदम उठ खड़ा हुआ और अपने आँसूं पोंछता हुआ बैडरूम से निकल कर ड्राइंग रूम को पार कर हमसे दूर बाहर बरामदे में जा कर बाहर सोफे पर बैठ कर दूर दूर अँधेरे में सुनी सड़क को सुनी आँखों से ताकने लगा। मैं उसे बैडरूम और ड्राइंग रूम के खुले दवाजे में से देख सकता था, हालांकि हमारी आवाज तरुण तक नहीं पहुँच सकती थी। उस समय उसके जहन में क्या उथल पुथल हो रही थी वह किसी को नहीं पता।
दीपा भी भावुक हो रही थी। वैसे ही मेरी संवेदनशील बीबी से किसीकी परेशानी देखि नहीं जाती। उपर से उस रात को इतनी अठखेलियां मजाक और छेड़खानी करने के बाद अचानक ही तरुण का ऐसा हाल देख कर दीपा घबड़ा गयी। तरुण की ऐसी हालत उससे देखी नहीं जा रही थी। दीपा उठकर मेरे पास आई। उसकी आँखों में आंसू थे। वह बोली, "अरे देखो तो, तरुण का कैसा हाल हो रहा है। उसे क्या हो गया? इतना जाबांज और नटखट छैले की तरह बात कर रहा था वह, अब क्या हो गया? यार तुम उसके दोस्त हो। जाओ और उसे सम्हालो। टीना को इस वक्त तरुण के पास होना चाहिए था। वह पगली तरुण को ऐसे वक्त में क्यों छोड़ कर चली गयी? तुम क्या कर रहे हो? जाओ अपने दोस्त को सांत्वना दो। उसके पास बैठो, उसको गले लगाओ।"
तब मैंने अपनी पत्नी को अपनी बाँहों में लेते हुए कहा, "देखो आज होली है। आज आनंद का त्यौहार है। तुम क्यों परेशान हो रही हो? हाँ, यह सही है की हमें तरुण को अपने प्यार से शांत करना चाहिए। पर तरुण मेरे ढाढस देने से शांत नहीं होगा। वह तुम्हें इतना चाहता है तुम्हारी खूबसूरती, सेक्सीपन और अक्ल पर इतना फ़िदा है और तुम्हारी इतनी रेस्पेक्ट करता है पर वह तुम से भी नहीं माना तो मेरे कहने से वह थोड़े ही मानेगा? ऐसे वक्त में तो एक पत्नी ही पति को अपना शारीरिक प्रेम देकर शांत कर सकती है। मैं कुछ नहीं कर सकता। तुम्हारी टीना वाली बात बिलकुल सही है।"
दीपा ने मेरी और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा और पूछा, "कौनसी बात?"
मैंने कहा, "इस वक्त टीना को यहां तरुण के पास होना चाहिए था। अगर वह होती तो बेझिझक तरुण को अपनी बाँहों में ले लेती और उससे लिपट कर अपनी छाती में उसका सर छुपाकर अपने बूब्स तरुण के मुंह में दे देती, और उसे अपने बच्चे की तरह अपना दूध चूसने देती, खूब प्यार करती और उसे समझा बुझा कर शांत करती। पर अफ़सोस वह पिछले पंद्रह दिन से यहां नहीं है। तरुण बेचारा वैसे ही पंद्रह दिनों से टीना के बगैर और स्त्री के संग के बगैर ब्रह्मचर्य रख कर तड़प रहा है। उसके जैसे वीर्यवान पुरुष के लिए इतने दिनों तक ब्रह्मचर्य रखना बहुत मुश्किल है। शायद इसी लिए उसने तुमको आज ज्यादा परेशान किया।"
मेरी बात सुन कर दीपा ने सहमति में कुछ भी बोले बगैर अपना सर हिलाया। मेरी पत्नी सोच में पड़ गयी। मैंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, "देखो तरुण ने क्या कहा? उसने कहा की जब अपने, मतलब टीना, ही यहां नहीं है तो वह तुमसे क्या उम्मीद रखे? इसका मतलब है अभी तक तरुण तुम्हें अपनी नहीं समझता। क्या तुम तरुण को अपना समझती हो? तरुण शायद यही कहना चाह रहा था की अपने ही उसे शांत कर सकते हैं।"
मेरी बात सुन कर दीपा का चेहरा कुछ मुरझा सा गया। उसने कहा, "मैंने तरुण को हमेशा अपना समझा है। तभी तो उसकी इतनी सारी छेड़ने वाली हरकतों के बावजूद भी मैंने उसे ज्यादा कुछ नहीं कहा। क्या इतना कुछ करने पर भी तरुण मुझे अपनी नहीं समझता? यह तो गलत है ना?"
