07-12-2019, 07:34 PM
तब हम शहर के प्रकाशित क्षेत्र में प्रवेश कर चुके थे।
दीपा का एक हाथ मेरे हाथ में था और तब मेरे देखते हुए तरुण ने भी दीपा का एक हाथ पकड़ा और अपने हाथ के नीचे अपनी एक जांघ पर रखा। दूसरे हाथ से वह ड्राइविंग कर रहा था। दीपा ने मेरी तरफ देखा। मैं मुस्काया और उसे शांत रहने के लिए इशारा किया। लाचार दीपा वापस अपनी सीट पर पीठ लगाकर बैठ कर तरुण से आगेकी कहानी सुनने लगी। दीपा ने अपना हाथ जो तरुण की जाँघ पर था उसे वहीँ रहने दिया।
तरुण ने कहानी को आगे बढ़ाते हुए कहा, "रमेश की पत्नी अपने पति के प्रति बड़ी आभारी थी क्यूंकि उसके पति ने अपनी पत्नीको उसके मित्रके साथ सेक्स करनेको कहा। तब से उन पति पत्नी में खूब जमती है और वह कई बार रमेश के साथ थ्रीसम का आनंद ले चुके हैं। वैसे भी अब उन पति पत्नी को एक दूसरे के साथ सेक्स करने में भी बड़ा आनंद मिलता है, क्यूंकि उस समय वह अपने थ्रीसम के आनंद के बारेमें खुल कर बात करते हैं।" तरुण ने अपनी कहानी का समापन करते हुए एक जगह गाडी रोकी।
तरुण की कहानी सुनते हुए मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मैं खासा उत्तेजित हो रहा था। मैंने दीपा के हाथ में हाथ डाला तो उसने भी मेरा हाथ जोरों से दबाया। मुझे लगा की वह भी काफी उत्तेजित होगयी है। कार में भी अँधेरा था। मैंने उसका हाथ मेरी टांगों के बिच रख दिया। दीपा धीरे धीरे मेरे टांगों के बिच से मेरी पतलून की ज़िप पर हाथ फ़ैलाने लगी। मैंने भी दीपा की टांगो के बिच अपना हाथ डाल दिया। दीपा ने अपनी टाँगे कसके दबायी और मेरे हाथ को टांगो के बिच दबा दिया।
मेरी पतलून में मेरा लण्ड तरुण की बात सुनकर खड़ा हो गया था। दीपा के मेरी टाँगों के बिच में हाथ रखने पर मैंने मेरे लण्ड ऊपर दीपा का हाथ रख दिया। दीपा उत्तेजित स्थिति में मेरे लण्ड को मेरी जिप के ऊपर से ही सहलाती रही। मैंने भी महसूस किया की जब मैंने दीपा की टांगों के बिच में मेरा हाथ रखा तो दीपा ने उसे अपनी टाँगों के बिच में दबाया। मुझे लगा की मेरी बीबी की चूत तरुण की नशीली बातें सुनकर काफी गीली हो चुकी थी।
मैंने देखा की मेरी रूढ़िवादी पत्नी भी तरुण की सेक्स से भरी कहानी सुनकर उत्तेजित हो गयी थी। तब तरुण ने पूछा, "दीपक, बताओ, क्या रमेश और उसके मित्र पति पत्नी ने जो किया वह सही था?"
मैंने कहा, "मैं क्या बताऊँ? भाई ऐसे मसले में पत्नी की राय सबसे ज्यादा आवश्यक है। दीपा से पूछो।"
तरुण ने दीपा की और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा। तब दीपा ने कुछ हिचकिचाते हुए मुझे कहा, "मैं क्या कहूं? तुम दोनों के बिच में मुझे क्यों फँसाते हो?"
मैंने कहा, "आज तुम हम दोनों के बिच में फँसी हुई हो इसमें क्या तुम्हें कोई शक है?"
