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Adultery चाहत... {completed}
#15
Heart 
तरुण ने कहा, "भाभी, आप हमें रोकोगे नहीं ऐसा कहने से काम नहीं चलेगा। आप हमारा साथ भी दोगे ना? भाभी यह मत कहो की आप हमें झेल लोगे? बोलो आप हमारे साथ एन्जॉय भी करोगे ना? प्लीज?"


दीपा ने तरुण से आँखें मिलाकर हिचकिचाते हुए कहा, "भाई यह मुश्किल है। आप दोनों मर्दों का कोई भरोसा नहीं; मौक़ा मिलते ही कहाँ से कहाँ पहुँच जाओ। पर चलो देखेंगे। मैं साथ देने की कोशिश करुँगी। आगे आगे देखिये होता है क्या?" फिर घर की और देख कर दीपा बोली, "तुम्हारे भाई फ़ोन पर लग गए हैं। मैंने उनको उनकी बहन के साथ बात करते हुए सूना। फिर तो उन को काफी कुछ समय लगेगा। चलो कार में बैठ कर बात करते हैं।" ऐसा कह कर अपनी लहराती हुई साड़ी का एक छोर जमीन ना छुए इसलिए अपनी एक बाँह में उठाकर दूसरे हाथ से तरुण का हाथ पकड़ कर कार की और चल पड़ी। दीपा के चेहरे के भाव देख कर तरुण को काफी उम्मीद जगी की भाभी कबुल करे या ना करे पर कहीं ना कहीं तरुण ने दीपा भाभी के मन में सेक्स करने लिए उत्तेजना पैदा कर दी थी। तरुण की चाल काम कर रही थी। मछली जाल में फँसने वाली थी।

तरुण ने कार घर के सामने रास्ते के दुसरी और खड़ी की थी। उस तरफ एक बंजर सा सूना पार्क था। तरुण ने दीपा का दिया हुआ हाथ कस कर थामा और कार के दुसरी और इशारा करते हुए कहा, "भाभी, जब भाई को अभी कुछ समय लगना ही है तो मैं आप से एक और जरुरी बात करना चाहता हूँ। आइये ना उधर चलते हैं। कार के बाहर खुली हवा में कुछ देर बात करते हैं।"

यह कहते हुए की तरुण दीपा को कार की दूसरी और ले गया। शायद वह नहीं चाहता था की मैं जब घर से निकलूं तो एकदम उनको देख पाऊं। दीपा थोड़ी देर के लिए तो असमंजस में रही पर तरुण ने दीपा का हाथ पकड़ उसे हलके से खींचते हुए ले चला तो वह भी चल दी।

कार के दूसरी और जा कर तरुण ने दीपा से कहा, "भाभीजी, मैं बिलकुल सच कहता हूँ की आज आपको इस परिवेश में देख कर पता नहीं मेरे अंदर क्या उथलपुथल हो रही है। भाभी, आप साक्षात कामदेव की पत्नी रति या ऋषि मुनियों का दिल चुराने वाली मेनका लग रही हो। मैं यदि यह कहूं की आप सेक्सी हो तो यह सूरज को दिया दिखाने जैसा होगा। भाभी अंदर से मैं बहुत दुखी हूँ और पता नहीं आप ना मिली होती तो मैं शायद ख़ुदकुशी तक की बात सोचता रहता था। मुझे आपको अपनी दुःख भरी दास्ताँ सुनाकर आज के इस होली के रोमांटिक रूमानी माहौल को खराब नहीं करना।" आखरी शब्द बोलते हुए तरुण कुछ गंभीर हो गया। दीपा को तरुण के चेहरे पर तनाव दिखाई दे रहा था।

दीपा यह सोच कर परेशान हो रही थी की तरुण बार बार यह क्या अपनी दुःख भरी दास्तान के बारे में कह रहा था? जरूर कोई सीरियस बात थी, क्यूंकि तरुण ने यहां तक कह दिया था की वह खदकुशी करने तक की बात सोच रहा था। दीपा का मन किया की वह तरुण को पूछे।

