07-12-2019, 07:35 PM
कार्यक्रम शुरू हो चुका था। मैदान लोगों से खचाखच भरा था। एक के बाद एक शायर, कभी लोगों पर, कभी राज नेताओं पर, कभी अमीरों पर यातो कभी मंच पर बैठे दूसरे कविओं पर जम कर तंज कसते हुए हास्य कविताएं एवं शायरी सुना रहे थे। लोग हंस हंस के पागल हो रहे थे। तरुण ने कार को मंच से काफी दूर एक कोने में एक पेड़ के पीछे दीवार के पास खड़ी की। हम उसी तरह कार में ही बैठे रहे। बड़े लाउड स्पीकरो के कारण हमें दूर भी साफ़ सुनाई दे रहा था। बल्कि इतनी तेज आवाज थी की हम बात भी नहीं कर पा रहे थे। जहां हम रुके थे वहां काफी अँधेरा था। आते जाते कोई भी हमें बाहर से देख नहीं पाता था। कार के अंदर भी अँधेरा था। तरुण अब एक तरह से ̣दीपा का हाथ हमेशा के लिए अपनी जांघों पर रखे हुए था और अपना हाथ उसने दीपा के हाथ के ऊपर रखा हुआ था।
तब एक शायर ने महिलाओं की अक्ल, त्याग, हिम्मत, ताकत और काबिलियत के बखान करते हुए एक कविता सुनाई। यह सुन कर दीपा मेरी और मुड़ी और बोली, "देखा, मिस्टर दीपक, मैं आपको क्या कहती थी? आज की महिलाऐं पुरुषों से कोई भी तरह कम नहीं हैं। वह कमा भी सकती हैं और घर भी चला सकती हैं। कुछ मामलों में तो वह पुरुषों से भी आगे है। मैं तो यह कहती हूँ के महिलाओं को पुरुष के बराबर तनख्वाह मिलनी चाहिए।" मुझे उसकी आवाज में थोड़ी सी थरथर्राहट सी सुनाई दे रही थी। लगता था जैसे थोड़ा नशा उसपर हावी हो रहा था।
मैंने उसकी बात को काटते हुए कहा, "कविताओं में कहना एक और बात है पर हकीकत यह है की महिलाऐं कभी भी पुरुषों का मुकाबला नहीं कर सकती। महिलाऐं नाजुक़ और कमजोर होती हैं और उनमें साहस की कमी होती है। वह छोटी छोटी बातों में पीछे हट जाती हैं। जैसे की अभी तुम्हीने व्हिस्की पीने से मना कर दिया था। भला वह पुरुषों का मुकाबला कैसे कर सकती हैं?" मैंने एक तीर मारा और दीपा के जवाब का इन्तेजार करने लगा।
दीपा ने तुरंत पलट कर कहा, "तो क्या हुआ? मैं भी व्हिस्की पी सकती हूँ। पर मैं आप लोगों की तरह बहक कर भन्कस और हंगामा करना नहीं चाहती। तुम पुरुष लोग क्या समझते हो अपने आपको? क्या हम कमजोर हैं और तुम सुपरमैन हो?" दीपा ने तब तरुण की और देखा।
तरुण ने तुरंत कहा, "दीपक, दीपा भाभी बिलकुल ठीक कह रही है। आज की नारी सब तरह से पुरुषों के समान है। वह ज़माना चला गया जब औरतें घर में बैठ कर मर्दों की गुलामी करती थी। अब वह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल सकती है। अब वह कोई भी तरह पुरुषों से पिछड़ी नहीं है। जो हम पुरुष करते हैं उसमे वह जरूर सहभागिनी बनती है।"
मैंने कहा, "चलो एक पल के लिए मान भी लिया जाए की दीपा या कोई भी महिला व्हिस्की भी पी सकती है। पर क्या दीपा या कोई भी भारतीय नारी पुरुषों की तरह खुल्लम खुल्ला सेक्स के बारे में बातचीत कर सकती है? अरे खुद बात भले ही ना करे पर, सुन तो सकती है की नहीं?"
दीपा ने मेरी बात का एकटुक जवाब देते हुए कहा, "क्यों नहीं सुन सकती? जब महिला पुरुष के साथ सेक्स कर सकती है तो फिर सेक्स के बारेमें सुन क्यों नहीं सकती? क्या मैंने अभी अभी सेक्स वाली बातें नहीं सुनीं? दीपा ने तरुण का हाथ थाम कर थोड़ी उखड़ी हुई आवाज में तरुण से कहा, "यार तरुण, यह तुम्हारे भाई या दोस्त व्हाटएवर, मेरे जो हस्बैंड है ना, बड़े ही इर्रिटेटिंग है। बड़े बोर करते हैं। बेकार दाना पानी लेकर मेरे पीछे ही पड़ जाते हैं। तुम एक हो जो मुझे कुछ समझते हो।"
मैंने देखा की तरुण के सपोर्ट करने से दीपा खिल सी गयी थी। वह मुझ से थोड़ी उखड़ी हुई थी और तरुण की सहानुभूति से काफी प्रभावित भी हुई लग रही थी। दीपा की हिम्मत या यूँ कहिये की उच्छृंखलता शराब के नशे के कारण और मेरी स्त्री जाती को चुनौती देने के कारण बढ़ती ही जा रही थी। शायद अपनी हिम्मत मुझे दिखाने के लिए दीपाने मेरे देखते ही तरुण का हाथ पकड़ा और धड़ल्ले से उसे अपनी जांघ पर साड़ी के ऊपर रखा। मेरी प्यारी बीबी पूरा गिलास भरी शराब (जिन) की असर के कारण महिला की पुरुष के साथ बराबरी दिखाने के लिए उत्सुक ही नहीं बल्कि उतावली थी। तरुण को और क्या चाहिए था?