मैंने कहा, "वह शायद इस लिए तुम्हें अपनी नहीं समझता क्यों की तरुण जब जोश में आ कर तुम्हारे साथ कभी कुछ ज्यादा छूट ले लेता है तो तुम बिगड़ जाती हो। बात तो सही है। क्यूंकि तुम तरुण और मेरे बिच में फर्क समझती हो। तरुण अगर तुम्हें अपनी मान भी ले तो तुम उसे पत्नी की तरह प्यार थोड़े ही करने दोगी? मेरा यह मानना है की तरुण के इस हाल में औपचारिक ढाढस देने से कोई फर्क नहीं पडेगा। अभी तो प्यार से उसका दिमाग घुमाने की जरुरत है और वह एक पत्नी ही कर सकती है। हाँ अगर चाहो तो तुम जरूर कर सकती हो, क्यूंकि वह तो तुम्हें अपनी पत्नी की तरह ही मानने के और प्यार करने के सपने देखता है, पर वह जानता है की तुम उसे अपना नहीं मानती। क्या मैं गलत कह रहा हूँ?"
मुझे मेरी बीबी का अभिप्राय जानना था। दीपा की आँखें भर आयी थीं। उसने मेरी और देखा और बोली, "दीपक मुझे तुमको एक बात बतानी है। तुम ठीक कह रहे हो। उस दिन जब वह आटे के डिब्बे वाला किस्सा हुआ था ना? याद है? उस दिन बाथरूम में तरुण ने मुझे बहुत परेशान किया था। उसने मेरी ब्रेअस्ट्स दबायी मसली और मुझे लिपट कर किस भी की। वह तो मैंने तुम्हें बताया पर एक बात मैंने तुमसे छुपाई वह यह थी की मैं जब निचे बैठकर उसके पतलून से आटा साफ़ कर रही थी तब उसने अपना लण्ड मेरे मुंह में घुसा दिया था। मतलब लण्ड पतलून के अंदर था पर उसने धक्का मार कर उसे मेरे मुंह में डाल दिया। मैं उसकी हरकतों से इतनी परेशान हो गयी थी की मैंने उसे हाथ जोड़कर मुझे छोड़ने के लिए यह कहा की मैं बाद में वह जो कहेगा वह करुँगी पर उस समय मुझे जाने दे।"
मैं मेरी बीबी की और खुले मुंह देखता ही रहा। मेरा चेहरा देख कर दीपा कुछ सहम गयी और बोली, "मुझे माफ़ कर देना पर मुझे अपने आप पर इतनी नफरत हो गयी थी की क्या बताऊं? तुम्हें यह बता नहीं सकी। मैं उसके चंगुल से भागना चाहती थी। और आज शामको जब हम बाहर निकले और तुम जब फ़ोन पर तुम्हारी बहन से बात कर रहे थे तब पता है उसने क्या किया?"
मैंने पूछा, "क्या किया?"
दीपा ने कहा, "उसने मुझसे वह वचन पूरा करने को कहा।""
मरे लिए तो मेरी भोली बीबी की यह बात एक बिजली गिरने जैसी थी। हालांकि मैं समझ गया था की तरुण ने क्या माँगा होगा, फिर भी मैंने पूछा, "क्या वचन माँगा उसने?"
दीपा ने मुरझाती हुई आवाज में नजरें झुकाते हुए कहा, "उसने मुझे उससे चुदवाने का वचन आज मांग लिया।"
मैंने जैसे बिजली गिरी हो ऐसे आश्चर्य दिखाते हुए पूछा, "क्या? दीपा तुम क्या कह रही हो? फिर तुमने क्या कहा?"
दीपा की आँखों में आँसूं भर आये। वह बोल नहीं पा रही थी। आखिर में उसने कहा, "मैं क्या कहती? मैंने उसे कहा, यह उसने गलत किया है। उसने मुझसे धोखाधड़ी की है। पर मैं करूँ तो क्या करूँ? मैंने उसे वचन जो दे दिया था?" उसने मेरी और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा।
मैंने मेरी बीबी को ढाढस दिलाते हुए कहा, "धोखे से दिया गया वचन पालने की तुम्हें कोई जरुरत नहीं है। वैसे मुझे लगता है की यह अच्छा ही हुआ की तुमने उसे ऐसा वचन दिया।"
दीपा ने मेरी और पैनी नजर से देखा और पूछा, "क्यों? तुम ऐसा क्यों कहते हो?"