पर तरुण था की अपनी बात पूरी करने पर तुला हुआ था। तरुण ने दीपा की और देख कर कुछ भावावेश में आकर कहा, " मुझे आज के इस होली के रोमांटिक रूमानी माहौल को मेरी परेशानी के चलते हुए खराब नहीं करना था। शायद इसी लिए उपरवाले के आशीर्वाद सामान आप आज की रात मेरे सामने कामिनी, रम्भा और मेनका जैसे इस तरह सेक्सी रूप सजधज कर आयी हो। आपको देख कर मैं अपने वह गहरे दुःख को भूल जाता हूँ। मुझे आप पर इतना प्यार उमड़ रहा है जिसको में बयाँ नहीं कर सकता। भाभी, भाई तो आपको रोज प्यार करते हैं। मुझे पता है आज रात को भी वह आपको ऐसे देख कर अपने आपको रोक नहीं पाएंगे कर मेरे देखते हुए भी आपको प्यार करेंगे, और मैं अपना मन मसोसता रह जाऊंगा। पर इस वक्त जब वह व्यस्त हैं तो बस पांच मिनट आपको प्यार करना चाहता हूँ। प्लीज थोड़ा मुझे भी प्यार करने दो ना? भाई के आने के बाद तो मुझे पता है आप मुझे हाथ भी नहीं लगाने दोगे। यही समझ लो की मैंने आपको थोड़ा और छेड़ दिया।"

तरुण की बात सुनकर दीपा हँस पड़ी और बोली, "यार तरुण तुम भी कमाल हो! तुमने आज दिन में मुझे इतना छेड़ा है, मेरे साथ इतना सब कुछ किया है फिर भी तुम्हारा पैट नहीं भरा? तुम्हारे भाई ने मुझे पहले से ही आगाह कर दिया है की आज की रात तुम लोग मुझे छेड़ोगे और मुझे उसे झेलना पडेगा। तुम्हें मुझे छेड़ने के लिए पूरी रात पड़ी है। यार तुम तो खुद ही अपने आप को बन्दर कहते हो। इतना कुछ करते ही रहते हो और माफ़ी भी मांगते रहते हो? बार बार कहते हो की मैं माफ़ कर दूँ? अगर मैं तुम्हें हाथ नहीं लगाने दूंगी तो तुम रुकोगे क्या? तुमने हर जगह तो हाथ लगा दिया है। अब मुझे और कैसे छेड़ना चाहते हो? कमाल है! अब मुझे छेड़ने के लिए बचा क्या है?"

तरुण ने दीपा के कान के पास अपना मुंह ला कर एकदम धीमे से कहा, "भाभी अभी बहुत कुछ बचा है।"

दीपा ने तरुण की बात सुन कर पलट कर कुछ नकली गुस्सा दिखाते हुए पूछा, "क्या कहा तरुण तुमने?"

तब तरुण ने शरारत भरी मुस्कान देते हुए कहा, "कुछ नहीं भाभी मैं वैसे ही कुछ बड़बड़ा रहा था। भाभी आओ ना? बस पांच मिनट?" यह कह कर तरुण ने दीपा का हाथ पकड़ उसको लगभग खींचते हुए कार के दूसरी तरफ ड्राइवर सीट के दरवाजे के साथ सटा कर खड़ा किया और कहा, "भाभी पहले आप आराम से यहाँ खड़े रहो और मेरी बात सुनो।"

दीपा को तरुण क्या कहना चाहता था और क्या कर रहा था यह समझ नहीं आया। पर वह इतना जानती थी की तरुण कुछ ना कुछ नयी ही खुर्राफत या शरारत जरूर करेगा। वह क्या कहेगा और क्या करेगा वह जानने की जिज्ञासा मेरी कामुक पत्नी रोक नहीं पायी और तरुण ने जैसे खड़ा किया वैसे ही दीपा अपने कूल्हे और पीठ कार के दरवाजे से टिका कर अपने बदन को बैलेंस करने के लिए अपने दोनों पाँव थोड़े से टेढ़े कर और फैला कर कार से थोड़े से दूर रख कर कार के दरवाजे के सहारे खड़ी हो गयी।