वैसे ही दीपा की साड़ी इतनी हलके वजन की और महिम थी की हल्का सा खींचने पर भी वह फिसल जाती थी। तरुण भी दीपा की बढ़ी हुई हिम्मत का फायदा उठाते हुए दीपा की साड़ी के ऊपर अपने हाथ फैला कर मेरे देखते हुए ही वह दीपा की जांघ को ऊपर से धीरे धीरे सहलाने लगा और मेरी और देख कर बोला, "भाई, भाभी की एहमियत आप को नहीं पता, क्यूंकि वह आपकी पत्नी हैं। मैं उनकी एहमियत समझता हूँ, क्यूंकि उनकी कंपनी मुझे भी कभी कभी मिलती है।"
मैंने अपना बचाव करते हुए कहा, "नहीं तरुण ऐसी कोई बात नहीं है। मैं भी जानता हूँ मेरी पत्नी किसी से कम नहीं।"
ऐसा कह कर जैसे ही मैंने मेरी बीबी का हाथ थामने की कोशिश की तो दीपा ने मेरा हाथ दूसरी और खिसका दिया और बोली, "अरे छोडो जी। झूठ मत बोलो। अब तक तो आप मुझे कमजोर, अबला, नाजुक कह रहे थे। अब जब तुम्हारे ही दोस्त ने मेरी कदर की तब समझ आयी अपनी बीबी की एहमियत की? देखो, मैं जैसा तुम समझ रहे हो ना, वैसी कमजोर और नाजुक नहीं हूँ। मैं भी तुम दोनों मर्दों से किसी भी मामले में मुकाबला कर सकती हूँ।"
तरुण दीपा की बात सुनते ही फ़ौरन मेरी बीबी की जाँघों को साडी के ऊपर से फुर्ती से सेहलाने और दबाने लगा। दीपा उसे महसूस कर रही थी, पर कुछ ना बोली; क्यूंकि अब उसे अपनी हिम्मत जो दिखानी थी। बल्कि खुद जैसे उसे प्रोत्साहन देती हो ऐसे तरुण के हाथ के ऊपर अपना हाथ फिराने लगी।
वैसे भी अब दीपा को तरुण का शुशीलता और सभ्यता भरा रवैया अच्छा लग रहा था। और मैं चूँकि मेरी बीबी को चुनौती दे रहा था इस लिए वह मुझे दिखाना चाहती थी की वह एक हिम्मत वाली औरत है और किसी गैर मर्द (तरुण) की छेड़खानी से डरने वाली नहीं है।
मेरे रवैये से कुछ उखड़ी हुई मुझे चुनौती देते हुए वह बोली, "दीपक, तुम मुझे कम इस लिए समझ रहे हो क्यूंकि मैं तुम्हारी बीबी हूँ। पर दुनिया बहुत बड़ी है। तुम्हारा ये दोस्त तरुण को ही देखो। अपने मित्र से कुछ सीखो। वह कितना सभ्य, संस्कारी, शालीन और शुशील है? वह हम महिलाओं का सम्मान करना जानता है और हमारी महत्ता और महत्वकांक्षाओं को समझता है। उसे पूरी तरह ज्ञात है की स्त्रियों का पुरुष के जीवन में कितना महत्त्व पूर्ण और उच्चतम योगदान है।" बातें करते हुए दीपा की जीभ थरथरा रही थी और वह एकदम संस्कृत शब्दों का इस्तमाल करने लगी थी। दीपा गुस्से में अंग्रेजी और जब प्रशंषा अथवा तारीफ़ करनी हो तो संस्कृत शब्दों का इस्तमाल करने लगती थी।
मैं चुप हो गया। तरुण कितना सभ्य था वह तो मैं अच्छी तरह जानता भी था और देख भी रहा था की धीरे धीरे तरुण ने दीपा को अपने पास खीच लिया था। फिसलन वाली साड़ी पहने होने के कारण दीपा को खिसकाने में तरुण को कोई दिक्कत नहीं हुई। दीपा भी बिना विरोध किये तरुण के पास खिसक गयी थी। मैंने देखा की तरुण ने भी दीपा का हाथ पकड़ कर अपनी जाँघ पर ना सिर्फ रखा बल्कि उसे थोड़ा और खिसका कर दोनों जाँघों के बिच उसके लण्ड के करीब वाले हिस्से में रखा और उसे दीपा वहाँ से ना हटा सके इसके लिए वह थोड़ा दीपा की और घूम गया और अपना दुसरा हाथ दीपा के हाथ के ऊपर दबा कर रखा।
मुझे शक हुआ के कहीं तरुण ने दीपा का हाथ अपनी टांगों के बिच लण्ड के ऊपर तो नहीं रख दिया था? पर अँधेरे के कारण मैं ठीक से देख नहीं पा रहा था। मेरी प्यारी पत्नी इतना कुछ होते हुए भी जैसे कविताएं सुनने में व्यस्त लग रही थी, या फिर तरुण की शरारत महसूस करते हुए भी ध्यान नहीं दे रही थी। उस रात तरुण या मैं अगर उसको छेड़ें तो विरोध नहीं करने का आखिर वादा भी तो किया था उसने?
