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Adultery चाहत... {completed}
#22
Tongue 
मौक़ा देख कर मैंने कह दिया, "तुम तरुण को देवर समझो या बहनोई, या तरुण तुम्हें भाभी समझे या साली, क्या फर्क पड़ता है? छुरी पर खरबूजा गिरे या खरबूजे पर छुरी, कटना तो खरबूजा ही है।"


दीपा ने आँखें टेढ़ी करके पूछा, "आपका क्या मतलब है? मैं साली हूँ या भाभी, मैं आधी घरवाली तो रहूंगी ही, क्या तुम ऐसा कहना चाहते हो? या फिर तुम यह कहना चाहते हो की आज चाहे कुछ भी हो जाए आप लोगों से मुझे ही कटना है?"

मुझे मेरी बीबी की बात से ऐसा लगने लगा की कहीं ना कहीं उसके मन में यह साफ़ हो गया था की मैं और तरुण मिलकर मेरी प्यारी बीबी को चोदने का प्लान बना रहे थे। और अब तो वह तरुण को भी उसे छेड़ने के लिए उकसा रही थी। कहीं ऐसा तो नहीं की वह खुद तरुण से चुदवाना चाहती थी और हमें मोहरा बना रही थी?


तरुण ने मुस्काने की कोशिश की पर उसकी मुस्कान में भी ग़म की छाया थी। तरुण ने दीपा की और दुःख भरी नज़रों से देखा पर कुछ ना बोला।

तरुण को तो उस समय बड़ा खुश होना चाहिए था। पर तरुण की शक्ल रोनी सी हो रही थी। दीपा बड़ी उलझन में थी। तरुण के मूड में यह परिवर्तन दीपा की समझ में नहीं आया। दीपा ने तब मुझे इशारा किया की मैं सब के लिए एकएक पेग बना के लाऊं।

तरुण ने मेरी पत्नी का इशारा देख लिया था। तरुण ने तुरंत फुर्ती से उठकर अपने बार से एक व्हिस्की और एक जीन की बोतल निकाली और दो गिलास में व्हिस्की और एक गिलास में जीन डालने लगा तो दीपा ने जोर से कहा, "तरुण, रुको, मेरे गिलास में भी व्हिस्की डालो। आज मैं अपने पति को दिखाना चाहती हूँ की एक स्त्री भी पुरुष का मुकाबला कर सकती है। "

दीपा ने तरुण के हाथ से व्हिस्की की बोतल ले कर अपने गिलास में भी व्हिस्की डाली। तरुण भौंचक्का सा देखता ही रह गया। मेरे भी आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। मैंने देखा तो दीपा ने व्हिस्की के साथ कुछ भी मिलाया नहीं और वह गिलास को देखते ही देखते साफ़ कर गयी। व्हिस्की अंदर जाने से दीपा ने कुछ देर के लिए अपनी आँखें मूंद लीं। उसे व्हिस्की का टेस्ट जमा नहीं पर दीपा कैसे भी व्हिस्की को गटागट पी गयी। मैंने सोचा हाय, आज तो जीन और व्हिस्की का खतरनाक मिलन हो गया था। आज तो क़यामत आने वाली है।

मैंने और तरुण ने भी अपने गिलास खाली किये। तरुण ने फिर अपनी गंभीर आवाज में कहा, "देखो हमारे पास पूरी रात पड़ी है। आप जो सुनना चाहते हो वह एक लम्बी कहानी है। आज हमें बहु बात करनी है। बातें करने से पहले क्यों न हम अपने कपडे बदलें और फिर आराम से बात करें। बात कर के हम चाहें तो सुबह थोड़ी देर के लिए सो सकते हैं। दीपक, तुम मेरे नाईट सूट को पहनलो। दीपा भाभी क्या मैं आप को टीना की कोई नाईटी दूँ?"

मैंने दीपा की और इशारा करते हुए तरुण को बोला, " लाओ भाई। मैं तो एक मर्द हूँ। मुझे खुले में कपडे बदलने में कोई झिझक नहीं है। तुम इस मैडम को पूछो, क्या इसे कोई एतराज है?"

तरुण ने अपना एक नाईट सूट मेरी तरफ बढ़ाया। मैंने उसे अपने हाथों में लिया और दीपा और तरुण के सामने अपने कपडे उतारे ओर सिर्फ जांघिया पहने हुए तरुण का कुर्ता पहना और फिर जांघिया भी निकाल दिया और पजामा पहना। ऐसा करते हुए, मेरा आधा खड़ा लण्ड सब को दिख गया। मैंने उसे छुपाने की कोशिश नहीं की। मैं मेरी बीबी को दिखाना चाहता था की मर्द को औरत की तरह फ़ालतू की शर्म नहीं होती। दीपा मेरे लण्ड का तरुण के सामने मुझे प्रदर्शन करते हुए देख कर चौंक गयी और कुछ सहम भी गयी। दीपा और मैं वैसे भी रात को अंदर के कपडे नहीं पहनते थे।

दीपा ने तरुण की और मुड़ते हुए लहजे में कहा, "सुना और देखा तुमने तरुण? मेरे पति कितने बेशर्म और निर्लज्ज हैं? खुद को नंगा होने में शर्म नहीं पर क्या वह अपनी पत्नी को भी दूसरे के सामने नंगी करवाना चाहते हैं?"