जैसे ही दीपा उस कामुक पोज़ में खड़ी हुई की फ़ौरन तरुण ने फुर्ती से दीपा को कोई मौक़ा ना देते हुए अपनी दोनों टाँगों को दीपा के सामने दीपा की साडी को थोड़ा सा घुटनों तक ऊपर उठाकर फैली हुई टाँगों के बिच में घुसा दिया और अपने बदन को दीपा के बदन से एकदम सटा दिया। तरुण ने दीपा के बदन को अपने बदन से कार के दरवाजे पर दबा दिया और अपने पेंडू से दीपा के टाँगों के बिच में जैसे दीपा को खड़े हुए चोद रहा हो ऐसे धक्के मारने लगा। रास्ते पर किसी भी आने जाने वाले को उस अँधेरे में कपडे तो साफ़ दिखेंगे नहीं। शायद दीपा की साडी उसकी टाँगों के थोड़ी सी ऊपर चढ़ी हुई जरूर दिखेगी। उस वक्त तरुण की हरकत देख कर कोई भी आदमी यह सोच सकता था की तरुण जैसे दीपा को खड़े हुए ही चोद रहा हो।

दीपा तरुण की यह हरकत हैरानगी से देखती ही रह गयी। दीपा ने पूछा, "तरुण तुम यह क्या कर रहे हो?"

पर दीपा यह ठीक से बोल पाए उसके पहले तरुण ने दीपा के बदन से अपना बदन कस कर दीपा को कार के दरवाजे पर दबा दिया। तरुण ने दीपा के सर को अपने दोनों हाँथों में पकड़ कर दीपा के होँठों पर अपने होँठ दबा दिए और अपनी जीभ से दीपा के होँठ चूमने और चूसने लगा।

फिर तरुण धीरे से बोला, "भाभीजी, पता नहीं मैं आज होली की इस रात को आप के साथ जो करना चाहता हूँ वह आप मुझे करने देंगे की नहीं। पर कम से कम उस का दिखावा तो करने दो ना, प्लीज?"

यह कह कर तरुण ने अपने दोनों हाथ फैला कर दीपा के कूल्हों को जकड़ा और उन्हें अपनी और दबा कर खींचते हुए दीपा की कोख से अपना पेंडू भिड़ा कर ऐसे करने लगा जैसे वह अपना लण्ड दीपा की चूत में घुसेड़ने की कोशिश कर रहा हो।

दीपा तरुण के ऐसा करने से हड़बड़ाती हुई बोली, "तरुण, तुम्हें कुछ समझ है या नहीं? यार कुछ करने के लिए तुम सही जगह या समय तो देखो। यह कोई जगह है ऐसा कुछ करने की? ऐसे खुले में यह तुम क्या कर रहे हो? कोई देख लेगा यार?"

तरुण को तब पूरा यकीन हो गया की दीपा भाभी उससे चुदवाने के लिए अब लगभग मानसिक रूप से अपने आप को तैयार कर रही थी। इसी लिए तो उसने तरुण को डाँटा नहीं और ना ही कोई जबरदस्त गुस्सा किया। बल्कि वह तरुण को यह समझाने लगी की ऐसा करने के लिए वह जगह ठीक नहीं थी। मतलब अगर कोई सही जगह होती तो तरुण जो कर रहा था वह ठीक था।

पर तरुण कहा रुकने वाला था? उसने कहा, "भाभी, तुम्हारी बात सही है। ऐसा करने के लिए यह जगह ठीक नहीं है। भाभी मैं ऐसा काम करने के लिए आपको सही जगह पर जरूर ले जाऊंगा। पर अभी ऊपर ऊपर से तो कर लेने दो ना?

दीपा हैरानगी से तरुण के इस उद्दंड कार्यकलाप देखती रही। तरुण ने अपने होँठ से दीपा को उसके होँठ खोलने को मजबूर किया और फिर दीपा के कभी ऊपर के तो कभी निचे के होँठ चूसने लगा। तरुण के इस अचानक आक्रमण या हरकत से दीपा स्तंभित सी रह गयी। उसने आँखें घुमा कर जब घर की और देखने की कोशिश की। यह कोशिश क्या दीपा ने इस उम्मीद में की थी की काश मैं वहाँ जल्द ही पहुंचूं और दीपा को उस त्रास से बचाऊं, या फिर इस डर से की कहीं मैं घर से बाहर निकल कर उन दोनों की उस हरकत को देख ना लूँ? यह दीपा भी समझ नहीं पायी।

पर तरुण ने एक पल के लिए अपने होँठ हटा कर दीपा से कहा, "भाभी, चिंता मत करो। मैं देख रहा हूँ। भाई अभी भी फ़ोन पर ही लगे हुए हैं। अभी उनको निकलने में पंद्रह मिनट से भी ज्यादा लगेंगे। भाभी अभी जब तक भाई आ नहीं जाते तब तक आप मुझे मत रोकिये। प्लीज मुझे आपसे प्यार करने दीजिये। देखिये प्लीज रिलैक्स हो जाइये। कुछ ही मिनटों के लिए। बादमें पता नहीं मुझे आपको प्यार करने का मौका मिलेगा या नहीं?"