मुझे उस समय यह नहीं पता था की मेरी बीबी ने उससे भी कहीं बड़ा वादा (तरुण से चुदवाने का) तरुण को कार मैं बैठने से पहले ही कर दिया था। दीपा की एक कमजोरी कहो अथवा अच्छी बात कहो वह यह थी की अगर उसने एक बार वादा किया अथवा वचन दे दिया तो वह वह कभी मुकरती नहीं थी।
हम और थोड़ी देर तक उसी जगह कार को खड़ी रख कविताएं सुनते रहे। आखिर जब बोरियत होने लगी, तब मैंने तरुण से कहा, "अरे तरुण, यार इस कार्यक्रम से तो तुम्हारी कहानी बेहतर थी। चलो कार को कहीं और ले लो। यहां बहुत शोर है।"
तरुण ने कार को मोड़ा और वहाँ से दूर मुख्य रास्ते से थोड़ा हटकर कार को एक जगह खड़ा किया। बाहर दूर दूर कहीं रौशनी दिखती थी, पर कार में तो अँधेरा ही था। आँखों पर जोर देनेसे थोड़ा बहुत दिखता था।
कार रुकने पर मैंने तरुण से कहा, "तरुण तुम्हारी कहानी सटीक तो थी, पर एक बात कहूँ? तुमने तो यार कहानी को बिलकुल फीका ही कर दिया। सारा मझा ही किरकिरा कर दिया। ना तो तुमने सेक्स कैसे हुआ यह बताया, ना तो सारी बातें स्पष्ट रूप से खुली की। रमेश का दोस्त और उसकी बीबी सेक्स करते थे, इसके बजाय चोदते थे ऐसा क्यों नहीं बोलते? रमेश की बीबी ने अपने पति के अंग को सहलाया, उसके बजाये यह क्यों नहीं कहा की लण्ड को सहलाया?"
मेरी बात सुनकर दीपा एकदम भड़क उठी। उसने मेरी तरफ देखा और बोली, "यह क्या है? तुम ऐसे गंदे शब्द क्यों बोल रहे हो?"
मैंने तुरंत तालियां बजाते हुए कहा, "देखा तरुण? मैं क्या कह रहा था? यह औरत कैसे भड़क गयी? क्यों? अब तुम मर्दों की बराबरी क्यों नहीं कर सकती? क्यों चूत लण्ड ऐसे शब्द नहीं सुन सकती? यह शब्द गंदे कैसे हो गए? सेक्स अथवा फक करना अच्छा शब्द है, पर चोदना गंदा शब्द है? पुरुष का लिंग अच्छा शब्द है, पर लण्ड गंदा शब्द है? देखा तरुण? मुझे पता है की मेरी पत्नी में इतनी हिम्मत नहीं है की वह भी हम पुरुषों के साथ बैठ के खुल्लम खुली सेक्सुअल बातें पुरुषों की तरह सुन सकती है। इसी लिए तो मैं कहता हूँ की औरत मर्द का मुकाबला नहीं कर सकती। क्यों डार्लिंग? क्या कहती हो अब?"
तब तरुण ने बड़ी सम्यता से कहा, "नहीं दीपक, हमें महिलाओं के सम्मान का ख्याल रखना चाहिए। मैं दीपा भाभी की बहुत इज्जत करता हूँ। मैं नहीं चाहता की दीपा भाभी के मन को मेरी बातों से कोई ठेस पहुंचे। मैंने उन्हें वैसे ही काफी दुःख पहुंचाए हैं। मैं उन्हें और कोई दुःख नहीं पहुंचाना चाहता।"
तरुण की इतनी सम्मान पूर्ण शालीन बात सुनकर दीपा भावुक हो गयी उसकी आँखें नम हो गयीं। दीपा तरुण को बड़े सम्मान और प्रेम भरी नजर से देख रही थी। दीपा ने तरुण के दोनों हाथों को अपने हाथों में लिया और उन्हें प्रेम से सहलाने और दबाने लगी। पर वह मेरे ताने को भूली नहीं थी।
दीपा ने मुझसे 'नाजुक' शब्द सूना था तो उसे तो जवाब देना ही था। मेरी बात सुनकर, दीपा आगबबूला हो गयी। वह कार में ही खड़ी होने की कोशिश करने लगी। फिर खड़ा ना हो पाने के कारण बैठ तो गयी पर मुझ पर बरस पड़ी। दीपा तरुण का हाथ पकड़ कर अपनी जाँघों के बिच के हिस्से पर दबाते हुए जोश में आ कर और बोली, "नहीं तरुण, तुम जरूर वह कहानी पूरी खुल्लमखुल्ला बेझिझक सुनाओ। हरेक स्त्री ऐसी छुईमुई नाजुक नहीं होती। मैं तो बिलकुल नहीं हूँ। मैं क्यों भला हिच किचाउंगी? क्या स्त्री पुरुष के साथ सेक्स नहीं करती? आखिर सेक्स भी तो हमारी ज़िंदगी का एक स्वाभाविक ऐसा हिस्सा है जिसको हम नजर अंदाज़ नहीं कर सकते। तरुण तुम बेझिझक कहो। मेरी वजह से मत हिचकिचाओ। अगर पुरुष लोग सेक्स की बातें करते हैं और सुनते हैं तो भला स्त्रियां क्यों नहीं सुन सकती? मेरे पति को अगर उसे सुनना है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं। उन के दिमाग पर तो हमेशा सेक्स ही छाया रहता है।" दीपा ने मुझ पर अपने गुस्से की झड़ी बरसा दी।
पर मैं कहाँ रुकने वाला था? मैंने दीपा को कहा, "देखा? पुरुष और स्त्री का अंतर तो तुम ने खुद ही साबित कर दिया। तुम सेक्स शब्द तो बोल सकती हो, पर यह नहीं बोल सकती की पुरुष और स्त्री की चुदाई की बात हो तो उसे तुम्हें आपत्ति नहीं होगी। अंग्रेजी में बोलो तो सभ्य, और हिंदी में बोलो तो गंवार?"