मैंने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा, "यह तो बहुत ही अच्छा हुआ क्यूंकि अब तुम्हें अगर तरुण चोदता भी है तो तुम्हें कोई रंज नहीं होना चाहिए। वैसे भी तो तुम्हें उससे चुदवाना पडेगा ही क्यों की तुमने वचन जो दिया है? तो बेहतर ही की तुम तरुण को यह एहसास दिलाओ की टीना नहीं है तो क्या हुआ? तुम पत्नी भले ही नहीं हो पर तुम उसे पत्नी का प्यार क्यों नहीं दे सकती? तुम उसे यह एहसास दिलाओ की तरुण भी तुम्हारा अपना है। तरुण का भी तुम पर अधिकार है। तुम सिर्फ अपने पति की ही नहीं, तरुण की जरुरत का भी ध्यान तुम एक पत्नी की तरह रख सकती हो। जैसे टीना नहीं है तो तुम तरुण के खाने का ख्याल रख सकती हो वैसे ही आज जब टीना नहीं है तो क्या तुम तरुण की दूसरी जरूरतों का ध्यान नहीं रख सकती? क्या तुम तरुण को एक पत्नी का प्यार नहीं दे सकती? क्या तुम तरुण को नयी जिंदगी नहीं दे सकती? क्या प्यार का मतलब सिर्फ छेड़खानी करना या हंसी मजाक करना ही है?"
मेरी बात सुनकर दीपा सहम गयी और कुछ देर तक सोचने लग गयी। फिर बोली, "आप की बात तो सही है, पर अगर मैंने उसे अपने गले लगाकर शांत करने की कोशिश की और जो आपने कहा वह सब मैंने उसे कहा तो तरुण को तो आप जानते ही हो। वह तो अपने आप को रोकने से रहा। फिर तो मेरा सारा काम तमाम ही हो जाएगा ना?"
मैंने कहा, "तो क्या होगा? याद करो, जब मैंने तुम्हें तरुण को उकसाने के लिए कहा था तब तुमने मुझसे यही सवाल किया था की कुछ ऊपर निचे हो गया तो? तब मैंने क्या कहा था? मेरा आज भी वही जवाब है। अगर कुछ भी हो जाये तो मैं तुम्हें दोष नहीं दूंगा। तरुण तुम्हें क्या कर लेगा जो आज तक उसने नहीं किया। सुबह और अभी कुछ देर पहले ही उसने तुम्हारे बॉल दबाये तो क्या हुआ? कौन सा आसमान टूट पड़ा? वह उन्हें दुबारा दबाएगा और मलेगा? शायद वह तुम्हें मुंह पर चुम्बन कर सकता है। पहले भी तो तुम्हें मुंह में चूमा तो है ही ना? तुम तो कह रही थी की उसने तुम्हारे मुंह में अपना पतलून में ढका हुआ लण्ड भी डाल दिया है? तुम्हारे कूल्हे उसने दबाये है, उसने सब कुछ तो किया है। और क्या करेगा? हाँ उसने तुम्हें चोदा नहीं है। ज्यादा से ज्यादा वह क्या करेगा? उसका लण्ड तुमने पकड़ा या चूसा नहीं है। तो शायद वह तुम्हारे हाथ में उसका लण्ड पकड़ा देगा? तुम्हें चोदने की कोशिश करेगा ना? मानलो की अगर आवेश में उसने तुम्हें चोदने की जिद की और तुम अगर उसे मना नहीं कर पायी तो मैं तुम्हें दोषी नहीं ठहराऊंगा। और तुम्हारा दिया हुआ वचन भी पूरा हो जाएगा।"
मेरी बात सुनकर दीपा चौंक कर मेरी और देख कर बोली, "राज, आप क्या कह रहे हो? आपको कुछ ख्याल भी है की आप क्या कह रहे हो?"
मैंने बिना रुके कहा, "हाँ मैं जानता हूँ की मैं क्या कह रहा हूँ। देखो, अब बनने की क्या जरुरत है। उसने तुम्हें चुदवाने के लिए राजी कर ही लिया है ना? तरुण ऐसा कुछ नहीं कर सकता जो तुम उसे करने नहीं दोगी। जो तुम्हें अच्छा ना लगे वह बिलकुल मत करना। मैं तो तुम्हारे साथ हूँ ना? तुम्हें जो मंजूर है वह तुम्हें करने से मैं नहीं रोकूंगा और जो तुम्हें नामंजूर है वह मैं तरुण को करने नहीं दूंगा। वह क्या करेगा, क्या नहीं करेगा, तुमसे अच्छा कौन जानता है? तुम तरुण को भली भाँती जानती हो। देखो डार्लिंग, अगर उसने तुम्हें चोद दिया तो क्या होगा? आखिर बात तो अपनों की है। अगर अपने हमें कुछ कष्ट भी देते हैं तो हम झेलते हैं की नहीं?"