मैंने पट से कहा, "अरे भाई तरुण कोई दुसरा या बाहर का थोड़े ही है? अभी अभी तो तुम कह रही थी की हम तरुण के करीबी हैं और तरुण हमारा अपना करीबी है और हमको एक दूसरे से कुछ भी छुपाना नहीं चाहिए?"

दीपा ने कहा, "बात अगर जिद की है, तो मैं भी पीछे हटनेवालों में से नहीं हूँ। अगर मेरे पति ही मुझे नंगी करना चाहते हैं तो भला मैं क्यों पीछे हटूंगी? बात आज इज्जत की है। अगर वह जिद्दी हैं तो मैं डबल जिद्दी हूँ। मुझे तुम्हारे या टीना के कपडे यहीं पर पहनने में कोई एतराज नहीं है। लाओ, कहाँ है टीना का नाईट गाउन?" दीपा की आवाज में साफ़ थरथर्राहट थी। मैं समझ गया की दीपा को अच्छी खासी चढ़ गयी है।

तरुण ने जल्दी से चुन कर टीना का वह नाईट गाउन निकाला जो एकदम पतला और लगभग पारदर्शी सा था। तरुण ने अपने हनीमून पर टीना के लीये वह ख़रीदा था।

तरुण ने आगे से थोड़ा झुक कर बड़े अदब से कहा, "भाभीजी, भले ही मैं आपके खूबसूरत बदन को सेक्सी नजर से देखता हूँ और उसे चाहता हूँ, पर इसका मतलब यह नहीं है की आप मेरे लिए बड़े सम्मान के पात्र नहीं हो। दीपक तो पागल हो गया है। अरे उसे शिष्टता का भी ध्यान है के नहीं?"

फिर मेरी और मुड़ कर बोला, "भाई आप का दिमाग ठिकाने नहीं है। आप को मुझे सम्हालना चाहिए। उसकी जगह आप तो मेरी भाभी को ही परेशान कर रहे हो। मैं अकेला ही काफी हूँ भाभी को परेशान करने के लिए। मेरा दिमाग वैसे ही बिगड़ा हुआ है, उसे और मत बिगाड़ो।"

तरुण ने दीपा से कहा, "भाभी, भाई का भी दिमाग खराब है। उनकी मत सुनो। स्त्रियों का पुरुषों से कोई मुकाबला ही नहीं है। स्त्रियाँ पुरुषों से कहीं ज्यादा ऊँची और कई गुना ज्यादा महत्वपूर्ण है। जो काम स्त्रियां कर सकती हैं क्या वह पुरुष कर सकता है? क्या पुरुष बच्चों को जनम दे सकता है?"

फिर तरुण ने मुझे कहा, "भाई फ़ालतू की बातें मत करो यार! क्या मेरी भाभी मेरे सामने अपने कपडे बदलेगी? आप को शिष्टता का ध्यान ना हो पर मुझे तो है ना?"

और फिर दीपा को कहा, "भाभीजी आप रुक जाओ। मैं यहां से चला जाता हूँ। आप आराम से अपने कपडे बदलो तब तक मैं भी अपना नाईट गाउन पहनकर आता हूँ।"

दीपा को वह गाउन पकड़ा कर तरुण वहाँ से गायब हो गया। तरुण का सभ्यता पूर्ण व्यवहार देख कर दीपा हैरान रह गयी। उसे डर था की कहीं तरुण वहां खड़े रहने की जिद ना करे। तरुण यदि जिद करता तो दीपा को शायद उसके सामने मजबूर हो कर कपडे बदलने पड़ते। तब तरुण मेरी बीबी को ब्रा और पैंटी में देख लेता। दीपा की नंगी जाँघों की झलक ही तरुण ने पहले देखीं थीं। अगर तरुण की हाजरी में कपडे बदलती तो दीपा की सुआकार नंगी जांघें भी तरुण दुबारा देख लेता। मेरी बीबी रात को अंडरवियर पहनना पसंद नहीं करती थी। अगर तरुण देखता तो मजबूरन उसे पैंटी और ब्रा पहननी पड़तीं। पर तरुण ने ऐसा कुछ नहीं किया। उसने दीपा को अकेले में (उसके पति के सामने ही) कपडे बदलने का मौक़ा दिया। इस बात से दीपा तरुण की एक तरह से ऋणी बन चुकी थी।