मेरी प्यारी बीबी का गुस्सा अब सातवे आसमान पर पहुँच रहा था। उसे अपनी हार कतई मंजूर नहीं थी। वह मुझ पर एकदम बरस ही पड़ी। अपने स्त्री सुलभ अहंकार को आहत होना उसे कतई मंजूर नहीं था। किसी भी तरह के शिष्टाचार की परवाह ना करते हुए मेरी बात से झुंझला कर गुस्से से तिलमिलाती हुई दीपा बोली," यु आर ए लिमिट यार। व्हाट डु यु थिंक ऑफ़ योर सेल्फ? डोंट हेसल मि। तुम तो यार पीछे ही पड़ गए? क्या तुम और मैं सेक्स करते समय, मेरा मतलब है चुदाई करते समय चुदाई, लण्ड, चूत ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते? तुम तरुण के सामने झूठ क्यों बोल रहे हो? क्या मैं सेक्स, मेरा मतलब है चुदाई करते समय चुदाई में तुम्हारा पूरा साथ नहीं देती?"
मैं मेरी बीबी को हक्काबक्का हो कर देखता ही रहा। तरुण भी कुछ पलों के लिए स्तब्ध सा मेरी पत्नी को देखता ही रहा। दीपा क्या बोल रही थी? मैंने कभी सोचा भी नहीं था की मेरी बीबी इतनी खुल्लम खुल्ला किसी गैर मर्द के सामने इस तरह बात कर सकती है।
दीपा ने फिर मुड कर तरुण की और देखा और बोली, "तरुण आज मेरे पति ने तुम्हारे सामने मुझे नंगी ही कर दिया, मेरा मतलब है, आज मेरे पति ने मुझे तुम्हारे सामने जो शब्द नहीं बोलने चाहिए वह भी मुझसे बुलवा लिए। तुम अब बेझिझक मेरे पति जो सुनना चाहते हैं वह खुल्ले शब्दों से भरी तुम्हारे दोस्त की चुदाई की कहानी पूरी खुल्लमखुल्ला सुनाओ। आज मैं मेरे पति को दिखा देना चाहती हूँ की वह मेरी स्त्री सुलभ सभ्यता को मेरी कमजोरी ना समझें। आई एम् ए स्ट्रॉन्ग वुमन नॉट ए ब्लडी डेलिकेट वुमन।"
तरुण तो जैसे दीपा की बात सुनकर उछल ही पड़ा। उसने सोचा नहीं था की एक तगड़े जिन के डोझ से ही भाभी इतनी जल्दी चौपट हो जायेगी। तरुण ने फ़ौरन दीपा का हाथ अपनी जांघों के बिच में रखकर दीपा की जाँघों को और फुर्ती से कामुक अंदाज से सेहलाते और अपने लण्ड पर दीपा का हाथ दबाने की कोशिश करते हुए पूछा, "दीपा भाभी, मुझे आपके सामने ऐसे खुल्लमखुल्ला बात करने में शर्म आती है और आपके गुस्से का डर भी लगता है। पर आज मुझे मेरी भाभी पर गर्व भी है की वह इतनी, शुशील और सभ्य महिला होते हुए भी मर्दों के साथ धड़ल्ले से सेक्स के बारे में खुल्लमखुल्ला बात करती है और इतनी तो छुईमुई नहीं है की मर्दों की छोटीमोटी हरकतों से पीछे हट जाए। भाई तुम तक़दीर वाले हो। ऐसी पत्नी तक़दीर वालों को ही मिलती है। भाभी क्या आप वास्तव में ऐसी स्पष्ट भाषा सुन सकोगी?"
दीपा अपने जिद भरे गुस्से में थी पर तरुण के सभ्यता भरे सवाल से कुछ गुस्से से और कुछ प्यार से बोली, " यार तरुण डोन्ट फील बेड। टुडे इट इस ए क्वेश्चन ऑफ़ थ्रु एंड थ्रु। तरुण, तुमको मैं किस भाषा में समझाऊं की आज आरपार की बात है? मेरे पति मुझे कमजोर, नाहिम्मत अबला समझते हैं। पूरी जिंदगी उन्होंने मुझे इसी तरह कोमल, नाजुक, नरम आदि कह कर मुझे कमजोर समझा। वह सोचते हैं की मैं साफ़ साफ़ सेक्स... मेरा मतलब है चुदाई की बातें नहीं सुन सकती। हाँ ऐसी बातें कहने और सुनने में मेरे पति की तरह मेरी जीभ 'लपलप' नहीं होती। पर मैं सुन जरूर सकती हूँ और बात भी जरूर कर सकती हूँ। तुम आगे बढ़ो और आज तो ज़रा भी घुमा फिरा के बात मत करो। आज तो होली है आज तो बस खुल्लमखुला ही चुदाई की बात करो। मैं मेरे पति को आज दिखा देना चाहती हूँ की मैं कोई छुईमुई नहीं हूँ की चूत, चुदाई, लण्ड ऐसे शब्दों से डर जाऊं। मेरे पति खुद मुझे आज तुम्हारे सामने नंगी करना चाहते हैं तो ठीक है। मैं पीछे हटने वाली नहीं हूँ। अब मर्यादा की ऐसी की तैसी। देखते हैं कौन पीछे हटता है। सुनाओ यार, बिलकुल बेझिझक हो कर तुम भी खुल्लमखुल्ला बोलो!"