दीपा ने अपनी असहायता दिखाते हुए जो कहा वह तो मैंने सोचा भी नहीं था। दीपा ने कहा, "ठीक है भाई अगर तुम ज़िद कर रहे हो तो कहती हूँ की तरुण के दोस्त कपल ने सही किया या गलत, ये कहने वाले हम कौन होते हैं? अरे वह पति पत्नी ने अपने बारें में सब तरह सोच कर यदि ये फैसला लिया तो सही किया। अगर रमेश के दोस्त ने अपनी मर्जी से रमेश को अपनी बीबी के साथ सेक्स करने के लिए कहा और रमेश की बीबी अगर रमेश से सेक्स करने के लिए राजी थी और उसके साथ सेक्स किया तो उसमें मुझे कोई बुराई नजर नहीं आती। वह थ्रीसम मतलब अगर दोनों मर्द मिलकर रमेश की बीबी के साथ सेक्स करते हैं तो उससे क्या फर्क पड़ता है? मर्द और औरत का सम्भोग यह भगवान की देन है। सेक्स करने में शर्म की कोई बात नहीं है।"
इतना कह कर दीपा रुक गयी और मेरी और देखने लगी। मेरी पत्नी की इतनी सरसरी बात सुनकर मैं हैरान रह गया। मैंने पूछा, "क्या इसका मतलब यह है की पति अथवा पत्नी जिस किसी के साथ भी चाहें सेक्स कर सकते हैं?"
दीपा ने कहा, "बिलकुल नहीं। हमारे समाज ने सोच समझ कर उसमें कुछ रोक लगाई है और कुछ मर्यादाएं स्थापित की हैं। वह पति और पत्नी दोनों के पालन के लिए हैं। जब पति पत्नी एक साथ हो तो जो उन दोनों को मंजूर हो वह ठीक है और बात तो गलत नहीं है। शादी के कुछ सालों बाद हम सब पति पत्नी में एक दूसरे से सेक्स करने की उत्सुकता, रस और उत्तेजना जो पहले थी वह नहीं रहती । इसका कारण यह है की सेक्स में जो नवीनता पहले थी वह नहीं रही। एक ही खाना, भले ही वह कितना ही स्वादिष्ट क्यों ना हो; रोज खा खा कर हम बोर नहीं जाते क्या? अगर कुछ और तरह से खाना बनाया जाए या कभी कबार बाहर खाना खाया जाए तो अच्छा तो लगेगा ही। इन हालात में रमेश के मित्र और उसकी पत्नी ने जो किया वह उनके लिए सही साबित हुआ, तो सही है। और फिर उसका फायदा भी तो मिला उनको। उनका वैवाहिक जीवन सुधर जो गया।"
क्यों दीपक, मैंने गलत तो नहीं कहा?" दीपा ने मेरी और देखा और कुछ मुस्करा कर मेरा हाथ थामा। मेरा क्या मत है यह जानने के लिए शायद दीपा उत्सुक थी। वह चिंतित थी की कहीं मैं उसकी बात का गलत मतलब तो नहीं निकालूंगा।
मैं क्या बोलता? मैंने अपनी मुंडी हिला कर दीपा का समर्थन किया। मैं मेरी पत्नी का एक नया रूप देख रहा था। अबतक जो पत्नी मुझ से आगे सोचती नहीं थी वह आज थ्रीसम का समर्थन कर रही थी। तब मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी मंशा सफल हो सकती है।
तरुण ने दोनों हाथों से तालियां बजायी और बोला, "माय गॉड दीपा भाभी, आप ने कितना सटीक और सही जवाब दिया। मैं आप के इस जवाब के लिए सलूट मारता हूँ।" तरुण की प्रशंषा सुनकर दीपा मुस्करायी और गर्व से मेरी और देखा, जैसे वह मुझे दिखाना चाहती थी की उसने कितनी समझदारी और अक्लमंदी से जवाब दिया।
तब हम कार्यक्रम वाले स्थान के करीब पहुँच चुके थे। तरुण ने एक ऐसी जगह कार रोकी जहां प्रकाश था। उसने पीछे मुड़कर कार की सीट पर चढ़कर पीछे की सीट पर रखा एक बक्शा खोला। मैंने देखा की उसमें उसने तीन बोतलें और कुछ गिलास रखे हुए थे। उसने तीन गिलास निकाले और उसमें एक बोतल में से व्हिस्की और सोडा डालना शुरू किया। दीपा ने एकदम विरोध करते हुए कहा की वह नहीं पीयेगी।