अब दीपा के मनमें तरुण के प्रति बेहद सौहार्दपूर्ण भाव हो गया था। उसके लिए तरुण एक शिष्ट, सभ्य और अत्यन्त संवेदनशील आदमी था जिसको महिलाओं का सम्मान करना भली भांति आता था। अगर तरुण ने पहले दीपा से कुछ ज्यादा ही छूट ली थी तो वह एक वीर्यवान मर्द का एक सेक्सी स्त्री को देख कर होने वाली स्वाभाविक प्रतिक्रया मात्र थी ("क्या करें? ऐसा हो जाता है") ऐसा दीपा मानने लगी थी। सुबह और अभी कुछ देर पहले वाली तरुण की शरारत को वह ना सिर्फ माफ़ कर चुकी थी बल्कि भूल चुकी थी।

दीपा ने टीना का गाउन हाथ में लिया, तब मैंने उसे कहा, "अब इसे पहनलो और अपने अंदर के कपड़ों को निकाल कर अलग से रखना ताकि कल सुबह हम उसे फिर से पहन सकें। दीपा ने इधर उधर देखा। तरुण जा चूका था। तब उसने मेरे सामने ही अपने कपडे उतारे और ब्लाउज पैंटी , ब्रा इत्यादि तह करके बैडरूम के कोने में रख दिए। वैसे तो मेरी बीबी मेरे सामने नंगी होने में हमेशा सकुचाती थी, पर उस रात को उसने मेरे सामने बेधड़क नंगी हो कर अपने कपडे बदले। वह साबित करना चाहती थी की वह भी मुझसे कुछ कम नहीं थी। मुझे डर था की कहीं तरुण दरवाजे के पीछे से छुपकर ना देख रहा हो। पर तरुण ने जाते हुए दरवाजा बंद कर दिया था।

मैंने दीपा को कई बार नंगे देखा था। पर उस रातकी बात ही कुछ और थी। दीपा की आँखों में वह सुरूर मैंने पहली बार देखा। वह शराब से नहीं था। उसकी तरुण द्वारा की गयी भूरी भूरी प्रशंशा से दीपा को अपने स्त्री होने का गर्व महसूस हो रहाथा। तरुण दीपा को स्त्री होना एक गर्व की बात थी यह अहसास दिलाने में कामयाब हुआ था।

मैंने मेरी पत्नी को उस गाउन में जब देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। ऊपर से वह गाउन काफी खुला हुआ था। उसमें से दीपा के दोनों मस्त स्तन आधे दिख रहे थे। बस निप्प्लें छिपी हुई थीं। वह गाउन इतना पारदर्शी सा था की उसके पिछे की रौशनी में उसकी जांघें, दीपा की नुकीली और सुआकार गाँड़, उसके गुब्बारे जैसे भरे हुए करारे तने हुए स्तन, चॉकलेटी एरोला के बिलकुल बिच में कड़क गाढ़ी निप्पलेँ बल्कि उसकी चूत की गहराई तक नजर आ रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसने कपडे पहने ही नहीं थे। मेरा माथा यह सोचकर ठनक गया की जब तरुण उसे इस हाल में देखेगा तो उसके ऊपर क्या बीतेगी।

मुझे डर था की कहीं दीपा को ऐसी ड्रेस पहनी हुई देख कर वह अपना आपा ना खो बैठे और दीपा को बाँहों में पकड़ा कर वह गाउन को उतार कर उसे चोदने के लिये आमादा ना हो जाए।

तभी मैंने तरुण को अपने हाथों से तालियां बजाते हुए सूना। उसने दीपा को उस गाउन में देख लिया था। वह दीपा के पास आया और जैसे दीपा के कानों में फुसफुसाता हुआ बोला, "भाभी आप इस गाउन मैं मेनका से भी अधिक सुन्दर लग रही हो। मैं भगवान की सौगंध खा कर कहता हूँ की मैंने आज तक आप जितनी सुन्दर स्त्री को नहीं देखा।"

तरुण ने आगे बढ़कर दीपा से पूछा, "क्या मैं आप को छू सकता हूँ?"

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चाहत... {completed} - by usaiha2 - 07-12-2019, 07:05 PM
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RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 07-12-2019, 07:49 PM
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RE: चाहत... {completed} - by kamdev99008 - 15-12-2019, 01:51 AM
RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 22-01-2020, 04:25 PM
RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 07-04-2020, 10:43 PM
RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 12-05-2021, 09:50 AM
RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 01-08-2021, 04:09 PM
RE: चाहत... {completed} - by dickcassidy - 08-08-2021, 01:15 AM
RE: चाहत... {completed} - by raj500265 - 21-08-2022, 01:01 AM
RE: चाहत... {completed} - by koolme98 - 01-02-2023, 04:34 PM



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