तब एक शायर ने महिलाओं की अक्ल, त्याग, हिम्मत, ताकत और काबिलियत के बखान करते हुए एक कविता सुनाई। यह सुन कर दीपा मेरी और मुड़ी और बोली, "देखा, मिस्टर दीपक, मैं आपको क्या कहती थी? आज की महिलाऐं पुरुषों से कोई भी तरह कम नहीं हैं। वह कमा भी सकती हैं और घर भी चला सकती हैं। कुछ मामलों में तो वह पुरुषों से भी आगे है। मैं तो यह कहती हूँ के महिलाओं को पुरुष के बराबर तनख्वाह मिलनी चाहिए।" मुझे उसकी आवाज में थोड़ी सी थरथर्राहट सी सुनाई दे रही थी। लगता था जैसे थोड़ा नशा उसपर हावी हो रहा था।
मैंने उसकी बात को काटते हुए कहा, "कविताओं में कहना एक और बात है पर हकीकत यह है की महिलाऐं कभी भी पुरुषों का मुकाबला नहीं कर सकती। महिलाऐं नाजुक़ और कमजोर होती हैं और उनमें साहस की कमी होती है। वह छोटी छोटी बातों में पीछे हट जाती हैं। जैसे की अभी तुम्हीने व्हिस्की पीने से मना कर दिया था। भला वह पुरुषों का मुकाबला कैसे कर सकती हैं?" मैंने एक तीर मारा और दीपा के जवाब का इन्तेजार करने लगा।
दीपा ने तुरंत पलट कर कहा, "तो क्या हुआ? मैं भी व्हिस्की पी सकती हूँ। पर मैं आप लोगों की तरह बहक कर भन्कस और हंगामा करना नहीं चाहती। तुम पुरुष लोग क्या समझते हो अपने आपको? क्या हम कमजोर हैं और तुम सुपरमैन हो?" दीपा ने तब तरुण की और देखा।
तरुण ने तुरंत कहा, "दीपक, दीपा भाभी बिलकुल ठीक कह रही है। आज की नारी सब तरह से पुरुषों के समान है। वह ज़माना चला गया जब औरतें घर में बैठ कर मर्दों की गुलामी करती थी। अब वह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल सकती है। अब वह कोई भी तरह पुरुषों से पिछड़ी नहीं है। जो हम पुरुष करते हैं उसमे वह जरूर सहभागिनी बनती है।"
मैंने कहा, "चलो एक पल के लिए मान भी लिया जाए की दीपा या कोई भी महिला व्हिस्की भी पी सकती है। पर क्या दीपा या कोई भी भारतीय नारी पुरुषों की तरह खुल्लम खुल्ला सेक्स के बारे में बातचीत कर सकती है? अरे खुद बात भले ही ना करे पर, सुन तो सकती है की नहीं?"
दीपा ने मेरी बात का एकटुक जवाब देते हुए कहा, "क्यों नहीं सुन सकती? जब महिला पुरुष के साथ सेक्स कर सकती है तो फिर सेक्स के बारेमें सुन क्यों नहीं सकती? क्या मैंने अभी अभी सेक्स वाली बातें नहीं सुनीं? दीपा ने तरुण का हाथ थाम कर थोड़ी उखड़ी हुई आवाज में तरुण से कहा, "यार तरुण, यह तुम्हारे भाई या दोस्त व्हाटएवर, मेरे जो हस्बैंड है ना, बड़े ही इर्रिटेटिंग है। बड़े बोर करते हैं। बेकार दाना पानी लेकर मेरे पीछे ही पड़ जाते हैं। तुम एक हो जो मुझे कुछ समझते हो।"
मैंने देखा की तरुण के सपोर्ट करने से दीपा खिल सी गयी थी। वह मुझ से थोड़ी उखड़ी हुई थी और तरुण की सहानुभूति से काफी प्रभावित भी हुई लग रही थी। दीपा की हिम्मत या यूँ कहिये की उच्छृंखलता शराब के नशे के कारण और मेरी स्त्री जाती को चुनौती देने के कारण बढ़ती ही जा रही थी। शायद अपनी हिम्मत मुझे दिखाने के लिए दीपाने मेरे देखते ही तरुण का हाथ पकड़ा और धड़ल्ले से उसे अपनी जांघ पर साड़ी के ऊपर रखा। मेरी प्यारी बीबी पूरा गिलास भरी शराब (जिन) की असर के कारण महिला की पुरुष के साथ बराबरी दिखाने के लिए उत्सुक ही नहीं बल्कि उतावली थी। तरुण को और क्या चाहिए था?