ऐसा कह कर तरुण ने फिर अपने होँठ दीपा के होंठों पर कस कर भींच दिए और पुरे जोश से उसे चूमने और चूसने लगा और साथ ही साथ दीपा को चोदने का छद्म प्रयास भी करता रहा। वह अपने लण्ड को कपड़ों के माध्यम से दीपा की चूत में घुसा कर दीपा को चोदने का प्रयास जैसे कर रहा था। दीपा और तो कुछ कर नहीं सकती थी, जब सर ओखल में रख ही दिया है तो मुसल से क्या डरना? पांच दस मिनट का तो सवाल था।

दीपा यह जानती थी की अगर तरुण अपनी जात पर उतर आये तो जबरदस्ती दीपा की साडी पूरी ऊपर उठा कर, उसकी पैंटी नीची कर और अपनी ज़िप खोल कर अपना लण्ड बाहर निकाल कर दीपा की गीली हुई चूत में अपना लण्ड घुसा कर दीपा को खड़े खड़े चोद भी सकता था। दीपा उसका कुछ भी नहीं कर पाती। दीपा को वहीँ खड़े खड़े उससे कुछ मिनटों के लिए ही सही, पर तरुण से चुदवाना ही पड़ता। दीपा उस वक्त बाहर रास्ते में खड़ी चिल्ला भी तो नहीं सकती थी। पर तरुण ने ऐसा कुछ नहीं किया यह दीपा के लिए एक राहत की बात थी। तरुण का चूमना कोई नयी बात तो थी नहीं तो दीपा ने भी मजबूरी में अपना मुंह खोल कर तरुण को चूमने देना ही ठीक समझा। दीपा को यह भी महसूस हुआ की तरुण की बीबी टीना के पिछले काफी दिन से तरुण के साथ न होने के कारण तरुण का हाल बुरा था। वह सेक्स के लिए तड़प रहा था।

दीपा को तरुण के हाल पर तरस आ गया। अगर वह कुछ मिनटों के लिए दीपा के बदन को कस कर दबा कर और अगर कपड़ों के ऊपर से धक्के मार कर अपनी सेक्स की भूख कुछ हद तक शांत कर सकता है तो दीपा ने सोचा की तरुण को रोकना ठीक नहीं। साथ साथ में जिस तरह तरुण दीपा को चुम रहा था और दीपा के होँठों को चाट रहा था और बार बार दीपा की जीभ को चूस रहा था, दीपा से रहा नहीं गया और बरबस ही उसने भी अपनी जीभ तरुण के मुंह में डाली और आवेश में दीपा भी तरुण का सर पकड़ कर उसे चूमने लगी।

मेरी बीबी की इस तरह की सकारात्मक प्रतिक्रया देख कर तरुण की आग और भड़क उठी। तरुण ने दीपा से थोड़ा हट कर पूछा, "भाभी क्या आप को याद है आपने कभी मुझे एक वचन दिया था?"

तरुण की बात सुन कर दीपा की जान हथेली में आ गयी। दीपा ने कुछ झिझकते हुए कहा, "हाँ याद है। उस सुबह बाथरूम में जब तुम मुझे बहोत परेशान कर रहे थे तब मैंने मजबूरी में तुम्हें वचन दिया था।"

तरुण ने कहा, "भाभी यह गलत बात है। उस टाइम पर तो आपने वचन दे दिया और अब आप कह रहे हो की वह आपने मज़बूरी में दिया था। आपने वचन तो दिया था ना, की मैं जो चाहूँगा या कहूंगा वह आप करोगे?"

दीपा ने घबड़ाते हुए पूछा, "हाँ कहा था। तो तुम्हें क्या चाहिए? तुम क्या करना चाहते हो?"

