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Adultery चाहत... {completed}
#21
Tongue 
दीपा ने मेरी और कुछ देर तक एकटकी लगाकर देखते हुए कहा,"तुम क्यों पूछ रहे हो? मैंने अभी अभी क्या कहा? आज तक ऐसा कभी हुआ है की मैंने ना नुक्कड़ भले ही की हो, पर तुम्हें कहीं भी किसी भी मामले में साथ ना दिया हो? चाहे मैं राजी हूँ या नहीं पर मैंने आखिर में जा कर तुम्हारी बात मानी है की नहीं?" फिर क्यों पूछ रहे हो? बोलो तुम मुझसे क्या चाहते हो?"


मैं क्या बोलता? यदि मैं उस समय दीपा को अचानक यह साफ़ साफ़ कह देता की मुझे उसको तरुण से चुदवाना है, तो पता नहीं क्या होता? शायद दीपा मेरी बात पर सोचती और शायद मान भी जाती, पर ज्यादातर मुझे यही लगा की वह मुझे वहीँ की वहीँ ऐसा लताड़ती की सब कुछ गड़बड़ हो जाता। और तरुण की भी शायद ऐसी की तैसी कर देती। मैंने उस समय इस बात को आगे बढ़ाना ठीक नहीं समझा और चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी। पर हाँ, मुझे तब यकीन हो गया की अब कहीं ना कहीं दीपा भी शायद समझ गयी थी की हम दोनों उसे चोदने का प्लान कर रहे थे और उसे चोद कर ही छोड़ेंगे। पर तब भी शायद वह यह बात हम से सुन कर उसे पचा ना पाती और हमारे प्लान पर पानी फेर देती।

मुझे मेरी प्यारी बीबी को खुद ही चुदाई करवाने के लिए राजी हो जाए ऐसी स्थिति में लाना था। हालांकि शायद वह मानसिक रूप से चुदवाने के लिए तैयार हो चुकी थी पर उस समय दीपा काफी उत्तेजक स्थिति में थी और तरुण की हरकतों से तंग आ चुकी थी। मैं मेरी प्यारी बीबी को तंग होकर चुदवाने के लिए तैयार नहीं करना चाहता था। लोहा गरम हो चुका था। मौक़ा देख कर अब हथोड़ा ही मारना था। तो अब फ़ौरन बिना समय गँवाये सही समय और माहौल बनाना पडेगा जिससे की दीपा खुद ही अपनी मर्जी से मेरे सामने ही तरुण से चुदवाने के लिए तैयार हो जाए। और मुझे काफी हद तक यह भरोसा हो गया की दीपा शायद तैयार हो ही जाए। हमारा प्लान तैयार था। बस मौके का इंतजार था।

मैंने कहा, "तुम पूछती हो हम क्या चाहते हैं? आजकी रात हम दोनों को बस दीपा चाहिए। आज तुम हमारे साथ बेझिझक मौज करो यही हम चाहते हैं। जानेमन, हम तो आज होली के मजे लेने के लिए आये हैं। तरुण ने थोड़ी सी छूट लेली तो इतना क्यों तिलमिलाती हो डार्लिंग? मैं तो तुम्हारे पीछे पागल हूँ ही। वैसे ही तरुण भी तुम्हारे सामने आते ही लम्पट बन्दर की तरह पागल सा हो जाता है और तुम्हारे तलवे चाटने लगता है। अब शांत हो जाओ और देखो यह तुम्हारा पागल बन्दर अब तक उठक बैठक कर रहा है। उसे मनाओ।"

दीपा ने थोड़ा मुस्कराते हुए कहा, "अरे मैं शांत ही हूँ। और तुम्हारी दीपा कहाँ भागी जा रही है? मैं तुम दोनों के साथ ही हूँ ना, और एन्जॉय भी कर रही हूँ। तुमने मुझे ऐसा सेक्सी ड्रेस पहनने को कहा और मंब बेवकूफ तुम्हारी बातों में आ गयी और मैंने पहन भी लिया। अब देखो क्या हो रहा है? तुम्हारे बन्दर ने और तुमने मिल कर मेरे ड्रेस की ऐसी की तैसी कर दी। मुझे तुम लोगों ने आधी नंगी ही कर दिया। तुम कहीं सचमुच मुझे तरुण के सामने पूरी नंगी तो नहीं करना चाहते हो? लगता है, मुझे तो तुम्हारे इस बन्दर के सामने बुरखा पहन कर ही आना चाहिए था। तब अगर उसे मेरी शकल ना दिखे तो हो सकता है वह मेरे से कुछ सभ्यता से पेश आये।"

मैं दीपा से कहा, "डार्लिंग, आज की रात तो सभ्यता की बात ना करो प्लीज?"