वैसे ही दीपा की साड़ी इतनी हलके वजन की और महिम थी की हल्का सा खींचने पर भी वह फिसल जाती थी। तरुण भी दीपा की बढ़ी हुई हिम्मत का फायदा उठाते हुए दीपा की साड़ी के ऊपर अपने हाथ फैला कर मेरे देखते हुए ही वह दीपा की जांघ को ऊपर से धीरे धीरे सहलाने लगा और मेरी और देख कर बोला, "भाई, भाभी की एहमियत आप को नहीं पता, क्यूंकि वह आपकी पत्नी हैं। मैं उनकी एहमियत समझता हूँ, क्यूंकि उनकी कंपनी मुझे भी कभी कभी मिलती है।"
मैंने अपना बचाव करते हुए कहा, "नहीं तरुण ऐसी कोई बात नहीं है। मैं भी जानता हूँ मेरी पत्नी किसी से कम नहीं।"
ऐसा कह कर जैसे ही मैंने मेरी बीबी का हाथ थामने की कोशिश की तो दीपा ने मेरा हाथ दूसरी और खिसका दिया और बोली, "अरे छोडो जी। झूठ मत बोलो। अब तक तो आप मुझे कमजोर, अबला, नाजुक कह रहे थे। अब जब तुम्हारे ही दोस्त ने मेरी कदर की तब समझ आयी अपनी बीबी की एहमियत की? देखो, मैं जैसा तुम समझ रहे हो ना, वैसी कमजोर और नाजुक नहीं हूँ। मैं भी तुम दोनों मर्दों से किसी भी मामले में मुकाबला कर सकती हूँ।"
तरुण दीपा की बात सुनते ही फ़ौरन मेरी बीबी की जाँघों को साडी के ऊपर से फुर्ती से सेहलाने और दबाने लगा। दीपा उसे महसूस कर रही थी, पर कुछ ना बोली; क्यूंकि अब उसे अपनी हिम्मत जो दिखानी थी। बल्कि खुद जैसे उसे प्रोत्साहन देती हो ऐसे तरुण के हाथ के ऊपर अपना हाथ फिराने लगी।
वैसे भी अब दीपा को तरुण का शुशीलता और सभ्यता भरा रवैया अच्छा लग रहा था। और मैं चूँकि मेरी बीबी को चुनौती दे रहा था इस लिए वह मुझे दिखाना चाहती थी की वह एक हिम्मत वाली औरत है और किसी गैर मर्द (तरुण) की छेड़खानी से डरने वाली नहीं है।
मेरे रवैये से कुछ उखड़ी हुई मुझे चुनौती देते हुए वह बोली, "दीपक, तुम मुझे कम इस लिए समझ रहे हो क्यूंकि मैं तुम्हारी बीबी हूँ। पर दुनिया बहुत बड़ी है। तुम्हारा ये दोस्त तरुण को ही देखो। अपने मित्र से कुछ सीखो। वह कितना सभ्य, संस्कारी, शालीन और शुशील है? वह हम महिलाओं का सम्मान करना जानता है और हमारी महत्ता और महत्वकांक्षाओं को समझता है। उसे पूरी तरह ज्ञात है की स्त्रियों का पुरुष के जीवन में कितना महत्त्व पूर्ण और उच्चतम योगदान है।" बातें करते हुए दीपा की जीभ थरथरा रही थी और वह एकदम संस्कृत शब्दों का इस्तमाल करने लगी थी। दीपा गुस्से में अंग्रेजी और जब प्रशंषा अथवा तारीफ़ करनी हो तो संस्कृत शब्दों का इस्तमाल करने लगती थी।
मैं चुप हो गया। तरुण कितना सभ्य था वह तो मैं अच्छी तरह जानता भी था और देख भी रहा था की धीरे धीरे तरुण ने दीपा को अपने पास खीच लिया था। फिसलन वाली साड़ी पहने होने के कारण दीपा को खिसकाने में तरुण को कोई दिक्कत नहीं हुई। दीपा भी बिना विरोध किये तरुण के पास खिसक गयी थी। मैंने देखा की तरुण ने भी दीपा का हाथ पकड़ कर अपनी जाँघ पर ना सिर्फ रखा बल्कि उसे थोड़ा और खिसका कर दोनों जाँघों के बिच उसके लण्ड के करीब वाले हिस्से में रखा और उसे दीपा वहाँ से ना हटा सके इसके लिए वह थोड़ा दीपा की और घूम गया और अपना दुसरा हाथ दीपा के हाथ के ऊपर दबा कर रखा।
मुझे शक हुआ के कहीं तरुण ने दीपा का हाथ अपनी टांगों के बिच लण्ड के ऊपर तो नहीं रख दिया था? पर अँधेरे के कारण मैं ठीक से देख नहीं पा रहा था। मेरी प्यारी पत्नी इतना कुछ होते हुए भी जैसे कविताएं सुनने में व्यस्त लग रही थी, या फिर तरुण की शरारत महसूस करते हुए भी ध्यान नहीं दे रही थी। उस रात तरुण या मैं अगर उसको छेड़ें तो विरोध नहीं करने का आखिर वादा भी तो किया था उसने?