तरुण ने कहा, "पर भाभी, पहले यह बताओ की क्या आप अपना दिया हुआ वचन पूरा तो करोगे ना?"

दीपा ने कुछ संरक्षात्मक आवाज से पूछा, "मैं कभी अपने वचन से मुकरती नहीं हूँ। पर पहले यह तो बाताओ ना की तुम्हें क्या चाहिए?"

तरुण ने पट से जवाब देते हुए कहा, "भाभी, क्या आप समझ नहीं गए की मुझे क्या चाहिए? भाभी आज की रात हमारी रात है। आज की रात मैं आपको पूरी तरह से पाना चाहता हूँ। आज की रात मैं आपका तन और मन अपना बनाना चाहता हूँ। आज की रात आप मुझे मेरे मन की आस पूरी करने दीजियेगा, मुझे रोकियेगा नहीं। मैं चाहता हूँ की आज की रात आप प्लीज अपनी मर्जी से ख़ुशी से भाई के साथ साथ मुझ से भी चुदवाइये। भाभी आज अपना वचन पूरा कीजिये की आप मुझे कुछ भी करने से रोकोगे नहीं। बोलिये आप अपना वचन पूरा करोगे या नहीं? या यह कह कर मुकर जाओगे की वह वचन मज़बूरी में दिया था।"

तरुण को पता था की दीपा की यह कमजोरी थी की वह बार बार कहती थी की वह कभी अपने दिए हुए वचन से मुकरती नहीं थी। दीपा ने तरुण की और असहाय नजरों से देखते हुए पूछा, "तरुण, मैंने यह तो नहीं कहा की मैं दिए हुए वचन से मुकर जाउंगी? मैं जानती हूँ तुम मुझसे क्या चाहते हो। पर यह मेरे लिए बहोत ही मुश्किल है। बात सिर्फ मेरी होती तो शायद मैं मान भी जाती। पर देखो यहां बात सिर्फ मेरी नहीं है। मैं शादीशुदा हूँ। मेरे साथ मेरे पति भी हैं। उनके पीछे मैं उनको धोखा नहीं दे सकती। मैं अगर वचन निभाऊंगी तो उनका क्या?"

तरुण समझ गया की अब दीपा उसके चंगुल में फँस चुकी है। उसने कहा, "भाभी आप की बात सौ फीसदी सही है। मैं भी नहीं चाहता की आप भाई को धोखा दो। पर अगर भाई को भी कोई आपत्ति ना हो तो? अगर भाई खुद ही आपको इजाजत दें तो? फिर तो आप मान जाएंगे ना? आप ने ही तो अभी अभी कहा, की बात अगर आप पर आये तो आप मान जाओगे। बोलो भाभी, जवाब दो ना? भाभी आज की रात हम सब भाई के भी साथ मिल कर एम. एम. एफ़. थ्रीसम का आनंद लेते हैं।"

दीपा ने तरुण की और देख कर पूछा, "तरुण, यह क्या नया तुक्का तुमने निकाला है, यह थ्रीसम और एम.एम.ऍफ़ का? यह क्या है भाई?"

तरुण ने कहा, "भाभी मैं प्रॉमिस करता हूँ की यह सब मैं आपको और भाई को थोड़ी देर में ही कार में जरूर बताऊंगा। अभी तो आप बस मुझे थोड़ा आपको छेड़ने दीजिये। प्लीज?"

अब दीपा के पास तरुण की बात का कोई जवाब नहीं था। दीपा समझ गयी की वह फँस चुकी थी। वह चुपचाप खड़ी तरुण की और मायूस सी देखती रही। दीपा की शक्ल और हालात देख कर ऐसा लगता था जैसे एक बकरी अपनी कतल होने वाली ही है यह जानते हुए अपने कातिल के सामने लाचार खड़ी हो।

तरुण ने कहा, "भाभीजी, बोलिये आप चुप क्यों हैं? क्या आप अपना वचन निभाएंगीं, या मुकर जायेंगीं?"

दीपा एकदम सिमटी हुई दयनीय भाव से तरुण की और देख कर बोली, "तरुण तुमने यह ठीक नहीं किया। तुमने मुझे फाँस दिया। मैं क्या करूँ? यह बात तो सही है की मैंने वचन तो मज़बूरी में ही दिया था। पर मैं मुकर तो सकती नहीं, वचन दिया है तो निभाना तो पडेगा ही। अगर तुम्हारे भाई को कोई प्रॉब्लम नहीं हो तो फिर मैं तो फँस ही गयी ना?"