तरुण कार के बाहर उठक बैठक लगा रहा था उसे देख कर दीपा हँस पड़ी और बोली, "बस करो बन्दर। अब तुम ज़रा दूसरी तरफ घूम जाओ। तुमने मेरे कपड़ों की ऐसी की तैसी कर दी है, उसे ठीक करने दो। भाई अगर तुम बन्दर हो तो मैं बंदरिया ही हुई ना? तुम्हारी इस बंदरिया को मतलब मुझे साडी बगैरह कपडे ठीक तरह से पहनने दो।" आखिर में दीपा ने अपने आप ही खुद को तरुण की बंदरिया बता दिया ताकि तरुण बन्दर कहे जाने पर बुरा ना मान जाए।

तरुण ने भाभी को हाथ जोड़ कर कहा, "भाभीजी अब माफ़ भी करदो। आप ने मुझे बन्दर तो करार कर ही दिया है तो मेरी हरकतों का बुरा मत मानना, प्लीज। अब तो हम बन्दर बंदरिया का खेल खेल सकते हैं ना?"

दीपा ने थोड़ा मुस्करा कर एक हाथ ऊपर कर कहा, "ठीक है भाई, इस बंदरिया ने तुम बन्दर को माफ़ कर दिया। पता नहीं तुम दोनों भाई मिल कर मेरे साथ क्या क्या खेल खेलोगे? तुम दोनों ने मिलकर तो मुझे करीब करीब नंगी ही कर दिया है। मैं ऐसे कपड़ों में तो प्रोग्राम में जा नहीं सकती। अब तुम मुझे मेरे कपडे ठीक से पहनने दो। यार अब थोड़ा सीरियस हो जाओ।"

तरुण कार से थोड़ी दूर अँधेरे में घूम कर जा खड़ा हुआ। दीपा ने अपनी साडी फिर ठीक तरह से बाँध ली और ब्रा और ब्लाउज ठीक किये। मेरी बात सुनकर दीपा थोड़ी सी रिलैक्स लग रही थी। अपने आप को सम्हाल कर बोली, "देखो, छेड़ाछाड़ी ठीक है, पर एक लिमिट होनी चाहिए। यह बन्दा कभी सीरियस भी होगा की नहीं?"

मैंने कहा, " मैंने कहा, "मेरी बात मानो, वह बहुत ज्यादा सीरियस है। उसे सीरियस होने के लिए मत कहो। बस वह तुन्हें देखता है और तुम्हारे साथ मस्ती करता है तभी वह कुछ देर के लिए अपना दर्द भूल जाता है। आज टीना नहीं है तो वह और भी परेशान है। उसके सर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। क्या तुम्हें पता है, उस बेचारे के साथ क्या हुआ है?"

दीपा मेरी बात सुन कर चौंक सी गयी। तरुण ने कई बार कुछ सीरियस बात है उसका जिक्र किया तो था पर तब तक दीपा सोच रही थी की कोई मामूली सी बात होगी। पर मामला कुछ ज्यादा ही सीरियस लग रहा था। दीपा ने मेरी और चिंता भरी नजरों से देखा और बोली, " हुआ क्या?"

मैंने कहा, "चलो तरुण को ही पूछ लेते हैं।" हम ने तरुण को बुलाया।

तरुण मुझे और दीपा को फुस्फुस करते देख कर बोला, "क्या बात है? मियाँ बीबी क्या फुस्फुस कर रहे हो? भाभी, आज आपने मुझे काफी झाड़ लगा दी है। मुझे झाड़ने की कोई और बात तो नहीं है?"