मेरी प्यारी बीबी गहरे सोच में डूबी हुई मेरी बात बड़े ध्यान से सुन रही थी और बार बार अपना सर हिला अपनी सहमति जता रही थी। दीपा की सकारत्मक प्रक्रिया देख कर मैं रुकने वाला कहाँ था? मैंने कहा, "मैं तो यहां हूँ ना? फिर तुम्हें डर कैसा? तुम खुद ही तो कह रही थी की तरुण एक बड़ा ही सभ्य व्यक्ति है? वह तुम्हें इतना प्यार करता है, वह तुम्हारा इतना सम्मान जो करता है? तुम्हारे पीछे पागल है और एक देवी की तरह तुम्हें पूजता है। तो फिर अगर तुम नहीं चाहोगी तो वह तुम्हारे साथ असभ्य वर्तन क्यों करेगा? और अगर वह तुम्हें चोदेगा तो वह कभी भी तुम्हारी बदनामी नहीं करेगा। इसका तुम्हें पूरा भरोसा है या नहीं?"
दीपा ने कहा, "हाँ डार्लिंग, उसका तो मुझे पूरा भरोसा है, वरना मैं तरुण को क्या आगे बढ़ने देती? पर यह वक्त बहोत नाजुक है। तरुण बड़ी ही संवेदनशील अवस्था में है। मुझे उसे ढाढस देने के लिए उसके काफी करीब जाना पडेगा। उसको गले लगाना पडेगा। मैंने जो पहना है वह तो तुम देख ही रहे हो। ऐसे हालात में तरुण जैसे एक वीर्यवान मर्द को मैं कैसे रोक पाउंगी? वैसे ही वह मुझ पर पागल है और ऐसी हालत में और भी पगला जाएगा। खैर यह ठीक है की वह जबरदस्ती नहीं करेगा। मेरे साफ़ मना करने पर वह आगे नहीं बढ़ सकता। पर अगर उसने जिद की तो मैं इस हालात में उसको रोक भी कैसे सकती हूँ? मैं उसको और दुखी करना नहीं चाहती। और अगर बात कुछ आगे बढ़ी तो फिर उसके बाद हमारा कोई कण्ट्रोल नहीं रह जाएगा। यह तो बड़ी गड़बड़ बात हो गयी। काश टीना यहाँ होती।"
दीपा की बात सुनकर मैं तो मन ही मन दुखी हो गया। मेरे इतना कहने पर मेरी पत्नी इधर उधर की बात कर रही थी पर सीधी चुदवाने की बात पर आ नहीं रही थी। मुझे इतना तो यकीन हो गया था की मेरी बीबी अपने आप को तरुण से चुदवाने के लिए मानसिक रूप से तैयार कर रही थी। वह रात को ही शायद हमारा ध्येय सिद्ध होने वाला था। मेरा दिल तेजी से धड़क धड़क कर रहा था। जल्द ही मेरी बीबी तरुण से चुदने वाली थी उसकी मुझे काफी उम्मीद लग रही थी। बस अब मुझे आखिरी चाल चलनी थी।
मैंने मेरी स्वीटी को मेरी बाँहों में ले लिया और उसे कहा, "डार्लिंग, देखो, टीना होती तो क्या होता यह कौन जानता है? पर आज तुम तो टीना की जगह हो ना? इस समय जरुरी क्या है? जरुरी है अपने दोस्त को ढाढस देना। वह जैसा भी है, हमारा हमदर्द है। देखो तरुण ने तुमसे इतनी बदतमीजी या छेड़छाड़ की पर आखिर में जा कर तुमने क्यों माफ़ कर दिया? क्या कोई और होता तो तुम माफ़ करती? नहीं करती। तुमने माफ़ किया क्यूंकि तुम सच्चे दिल से उसे चाहती हो। हम दोनों तरुण को चाहते हैं। उसे प्यार करते हैं। यह हकीकत है की तुम भी तरुण को चाहती हो, उसे अपना मानती हो। सच सच बोलो तुम तरुण को चाहती हो की नहीं?" मैंने दीपा को जवाब देने पर मजबूर किया। यह एक कांटे की बात थी और मुझे दीपा से कबुल करवाना ही था।
दीपा कुछ देर तक मुझे अजीब सी नज़रों से देखती रही। फीर धीरे से उसने अपनी मुंडी हिलाकर "हाँ, हम दोनों तरुण को चाहते हैं। तुम मुझसे कहलवाना चाहते हो तो मैं कहती हूँ की मैं भी तरुण को चाहती हूँ तभी तो ऐसे यहां तक तुम दोनों के साथ आयी हूँ।"
मेरे लिए यह आखरी तीर था जो अब दीपा के जिगर के पार हो चुका था। अब तो बस फ़तेह करनी थी।