तरुण ने कहा, "भाभी, मैं आपको और कटघरे में खड़ा कर परेशान नहीं करूंगा। भाई को कोई प्रॉब्लम नहीं है। मैं जो भी करता हूँ भाई को पूछ कर करता हूँ। मैं चाहता हूँ की आप अभी बस थोड़ी देर के लिए चुपचाप खड़े रहिये प्लीज? भाभी, आप घबड़ाइये नहीं। देखिये, आप भी जानती हैं की अगर मैं चाहता तो आप को सिर्फ यहां ही नहीं, कई जगह चोद सकता था। आप कुछ नहीं कर पाते। पर मैं आपको आपकी मर्जी के बगैर चोदना नहीं चाहता था और ना कभी आप की मर्जी के बगैर चोदुँगा। अभी तो मैं बस आपके साथ सिर्फ थोड़ी छेड़खानी, थोड़ी शरारत करना चाहता हूँ। आपने ही आज रात मुझे शरारत करने के लिए इजाजत दे दी है तो कुछ देर मुझे भी तो आपके बदन से मेरा बदन रगड़ लेने दीजिये ना? भाई के आने के बाद तो आप बस उनका ही ध्यान रखेंगी ना? फिर तो आप दोनों ही एक दूसरे के साथ चालू हो जाओगे। आप फिर मुझे कहाँ पूछेंगी?"

अपने ही वचन में पूरी तरह फँसी हुई दीपा बेचारी चुपचाप खड़ी रही और इंतजार कर रही थी की अब आगे तरुण क्या गुल खिलाता है? तरुण ने दीपा को कस कर पकड़ा और उसे चूमने लग गया। दीपा को समझ नहीं आया की वह क्या करे? तरुण ने उसे बड़ी ही चालाकी से अपने चंगुल में फाँस लिया था। वह ना तो हिल सकती थी ना तो चिल्ला सकती थी क्यूंकि चिल्लाने से उसकी चीख सुन कर कोई घर से बाहर निकल कर उनकी यह हरकत देख सकता था। और बदनामी होगी तो सबकी होगी।

दीपा में उतनी ताकत थी नहीं की तरुण को वह धक्का मार कर हटा सके। दूसरे तरुण ने दीपा को स्पष्ट रूप से कह दिया था की वह दीपा को चोदेगा और दीपा ने भी "वचन तो निभाना ही पडेगा" यह कह कर तरुण को साफ़ साफ़ इशारा कर दिया था की वह तरुण से चुदवायेगी। तो अब तरुण जो करेगा उसे झेलना ही पडेगा यह सोच कर लाचारी में दीपा वहीँ खड़ी रही और आगे तरुण क्या करेगा उसका डर के मारे इंतजार करने लगी। दीपा ने यह भी महसूस किया की तरुण का लण्ड उस की पतलून में एकदम खड़ा हो गया था और तरुण उस खड़े लण्ड से दीपा की टाँगों के बिच में जैसे दीपा की चूत को चोद रहा हो ऐसे धक्के मार रहा था।

दीपा यह सोच कर परेशान हो रही थी की तरुण का लण्ड उसकी पतलून और उसके अंडरवियर में बंद था। दीपा ने भी साडी, पेटीकोट और पैंटी पहनी थी। फिर भी दीपा को ऐसे महसूस हो रहा था जैसे तरुण और दीपा ने कोई भी कपडे नहीं पहने हों और तरुण दीपा की चूत में उसका लण्ड डाल रहा हो। क्या तरुण का लण्ड इतना लंबा और फौलादी सा था की इतने सारे कपड़ों के बिच में होते हुए भी दीपा को ऐसे महसूस हो रहा था जैसे की तरुण का लण्ड उसकी की चूत में घुस रहा था?