दीपा ने कहा, "नहीं तरुण ऐसी कोई बात नहीं। पर तुम बताओ, तुम दीपक को कह रहे थे की तुम कोई ख़ास बात करना चाहते हो? क्या बात है?"

तरुण मेरी बात सुनकर तरुण थोड़ा सीरियस हो गया। उसने कहा, "भाभी, मैं बताऊंगा। आपको नहीं बताऊंगा तो किसको बताऊंगा? पर आज आपकी कंपनी में मैं बिलकुल सीरियस होना नहीं चाहता। मैं आज होली की मस्ती और पागलपन ही करना चाहता हूँ। रोने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है। अभी तो आप यह बताओ की अब वह कवी सम्मलेन में वापस जाना है क्या?"

मैंने कहा, "मुझे तो कवी सम्मलेन से तेरी बातों में ज्यादा रस आ रहा है। भाई अब तेरे मित्र की अधूरी बात तो पूरी कर।"

दीपा ने मेरी बात को बिच में काटते हुए कहा, "तरुण अब अपने दोस्त से पूछो की मैंने तुम्हारी सेक्स वाली बात पूरी सुनी के नहीं? अब तो वह मेरी बात को कबुल करें की स्त्रियां पुरुषों से बिल्कुल कम नहीं। "

मैंने कहा, "मैं अब भी नहीं मानता। तुमने बात जरूर सुनी, पर जैसे ही थोड़ा सा नाजुक वक्त आएगा तो तुम भाग खड़ी हो जाओगी।"

तरुण ने मेरी बात को सिरे से खारिज करते हुए कहा, "तू क्या बकवास कर रहा है दीपक? तुझे पता है तू कितना भाग्यशाली है दीपा को पाकर? दीपा भाभी जितनी अक्लमंद, सुन्दर, सयानी और इतनी हिम्मत वाली पत्नी बड़े भाग्य से मिलती है।"

मैंने तरुण को टोकते हुए कहा, "ऐसा मत बोल यार। टीना भी बहुत अच्छी हैं। तू भी बहोत तक़दीर वाला है।"

तरुण ने अपनी जिद पर अड़े रहते हुए कहा, "मैंने माना की टीना भी बहोत अच्छी है, पर भाभी से कोई मुकाबला नहीं। तूम तो यार सच में तक़दीर वाले हो। देखो मेरी बात को सीरियसली मत लेना पर मैं सच में कह रहा हूँ आज भी अगर तुम और भाभी तैयार हों तो मैं तो अदलाबदली के लिए तैयार हूँ। भाई आप भाभी मुझे देदो और टीना को आप रखलो। भाई मैं दीपा भाभी की पूजा करूंगा और उनपर कोई भी कष्ट का साया तक नहीं पड़ने दूंगा।"

तरुण की बात सुन कर मैं दंग रह गया। तरुण ने बीबियों की अदलाबदली करने वाली बात उस रात साफ़ साफ़ हम दोनों को कह दी। मैंने दीपा की और देखा। वह भी तरुण की बात सुन कर उसकी और अजीब सी नजरों से देखने लगी। तब तरुण ने बात को घुमाते हुए कहा, " यह तो खैर कहने वाली बात है। पर वाकई में दीपक भाई, मैंने आजतक दीपा भाभी के समान अक़्लमंद, सुन्दर, सेक्सी, हिम्मत वाली स्त्री कहीं नहीं देखि।"

मैंने देखा की दीपा ने अदला बदली वाली बात को अनसुना कर दिया। पर तरुण की तारीफ़ सुनकर दीपा को और जोश आया। वह मेरी तरफ देख के बोली, "तुम यह तो मानोगे की तरुण ने कई लड़कियों और औरतों को बहोत करीब से देखा है और समझा है। तुम मानते हो ना की वह स्त्रियों का एक्सपर्ट है? तो सुनो, तुम्हारा अपना दोस्त मेरे बारे में क्या कह रहा है? पर तुम्हे मेरी कद्र कहाँ? मैं तुम्हारी बीबी जो हूँ। सच कहा है, घर की मुर्गी दाल बराबर।"