मैं भी जानता था की दीपा शराब नहीं पीती थी। सबके साथ वह कभी कभी जीन का एकाध घूंट जरूर ले लेती थी। शायद तरुण को भी यह पता था। उसने दीपा से कहा, "दीपा भाभी, आप निश्चिन्त रहो। मैं आपको व्हिस्की नहीं दूंगा। प्लीज आज हमें साथ देने के लिए थोडीसी जीन तो जरूर पीजिए। मैं बहुत थोड़ी ही डालूंगा। देखिये होली है। दीपा ने घबड़ाते हुए मेरी और देखा।
मैंने उसे हिम्मत देते हुए कहा, "अरे इसमें इतना घबड़ाने की क्या बात है? भई जीन तो वैसे ही हल्की है और तुम जीन तो कभी कभी पी लेती हो। अब शर्म मत करो, थोड़ी सी पी लो यार। तरुण इतने प्यार से जो कह रहा है।" मैंने फिर तरुण की और देखते हुए कहा, "देखो तरुण, बस एकदम थोड़ी ही डालना।"
तरुण ने मुस्काते हुए सीट पर पीछे मुड़कर सीट पर चढ़कर लंबा होकर दीपा के लिए जीन से गिलास को खासा भरा और फिर दिखावे के लिए उसमें थोड़ा सोडा डाल कर एक कटा हुआ निम्बू लाया था वह गिलास में निचोड़ कर गिलास दीपा के हाथ में पकड़ा दिया। जीन वैसे ही पानी की तरह पारदर्शक होती है। देखने से यह पता नहीं लग पाता की गिलास में जीन ज्यादा है या सोडा। तरुण ने दिखाया की उसमें सिर्फ सोडा ही था। जीन तो नाम मात्र ही थी। पर था उलटा।
मेरी भोली बीबी दीपा उसे पीने लग गयी। जीन का टेस्ट मीठा होता है। दीपा को अच्छा लगा। वह उसे देखते ही देखते पी गयी। जब हम सबने अपने ड्रिंक्स ख़तम किये तब तरुण कार को कार्यक्रम के स्थान पर ले आया। मैं जानता था की जीन भी तगड़ी किक मारती है।
जीन पीने के पश्चात दीपा काफी तनाव मुक्त लग रही थी। जो तनाव शुरू में तरुण की हरकतों की वजह से वह महसूस कर रही थी वह नहीं दिख रहा था। तरुण ने शुरू में जब यह कहा था की वह कुछ सेक्सुअल विषय के बारे में बताने जा रहा था, तो दीपा शायद डर रही थी की कहीं वह खुल्लमखुल्ला स्पष्ट शब्द जैसे लण्ड, चूत, चोदना इत्यादि शब्दों का प्रयोग तो नहीं करेगा।
परन्तु तरुण का बड़े मर्यादित रूप में सारी सेक्सुअल बातों को बताना तथा खुल्लमखुल्ला स्पष्ट शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना दीपा को अच्छा लगा। दीपा को लगा की हालाँकि तरुण उसे बार बार छेड़ता था पर साथ साथ वह उसकी बड़ी इज्जत भी करता था और ख्याल रखता था की दीपा की संवेदनशीलता किसी भी तरह से आहत ना हो। धीरे धीरे दीपा ने यह स्वीकार कर लिया था की तरुण का दीपा को बार बार छेड़ने का कारण तरुण का दीपा के प्रति एक तरह का अपनापन और साथ में बहुत जबरदस्त शारीरिक आकर्षण था जिस पर तरुण खुद भी कण्ट्रोल नहीं कर पाता, जब दीपा उसके पास होती थी। तरुण एक हट्टाकट्टा वीर्यवान मर्द था और दीपा की छेड़खानी करना शायद उसकी मर्दानगी की मज़बूरी थी। उसके उपरांत दीपा ने तरुण को वचन दिया था की उस होली की रात को वह तरुण के सौ गुनाहों को भी माफ़ कर देगी। शायद इसी कारणवश जब तरुण ने दीपा का हाथ थामा और अपनी जांघ पर रखा तो वह कुछ न बोली।