तरुण के चुम्बन करने से और चुदाई वाली एक्टिंग से दीपा की उत्तेजना भी बढ़ गयी थी। दीपा की चूत गीली हो रही थी। दीपा तरुण के बदन के दबाव के कारण हिल भी नहीं पा रही थी। उनकी बातों से यह तय हो ही चुका था की मौक़ा मिलने पर तरुण दीपा को उसी रात चोदना चाहता था और दीपा उसे रोक नहीं पाएगी। दीपा को तरुण से चुदवाना ही पडेगा।

दीपा ने सोचा की उसने जब तरुण को यह इशारा कर ही दिया था की वह तरुण से चुदवायेगी, तब फिर अगर तरुण उसे कपडे पहने हुए ऊपर से चोदने की एक्टिंग कर रहा था तो अगर ऐसा करने से उसकी सेक्स की भूख कुछ कम होती है तो फिर उसे रोकने से क्या फ़ायदा?

तरुण ने कुछ पल के लिए अपने होँठ दीपा के होँठों से अलग किये और बोला, "भाभीजी, मुझे माफ़ कर देना पर आज आप इतनी कातिलाना लग रही को मैं अपने आप को रोक नहीं पा रहा हूँ। मैं कभी से आपके होंठों के रस को चूसने के लिए तड़प रहा था। भाई के आने के बाद मुझे यह मौक़ा कहाँ मिलेगा? फिर तो आप दोनों ही आपस में चिपक जाओगे, मैं तो सिर्फ देखता ही रह जाऊंगा? बस दो मिनट के लिए तो मुझे चूमने दीजिये और कुछ देर अपनी मन मानी करने दीजिये ना प्लीज?"

दीपा और कर भी क्या सकती थी? दीपा ने अपने होँठ खोल दिए और तरुण को उसके होँठ चूसने और चूमने का मौक़ा दे दिया। दीपा असहाय हो कर वहाँ खड़ी तरुण को चूमने लगी और तरुण से कपडे पहने हुए ही कपड़ों के उपर से ही जैसे तरुण उसे चोद रहा हो ऐसे धक्के खाती रही और धक्कों से हिलती भी रही। तरुण भी मौके का फायदा उठा कर दीपा को कपड़ों के ऊपर से ही चोदने में लगा था। दीपा ने तरुण को रोकना चाहा पर जैसे वह तरुण के साथ चूमने में शामिल हुई वैसे धीरे धीरे उसका अवरोध कम होने लगा। फिर दीपा भी यह सोच कर तरुण के बदन से चिपक कर लिपट गयी और तरुण की कमर पर अपने दोनों हाथ लपेट कर तरुण के पेंडू से मारते हुए धक्कों को बिना अवरोध किये हुए जैसे दीपा खुद चुदवा रही हो ऐसे दिखावा करने लगी की अगर चंद मिनटों के लिए तरुण को ऐसे करने से ही सकून मिलता है तो उसे एन्जॉय कर लेने दो।

दीपा ने तरुण के कानों में कहा, "तरुण देखो तुम कहते हो तो सिर्फ पांच मिनट के लिए ठीक है, चलो जो करना है कर लो। मैं तुम्हारा साथ दे देती हूँ। पर देखो प्लीज, कपड़ों को मत खोलना। कपड़े उतरने के बाद में उनको खुले में पहनना बहुत मुश्किल है। प्लीज तुम्हारे भाई आ जायें उससे पहले यह सब ड्रामा बंद करोगे। ओके?" और चुपचाप उसे चूमने लगी।

तरुण कहाँ रुकने वाला था? जब उसे लगा की अभी मुझे निकलने में थोड़ी देर लग सकती है तो तरुण ने दीपा की छाती पर हाथ फिरा कर दीपा के मस्त स्तनोँ को ब्लाउज के ऊपर से ही मसलने लगा। ऐसा करने के लिए उसे दीपा से थोड़ा अलग होना पड़ा। दीपा का ब्लाउज भी तो ऐसा था की दीपा के भरे हुए अनार जैसे स्तनों को उस छोटी सी पट्टी में बांधे रखना नामुमकिन था। तरुण के अंदर हाथ डाल कर ब्लाउज को ऊपर सरका ने से दीपा की गुम्बज तरुण के हाथों में आ गए। तरुण ने उन्हें बेरहमी से मसलना शुरू किया। दीपा की चूत ना सिर्फ गीली हुई थी। तरुण के लण्ड के बार बार दीपा की चूत को कपड़ों के ऊपर से ही ठोकने के कारण वह मचल रही थी।