मेरा मन किया की मैं अपनी बीबी को कहूं की, "दीपा डार्लिंग यह क्यों नहीं कहती हो की तरुण ने कई लड़कियों और औरतों को चोदा है? इसी लिए वह लड़कियों और औरतों का एक्सपर्ट है? पता नहीं अब तुम्हें उसमें शामिल करने के लिए तो कहीं वह तुम्हारी तारीफ़ नहीं कर रहा?" पर मैं चुप रहा क्यूंकि ऐसा कहने से दीपा एकदम बिदक जाती।

मैं अपने मन में तरुण की बड़ी तारीफ़ कर रहाथा। वह क्या एक के बाद एक तीर दाग रहा था और हर एक तीर उसके निशाने पर लग रहा था। उसने तो अदलाबदली वाली बात भी कह डाली। मुझे वाकई में उसकी अदलाबदली वाली बात सुन कर लगा की "अपना टाइम आएगा।" आश्चर्य की बात तो यह थी की इतना कुछ करने के बावजूद भी दीपा की समझ से तरुण जैसा सभ्य और समझदार इंसान और कोई नहीं था। मैं, भी नहीं।

मैंने तरुण से कहा, "भाई अपनी वह कहानी तो पूरी करो। और हाँ, तुम एक बात कहना चाहते न? फिर वह भी बता दो की क्या बात थी?"

मेरी बात सुनते ही जैसे अचानक तरुण के चेहरे पर जैसे काला साया छा गया। वह कुछ कहना चाहता था, पर कह नहीं पा रहाथा। जब मैंने उसे टोका तब तरुण ने बड़ी गंभीरता से दीपा को कहा, "दीपा भाभी, मैं आज इस रंगीली रात में वह सारी बातें भूलना चाहता हूँ। छोडो भाभी। आप सुनेंगे तो आप भी दुखी हो जाएंगे। मैं आपको दुखी देखना नहीं चाहता।"

दीपा ने तरुण का हाथ पकड़ा और बोली, "नहीं तरुण, तुम बताओ, क्या बात है। शायद हम तुम्हारी कुछ मदद कर पाएं। अगर मदद ना भी कर पाएं तो तुम उस बात को कह कर अपना बोझ तो जरूर हल्का महसूस कर पाओगे। अपनों से बात करने से हल निकलता है। देखो हम तुम्हारे अपने निजी हैं के नहीं? अगर तुम मुझे और दीपक को एकदम करीबी अपना समझते हो तो सारी बात खुल कर बताओ। जो वाकई में अपने हैं उनसे कुछभी छुपाते नहीं। हमें एक दूसरे से कितनी ही सीक्रेट बात क्यों ना हो कुछ भी नहीं छुपाना चाहिए। जहां तक दुःख की बात है, तो क्या हमें एक दूसरे से सुख और दुःख बांटना नहीं चाहिए? क्या तुम टीना से कुछ छुपाते हो? तो फिर हमसे क्यों?" मैंने भी तरुण को कहने का इशारा किया।

तरुण ने दीपा की और देखते हुए कहा, "भाभी, मैं आप को अपना नहीं समझता होता तो आप या भाई से इतनी छूट लेता क्या? आप लोगों से मुझे कोई भी झिझक नहीं है। आप इतना कहती हो तो मैं बताऊंगा। आप कहती हो ना की स्त्रियां पुरुष के बराबर होती हैं? मैं आप की बात करता हूँ। आप मुझ जैसे पुरुष से कहीं ज्यादा बुद्धिमान और अक्लमंद हो। मैं आपको मेरी दर्द भरी कहानी इस लिए भी कहूंगा क्यूंकि मैं समझता हूँ की आप सिर्फ मेरे अपने ही नहीं हैं, आप इतनी धीर गंभीर और समझदार हैं की शायद आप ही मुझे कुछ रास्ता बता सकते हो।" यह कह कर तरुण रुक गया।

मैंने देखा की अपनी ऐसी तारीफ़ सुन कर दीपा खिल उठी और उस ने मेरी तरफ कुछ तिरस्कार भरी नज़रों से देखा। फिर तरुण की और मुड़ कर बोली, "ठीक है बोलते जाओ।"