मुझे उस समय यह नहीं पता था की मेरी बीबी ने उससे भी कहीं बड़ा वादा (तरुण से चुदवाने का) तरुण को कार मैं बैठने से पहले ही कर दिया था। दीपा की एक कमजोरी कहो अथवा अच्छी बात कहो वह यह थी की अगर उसने एक बार वादा किया अथवा वचन दे दिया तो वह वह कभी मुकरती नहीं थी।
हम और थोड़ी देर तक उसी जगह कार को खड़ी रख कविताएं सुनते रहे। आखिर जब बोरियत होने लगी, तब मैंने तरुण से कहा, "अरे तरुण, यार इस कार्यक्रम से तो तुम्हारी कहानी बेहतर थी। चलो कार को कहीं और ले लो। यहां बहुत शोर है।"
तरुण ने कार को मोड़ा और वहाँ से दूर मुख्य रास्ते से थोड़ा हटकर कार को एक जगह खड़ा किया। बाहर दूर दूर कहीं रौशनी दिखती थी, पर कार में तो अँधेरा ही था। आँखों पर जोर देनेसे थोड़ा बहुत दिखता था।
कार रुकने पर मैंने तरुण से कहा, "तरुण तुम्हारी कहानी सटीक तो थी, पर एक बात कहूँ? तुमने तो यार कहानी को बिलकुल फीका ही कर दिया। सारा मझा ही किरकिरा कर दिया। ना तो तुमने सेक्स कैसे हुआ यह बताया, ना तो सारी बातें स्पष्ट रूप से खुली की। रमेश का दोस्त और उसकी बीबी सेक्स करते थे, इसके बजाय चोदते थे ऐसा क्यों नहीं बोलते? रमेश की बीबी ने अपने पति के अंग को सहलाया, उसके बजाये यह क्यों नहीं कहा की लण्ड को सहलाया?"
मेरी बात सुनकर दीपा एकदम भड़क उठी। उसने मेरी तरफ देखा और बोली, "यह क्या है? तुम ऐसे गंदे शब्द क्यों बोल रहे हो?"
मैंने तुरंत तालियां बजाते हुए कहा, "देखा तरुण? मैं क्या कह रहा था? यह औरत कैसे भड़क गयी? क्यों? अब तुम मर्दों की बराबरी क्यों नहीं कर सकती? क्यों चूत लण्ड ऐसे शब्द नहीं सुन सकती? यह शब्द गंदे कैसे हो गए? सेक्स अथवा फक करना अच्छा शब्द है, पर चोदना गंदा शब्द है? पुरुष का लिंग अच्छा शब्द है, पर लण्ड गंदा शब्द है? देखा तरुण? मुझे पता है की मेरी पत्नी में इतनी हिम्मत नहीं है की वह भी हम पुरुषों के साथ बैठ के खुल्लम खुली सेक्सुअल बातें पुरुषों की तरह सुन सकती है। इसी लिए तो मैं कहता हूँ की औरत मर्द का मुकाबला नहीं कर सकती। क्यों डार्लिंग? क्या कहती हो अब?"
तब तरुण ने बड़ी सम्यता से कहा, "नहीं दीपक, हमें महिलाओं के सम्मान का ख्याल रखना चाहिए। मैं दीपा भाभी की बहुत इज्जत करता हूँ। मैं नहीं चाहता की दीपा भाभी के मन को मेरी बातों से कोई ठेस पहुंचे। मैंने उन्हें वैसे ही काफी दुःख पहुंचाए हैं। मैं उन्हें और कोई दुःख नहीं पहुंचाना चाहता।"
तरुण की इतनी सम्मान पूर्ण शालीन बात सुनकर दीपा भावुक हो गयी उसकी आँखें नम हो गयीं। दीपा तरुण को बड़े सम्मान और प्रेम भरी नजर से देख रही थी। दीपा ने तरुण के दोनों हाथों को अपने हाथों में लिया और उन्हें प्रेम से सहलाने और दबाने लगी। पर वह मेरे ताने को भूली नहीं थी।
दीपा ने मुझसे 'नाजुक' शब्द सूना था तो उसे तो जवाब देना ही था। मेरी बात सुनकर, दीपा आगबबूला हो गयी। वह कार में ही खड़ी होने की कोशिश करने लगी। फिर खड़ा ना हो पाने के कारण बैठ तो गयी पर मुझ पर बरस पड़ी। दीपा तरुण का हाथ पकड़ कर अपनी जाँघों के बिच के हिस्से पर दबाते हुए जोश में आ कर और बोली, "नहीं तरुण, तुम जरूर वह कहानी पूरी खुल्लमखुल्ला बेझिझक सुनाओ। हरेक स्त्री ऐसी छुईमुई नाजुक नहीं होती। मैं तो बिलकुल नहीं हूँ। मैं क्यों भला हिच किचाउंगी? क्या स्त्री पुरुष के साथ सेक्स नहीं करती? आखिर सेक्स भी तो हमारी ज़िंदगी का एक स्वाभाविक ऐसा हिस्सा है जिसको हम नजर अंदाज़ नहीं कर सकते। तरुण तुम बेझिझक कहो। मेरी वजह से मत हिचकिचाओ। अगर पुरुष लोग सेक्स की बातें करते हैं और सुनते हैं तो भला स्त्रियां क्यों नहीं सुन सकती? मेरे पति को अगर उसे सुनना है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं। उन के दिमाग पर तो हमेशा सेक्स ही छाया रहता है।" दीपा ने मुझ पर अपने गुस्से की झड़ी बरसा दी।
पर मैं कहाँ रुकने वाला था? मैंने दीपा को कहा, "देखा? पुरुष और स्त्री का अंतर तो तुम ने खुद ही साबित कर दिया। तुम सेक्स शब्द तो बोल सकती हो, पर यह नहीं बोल सकती की पुरुष और स्त्री की चुदाई की बात हो तो उसे तुम्हें आपत्ति नहीं होगी। अंग्रेजी में बोलो तो सभ्य, और हिंदी में बोलो तो गंवार?"