दीपा इतनी गरम हो रही थी की उसके मुंह से बरबस एकदम धीमी आवाज में कामुकता भरी कराहटें "आह........ ओह........ उफ़....... हाय.... अरे तरुण, क्या कर रहे हो? रुक जाओ ना, प्लीज? कोई देख लेगा" निकल ने लगीं। तरुण की हरकतों से वह इतनी गर्म हो चुकी थी की दीपा को डर लगा की अगर जल्दी ही तरुण रुका नहीं तो दीपा कहीं खुद ही अपना घाघरा ऊपर कर तरुण से चुदवाने के लिए कहने को मजबूर ना हो जाए।

ऐसे ही कुछ देर तक तरुण दीपा के बूब्स को कभी ब्लाउज के ऊपर से तो कभी ब्लाउज के अंदर हाथ डाल कर मसलता रहा और दीपा की निप्पलोँ को उँगलियों में पिचकता रहा। साथ साथ में दीपा को कपड़ों के ऊपर से चोदता रहा। दीपा अपने आप को रोक नहीं पा रही थी। दीपा भी काम वासना की ज्वाला में जल रही थी। दीपा भी खुद तरुण की कमर पकड़ कर जैसे उससे चुदवा रही हो ऐसे कर रही थी और उसके कारण उसका मन भी शायद तरुण का लण्ड लेने के लिए व्याकुल हो रहा था। एक तरफ वह तरुण को रोकना चाहती थी तो दूसरी और उसके मुंह से बरबस ही दबी हुई आवाज में कामुकता से उत्तेजित आहटें निकल रहीं थीं जो तरुण को और भी उत्तेजित कर रहीं थीं।

कुछ ही देर में जब दीपा ने देखा की उसे तरुण को रोकना ही होगा, वरना गजब हो जाएगा तब मौक़ा देख कर दीपा तरुण से अलग खड़ी हो गयी और तरुण को लाल आँखें दिखा कर बोली, "यह क्या है तरुण? तुम्हें तो ज़रा भी ढील नहीं देनी चाहिए। तुम तो उंगली देती हूँ तो बाँह ही पकड़ लेते हो। कुछ हँसी मजाक छेड़खानी ठीक है, पर तुम तो दानापानी लेकर चालु ही हो जाते हो? अभी तो रात शुरू भी नहीं हुई की तुम तो चालु हो गए?"

तरुण ने कहा, "ठीक है भाभी माफ़ कर देना। अगर आप कहते हो तो ठीक है। शुरुआत के लिए अभी इतना ही काफी है। ओके? भाभी क्या करूँ? आपको देख कर मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा। सॉरी भाभी।"

फिर तरुण ने दीपा के गालों पर हलके से उंगलिया फेरते हुए कहा, "भाभी आप नाराज तो नहीं हो ना? देखो भाभी आज की रात मेरी हरकतों का बुरा मत मानना। प्लीज?"

दीपा ने तरुण का हाथ अपने गालों से हटाते हुए कुछ मज़बूरी में मुस्काते हुए कहा, "चलो ठीक है। तुम्हारे भाई आने वाले हैं। अब चुपचाप चलो और कोई शरारत मत करना। ओके?"

तरुण ने कहा, "भाभी इतने से ही तंग आ गए? यह तो शुरुआत है। शरारत तो अभी बाकी है। आज की रात तो मजे करने के लिए ही है ना?"

दीपा ने चेहरे पर खिसिआनि मुस्कान लाते हुए कहा, "पता नहीं, बाबा और कितनी शरारत करोगे तुम? ठीक है बाबा, रात तो अभी बाकी है ना और शरारत करने के लिए? अभी तो चलो यार।"

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चाहत... {completed} - by usaiha2 - 07-12-2019, 07:05 PM
RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 07-12-2019, 07:06 PM
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RE: चाहत... {completed} - by usaiha2 - 07-12-2019, 07:26 PM
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RE: चाहत... {completed} - by kamdev99008 - 15-12-2019, 01:51 AM
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RE: चाहत... {completed} - by dickcassidy - 08-08-2021, 01:15 AM
RE: चाहत... {completed} - by raj500265 - 21-08-2022, 01:01 AM
RE: चाहत... {completed} - by koolme98 - 01-02-2023, 04:34 PM



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