तरुण ने कहा, "मैं तो यह सब सोच कर थक हार चुका हूँ। आज मैं जबरदस्ती अपने आपको मजाकिया मूड में लाने की कोशिश कर रहा था शायद इसी लिए मैंने आपको इतना परेशान किया। मेरी समझ में तो कुछ नहीं आता। पर यह सब सुनने के लिए और मेरी मदद करने के लिए आपको मेरे घर चलना पड़ेगा। यहां बाहर कार में बैठे बैठे मैं कह नहीं पाउँगा।"

तरुण ने दीपा को इतनी महत्ता दे दी की उस की बात सुन कर दीपा का चौड़ा सीना (!!) और चौड़ा हो गया। दीपा खुश नजर आ रही थी। पर तरुण के चहरे पर मायूसी का साया देख कर मेरी पत्नी थोड़ी सकपका गयी ।

मैंने दीपा से कहा, "अब तो हमें सुबह ही घर लौटना है। फिर यहां बाहर देर रात सुनसान रास्ते पर कार खड़ी कर इस तरह बात करने से कुछ शकिया माहौल हो सकता है, कुछ अनहोनी हो सकती है। तरुण के घर में और कोई है भी नहीं। चलो तरुण के घर ही चलते हैं।" उस पर दीपा ने भी अपनी मुहर लगा दी और तरुण ने कार अपने घर की और मोड़ी।

पुरे रास्ते में तरुण के मुंह पर जैसे ताला लगा था। मैंने दीपा के कान में कहा, " मैंने कहा था ना की गंभीर बात है। अब तक जो फुदकता रहता था उसे एकदम यह क्या हो गया? हम तरुण के घर जा कर बात करते हैं। उसको थोड़ी पिलायेंगे और तुम थोड़ा उसको छेड़ना तो उसका मूड ठीक हो जाएगा।"

दीपा की नजर में तरुण एक निहायत शरीफ और सीधा सादा इंसान बन चुका था। उसकी छेड़ खानी और शरारत को भी दीपा तरुण की सरलता का ही नमूना मान रही थी। हम जैसे ही तरुण के घर पहुंचे तो दीपा ने तरुण की कमर पर हाथ रखा और बोली, "आज मैं तुम दोनों के साथ एक आझाद पंछी की तरह अनुभव कर रही हूँ। आप लोगों के साथ मुझे एक अनूठा अपनापन लग रहा है। मुझे आज मेरे पति और मेरे देवर के साथ बड़ा अच्छा लग रहा है। और देवरजी इसका श्रेय तुम्हे जाता है। मैं तुम्हें देवर कहूं या बहनोई?"

मैं जानता था की दीपा का आझाद पंछी की तरह अनुभव करने का कारण तो वह जीन से भरा हुआ गिलास और तरुण का तास के पत्तों से बना वह तारीफों का पूल था। पर यह देवर कहूं या बहनोई वाली बात कह कर कहीं मेरी बीबी तरुण को आधी घरवाली वाली बात पर तो नहीं लाना चाहती थी? मतलब कहीं तरुण को और छेड़ने के लिए तो नहीं उकसा नहीं रही थी? अगर ऐसा था तो जरूर वह चुदवाने के बारे में अपने आप को मानसिक रूप से तैयार कर रही थी। उसके मन में क्या था? यह जानना मेरे लिए जरुरी था।

दीपा सोचती थी की शायद तरुण कुछ जवाब देगा। पर तरुण ने तो जैसे मौन व्रत धारण किया हो ऐसे ही मुंह लटका कर चुप था।

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चाहत... {completed} - by usaiha2 - 07-12-2019, 07:05 PM
RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 07-12-2019, 07:06 PM
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RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 07-12-2019, 07:47 PM
RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 07-12-2019, 07:48 PM
RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 07-12-2019, 07:49 PM
RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 07-12-2019, 07:49 PM
RE: चाहत... {completed} - by kamdev99008 - 15-12-2019, 01:51 AM
RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 22-01-2020, 04:25 PM
RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 07-04-2020, 10:43 PM
RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 12-05-2021, 09:50 AM
RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 01-08-2021, 04:09 PM
RE: चाहत... {completed} - by dickcassidy - 08-08-2021, 01:15 AM
RE: चाहत... {completed} - by raj500265 - 21-08-2022, 01:01 AM
RE: चाहत... {completed} - by koolme98 - 01-02-2023, 04:34 PM



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