मेरी प्यारी बीबी का गुस्सा अब सातवे आसमान पर पहुँच रहा था। उसे अपनी हार कतई मंजूर नहीं थी। वह मुझ पर एकदम बरस ही पड़ी। अपने स्त्री सुलभ अहंकार को आहत होना उसे कतई मंजूर नहीं था। किसी भी तरह के शिष्टाचार की परवाह ना करते हुए मेरी बात से झुंझला कर गुस्से से तिलमिलाती हुई दीपा बोली," यु आर ए लिमिट यार। व्हाट डु यु थिंक ऑफ़ योर सेल्फ? डोंट हेसल मि। तुम तो यार पीछे ही पड़ गए? क्या तुम और मैं सेक्स करते समय, मेरा मतलब है चुदाई करते समय चुदाई, लण्ड, चूत ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते? तुम तरुण के सामने झूठ क्यों बोल रहे हो? क्या मैं सेक्स, मेरा मतलब है चुदाई करते समय चुदाई में तुम्हारा पूरा साथ नहीं देती?"
मैं मेरी बीबी को हक्काबक्का हो कर देखता ही रहा। तरुण भी कुछ पलों के लिए स्तब्ध सा मेरी पत्नी को देखता ही रहा। दीपा क्या बोल रही थी? मैंने कभी सोचा भी नहीं था की मेरी बीबी इतनी खुल्लम खुल्ला किसी गैर मर्द के सामने इस तरह बात कर सकती है।
दीपा ने फिर मुड कर तरुण की और देखा और बोली, "तरुण आज मेरे पति ने तुम्हारे सामने मुझे नंगी ही कर दिया, मेरा मतलब है, आज मेरे पति ने मुझे तुम्हारे सामने जो शब्द नहीं बोलने चाहिए वह भी मुझसे बुलवा लिए। तुम अब बेझिझक मेरे पति जो सुनना चाहते हैं वह खुल्ले शब्दों से भरी तुम्हारे दोस्त की चुदाई की कहानी पूरी खुल्लमखुल्ला सुनाओ। आज मैं मेरे पति को दिखा देना चाहती हूँ की वह मेरी स्त्री सुलभ सभ्यता को मेरी कमजोरी ना समझें। आई एम् ए स्ट्रॉन्ग वुमन नॉट ए ब्लडी डेलिकेट वुमन।"
तरुण तो जैसे दीपा की बात सुनकर उछल ही पड़ा। उसने सोचा नहीं था की एक तगड़े जिन के डोझ से ही भाभी इतनी जल्दी चौपट हो जायेगी। तरुण ने फ़ौरन दीपा का हाथ अपनी जांघों के बिच में रखकर दीपा की जाँघों को और फुर्ती से कामुक अंदाज से सेहलाते और अपने लण्ड पर दीपा का हाथ दबाने की कोशिश करते हुए पूछा, "दीपा भाभी, मुझे आपके सामने ऐसे खुल्लमखुल्ला बात करने में शर्म आती है और आपके गुस्से का डर भी लगता है। पर आज मुझे मेरी भाभी पर गर्व भी है की वह इतनी, शुशील और सभ्य महिला होते हुए भी मर्दों के साथ धड़ल्ले से सेक्स के बारे में खुल्लमखुल्ला बात करती है और इतनी तो छुईमुई नहीं है की मर्दों की छोटीमोटी हरकतों से पीछे हट जाए। भाई तुम तक़दीर वाले हो। ऐसी पत्नी तक़दीर वालों को ही मिलती है। भाभी क्या आप वास्तव में ऐसी स्पष्ट भाषा सुन सकोगी?"
दीपा अपने जिद भरे गुस्से में थी पर तरुण के सभ्यता भरे सवाल से कुछ गुस्से से और कुछ प्यार से बोली, " यार तरुण डोन्ट फील बेड। टुडे इट इस ए क्वेश्चन ऑफ़ थ्रु एंड थ्रु। तरुण, तुमको मैं किस भाषा में समझाऊं की आज आरपार की बात है? मेरे पति मुझे कमजोर, नाहिम्मत अबला समझते हैं। पूरी जिंदगी उन्होंने मुझे इसी तरह कोमल, नाजुक, नरम आदि कह कर मुझे कमजोर समझा। वह सोचते हैं की मैं साफ़ साफ़ सेक्स... मेरा मतलब है चुदाई की बातें नहीं सुन सकती। हाँ ऐसी बातें कहने और सुनने में मेरे पति की तरह मेरी जीभ 'लपलप' नहीं होती। पर मैं सुन जरूर सकती हूँ और बात भी जरूर कर सकती हूँ। तुम आगे बढ़ो और आज तो ज़रा भी घुमा फिरा के बात मत करो। आज तो होली है आज तो बस खुल्लमखुला ही चुदाई की बात करो। मैं मेरे पति को आज दिखा देना चाहती हूँ की मैं कोई छुईमुई नहीं हूँ की चूत, चुदाई, लण्ड ऐसे शब्दों से डर जाऊं। मेरे पति खुद मुझे आज तुम्हारे सामने नंगी करना चाहते हैं तो ठीक है। मैं पीछे हटने वाली नहीं हूँ। अब मर्यादा की ऐसी की तैसी। देखते हैं कौन पीछे हटता है। सुनाओ यार, बिलकुल बेझिझक हो कर तुम भी खुल्लमखुल्ला बोलो!"